________________
(१५६) पण काम पडे मीनी मुंषकने ॥ सो॥ मुनने मिश करे संहार के ॥ला ॥१॥ ए दृष्टांत ते नृपें क यो । सो०॥ मांझयो बिडानो ए पास के ॥ ला॥ कोश्कनी ते फरी दिशा ॥ सो० ॥ लुसी मुसी लेशे तास के ॥ ला ॥ २ ॥ श्म समजी मनमें रही । ॥ सो० ॥ सदु परजा मौन धरेय के ॥ ला० ॥ स्व र्ग मटा मट जोइ रही ॥ सो ॥ पण उत्तर कोइ न देय के ॥ला ॥ १३ ॥ तव नृप बोल्यो घरकीने ॥ ॥ सो० ॥ ए तो लमणे नृकुटी चढाय के । ला॥ ग्रास खा तुमें अम तणा ॥ सो॥ हवे बेठा कान ढलाय के ॥ ला ॥ २४ ॥ जो अम ग्रासनो खप क रो॥ सो०॥ तो तुमें ग्रहो बीईं एह के ॥ला ॥ नहितर को मारग ग्रहो ॥ सो० ॥ अन्य मूलकनो होय जेह के ॥ ला॥ २५॥ इणि परें नरपति बोलि यो।सो॥ थरकी परखद त्यांहि के आला ॥ चम क्यां सदुनां शीश ते ॥ सो ॥ नप मूकशे के यम ज्यांहि के ॥ला ॥२६ ॥ मावित्र द्ये फुःख बोरुने ॥ ॥ सो० ॥ कहो तस कुण राखणहार के ॥ ला॥ वाड जो गलशे चीनडां ॥सो०॥ कहां होवे तास पुकार के ॥ला ॥ २७ ॥ हवे सुणजो नवियण
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org