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(११२) णी, वसंतसिरी जे उबांहि ॥ ५॥ रे पंखी मुफ पीयु डो, गयो लंका गुन काज ॥ अवधि कही एक मास नी,ते थइ पूरी आज ॥ ६॥ केशरनख पिया कह चले, बांझ गयंदनखमांहि ॥ जलनख रयण पोका रियो, मोजख जावत नांहि ॥ हजीब लगण आव्यो नही, नाव्यो को संदेश ॥ नाह नितुर नहली गयो, मुझने बाले वेश ॥ ७ ॥ तो दीहा किम निर्गमुं, किम करि राखुं शील ॥ मदनवेग ते जूधणी, के. पडियो कुशील ॥ ॥ आज लगण तो माहरु,में पण राव्यु एह ॥ पण ते अवधि पूरी थइ, कुमति चूकशे ते ॥ शुकवाक्यं ॥ दधिसूता सुत तास रिपु, ता त्रिय वा हनाहार ॥ सो सुंदर तुममें नहिं, कीधो कौन वि चार ॥ ए॥ ते माटे तुं सूडला, जा मुफ प्रीतम पा स ॥ संदेशो मुफ घरतणो,जश्ने कहेजे तास ॥१०॥
॥ ढाल पन्नरमी॥ .. ॥ विंजाजीनी ए देशी ॥ सुडाजी हो अमीरस पा उ तुमने रे ॥सु० ॥ चखवू दाडिम शख ॥ सूडा सयण वारु ॥ ए बांकणी ॥ सुडा० ॥ चांच नरावं चूरमे रे ॥ सु०॥ देवं वली आंबा साख ॥ सु०॥ ॥१॥ सु० ॥ संदेशो मुज दाखवी रे ॥ सु०॥ मेल
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