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(४५) ॥या॥ निज निज जश लेवा नणी ॥११॥ कहे एक नाडी देख, नृपने तो रोग अशेष ॥ श्रा० ॥दा ह ज्वर मूर्जा सही। हांकी. बोले वैद्य, ने मुफ गो ली सद्य ॥ा ॥ बत्रीश रोग हणे सही ॥१२॥ जे हता वैद्य ते सर्व, मना राखता गर्व ॥ आ॥ पाली मठ पोषी रह्या ॥ बहु ते कीध उपाय, पण नृपरोग न जाय ॥ आ० ॥ वैद्य प्रमुख पोथी वह्या ॥ १३ ॥ बोल्या जोषी जाण, नांखे लगन प्रमाण ॥ आ ॥ ग्रह पीडा के रायने ॥ ते माटे करो होम, जाय ज्यु रोगनो जोम ॥ आ० ॥ गोदान द्यो तुम्हें लायने ॥ १४॥ जाप जपो सवा लद, जिम ग्रह होवे प्रत्यक्त ॥ या०॥ ते ग्रह नृपनी रक्षा करे ॥ बोल्या जगतजन एम, मानो ते विष्णु जेम ॥ ॥ हम णां नृप मुख उच्चरे ॥ १५॥ एक कहे पेटमें नार, ने अजीर्ण आहार ॥ आ० ॥ रेचनी गोली कीजि ये ॥ कहे एक गांठनो रोग, पीहो बनी योग ॥बाण ॥ चूरण ब्रूकी दीजियें ॥ १६ ॥ नूवा बोले जगीश, नृपने जोटिंग खवीस ॥ आ० ॥ वेलाबली विलगण थ॥ धूणे धूणावी शीश,पाडे बदुली चीस ॥ आ० ॥ वाण तारे चिंता ज॥१७॥ मांमयां मामलां के
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