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(२ ) जीत मंका ॥ चोथा उन्नासनी ढाल चोवीशमी,लब्धि कहे युक्नी स्वर्ण टंका ॥ मो० ॥ २ ॥
॥दोहा॥ ॥ जित नीशाण वजावतो, इव्यथी नावथी जे ह ॥ विरबल केरो पुत्रडो, आव्यो जिन चरणेह ॥१॥ श्री मुनिचं जे केवली, तेहना प्रणमी पाय ॥ कहें मही कर जोडिने, संयम नारि मेलाय ॥ २ ॥ तव तिहां मुनिचं केवली, विलंब न कीध लगार ॥ क लशा चन करी धर्मना, रची चोरी सुखकार ॥३॥ पंच सया परिवारलॅ, मूकी मननो शोच ॥ स्वहस्तें पंच मुष्टिनो, हरिबलें कीधो लोच ॥॥ अध्यातमनी पीलिका,तस मंमाण करेह ॥ मस्तकें वास ते जिन व वी, करवा शिखगुण गेह ॥ ५ ॥ पंच माहा व्रत उच्चरी, फेरा फरीया चार ॥ वर नारी पारोगियां, सं वेग जे कंसार ॥६॥ गुरुना मुखथि कथा सुणी, शेठ तणो दृष्टांत ॥ चार वद चिद पुत्रनी, सरखी जोई तांत ॥ ७ ॥ पंचकण दीधावली तणा, दीधा वढूने हार ॥ एकें नारख्या एक खाइ गश्रारख्या एक विस्तार ॥७॥ गम वेदनी कामिका,करे मुख जिन उच्चार ॥ संयम स्त्री मबीयें वरी,वरत्या जय जयकार ॥ ए॥
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