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ज्युं गयां नंटनां शिंग || मो० ॥ २१ ॥ ३० ॥ दो कुमरीनी बाती तरी रे, तस्यां वलि मावित्र मन्न ॥ मो० ॥ नली थर जे शब्य नीकल्युं रे, नलसि रोम राजी तन्न ॥ ॥ मो० ॥ २२ ॥ ३०॥ इम दरखी कहे नातिने रे, हरि न ते कर जोड | मो० ॥ बे नाति महीमें मोटकी रे, नाति बे शिरनो मोड | मो० ॥ २३ ॥ ५० ॥ नातिथकी तरियें सदा रे, जो चाले कुलवह ॥ मो० ॥ जो वहे चाडो नातिथी रे, तो होवे दहवट्ट || मो० ॥ २४ ॥ ३०|| जे निजवर्ग दूरें तजी रे, करे वल्लन परवर्ग ॥मो० ॥ ते नृप कुकर्दम परें रे, पामे ते दुःख अपवर्ग ॥ मो० ॥ ॥ २५ ॥ ३० ॥ नातिथी अधिको को नहिं रे, नाति बे गंग प्रवाह || मो० ॥ तरीयें बूडीयें नातिथी रे, नातिथी लहियें उबाह || मो० ॥ २६ ॥ ३० ॥ इम स्तवना करी नातिनी रे, हरिनहें द्विजनी प्रसिद्ध ॥ ॥ मो० ॥ संप्रेडी निज वर्गने रे, राजी करि जस ली ध ॥ मो० ॥ २७ ॥ २० ॥ ढाल कहि जंगलीशमी रें, चोथा उल्लासनी एह || मो० ॥ लब्धि कहे नवि सां जनो रें, धागल होवे जेह || मो० ॥ २८ ॥ ६० ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ हवे हरिह पासें रहे, पाडोशी ससनेह ॥ सुद
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