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________________ ( १५५ ) ग्रहो तुम एह के ॥ ना० ॥ यमने नोतरुं देने ॥ ॥ सो० ॥ तेडी खावो तेह के ॥ ला० ॥ १४ ॥ वैशा ख शुदि पांचम लगें ॥ सो० ॥ तेडी लावे जेह के ॥ ॥ जा० ॥ माहरी रीऊ ते पामशे ॥ सो० ॥ मनोवं बित ससनेह के || ला ० ॥ १५ ॥ ते माटे बीडं ग्रहो ॥ सो० ॥ जेहमां होवे साच के । ला० ॥ जीवित लगें हुं तेहनी ॥ सो० ॥ पालीश सुपरें वाच के ॥ ॥ ला० ॥ १६ ॥ इम नृप वाणी सांजली ॥ सो० ॥ सना थई विल के ॥ जा० ॥ पर्षद मौन की रही ॥ सो० ॥ जाणे तेलमें बूडी मद के ॥ ला० ॥ ॥ १७ ॥ निज निज मुख सामुं जुवे ॥ सो० ॥ परषद थइ मन नूर के || ला० ॥ उपडे को नहिं जीनडी ॥ ॥ सो० ॥ जाणे गजे देवालो सिंदूर के | ना० ॥ ॥ १८ ॥ परषद जाणे मन्नमें ॥ सो० ॥ ए शुं बोल्यो राय के || जा० ॥ देखी पेखी यम घरें ॥ सो० ॥ क हो किम तिहां जवराय के । ला० ॥ १९ ॥ सहि तो ए परजले सहि ॥ सो० ॥ नृपनी दृष्टि फरेय के ॥ ला ॥ लूंटी धनने लेयो ॥ सो० ॥ यमनुं मसलूं करेय के । ला० ॥ २० ॥ खागें तो नृप जाणतो ॥ ॥ सो० ॥ मिनि कंकण पहेयां केदार के || ला० ॥ , Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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