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( २३० )
॥ स० ॥ दीन दुःखीया जीवने उदरी, करी पावन संपद हेत ॥ २ ॥ स० ॥ इम वासना वासना देवी नी, करि दंपती बोले श्राशीष ॥ स० ॥ माता जीव जे सुरगिरिनी परें, अम पुहची सघली जगीश ॥३॥ ॥ स० ॥ हवे हरख्यो कंचनपुर धणी, एतो वसंत सेन नूपाल ॥ स० ॥ तेम वसंतसेना रागिणी, पट्ट राणी थइ उजमाल ॥ ४ ॥ स० ॥ निज पुत्रीने वर कारणें, शणगारी नगरी ते सार ॥ स० ॥ एतो देव दाराव विद्याधरा, एतो जोवा मलिया अपार ॥ ५ ॥ ॥ स० ॥ एतो गजरथ घोडा पालखी, शणगारखा ते बहु ठाठ ॥ स० ॥ राज मारगमां विराजता, पथरा व्या सोवन पाट ॥ ६ ॥ स० ॥ डर्वानां हे तोरण बांधियां, बच्चें सुरतरु दल महकंत ॥ स० ॥ एतो घ र घर चटुटे चाचरे, फुलमालापुंज सोहंत ॥ ७ ॥ स ० ॥ टोडे टोडे मोतीना ऊमणां, लहकी रह्यां तेजमें तें ज ॥ स० ॥ मानुं कुमरी वरने निरखवा, यावी स्व र्गपुरी नेहेज ॥ ८ ॥ स० ॥ शणगारी नगरी इणि परें, दरखी नृप वसंतसेन ॥ स० ॥ चतुरंगी सेना स ज करी, वर कुमरीने तेडवा तेणं ॥ ए ॥ स० ॥ गय यांग गूडी बले, गुंजालां गुंजे निशाण ॥ स० ॥
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