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॥ ढाल बीजी॥ ॥ नदी जमुनाके तीर, उडे दोय पंखीयां ॥ ए देशी ॥ नृप कहे सानल मंत्री,कढुं तुझ नीपनी ॥ हरि बल केरे मंदिर,जमतां जे कपनी ॥ हरिबल केरी नारि, वसंतसिरी सदा॥प्रीसवाावी नोजन,में दीठी तदा ॥ १॥ रूप अनोपम जाणीयें, अनिनव अपरी॥ के रंजा के उर्वशी, के विद्याधरी ॥ नागकुमारी ए जाएं के, लखमी किन्नरी॥ एहवी रूप निधान में, दीठी ए सुंदरी ॥ २ ॥ ए रूप पागल बीजी, स्त्रीयो बापड़ी । मान गुमान ते मूकी,दशो दिशि त्रापडी ॥ रंजा उर्वशी अपसर, जश् ननमें रही ॥ पद्मश्हमें लखमी, रही अंबुज ग्रही ॥ ३ ॥ नागकुमारी किन्नरी, नूतलें जश वसी ॥ वैताढयें विद्याधरी, रही जश्ने खसी ॥ जे रमणीनी उपमा,ते देतां सही॥ वसंतसिरी को आग ल, मामि शकी नही ॥ ४ ॥ ते अंगनानुं रूप, देखि हुँ वश थयो। खटरस नोजन जमतां, ते नूली गयो। मन ललचाणुं मुज,नमर जिम केतकी ॥ जिम मधु ख गलपटाय, थयुं तिम एथकी ॥ ५ ॥ कोश्क चोघडी यानी जे, आवी हिये चडी ॥ खिण खिण सांज रे वीसरे, नही ते अध घडी ॥ चित्रलिखित जो माव
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