________________
(१५४) . ॥ सो॥रांको रंगो रंगील के ॥ला ॥६॥ वाघो वेलो वालजी ॥ सो० ॥ वीरो ने वीरचंद के ॥ला॥ हेमो हीरो हर्षसी ॥ सो ॥ हंसो ने हरचंद के ॥ ॥ला ॥७॥ गोडीदास गलालजी ॥ सो०॥ गांगो ने गोपाल के ॥ ला ॥ गणजी गणेश ने गांगजी ॥ ॥ सो० ॥ गोविंद गोरो गलाल के ला॥ ॥ ख बो खीमो खेमजी ।। सो० ॥ खागोने खुशाल के ॥ ॥ला ॥ तारो तुलशी त्रीकमो ॥ सो ॥ त्र्यंबकने त्रिजुवन्न के ॥ला॥ए || शिवो सेवक श्यामजी।। ॥ सो॥ शामो ने शिवचंद के ॥ला ॥ सारो शिव शी शामजी ॥ सो ॥ साचो साकर लूंद के ॥ ला॥ ॥ १०॥ इत्यादिक व्यवहारिया ॥ सो०॥ मलिया माहाजन साथ के ॥ ला॥ नेट नली नृपने करी॥ ॥सो॥ बेता प्रणमी नाथ के ॥ला॥११॥ इणि परें सदु नगरी जमा ॥ सो०॥ मेव्या वर्ण अढार के ॥ला ॥ बेठी परखद सदु मली ॥ सो० ॥ नृपने करीने जुहार के ॥ ला ॥ १२॥ हवे नृप अवसर जोश्ने ॥ सो ॥ बोल्यो वयण विचद के ॥ ला॥ बीडुं यम आमंत्रवा ॥ सो ॥ मूके पंच समद के ॥ला ॥१३॥ रे सामंतो सजिलो ॥ सो॥ बीडं
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org