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(७५) वटें सिम न संपजे रे, जुजाथी न तराय ॥ स०॥ १५ ॥ गज पाखर जंबुकशिरें रे, नाखी तुमें राजान ॥स०॥ ते किम तिणथी कंधरा रे,नंची थावा निदान ॥ स ॥१३॥ मतकोटनी कटि उपरें रे, मूकी गोलनी गुण ॥ स० ॥ गात्र विना केम उपडे रे, जे करे गजा विहूण ॥ स॥ १३ ॥ तिम स्वामी संका गढ़ें रे, शक्ति विना कुण जाय ॥ स ॥ पूरो पराक मी जे होवे रे, ते जावा अंगमाय ॥ स ॥ १५ ॥ के वहे लंका देवता रे, के विद्याधर होय ॥ स ॥ के तपसी साधु जना रे, तो तरे जलनिधि तोय ॥ स० ॥१६॥ बीजानो शो आशरो रे, जलनिधिनोलहे ताग ॥ स० ॥ दशरथसुत एक सांजव्यो रे, जलधियें बां धी पाग ॥ स० ॥ १७ ॥ केवली हरिबलने सुण्यो रे, जे बेगे तुम पास ॥ स ॥ जावे ए लंका गढें रे, बीडं बबीने नन्नास ॥ स० ॥१७॥ सबल पुरुष ए जाणियें रे, एहमां ने जगदीश ॥ स ॥ काज तुमा संसारशे रे, पूरशे मननी जगीश ॥ स० ॥१५॥ इणि परें कुमति मंत्रिय रे, नृपने विनति कीध ॥ ॥ स० ॥ सुनट शिरोमणि इण समे रे, दीसे हरिबल सिम ॥ स० ॥ २० ॥ ते निसुणी नृप तिण वेला रे,
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