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________________ ( २४६ ) योग वह्या विण, वांच सूत्र न सूजे ॥ १९॥ानना पंचांगी में जोजो सघले, बे दर परगट्ट ॥ ते जा पीने हरिबल पोतें, करे करणी गरगट्ट ॥ २०॥ ॥ इणिपरें नृप राणी गृह बेगं, नाव संयमने पाले ॥ त्रिकरण शुद्धे नावें करीने, प्रातम जव अजुवाले ॥ ॥ २१ ॥ ज० ॥ हरिबल जे करे चैत्यनी करणी, ते कोइ कदेशे खोटी ॥ ते उपर तुमें सुणजो प्राणी, साखी कहुं हुं महोटी ॥ २२ ॥ ज० ॥ पांचमे खारे वीरने वारे, जे हुनु संप्रतिराजा ॥ सहस बत्रीश तें जीरण देहरां, सहस पचविश ते ताजां ॥ २३॥ ज०॥ ए संख्यायें चैत्य कराव्यां, बत्रीश थडां प्रासाद ॥ को टि सवा जंगली संख्यातां, बिंब जराव्यां वनाद ॥ ॥ २४ ॥ ज० ॥ पाटणराजें सिद्ध, सिंघपाटें जे दु कुमारपाल || बावन जीनालां तिथे पण कीधां, जीवित सूधी विशाल ॥ २५ ॥ ज० ॥ श्राबू उपरें र जत समोवड, देवल महोटां दीपे || श्रीश्रादीसर मूरति थापी, शा विमलो जग जीपे ॥ २६ ॥ ज० ॥ साते धातें चन्दे मानी, चन जिन पडिमा जरावी ॥ शा जीमे गढ आबूयें थापी, ते जुन नजरें चावी ॥ ॥ २७ ॥ ज० ॥ लाख नवाणुं खरची देवल, राणक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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