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________________ (२६६) तिहां, उपनंद मलवा रूप ॥ साथ सदु नठी मल्यो, बेसाड्यो करी चूंप ॥ १२॥ हवे सहु बेठा रंगमें, क रतां वात टकोल ॥ तिण समें आव्या साधुजी, देवा समकित गोल ॥ १३ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ ॥ सूडा रे तुं जर कहेजे. संदेशडो रे ॥ए देशी ॥ तव हरखे सन नतीने, कर जोडी नामें शीशो रे ॥ गुरु पण नाविक देखीने रे, देवे सहुने धर्माशीषो रे ॥ १ ॥ नवि सुजो रे, इहां गुरु पण लान कमावे रे ॥ ए बांकणी ॥ मास खमण- पारगुं, करी बेग त्यां चित्रशाली रे ॥ साथ सदु पण तिहां कणे, गुरु पासें बेग संजाली रे ॥ ५॥ न० ॥ धर्मकथा यथा स्थित कहि, सदु ब्रूजव्या प्राणी सुजाणो रे ॥ सम कित वासना पामीया, गुरुमुखथी सुणी वखाणो रे ॥ ३ ॥ न ॥ तव हिजणी कर जोडीने, पूले खंमा विशाखानी माता रे ॥ या दो पुत्री दोनागिणी, त स कदि होशे सुख शाता रे ॥ ४ ॥ ज० ॥ तव क विदो कुमरी तणी, तस कर्मनी रेखा जोय रे ॥ था जथा ले एक वर्षमुं, गुरु नांखे आनवू होय रे ॥ ५॥न॥ त्यारपनी सुख पामशे, जो जिन मारगमें वहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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