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________________ (१७) णे नहीं रे, परिणामें विकराल ॥१७॥ सू० ॥ उ तरे जे वर्ष सातनी रे, जेद पनोती कहाय ॥ पण लागि पनोती जन्मनी रे, ते किम उतरी जाय ॥१७ ॥ सू० ॥ जाणी बंबुल कोयला रे, एहवू रूप नीहा ल॥ खाधानी संख्या नही रे, जाणीयें पेटमें काल ॥ १५ ॥ सू० ॥धीवर कहे मुफ नारीनां रे, केतांक रुंद वखाए॥ प्रर्ण पापना जोगथी रे, मली ए कर्म प्रमाण ॥२०॥ सं० ॥ हरिबल चितझुं चिंतवे रे, न जड्यो जलचर जीव ॥ घरे जावू तो बोकडी रे, रूठी करशे रीव ॥ २१ ॥ सू० ॥ ते माटे वनमें रही रे, रजनी ले विशराम ॥ दिन उगे घर जाश्यं रे, जडशे जीविक ताम ॥ ३२ ॥ सू० ॥ श्म जाएं। ते वन्नमें रे, हरिबल रहियो ताम ॥ कालीकाने देवलें रे, लीधो तिहां विश्राम ॥ २३ ॥ सू० ॥ धीवर सू तो चिंतवे रे, धन धन जीवदया धर्म ॥ एक में जीव नगारीयो रे, तो वाधी मुफ शर्म ॥ २४ ॥ सू० ॥तो में निश्चे बाजथी रे, हणवो नही कदि जीव ॥ जल निधिनो धणी देवता रे, फलशे मुफ सदीव ॥ २५॥ सू०॥ परतख देखी पार रे, धीवर हरखें पच्छ । जीवदया धर्म नपरें रे, बेठो रंग मजीठ ॥॥ २६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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