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________________ (५०५) यो रे, मेव्यां कुकर्मनां मूल ॥ सा ॥ कोडीनी गरज सरी नही रे, नृप करे नावी धूल ॥॥ सा ॥ मुज घरे ने बती पदमणी रे, राणी रूप निधान ॥सा॥ ते मूकी होंशी थयो रे, उखर करवा निदान ॥ ७॥ सा० ॥ जे स्त्री अशुचिनी कोथली रे,मल मूत्र नरियां गात्र ॥ सा ॥ बारे चार वही रह्यां रे, पहेत्यां दिसे सुपात्र ॥ ए ॥ सा० ॥ अण बोलाव्यां सुंदरु रे, दीसे ढांक्यां रतन्न ॥ सा ॥काम पडे त्रटकी वहे रे, वि चक विचाडी तन्न॥१॥सा॥जागे योवन वाधे कामनुं जोर ॥ सा ॥ सिम साधक कुण सुर नरा रे, जोवे अंगनां गोर ॥ ११ ॥ सा ॥ पंचास्ति कायमें पण कयां रे, जिनवरें कामनां बाण ॥ सा० ॥ तो मानवतुं शुंगजुं रे, कामें मनावीआण ॥१२॥ सा० ॥ धिग धिग काम विटंबना रे, कामें लाज गमा य॥ सा ॥ कामें खोवे मालने रे, कामें गीत गवाय ॥ १३ ॥ सा ॥ वध बंधन कामें लहे रे, कामें चा टंगाय ॥ सा० ॥ कामें दंम नरे सही रे, कामें हां सी कराय ॥ १४ ॥ सा ॥ कामज्वरें बलतो रहें रें, तनथी दीण ते थाय ॥ सा ॥मात पिता दक नवि गणे रे, न गणे कामांध काय ॥ १५ ॥ सा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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