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________________ (१०५) ल॥ मो० ॥ मूको स्वामी मुऊने रे, निज नगरी वि शाल ॥१३॥ मो० ॥ अश्व चढावी दो जणा रे, मू क्या नगर नजीक ॥ मो० ॥ चिंतव्युं दोशे तुम तणुं रे, सुर कहे जाणजो तीक ॥ १४ ॥ मो॥ एमक हीने ते गयो रे, नाखी जे निज थान ॥ मो० ॥मन वंबित सफलृ थयुं रे, दंपतिपुण्य निधान ॥ १५ ॥ मो० ॥ नगरीनी जे वाटिका रे, तेहमें उतारो की ध॥ मो० ॥ दंपति करे गहगट्टिका रे, जाणे मनो रथ सि॥ १६ ॥ मो० ॥ हवे माली संध्या समे रे, आव्यो निज घर हेत ॥ मो० ॥ शय्या खाली दृष्टि में रे, यावी ते नजरें रेत ॥ १७॥ किहां गई प्यारी, मोमन प्यारी॥ए आंकणी॥हल फलतो जोतो फरे रे, संघले मंदिर मष्न ।। कि० ॥ पुत्रीन दीठी झुं करे रे, वलि थयो जोवा सऊ॥१७॥ कि० ॥ वलि नवि दीती तुंबडी रे, जे नरी अमृत तोय ॥ कि० ॥ ले ग ई साथें तुंबडी रे, कोश्क पुरुषने जोय ॥१॥कि॥ पगलुं जोवा नीकट्यो रे, पग पग जोतो वाट ॥कि०॥ परहीपनो पग अटकल्यो रे, तव थयो तेहने उच्चा ट ॥ २०॥ कि० ॥ पग जोयो जलधि जणी रे, पुत्री गइ करि नाथ ॥ कि० ॥ बारामिक ते नीमना रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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