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________________ (७) ॥दोहा॥ ॥ हवे कुमरी को करी, दे दासीने मार ॥ निं दे तिम जीवित लगें, गडदा पाटु प्रहार ॥ १ ॥ ना ती जीवित लेश्ने, चतुरा माही जेह ॥ नृप आगल यावी कहे, सघली मांमी तेह ॥॥ नासंत नू नारे थइ, केती कहुं माहाराज ॥ लहेणेथी देणे प डी, ए फल लडं तुम काज ॥३॥ स्वामी तुम प रसादथी, जडियो कुंदीपाक ॥ साजी हलदर सेवगुं, तव होशे तन चाक ॥४॥ स्वामी हरिबलनी प्रिया, दीती बडी कुपात्र ॥ जाणे कौअचवेलडी, घर सर खी नही यात्र ।। ५॥ ते माटे प्रनुजी सुंगो, ए नावे तुम हाथ ॥ एहथी मनडुं वाल जो, कर जोडी कहूँ नाथ ॥ ६॥ एह वचन दासी तणां, सांजलि नृप नलकाय ॥ हा हा में ए झुं कडे, इम नृप धोखो क राय ॥ ७ ॥ शी मनमें धारी हती, दैवें शी करी वा त ॥ नृप करए परसादथी, व्याने हिज नदात ॥७॥ जाण्युं हतुं व३. यावशे, हरिबल केरी नारि ॥ पण साहामुं इणि नारियें, उतायुं नृपवारि ॥ए ॥ हाणि अने हांसी बह, था नृप चिंते एम ॥ एह उख के हने दाखवू, दो- दाधो जेम॥१०॥ इम नरपति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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