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जें वंबित दान ॥ प्रजा मली सदु वीनवे, राज मा गे एतुं मान ॥ १७ ॥ रा॥ ए बी९ यमदूतर्नु,राज यो बीजाने जोय ॥ तुम सुखने जे वांडशे, राज करशे काज ते सोय ॥ १ए ॥ रा० ॥ परियागतना माल जे, राज खाता हशे तुम जेह ॥ ते किम पा बा देयशे, राज काम पडे पग तेह ॥ २०॥ रा० तव नृप रीष चढाइने, राज बोल्यो नृकुटी चढाय ॥ रहो अणबोली परज ते, राज समझो नही तुमें कांय ॥ २१ ॥रा ॥ तव परजा बानी रहि, राज समजी ते मनमांहि ॥ विण खूटे नृप कोपियो, रा ज सुगुणने करशे यांहि ॥ २२ ॥रा ॥ ये नृप पर्जने शीखडी, राज करतो क्रोध अपार ॥ याव्यो चांपलदे शिरें, राज मालव केरो नार॥ २३ ॥रा॥ ए नखाणो दाखवी, राज पर्जने कीध विदाय ॥ वि लखी थश्ने परज ते, राज उठी मन उलझाय ॥ ॥ २४ ॥ रा० ॥ चहुटे चढुटे चाचरें, राज मलीयां लोक अनेक ॥ टोलें टोलें सदु मली, राज करतां वात विवेक ॥ १५॥ रा ॥ कहे केतांक मानवी, राज नृप बिगड्यो स्त्री देख ॥ राखे हरिबल नपरें, राज ते लालचथी क्षेष ॥ २६ ॥ रा ॥ कहे केता
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