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________________ (११७) स्तकें लखियो न जाय ॥ सु० ॥ ॥ सु० ॥ वेधकने मन वघ्नही रे ॥ सु॥ ए पंचदशमी ढाल ॥ सु०॥ ॥सु०॥लब्धे बीजा नन्नासनी रे ॥ सु०॥ कही गुन रंग रसाल ॥ सु० ॥ ३० ॥ सु॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे प्रीतम घरे वतां,वाध्यो नवलो नेह ॥ मुह माग्या पासा ढव्या, अमियें वूा मेद ॥ १ ॥ नव पल्लव थइ अंगना, वसंतसिरी गुणगेह ॥ प्रेम सरोवर जीलता, वानो वधियो देह ॥ २ ॥ दंपति दो रंगें मव्यां, सुख नर कीधी वात ।। फुःख दोहग दूरेंगयां, प्रगटी ते सुख शात ॥३॥ कहे नारी पियु सांजलो, धुरथी कहूँ ससनेह ॥ तुमें चाव्या लंकाजणी, पाल ल वीती जेह ॥ ४ ॥ में तुमने पहेलां कही, ते सं नारो नाथ ॥ नृपने मंदिर दाखव्यू, दीपक ले निज हाथ ॥ ५॥ ते वात यावी आग, जव तुमें चा व्या लंक ॥ तव नृप मुफ के. पडयो, जाणीने निःशं क ॥ ६ ॥ मेहेमंतो कवट थइ, गज शिर नाखे धूल ॥ तिम नृप दासी मोकली, करवा मुफ अनुकूल ॥ ७ ॥ ॥ ढाल शोलमी॥ : ॥ एतो नथडीरो मोती अजब बन्यो॥ ए देशी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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