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( ११४ )
चोर ॥ सु० ॥ सु० ॥ कीधो गुण जाणे नही रे ॥ ॥ सु० ॥ माणस नही ते ढोर ॥ सु० ॥ ए ॥ सु० ॥ ऊठीने तुं पंखीया रे ॥ सुं० ॥ तुं मत करजे ढील ॥ ॥ सु० ॥ ० ॥ कहेजे मुऊ संदेशडो रे ॥ सु० ॥ सु० जिहां होये नाह रंगील ॥ सु० ॥ १० ॥ सु० ॥ अब ला तुम घर एकली रे ॥ सु० ॥ बे विरहिणीने वेश ॥ सु० ॥ सु० ॥ कुरि जूरि ऊंखर थइ रे ॥ सु० ॥ थइ नारी नरवेश ॥ सु० ॥ ११ ॥ सु० ॥ प्रीतमना विर हाथकी रे ॥ सु० ॥ मुर्ज न दीसे कोय ॥ सु० ॥ सु०॥ पण तंबोली पान ज्युं रे ॥ सु० ॥ दिन दिन पीलां होय ॥ ० ॥ १२ ॥० ॥ पियु विरहें करि नारियें रे ॥ सु० ॥ तजियां तेल तंबोल ॥ सु० ॥ सु० ॥ खाणां पीणां परणां रे ॥ सु० ॥ तजीयां सखीगुं टकोल ॥ सु० ॥ १३ ॥ ० ॥ पियु विल शागार पहेरतां रे ॥ सु० ॥ लागे अंगारा समान ॥ सु० ॥ सु० ॥ चं दन चूवा गीठियो रे ॥ सु० ॥ नागिणी नागर पान ॥ सु० ॥ १४ ॥ ० ॥ पियु विरहें घडी मासडो रे ॥ ॥ सु०॥ मास ते वरसज होय ॥ सु०॥ सु० ॥ खिय घरमें खिल यांगों रे ॥ सु० ॥ पियु विष ए गति जोय ॥ सु० ॥ १५ ॥ सु० ॥ नयणें नावे निड्डी रे
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