________________
(६७)
ने ए साखी दो राज ॥ करणीनुं कारण को नही, नवितव्यतानुं कारण सघले जिन वाणी नांखी हो राज ॥२॥ नवस्थिति पूरी थया विना, उद्यम जीव करे पण लेखे कदिय न आवे हो राज ॥ माली सी चे सोगणां,पण तेहनी ऊतावलें तु विना फल नवि पावे हो राज ॥२५॥ तिम आपणी कतावलें, समकि त रयण विना किम नवस्थिति पाकी जाय हो राज ॥ घjष नूरख्यो पण युं करे, लाख उतावल करी ये बे करथी न जमाय हो राज ॥ २६ ॥ तिम इव्य क्रियाथी न घडे, नाव क्रिया जब ज्यंतर प्रगटे तब शिव पावे हो राज ॥ जिहां सुधी समकित नविल युं, तिहां सूधी ते जीवने चिटुं गति कर्म नमावे दो राज ॥ १७॥ व्यथी उघा चरवला,एकठा कीधा जी वें मेरु जेवडा ढगला हो राज ॥ तो पण गरज सरी नही, जाव विना जे किरिया कीधी दंनी ज्युं बगला हो राज ॥ २ ॥ ते माटें मंत्री तुमें, शील कुशील नु कारण कोई हां मत गणजो हो राज ॥ पांचे कारण जब मिले, नवितव्यताने जोगें शुनागुन तव नएजो हो राज ॥ श्ए । एहवो उत्तर मंत्रीने, मद नवेगें दीयो चोखो हाथमें लाडु हो राज ॥ वली
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org