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________________ (१४१) चवे, ते तमें मानो सच ॥७॥ मीतां बोला मान वी, केम पतीजां जाय ॥ नीलकंठ मधुरं लवे, साप सपुतो खाय ॥॥ तेहनी ने ए जातडी, नृप मंत्री दो.लंत ॥ चूक करी तुमने प्रनु, करशे स्त्री दो नंग ॥१०॥ ते माटे स्वामी तुमें, म करो को विसास ॥ एतां कबहि न धीरियें, जो वंडो तन आश ॥११॥ नेष जुजंगम नामिनी,महेत ने नूपाल ॥ ए पांचने जे धीरशे, ते नर पामशे काल ॥१२॥ यम वेश्या दा सी नदी, अग्नि जूधारी काल ॥ ए साते नही आप णां, प्रीतम निज संजाल ॥१३॥ तव प्रीतम वसतुं कहे, हरिलंकी निसुणेह ॥ जो मुफ दीहा पाधरा, झुं नृप करशे तेह ॥ १४ ॥ ॥ ढाल चोथी॥ . ॥प्रीतमसेंती वीनवे ॥ अथवा हो मत बोले सा जनां ॥ ए देशी ॥ हारे लाल एहवो जबाप ते धीवरें, वसंत सिरीने दीध ॥ मोरालाल ॥ भोजननी जे जो श्ये, मेली सामग्री सुसि ॥ मोरा लोल ॥ १ ॥ सार निपाई रसवती, जेहवी कही सूर्यपाक ॥मो॥ एक जो कवल तेपेटमां, उतरे तो चढी रहे बाक ॥ । मो० ॥ २॥ हारे लाल सागर देंव पसायथी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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