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________________ (१७३) दाखो,बांधी मूठी राखो रे, नरपतिजी मत लेडो कोई ने ॥ तुम कुल मरजादायें चालो,जिम सुखें मंदिरमा मालो, मूको तुमें ख्यालो रे, नरपतिजी परस्त्री जोश्ने ॥ १७ ॥ तुं० ॥ तव सांजली नरपति कोप्यो, को धारुण अनिमें रोप्यो, कामें करी लोप्यो रे,नृप विर हानल दाजी गयो ॥ तव नृपनी उर्मति हाली, मुख कुमरीने कर जाल, कीधीनृपें काली रे, दो कुमरीयं षी थयो ॥ १७ ॥ तु० ॥ तव कुमरी रोषे दाधी, नृपने तिहां काढयो बांधी, जकडबंध बांधी रे, नृप नाख्यो उंधे मस्तकें ॥ ये गडदा पाटु प्रहार, करे मुद्द गरना प्रहार ॥ दासी मली मारे रे, ए तो नपने जबड जस्त के ॥ २० ॥ तु०॥ नृप पाडे बदुली चीस, कहे तोबां मुख जगदीश, कुमरी ते रीचे रे, ए तो नृपना पाड्या दांतडा ॥ वली रोडे नृपनी मूब, फल लेतो जा तुं जुन्छ, कुमरी दो पूढे रे, नृप किहां गयुं बल तुम जातडा ॥ २१ ॥ तु० ॥ ए तो कुमरीयें नृपने रांक, कस्यो पूरो कुंदीपाक, काने पडीधाक रे, सुन कारें नृप चढयो हेडकी॥ कुमरी हणे नृपने तमाचे, तेतो हरिबल केरी साचें, गारुडीथी नाचे रे, ए तो फणिधर माथे देडको ॥ २२ ॥ तु० ॥ नृपने करो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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