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( २१ )
कुमरी विरहें करि, थाये व्याकुल हो जावाने तेह के ॥ केइ घडी बे एहवी, जइ देखूं हो हरिबल ससनेहके ॥ १४ ॥ कुं० ॥ जेहनें जागे प्रीतडी, जाणे तेहने हो लाग्युं बे प्रेत के ॥ शूनी फरे तस देहडी, विरहानल दो चूसी बल लेत के ॥ १५ ॥ कुं० ॥ मन लाग्युं जस उपरें, तस चागल हो बीजो न सुहाय के ॥ खि घर में खि प्रांगणे, रहि न शके हो जाणे लागी बलाय के ॥ १६ ॥ कुं० ॥ बुद्धि कल जाये परी, नवि नकले हो निज घरनुं काम के ॥ कुरि फुरि पंज र कुश करे, कामी मन हो लुब्धयुं जे वाम के ॥ १७ ॥ कुं० ॥ मात पितादिक नवि गणे, नवि माने हो निजकुल मरजाद के || गुरु गोत्रज पण नवि गणे, विरहें करि हो मांगे उनमाद के ॥ १८ ॥ कुं० ॥ कु मरी कामातुर थई, हरिबलनो हो विरहो न खमाय के ॥ यन्न उदक दो नवि रुचे, वरवाने हो घणुं या कुली याय के ॥ १९ ॥ कु० ॥ मणि माणिक हीरा घ पा, हेम रजत ने दो मुगलाफल लेय के ॥ थरमां पा मरी सावटु, जरतारी हो जलां वस्त्र नरेय के ॥ २० ॥ कुं० ॥ सामग्री सघली करी, जावाने दो जिहां की धो संकेत के ॥ उंट सात नरिया जला, अश्व रतन हो
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