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(२२) कुमरी दो लेत के ॥ १॥ कुं० ॥ रजनी मध्य समे वही, दास दासी हो वलि साथै लीध के ॥ दरवाजे दरवानने, इव्य पापी हो घणुं राजी कीध के ॥ २२॥ कु० ॥ पोल उघाडी पोलीये, वहि कुमरी हो जिहां संकेत कीध के ॥ कालीकाने देउलें, तिहां पहोती हो मनवंडित सिम के ॥ १३ ॥ कु० ॥ धीवर सूतो ने जिहां, तिहां कुमरी हो यावी उजमाल के॥ ल ब्धि विजय रंगे करि, ढाल पांचमी हो कही रंग रसाल के ॥ कु० ॥२४॥
॥दोहा॥ ॥कुमरी कहे जागो प्रनु, मूको निश दूर॥आपण वही बे जणां, आगल पंथ सनूर ॥ १ ॥ अखुट खजानो लेश्ने,आवी टुं नरपूर ॥ करहा सात इव्ये न स्या, एह में तूम हजूर ॥ ५ ॥ अश्व रत्न दो लेश्ने, आवी बुं तुम कऊ ॥ संघ तजी उतावला, आची च डो थ सऊ.॥३॥ हरिबल वणीक ते जाणीने, विन वे कुमरी ताम॥धीवर सूतो जागीयो, केहने कहे अ अभिराम ॥॥ हरिलंकी अप्सर समी, देखी कुमरी रूप ॥ धीवर मन विव्हल थयुं, ए झुं दीसे सरूप ॥ ॥ ५॥ चमत्कार चित्तमें लही, धीवर चिंते ताम ॥
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