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________________ (१६७) इंच ज्यु कप रे, त्रीजा उल्लासनी चूंप रे, बातमी ढाल अनूप रे,लब्धि कहि निर्वाणरूप रे ॥शाह॥ ॥दोहा॥ । तटिनीनाथनो नाथजी, मनगुं थइ सुप्रसन्न ॥ हरिषस मूकी मंदिरें, पहोतो निज आसन्न ॥ १ ॥ जो जो नवियां पुण्यथी, हरिबल केरी ख्यात । देशे परदेशे चली, प्रबल ए पुण्यनी वात ॥ ३ ॥ दया सहित पुण्य जे करे, पामी मनु अवतार ॥ इह नव परनव-सुख घणां, पामे ते निरधार.॥३॥नेद कह्या नव पुण्यना, गणंगसूत्र मकार ॥इव्य जावथी सां धतां, सहियें सुख संसार ॥ ४ ॥ अन्न उदक वस्त्र सयण जे, शाला धर्म विशाल ॥ नमवू मण वय कायथी, ए नव पुण्य रसाल ॥ ५ ॥ जस घर पुण्य सखायी दे, तस घर लीलविलास ॥ शक्रपरें थश्नोगवे, रमणि शदि सुवास ॥६॥श्म जाणी नाविक तुमें,नि सुणी पुण्य प्रनाव ॥ हरिबलनी परें साथजो, प्रगटें पुरवसे नाव ॥ ७ ॥ ते नावें बेसी करि, तरी नव दधितीर ॥ ज्योतिरूप जगदीश जे, तेहमें करीयें शीर ॥ ७ ॥ परतख देखो पारिखं, लोक कहे श्रारख्या त॥ पोसार्नु परतखपणु, दल पामे परमात ॥ ८ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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