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________________ (७६) जिण दिनथी तुम घेर आव्या रे, तिण दिनथी तुमें दिल नाव्यां रे ॥ नलां नोजन जव तुमें प्रीस्यां रे, तिण वेलाथी नृप दिल हीस्यां रे ॥ १ ॥ देखी तु मची सुघडाइरे, नृप चाहे तुमने सदायरे ॥ ए कला लच रहे तुम केरी रे, जिम लोनीने नाणा केरी रे ॥ २२ ॥ तुम विरहें करीनृप रे रे, राज काज ते मू क्यां दूरे रे ॥ जेम योगी प्रजुने ध्यावे रे, तेम नृप तुम नाम जपावे रे ॥ २३ ॥ श्म राखे एकंगी तुम शुं रे, मन मेल करो तुमें नृपयुं रे ॥ सरिखा सरि खो मल्यो जोडो रे, नृपयुं तुमें तान म तोडो रे ॥ ॥ २४ ॥ बाइ तुम मोहोटी पुण्याई रे, नृपशुं यात्री त सगाई रे ॥ ए वात विधातायें मेली रे, जाणे पय मां साकर नेली रे ॥२५॥ तुमें जो कहो सारंगनय पी रे, नृप आवे तुम घरे रयणी रे ॥ण वातें ला न तुमने रे, राजी करी वोलावो अमने रे ॥२६॥ एम दासीनी सांजली वाणी रे, तव कुमरी रोषे जरा णी रे ॥ जिम लागे विंबीनो चटको रे, तिम कुमरी ने लागे नटको रे ॥ २७ ॥ हवे सुगजो कुमरी व्या पे रे, शेर सुखडी दासीने आपे रे ॥ एतो बीजा उ हलासनी ढाल रे, लब्धं कही नवमी रसाल रे॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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