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लो, वसंतसेन नूपाला लो ॥ २२ ॥ ज० ॥ जो जो धर्मी हरिबल, कर्मी अब्धियें रे लो, कीधो जाक ऊ माला लो ॥ ज० ॥ चोथा उल्लासनी पुण्य, प्रकाशनी लब्धियें रे लो, नांखी दशमी ढाला लो ॥ २३ ॥ ज० ॥ दोहा ॥
|| इलिपरें चित्तमां चिंतवी, वसंतसेन नूपाल ॥ कागल मश लेखण करी, मांगे लेख रसाल ॥ १ ॥ स्वस्ति श्री श्रीकृषनना, चरण कमल नमि तास ॥ लेख लख्यो रलियामणो, जामाताने उल्लास ॥ २ ॥ नृप तेडावे ततखिणें, मतिसागर मंत्रीश ॥ ते पण ततखिण यावियो, प्रणमी नाथ जगीश ॥ ३ ॥ नू प कहे सुण मंत्रवी, या सोंपूं तुऊ लेख ॥ जामाता सुफ पुत्रिने, देजे लेख विशेष ॥ ४ ॥ कहेजे प्रणि पत माहरी घणी करी मनुहार ॥ कहेजे ससरे तेड वा, मूक्यो मुक्त निरधार ॥ ५ ॥ शीख जलाम इ पिरें, नृपें कीधी जोर ॥ सैननुं मंत्री संचरखो, देइ न गारे ठोर ॥ ६ ॥ कंचन पुरनां मानवी, सघले जाली वात ॥ जामाता निज पुत्रिने, मूक्यो तेडवा साथ ॥ ७ ॥ मंत्री साथै परवरी, सेना पंच हजार ॥ योजन चनसय संघिने, धाव्यो विशाला पार ॥ ८ ॥ वीशालापुर नय
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