Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - -- ) Serving Jinshasan 049530 _gyanmandir@kobatirth.org ॥श्रीजिनाय नमः // ॥श्रीधम्मिलचरित्रं नाषातरोपेतं // . " . . (चतुर्थो नागः) . उपावी प्रसिध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवान) वीरसंवत्-२४४०. विक्रमसंवत–१ए७१. सने–१५१४. . किं. रु.-३-७-० 7 श्रीजैननास्करोदय प्रेस. जामनगर. CARE... सीमाचार अन आरना कोपर EARSANE . P.P.AC.GunratnasuriM.S... Jun Gun Aaradhak Trust Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // श्रीजिनाय नमः॥ // अथ श्रीधम्मिलचरित्रं जाषांतरोपेतं प्रारभ्यते // ___(चतुर्थो नागः) ___(मूलक -श्रीजयशेखरसूरिः) नाषांतरकर्ता- श्रावक मनसुखलाल हीरालाल हंसराज. (जामनगरवाळा) दध्यौ शीलवतीपार्श्व / प्राणेशसुहृदोऽपि हि // एकाकिन्या न मे तत्र / गंतुं रहसि युज्यते // 5 // रहो हुतवहोदर्चि-कराला वीदय योषितं // नृणां द्रवीभवत्येव / मनो मदनवन्मृदु // 53 // वास्तां परपुमान यूना / पित्रा नाता सुतेन वा // एकाकिन्या सहैकांते / न त्यारे शीलवतीए विचार्य के त्यां मारा स्वामिना मिलनीपासे पण मारे एकांतमां एकला जवू योग्य नथी. // 55 // केमके अमिनी शिखासरखी जयंकर स्त्रीने एकांतमा जोश्ने पुरुषोने कोमळ मन मीणनीपेठे पीगळीज जाय . // 23 // परपुरुष तो एक बाजु रह्यो, परंतु यवान P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- स्थातव्यं कुटस्त्रिया // 24 // एषा कुलस्त्रीमर्यादा / तां न्यषेधयदेकतः // प्रियप्रवृत्तिजिज्ञासा / / मा पर्य प्रेरयदन्यतः // 55 // बाढं दृढमनस्कायाः / शक्रस्यापि न मे नयं // विमृशंतीति सा चंद्र शालां शीलवती ययौ // 56 // आकंठं कृतमिष्टनोजनमतो नासाग्रलमोदरं / सर्वांगं परिषक्तचंद नरसं तांबूलताम्राधरं // पव्यंके मृपुष्कलेऽजगरवदेवंतमेकाकिनं / सा तं संमुखमैदत दिजवरं निद्रादरिद्रांबकं // 27 // मंदैः पदैः समायांतीं / विन्यतीमिव वीक्ष्य तां // मुक्त्वा शयनमुत्तस्थौ / वा पिता, नाश् तथा पुत्रसाथे पण कुलीन स्त्रीए एकांते रहेवू नहि. // 24 // एवी रीते एक बाजुथी कुलीन स्त्रीनी ते मर्यादा तेणीने अटकाववा लागी, अने बीजी बाजुथी पोताना स्वामिनो समाचार जाणवानी श्ला प्रेखा लागी. // 55 // अत्यंत दृढ मनवाळी एवी मने इंद्रनो पण नय नथी, एम विचारती ते शीलवती नपले माळे गश्. // 26 // बेक कंठसुधी करेलां मिष्ट जोजनवाळा अने तेथी क नाशिकाना अग्र नागसुधी फुलेला पेटवाळा, सर्व शरीरे लींपेला चंदनर सवाळा, तांबूलथी लाल होठवाळा, अत्यंत कोमल पलंगपर अजगरनीपेठे आलोटता तथा निद्रा| रहित अांखोवाळा ते एकाकी ब्राह्मणने तेणीए सन्मुख पडेलो जोयो. // 27 // बीकणनीपेठे JUGUN ABlacnak US Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिन सोमवृतिः ससंत्रमं // 27 // मधुमत्तपिकीरावा / सावादीदथ तं द्विजं // तवास्ति स्वागतं भ७।। नई च प्रेयसो मम // 55 // मत्प्रियस्य वयस्योऽसि / तस्य शुधि निवेदय // यत्किंचित्प्रेषित लेखा-दिकं तेन तदर्पय // 60 // हिजराजस्ततः स्माह / हिजराजानां किरन् // द्विजराजप्रति. 555 स्पर्षि-वदने स्वागतं मम // 61 // दयितस्तव कल्याणि / कल्यः कल्याणनाजनं // नपाय॑ ध. नमागंता / कालेन कियतापि सः // 6 // तेणीने धीमे पगले पावती जोश्ने ते सोमवृति ब्राह्मण बिगर्नु गेमीने संत्रमसहित उभो थयो. // 50 // वसंत ऋतुथी जन्मत्त थयेली कोयलसरखा कंठवाळी ते शीलवती ते ब्राह्मणने कहेवा लागी के हे ना! तमो कुशले आव्या गे? अने त्यां मारा स्वामी तो कुशल ? // // तमो मारा स्वामिना मित्र गे, माटे तेना समाचार कहो? अने तेणे जो कागलपत्रादिक कई प्राप्यु होय तो आपो? // 60 // त्यारे ते ब्राह्मण चंद्रसरखी कांतिने विस्तारतोयको बोल्यो के हे | चंद्रना प्रतिस्पर्धीमुखवाळी! हुं यहीं कुशलक्षेमे पाव्यो बु. // 61 // वळी हे कल्याणि! मनोहर | बने कल्याणना स्थानसरखा ते तारा स्वामी धन उपार्जन करीने केटलेक काळे यहीं श्रावशे.॥६॥ P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- स्वहस्तलिखितो लेख-स्तव हृल्लेखकारणं // हृदयाचरणं चान्यत् / प्राहीयेतां मृगादि ते / / | // 63 // एवं वार्तयतस्तां च / सर्वांगं तस्य पश्यतः / / विवेकरत्नमात्ति / बलज्ञः स्मरदांनिकः // // 64 // विप्रो दध्यावहो देहो-ऽमुष्या रूपांबुसामरः // यत्रोतु दृशं मनां / बेमामीक्षे न कां. 556 / चन // 65 // जैनबेरनंगस्य / सर्वस्त्रैणशिरोमणेः // न भाग्यमंतरेणास्या / लन्यते संगमः किल.॥ 66 // तन्मन्ये भाग्यवानस्मि / दरिद्रस्येव कामधुक् // श्यं मे स्वयमेवागा-दन्यथा दृ. वळी हे मृगादि! तेणे पोताने हाथे लखेलो कागल तथा तारा हृदयने यानंद करनारं पोताना हृदयतुं याऋषण तने आपवामाटे मोकल्युं बे. // 63 / / एम वात करतांथकां तथा ते. पीन सर्व शरीर जोतांथकां छलने जाणनारा कपटी कामदेवे ते ब्राह्मणY विवेकरूपी रत्न जीनवी लीधुं. // 64 // त्यारे ते ब्राह्मण विचारखा लाग्यो के अहो! श्रानुं शरीर तो रूपरूपी जलना समुड़सर बे, के जेमां बुडेली या मारी दृष्टिने कहामवामाटे मने कोई पण होमी जोवामां श्रावती नथी. // 65 // कामदेवनी जयमल्लीसरखी तथा सर्व स्त्रीनमा शिरोमणि एवी या स्त्रीनो | संगम खरेखर नाग्यविना मळे नहि. // 66 / / माटे धारुं बु के हुँ नाग्यशाली , जो एम न | n Aaradhak Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 557 धम्मिः क्पथं कथं // 67 // कंपखेदादिकान नावान् / सात्विकान्नाटयन्नंथ // सोमवृतिः समुभिन्न-विकाः / रस्तामनाषत // 60 // लेखाद्य तेऽरविंदास्ये / दास्येऽहं शृण्वदः पुनः // लावण्यसरसि स्वांगे / | मां क्रीडासारसीकुरु // ६ए // तस्येति दुःश्रवं श्रुत्वा / वचनं सा व्यचिंतयत् / / हंत यचिंतितं पूर्व || तन्मे सादापस्थितं // 70 // पश्य मर्माविधं कर्म / स्मरवीरस्य कीदृशं // श्रोत्रियं वा स्त्रियं | वापि / यो निघ्ननैव मुंचति // 71 // श्दमन्यादृशं लोके / तामसं कामसंन / मुह्यत्येवंविधा यहोय तो दरिद्रीने जेम कामधेनु तेम या स्त्री पोतानी मेळेज मारीपासे क्याथी आवे! / / 67 // पजी ते सोमञ्चति ब्राह्मण कंप तथा पसीना आदिक कामविकारना सात्विक नावाने प्रकट करतोथको कामातुर थ बोल्यो के, // 67 // हे कमलमुखि! हुं तने ते पत्रयादिक अापीश, परंतु एक वात सांजळ? लावण्यना तनवसरखां तारां शरीरमां मने कीमा करनार सारससरखो कर? / / // 6 // एवी रीतनुं तेनुं नहि सांगलवालायक वचन सांजळीने ते विचारखा लागी के, अरे! पूर्व में जे.चिंतव्यु हतुं तेज सादात मारी नजरे यावी ननु. // 70 // अरे! जुन तो या का| मसुनटर्नु मर्मस्थानोने नेदनाएं केवू कार्य ! के जे वेद जाणनार ब्राह्मणने अथवा स्त्रीने पण PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म-|त्र / श्रुतदीपकरा अपि // 72 // यदीडशोऽपि कामी स्यात् / को दोषस्तर्हि दुर्धियां / / ममो यत्र / | जले नाग-स्तत्र गगस्य का कथा // 73 // अथ कामतमस्तस्य / नेत्तुं चित्तगुहागतं // वितेने | वाङ्मयं ज्योति-र्दीप्रांगी दीपिकेव सा // 14 // वर्णज्येष्ट कुलश्रेष्ट / विशिष्टश्रुतपारग // किं प्रा. 557 कृतजनक्षुमं / पंथानमनुवर्तसे // 35 // अंतः कचवराकीर्ण / बहिश्च मसृणत्वचि // खरीपुरीषसं. पोताना कपाटामांथी छोडतो नथी. // 71 // दुनियामां कामथी नत्पन्न थयेवू या अंधकार वि. चित्र प्रकारनुं , के जेथी ज्ञानरूपी दीपक हाथमां होवा तां पण यावा माणसो दिग्मूढ बनी जाय . // 7 // ज्यारे थावो माणस पण कामी थाय त्यारे बीजा चुधिजनो शो दोष ? केमके जे जलमां हाथी मुब्यो त्यां बकरानी शुं वात करवी ? // 53 // हवे तेना मनरूपी गुफामां रहेला कामरूपी अंधकारने नेदवामाटे दीपकनीपेठे तेजस्वी शरीरवाळी ते शीलवती वचनरूपी प्रकाश विस्तारखा लागी के, // 7 // हे उत्तम जातिकुलवाळा! तथा श्रेष्ट शास्त्रोना पारंगामी! नीच माणसोने योग्य एवा मार्गनुं तुं शामाटे अनुवर्तन करे ? // 55 // अंदर मलीन कच| राथी नरेला तथा बहारथी कोमळ चाममीवाळां एवां गधेमीनां लीडांसरखां स्त्रीनां शरीरमां तुं मोः / un Aaradnak Trust Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि| काशे / मा मुढ स्त्रीशरीरके // 16 // परस्त्रीसंगतिर्मान-नंगाय महतामपि / / ऋषिपत्नीरतेराप / / | किं फलं नाकिनायकः / / 77 // अधर्मकर्म यन्मूढ / कुरुषे यौवनांधितः // अंतःस्थशिखिशाखीव / / | वीदयसे तेन वार्ड के // 70 // तदजस्रस्रवगत्रा-मृतधौतामलां निजां // ईदृग्दुर्वाक्यपंकेन / एण रसनां मा कलंकय // 45 // वाचस्तस्या श्मा मेघ-मुक्ता आप वोज्ज्वलाः // न तचित्ततडा| गेऽस्थुः / स्मरगोधेररंधिते // 70 // विजोऽवादीदिमा उक्ती-जडे संवृणु संवा // वेभि सर्वमिदं ह कर नहि. // 16 // परस्त्रीनो संग महान पुरुषोना माननो पण नंग करे , केमके ऋषिपत्नी. ने जोगववाथी इंडने पण शुं फल मब्युं ? // 7 // वळी हे मूढ! यौवनथी अंध थने जे तं अधर्मनुं कार्य करे ने, तेथी वृद्धावस्थामां तुं अंदर रहेला अभिवान वृक्षसरखो देखाश्श. / / // // माटे निरंतर करता शास्त्रामृतथी धोवावडे करीने निर्मल थयेली तारी पोतानी जीभने यावां दुर्वचनरूपी कादवथी कलंकित कर नहि. // 7 // कामदेवरूपी गरनारुं बंध नहि करखा. थी तेना चित्तरूपी तळावमां मेधे छोडेला जलसरखी तेणीनी यावी उज्ज्वल वाणी पण टकी शकी नहि. // 70 // त्यारे ते ब्राह्मण बोल्यो के हे न था तारी वाणी हवे बंध राख, यास P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- किंतु / कामे वामे करोमि किं // 1 // ततः क्लिष्टपरिणामं / वीदय तं विममर्श सा // अस्य बोः | साथ धौषधासाध्यो / ध्रुवं काममहामयः // 7 // प्रत्युत विकारकारण-मुपदेशो विषयकलुषिते मनसि // अश्मनि हुतवहदीप्ते / धूमोझाराय जलसेकः // 3 // उपस्थितोऽस्ति तव्याघदुस्तटीन्याय 560 | एष मे // कथमेष परिप्सय्यः / कथं पाल्यः स्वनिश्चयः // 4 // लेखः पाणितले नृषा / अषा चा. भरणं हृदः ॥शीले सर्वांगञ्षायां / याति तान्यामलं मम / / 75 // इति निश्चित्य सावादी-घदू घडं हुँ जाणुं बुं, परंतु कामदेव विपरीत थवाथी हुँ शुं करूं? // 1 // पजी तेने दृष्ट अभिप्राय वाळो जोश्ने तेणीए विचार्यु के थानो कामदेवरूपी महारोग खरेखर प्रतिबोधरूपी औषधयी म. टी शके तेम नथी. // 2 // विषयोथी मलीन मनवाळाने थापेलो जपदेश नलटो विकार कर नारो थाय , केमके अमिथी तपेला पत्थरपर जल रेडवाथी उलटो तेमांथी धूमामो पेदा थाय बे. // 3 // माटे या समये तो वाघ अने अगाध नदीसरखो न्याय मारेमाटे प्रावी पड्यो , था ब्राह्मणने मारे शीरीते शांत पाडवो? तथा मारुं व्रत पण मारे शीरीते पालवू? // 7 // प. | त्र तो हस्ततलनुं ऋषण , अने हार हृदयनुं याषण ने, परंतु सर्व अंगर्नु आजूषणरूप मारु in Gun Aaradhakrus Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- चे सुजग त्वया // तन्नाम कस्य नानीष्टं / योवनद्रोः फलं ह्यदः // 6 // प्रियस्य प्रियमित्रस्य / / किमु नेदोऽस्ति कश्चन // मानितोऽसि प्रियेण त्व-मतो मान्यो ममापि हि // 7 // यत्प्रतीपं मया किंचि-दूचे तन्मास्म खिद्यथाः // यनितमपि प्रायो / निषिध्यंत्येकदा स्त्रियः / / 7 // परं सौम्य जनापाता–दत्र मे शंकते मनः॥ यास्तदादिमे यामे / यामिन्या धाम मामकं / / ७ए / काममूढेन तहाचि / तेन विश्वासमीयुषा // विसृष्टा ववले साथ / पादैः सत्वरपातिन्निः // 50 // शील जो.जतुं होय, तो पजी मारे ते बनेनी जरुर नथी. // 5 // एम निश्चय करीने ते बोली के हे सुनग! जे तें कहुं ते कोने वहाबुन लागे? केमके यौवनरूपी वृदनुं तेज फल बे. // // 6 // शुं स्वामी भने स्वामीना मित्रवच्चे कई तफावत ? मारा. स्वामिने तुं माननीक डे, मा. टे मारे पण तुं माननीकज . // 7 // वळी हुँ जे तारी सामु बोली बु तेथी तारे खेद करवो नहि, केमके प्रायें करीने स्त्रीन यावी मनगमती वातनो पण एक वखत निषेध करे . // 7 // परंतु हे सौम्य ! यही कोश् माणस भावी चडे माटे मारुं मन शंका पामे , माटे रात्रिने पहे. ले पहोरे तुं मारे घेर वावजे. // ए // कामथी मूढ बनेला ते ब्राह्मणे पण तेणीना वचनपर / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- दध्यौ च तावत्तरणि-वित्यस्ताचलं प्रति // तस्मिन्नस्तमिते विप्रो / निर्विवाद समेष्यति // 1 // | | चिरत्नं शीलरत्नं मे / संरक्षिष्यति कस्तदा // यात्मनैवात्मरदायै / यतितव्यं ततो मया / / 72 // निवासमेनसामेन-मथ शिदयितुं विजं // तलारदस्य दुष्टानां / शासितुः सागमद् गृहं // 53 // 56 तस्याः कर्मवशात्सोऽपि / तदानीमेककोऽनवत् // वीक्ष्य तामागतामेव / विव्यथे मन्मथेषुभिः // | // ए४ // सा तलारदमाचख्यौ / प्रनावाद्भवतः प्रनो // चौरा श्व दिनेशस्य / न स्युरुवृंखलाः खविश्वास राखीने तेणीने जवानी रजा थापवाथी ते पण उतावळे पगले त्यांथी पाली फरी, // 10 // तथा विचारवा लागी के सूर्य तो अस्ताचलतरफ दोमी रह्यो बे, अने ते अस्त थयावाद ब्राह्मण तो खरेखर श्रावशेज. // ए१ // श्रने ते वखते घणा समयथी सांचवी राखेला मारा शीलरत्ननी कोण रदा करशे? माटे हवे तो मारे पोतानेज मारा यात्माना रक्षणमाटे प्रयत्न करवानों ने. // ए॥ पनी पापोना निवासस्थानसरखा ते ब्राह्मणने शिदाए पहोंचामवामाटे दुष्टोने शिदा क रनार कोटवालने घेर ते ग. // 23 // ते समये तेणीना कर्मवशे ते पण एकलोज हतो, अ. | ने तेथी तेणीने जोतावेंतज ते कामबाणोथी वांधावा लाग्यो. // ए४ // पनी तेणीए कोटवालने JUN GIM Aradhak Trust Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमिलाः // 5 // सोमभृतेः करे प्रेषि / लेखाद्यं प्रेयसा मम // याचितो नार्पयत्येषो / यत्किंचिदना / षते पुनः // ए६ // न्यायश्रीवक्षिपाथोदे / त्वयि धीमति जीवति // हिजो दिजिह्वतां धत्ते / तदयं शिक्षणोचितः // ए७ // अविग्रहग्रहावेश-विवशः सोऽपि तां जगौ // पूर्व स्वांगपरिष्वंग-रंग 563 नाजं विधेहि मां // एए // पश्चात्तदैव दुर्दैवा-घातं गौरि निगृह्य तं // अहं महोपकारिण्या / नविष्याम्यनृणस्तव // 2600 // साथ दध्यौ हहा वाहात्-वस्ताहमवटेऽपतं // निर्गत्य श्रृंखला. कडं के हे प्रनो! सूर्यसरखा थापना प्रनावथी दुष्ट चोरो उपद्रव करता नथी. // 5 // मारा खामीए सोमति ब्राह्मणमारफते पत्र प्रादिक मोकट्युं , परंतु माग्या बतां ते थापतो नथी, | अने जेम तेम बोले . // ए६॥ न्यायलक्ष्मीरूपी वेलडीने मेघसरखा एवा आप बुध्विान हैयात जतां पण ते ब्राह्मण बोलीने फरी जाय बे, माटे तेने शिदा करवी जोश्ये. // ए // त्यारे कामविकारना आवेशथी परवश थयेलो ते कोटवाल तेणीने कहेवा लाग्यो के प्रथम तुं मने तारा शरीरना आलिंगनना रंगवाळो कर? // एए // तथा परी हे गौरी! तेज वखते ते पुष्टने मारी|ने तारो महोपकारीनो हुं अनृणी थश्श. // 2600 // त्यारे ते विचारवा लागी के अरेरे! ह तो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-| काष्ट–मयादाविशमायसां // 1 // अयं हि चौरचक्रेन्यो / रदान पृथ्वीपतेः पुरं // स्वपुरं स्मरचौमा रेण / खुंट्यमानं न पश्यति // 2 // यदि निर्नर्सयाम्येन-मधुना मदनाकुलं / तत्कुर्वतो बला"| कार-मस्य को नाम वारकः // 3 // नपायेनैव साध्योऽय–मिति ध्यात्वा जगाद सा // द्विती५६५ ये यामिनीयामे / त्वमागबेगुहं मम // 4 // ततस्तेनापि मुक्ता सा / मुक्तपाशेव पदिणी // नि: |र्गत्य सत्वरं तस्य / नवनात्सचिवं ययौ // 5 // तस्यापि सदनांतःस्थ-स्येयं दृग्गोचरं गता // खा. घोमाथी मरीने खामामां पड़ी, तथा काष्टनी सांकळमांथी निकळीने लोखमनी सांकळमां पमी. // | // 1 // या कोटवाळ राजाना नगरनुं चोरोथी तो रक्षण करे बे, परंतु कामरूपी चोरथी बंटाता पोताना पुर एटले शरीरने तो जोतो नथी. // 2 // जो था कामातुरने हुं हमणा निबंजीश तो थाने मारापर बलात्कार गुजारतां कोण अटकावशे? // 3 // माटे याने पण उपायथीज शिदा करवी, एम विचारीने ते बोली के, रात्रिने बीजे पहोरे तारे मारे घेर थाववं // 4 // पजी तेणे | पण मुक्त करेली एवी ते शीलवती पाशमांथी बुटेली पदिणीनीपेठे तुरत तेना घरमांथी निकळीने मंत्रीपासे गइ. // 5 // तेने पण घरमां बेगंज ते दृष्टिए पमी, तथा कामदेवना जालांनी P.P.AC.Gunratnasuril Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पम्मि- टचक्रे स्मरजल्लीव / प्रविष्टा सहसा हृदि // 6 // त्वं पुरे मायिनां शूलं / मूलं सन्न्यायनुरुहः॥ वि. यामनंगुरं स्थान-मेवं तं सापनायत // 7 // एवमाह्लाद्य सा तस्मै / व्यसनाब्धितितीर्षया // वि. | जन्मनस्तलारदा-स्यापि वृत्त न्यवेदयत् / / 7 // सोऽप्यवोचत यद्यस्ति / स्वाति शमयितुं मनः // 565 तत् पूर्व स्वांगसंगेन / मम कामातिमल्पय // ए // अथ सा जातवैलदया। शीलदालितपातका // तृतीयं प्रहरं रात्रे-स्तस्यागंतुमुपादिशत् // 10 // शार्दूलस्य कुरंगीव / तस्य पार्श्वमपास्य सा॥ | पेठे तुरत तेना हृदयमा पेसीने ते खटकारो करवा लागी. // 6 // हे मंत्री! आप तो था नगरमां कपटीनने शूलसमान, सन्न्यायरूपी वृदाना मूलसरखा तथा बुधिना अविचल स्थानसरखा गे, एम ते तेनी प्रशंसा करवा लागी. // 7 // एवी रीते तेने खुशी करीने दुःखरूपी समुऽ तरखानी श्वाथी तेणीए ते ब्राह्मण तथा कोटवालतुं वृत्तांत निवेदन कयु. // // सारे ते पण बोल्यो के जो तारे तारं दुःख मटामवानी श्वा होय तो प्रथम तारा शरीरना संगथी मारी कामपीडा न. छी कर? // ए // त्यारे शीलथी धोयेलां पापोवाळी तेणीए विलखी थश्ने तेने रात्रिने त्रीजे. होरे श्राववानुं कडं. // 10 // हरिणी जेम सिंहनुं तेम तेनुं पर गेडीने ते शीलवती बीजो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-। ततो राझो ययौ धामो-पायांतरमविंदती // 11 // नवितव्यतया मि-भुजोऽप्येकाकिनस्तदा साई // ऐंद्रजालिकविद्येव / दृष्टा सा मोहमातनोत् // 15 // सा तुष्टाव नृपं राजं-स्त्वं वर्णस्थापनागु रुः // गतिस्त्वमेव दीनानां / जाते परपरानवे // 13 // मार्गमुच्चरमाणानां / काऽवेला खलहस्ति नां // वज्रांकुशायते राझा-माझा चेन जयंकरी // 14 // सहिजिह्वः क नाकौकः / कः स्वर्गो रंभयान्वितः // काब्धिमध्यमीनार्ति-दृश्वा राज्यं क ते पुनः // 15 // परं तवापि सप्तांगे / राज्ये उपाय न सुजवाथी राजाने घेर ग. // 11 // नवितव्यताने योगे ते वखते राजा पण त्यां एकलोज हतो, तेथी इंद्रजाल विद्यानीपेठे तेणीए तेने पण मोहित करी दीधो. // 1 // पछी तेणी. ए राजानी स्तुति करी के हे राजन! तुं सर्व माणसोनो खामी , थने तेनने शत्रु तरफथी परानव थती वखते तुंज शरणरूप बे. // 13 // जयंकर वज्रांकुशसरखी जो राजानी बाझान होय तो नीच माणसोरूपी हाथीनने मार्गनुं नवंघन करतां शुं वखत लागे? // 14 // बे जीन. वाळा (बोलीने फरी जनारा) एटले नागोथी नरेखो पाताल क्यां? तथा रंनाथी (अरराटीना | नयधी) युक्त थयेलो वर्ग.क्यां? अने अंदर मत्स्योनी पीडा जोनारो समुद्र क्यां? अने तारूं | Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः दुष्टवणंत्यमी // अपवित्रमुखा विप्र-तलारदाकमंत्रिणः // 16 // किमिति मानुजा पृष्टा / तेषां | दुर्वृत्तमादितः / ततः पृथ्वीपतेः कर्णा-ध्वन्यध्वन्यं व्यधत्त सा // 17 // शीतार्तवत्कंपमानः / स्मरेणाथ जगौ नृपः // निग्रहीष्ये खलानेतान् / केऽमी कामिनि मत्पुरः // 17 // परं विधेहि मां खांग-स्पर्शसौख्यविनागिनं // तत्कर्णकोलमाकर्ण्य / वर्यधीविममर्श सा // 15 // कटरे पातितास्म्येषा / संकटे कटुकर्मन्निः॥ ये रदका ममामाग्या-द्वन्नु वुर्विप्लवाय ते // 20 // वृत्तिश्चेत्त्वा. राज्य क्यां? // 15 // परंतु हे राजन् ! थापना सप्तांगी राज्यमां पण मलिनमुखवान ब्राह्मण, को| टवाळ तथा मंत्री सुष्ट जखमसरखा . // 16 // ते केवी रीते? एम राजाए पूग्वाथी तेणीए प्रथमथी मामीने तेजनुं दुराचरण राजाने कही संनलाव्यु. // 17 // त्यारे जाणे टाढ चडी होय नहि तेम कामथी कंपतो राजा बोल्यो के हे कामिनी! हुं ते दुष्टोने मारी नाखीश, केमके तेनं मारी बागल शुं हिसाबमां ने ? // 17 // परंतु मने तारा शरीरना स्पर्शना सुखवाळो कर? पवी रीतनुं कर्णोमां खीला ठोकवासर तेनुं वचन सांजलीने ते शुध बुद्धिवाळी शीलवती विचाखा लागी के, // 15 // अरेरे! मारां शुष्कर्मोए मने महासंकटमां नाखी , केमके मारां अभाग्यशी P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-। दति क्षेत्रं / चेनिहति पिता सुतं // जलं चेज्ज्वालयत्यंग / दीपः किरति चेत्तमः // 1 // चेन्मुं. मा चति घनोंगारां-श्चेन्मऊयति तारकः // राजा चेत्कुरुतेऽन्यायं / का तत्र स्यात्प्रतिक्रिया // 2 // | रूपं मूलमनर्थानां / मयि किं विदधे विधे // मांसलत्वमज़ाया हि / परानवनिबंधनं // 23 // प. रीदां मम शीलस्य / किं कुर्वनसि दैव रे // यदमून रागिणो राग-दुर्विधायां मयि व्यधाः ॥श्या निविशे वायुविवशे / वह्नौ जदिमि वा विषं // निये जिह्वामपि जित्वा / शीलं झुपामि नो पुनः जे रदको ने तेज मारो विनाश करवाने तत्पर थया ने. // 10 // केमके जेम वाम पोतेज जो खेतरने खाय, पिताज जो पुत्रने मारे, जलज जो शरीरने बाळे, अने दीपकज जो अंधकार का रे, // 21 // मेघ जो अंगारानी वृष्टि वरसावे, तारुज जो मुबाडे, तेम जो राजाज अन्याय करे तो पनी त्यां शुं इलाज करी शकाय!! // // वळी हे विधाता! अनर्थोना मूलजेवू मारुं रूप तें शामाटे बनाव्यु ? केमके बकरीनुं पुष्टपणुं तेना पोतानाज पराभवना कारणरूप . // 3 // रे दैव! तुं शुं मारां शीलव्रतनी परीदा करे ? के जेथी विरक्त एवी जे हुं तेनापते आ लो. | कोने तें रागी बनाव्या . ॥श्या वायुथी वृद्धि पामेला अमिमां पडीश, फेर खाशा, अथवा जी | Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घमि- // 25 / / वृथानुशिष्टिरप्यत्र / वृष्टिर्दग्ध श्व जुमे // अयं बोधयितुं शक्यो / न महोपक्रम विना।। // 26 // ध्यायंतीमिति तामेक-चित्तां वीदय विचदाणः // ममोत्तरं न दत्से कि-मित्यनाषिष्ट . पतिः // 27 // स्वप्रतिष्टाधिकं प्राप्य / प्रसादं तव बुधव // उपिंजलानवं तेन / शून्येवास्मीति 26] | सावदत् // 20 // यत्त्वयाजाषि पाल / तत्स्त्रीणामतिसंमतं // स्पर्शी दूरेऽस्तु नाग्येन / लन्या यागपि तावकी // 27 // परमत्रावयोः क्रीमा सक्तयोरमले कुले // जनापवादो नविता / स हि न कचरीने पण मरी जश, परंतु मारां शीलने हुँ खंडित करीश नहि. // 25 // बळेलां वृक्षप्रते जेम मेघवृष्टि तेम या राजाने प्रतिबोध आपवो नकामो मे, मोटा नपायविना आने समजावीशकाय तेम नथी. // 16 // एम विचारमांज एक चित्तवाळी तेणीने जोश्ने ते हुशियार राजा बो. ब्यो के तुं मने उत्तर केम अापती नथी? // 21 // त्यारे ते बोली के हे राजन् ! गजा नपरांत मारापर यापनी कृपा थवाथी हुँ हर्षवेलीनीपेठे शून्यजेवी थर गइ बु. // 2 // वळी हे राजन् ! आपे जे कडं जे ते स्त्रीनने अतिप्रिय होय , यापनो स्पर्श तो एकबाजु रह्यो, परंतु आपसाथे | वात करवानुं पण भाग्यश्रीज मळे . // 25 // परंतु आपणे जो यहीं विषयक्रीडामां यासक्त P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-| रक्ष्यः प्रयत्नतः // 30 // तदद्यैव निशीथिन्यां / तुर्ये यामे ममालयं // देवपादाः समायांतु / केनाः | प्यनुपलदिताः // 31 // पेनाथ विसृष्टा सा / सौवं सद्म रयादयात् // विमृश्य कंचनोपायं / श्व: श्रूमेवमवोचत // 32 // मातरद्य निशि प्रत्या-सन्ने त्वं निवसेहे // प्रगेऽरुणोदयात्पूर्व-मीयाः सापि तथाकरोत् // 33 // विनातिमहतीमेकां / मंजूषां शीलवत्यपि // समस्तं गृहवस्तु खं / न्य स्यदासन्नवेश्मनि // 34 // पिनघशीलसन्नाहा / धीरिमोडुनधारिणी // सुन्नटीव स्वयं सत्व-धाम थशुं तो आपणा निर्मल कुलमां लोकापवाद थशे, माटे तेनुं आपणे प्रयत्नपूर्वक रक्षण कर जोश्ये. // 30 // माटे बाजेज रात्रिने चोथे पहोरे थापे को पण जाणे नहि तेम मारे धेर पधार. // 31 // हवे राजाए रजा थापवाथी ते तुरत पोताने घेर यावी, तथा कक उपाय चिं. | तवीने तेणीए सासुने कडं के, // 32 // हे माताजी! अाजे रात्रिए तमारे या नजीकना घरमां रहे, तथा प्रजाते सूर्योदय पहेलां यहीं ववं, त्यारे तेणीए पण तेमज कयु. // 33 // पनी एक मोटी पेटीशिवायनी सघली पोताना घरनी वस्तु शीलवतीए ते नजीकना घरमां मेली दीधी. / // 34 // पडी पोते शीलरूपी बखतर पहेरीने तथा धैर्यतारूपी जमवानुं साधन धरनारी ते महा. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Juri Gun Aaradhak Trust Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- धामन्यवस्थिता // 35 // तश्च तदहशेषं / हिजस्य युगवद्ययौ // सह तस्य विवेकेन / प्रापद | स्तं दिवाकरः // 36 // थथा यथा वितस्तार / वि वैगावरं तमः / पौष्पायुधं तमस्तस्य / हृदयेऽ. पि तथा तथा // 30 // तथा च लब्धावसरः / प्रसरप्राप्तदुर्मतिः // अस्या समारं शृंगार-नासुरो 571 | विजराज्ययौ // 30 // समाया तं समायातं / कृतकृत्रिमसंत्रमा // सामोहयत् प्रियालाप-नीच. | त्यासनापणैः // 35 // नाझासीत्कामबुब्धोऽसौ / तस्याः कपटपाटवं // गीतासक्तो मृग श्व / वी. हिमती शीलवती पोते सुनटीनीपेठे घरनी अंदर रही. // 35 // हवे ते दिवसनो बाकीनो नाग ते ब्राह्मणनो युगनीपेठे गयो, एवामां तेना विवेकसाथे सूर्य पण अस्त पाम्यो. // 36 // पी जे. म जेम पृथ्वीपर रात्रिनो अंधकार विस्तार पाम्यो, तेम तेम तेना हृदयमां कामदेवसंबंधी अंधकार पण वृधि पाम्यो. // 37 // पनी अवसर थवाथी बने दुर्बुधि पण विस्तार पामवाथी शृंगारथी दे. दीप्यमान थने ते ब्राह्मण तेणीने घेर गयो. // 30 // सारे ते कपटी शीलवती पण तेने या. वेलो जाणीने जूग संत्रमपूर्वक प्रियवचनोथी नीचे नमी यासन आपी तेने मोहित करखा ला. गी. // 35 // ते कामबुब्ध ब्राह्मण तेणीनी या कपरक्रिया जाणी शक्यो नहि, केमके गीतमां P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्नि- तंसं व्याधकल्पितं // 40 // ववेव वार्ताः सरसाः / सोऽकार्यत तथा तया // यथाबुध्यत दुर्बुधिसाधने यांतीमपि यामिनीं // 41 // अद्य ते प्रियमित्रस्य / चिराद्गृहमुपेयुषः // क्रियते या मया न | क्तिः / सा सर्वापि तनीयसी // 42 // इत्युक्त्वा स्नानसामग्रीं / लघुहस्ता व्यत्ति सा // ततो वि५७२/ प्रोऽप्यभिप्रेत–प्राप्तप्रत्ययनरत // 43 // अहो कीदृविवेकोऽस्या / अहो स्नेहलता मयि // नी. तो ध्यायन्निति स्नान-पी सं शव्या तया // 4 // निषिधमपि रात्रौ स / स्वानं तस्या गिरायासक्त थयेलो हरिण पाराधीए पाथरेला पाशने जाणी शकतो नथी. // 40 // पजी स्त्रीनीपेठे तेणीए तेने रसयुक्त वार्तालापमां एवो तो गरकाव करी दीधो के जेथी ते ऽर्बुडीए जती रात्री. ने पण जाणी नहि. // 41 // बाजे घणे काळे घेर यावेलो श्रने मारा स्वामीनो मित्र एवो जे तुं, तेनी हुँ जे नक्ति करुं ते थोमी. // 42 // एम कहीने तेणीए तुरतातुरत तेने स्नान कर वानी सामग्री तैयार करी, त्यारे ते ब्राह्मण पण मनोवांजितनी प्राप्तिमाटे खातरीवाळो थयो. // // 43 // अहो! थानो विवेक केवो ! मारामां तेणीनु स्नेहालपणुं केवु ने! एम विचारता ते | ब्राह्मणने ते चालाक शीलवती स्नान करवाना बाजोउपर लावी. // 44 // पनी तेणीना कहेवा. P.P.AC.Gunratnasuria Jun Gun Aaradhak Trust Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घम्मि- करोत् // वशापरवशाः प्राय–श्चेटवत्किं न कुर्वते // 45 // तयान्यक्तः स्वयं याव-दर्डस्नातोब. व सः // अतिचक्राम यामिन्याः। प्रहरस्तावदादिमः' / / 46 // तदा च दत्तसंकेत-स्तलारदः स्मरातुरः // विमुच्यापरकार्याणि / तद्गृहदारमाययौ / / 4 / वितेने तेन खाट्कारो / दृढदत्तकपाटयोः // हृदयं खादकरोतिस्म / पुनस्तस्य दिजन्मनः // 4 // स्वकर्त्तव्यसमुत-नयमितलोचनः // विप्रस्तामथ सिप्रादी-मप्रादीद् दारि कोऽस्ति ते // 4 // साप्यवोचदमुं मन्ये / तथी रात्रिए निषेधेधुं स्नान पण तेणे कयु, केमके प्रायें स्त्रीथी परवश थयेला पुरुषो दासनीपेठे शुं करता नथी? // 45 // पड़ी तेणीए तेना शरीरपर तेलयादिक चोट्यावाद ज्यारे ते पोते य. ध नाहेलो थयो तेवामां रात्रिनो पहेलो पहोर व्यतीत थयो. // 46 // ते वखते संकेत थाप्याथी कामातुर बनेलो कोटवाल बीजां कार्यो गेमीने तेना घरने बारणे याव्यो. // 7 // पड़ी तेणे तो मजबूत बंध करेलां ते वारणापर खटकारो कर्यो, परंतु ते ब्राह्मणना हृदयमा खटकारो थवा ला. ग्यो. // 4 // पोताना यावी रीतनां कार्यथी नियन्त्रांत थयेलां लोचनवाळो ते ब्राह्मण ते कम| लमुखीने पूछवा लाग्यो के तारे बारणे वळी या कोण धान्यो ? // 4 // सारे ते पण बो. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- लारदं विचदाण // श्यत्यामेव वेलायां / नित्यं मद्गृहमेत्यसौ // 20 // तस्यंस्तस्यानिधातोऽपि / / | जांगुल्या श्व पन्नगः // स दीणविषयाकांदा-विष एवं व्यचिंतयत् // 51 // कुधीरधीतशास्त्रस्या प्यहो केयमन्मम // मित्रस्यापि कलत्रं य-दत्रपोऽहमचीकमं // 55 // यदीमा पूर्वमझास्य-मारए७४ | दस्य परिग्रहे // तन्नाधास्यां मनोऽप्यस्यां / सनुजंगे निधाविव // 23 // हायातं विधिवशा-द्य दि मामेष नोत्स्यते // तत्सर्वस्वापहारेऽपि / जीवंतं नैव मोदयति // 24 // ध्यायन्निति तयोचे स ली के हे विचक्षण! हं धारु बु के ते कोटवाल ने, केमके आज वखते ते हमेशां मारे घेर था. वे . // 20 // गारुमीना नामथी जेम सर्प तेम तेना नामथी पण डरेलो ते ब्राह्मण विषयनी श्वारूपी फेर दीण थवाथी विचारखा लाग्यो के, // 21 // अरे! शास्त्रो नणेला एवा पण मने था कुबुधि क्याथी पेदा थ! के में निर्लङ थश्ने मित्रनी स्त्रीसाथे विषयवांछा करी! // 5 // अरे! मने जो प्रथम खबर होत के था कोटवालनी राखेली ! तो सर्पवान निधानमां जेम ते. म हुं था स्त्रीमां मारुं मन पण धारत नहि. // 53 // हवे कर्मयोगे जो मने ते नहीं थावेलो जाणशे तो मारी सर्व मीटकत बुटीने पण ते मने जीवतो गेमशे नहि. // 54 // एम विचार- | P.P.AC.GunratnasuriM.S. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- / मा नैः स्वस्थो नव दिज // यास्यत्यसौ दणं स्थित्वा / निशास्त्यद्यापि जुयसी // 55 // मंज. पायास्तावदस्या / वदारं गहरोपमं // दणमध्याव सोऽपि डा क्समुबाय तथाकरोत् // 56 / / प्रयत्नोपार्जितद्रव्य / श्व विप्रे निधीकृते // ददौ श्रेष्टिप्रिया प्रीता / वदारे तत्र तालकं // 17 // 57 शंकासंकुचितस्तत्रा-नंतसंतमसि विजः // स तस्थौ नाविनरका-वस्थामनुलवन्निव // 27 // अथोद्घाट्य कपाटौ सा। तलारदमवेशयत् / / धीवंध्यस्य हिजस्येव / भक्तिं तस्याप्यदर्शयत् / / मां पडेला ते ब्राह्मणने शीलवतीए कहूं के हे ब्राह्मण तुं धीरज राख? ते तो वहीं दाणवार र. हीने चाख्यो जशे, अने हजु रात्री तो घणी ने. // 15 // माटे तुं था पेटीना गुफासरखा खानामां दाणवारसुधी बेशी जा? त्यारे तेणे पण जलदी उठीने तेमज कयु. // 26 // महेनतवडे नपाजन करेलां धननीपेठे ते ब्राह्मणने पेटीमां पूरीने खुश थयेली शीलवतीए ते खानाने ताबु था. प्यु. // 27 // ते अनंता अंधारावान खानामां पोताने थनारी नरकनी अवस्थाने जाणे अनुन्नवतो होय नहि तेम ते ब्राह्मण शंकाथी संकोचाश्ने तेमां बेठो. // 20 // पनी कमाम नघामीने तेणीए कोटवाळने घरमां दाखल कर्यो, तथा ते ब्राह्मणनीपेठे ते बुधिहीन कोटवाळपते पण ते. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- // 7 // प्राग्वछा विनोदेन / जातो वेलाव्यतिक्रमः // सा तं स्नपयितुं स्नान-पीठेऽन्यस्मिमान्यवीविशत् / / 60 / / अर्घस्नाते गतस्तस्मिन् // द्वितीयः प्रहरो निशः / यस्तनिद्रस्तदा मंत्री / त. त्सम जनमाययौ // 61 // हारि खाटकारिते तेन / कपाटपुटके शनैः // किमेतदिति संत्रांत-खां. 276 तः पप्रन तामसौ // 6 // तया प्रोक्त महामात्ये / किं कर्त्तव्यतयाकुलः // कलाविक व श्येना तस्माद् बाढं विनाय सः / / 63 / / सोऽक्षेपि वेपमानोऽर्ध-स्नातो निष्णातया तया // घोरांधकारे पीएनक्ति देखाडवा मांमी. // 50 // पनी पूर्वनीपेठे वार्ता विनोदमांज वखत चाल्यो गयो, त्याखाद तेने स्नान कराववामाटे तेणीए बीजा बाजोठपर बेसाड्यो. // 60 // ज्यां ते घरधुं स्नान करी रह्यो एवामां रात्रीनो बीजो पहोर व्यतीत थयो, त्यारे निजा नडी जवाथी मंत्री गुप्त रीते तेणीने घेर श्राव्यो. // 61 / / पनी तेणे बारणामां धीरेथी कमाड ठोक्याथी या वळी शं? ए. म मनमां संभ्रांत थश्ने कोटवाळे तेणीने पूज्युं. // 6 // त्यारे तेणीए महामंत्री- नाम लीधा थी बाजथी जेम चकलो तेम तेनाथी ते अत्यंत डरखा लाग्यो. // 63 / / पछी ध्रुजता तथा अर्ध | करेल स्नानवाला ते कोटवालने ते चतुर शीलवतीए घोर अंधकारवाळा पेटीना बीजा खानामां। PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि वदारे / मंजूषाया द्वितीयके // 64 // प्रवेश्याथ प्रियालापै-विनोधैष तयानपि // यावन्मंत्री व्यतीयाय / तावद्यामस्तृतीयकः // // 65 // तुरीयप्रहरस्यादौ / प्रदत्तावसरस्तया // कल्पांतेऽब्धिखिोदस्था-दुन्मर्यादो महीधवः // 577 | // 66 // ध्वांतसाधर्मिकपट-बन्नकायो निरायुधः // अनुपानहपदैकः / स्वसौधान्निरगान्नृपः // 6 // | नाजिझपत्परीवारं / नापादीत्कुलमंत्रिणः // किंतु कामग्रहग्रस्तः / प्रस्थितः स्वयमेव सः॥ 60 / / | पूरी दीधो. // 64 // पनी तेणीए मंत्रीने प्रवेश करावीने तथा प्रिय वचनोथी खुश करीने जेवामां स्नान कराववा मांडयुं, तेवामां रात्रीनो त्रीजो पहोर व्यतीत थयो. // 65 // हवे चोथा पहोरनी श्रादिमां ते. णीए वखत आपेलो होवाथी कल्पांतकाळना समुद्रनीपेठे मर्यादा तजीने राजा उठ्यो. // 66 // अंधकारसरखां वस्त्रथी शरीर ढांकीने हथियार तथा पगरखांविनानो एकाकी राजा पोताना महेल. मांथी नकल्यो. // 67 // तेणे परिखारने जणाव्यु नहि तथा कुलमंत्रीनने पूज्युं नहि, परंतु का. | मातुर थयोयको ते पोतेज त्यांथी चालवा लाग्यो. / / 60 / / परवश थश्ने नयनीत दृष्टिथी दशे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धग्नि-| दृशा जयस्पृशा पश्य-नवशः स दिशो दश // बन्नबन्नैः पदैश्चौर / श्वानीये चतुष्पथं // 6 // साई | नासापुटस्फुरत्वास -स्तस्या प्रासाद्य सझ सः॥ आबोटयन्नखैरा-री स्मररुजातुरः // 70 // कोऽस्ति दारीति पृष्टा सा / मंत्रिणा न्यगदन्मूद // स्यादेष नित्यं मे गेहे / निश्चितागमनो नृपः // 31 // युवापि प्रापितः कंप-वातं नाम्ना नृपस्य सः // वदारके तयाक्षेपि / मंजूषायास्तृतीयके // 32 // प्रदाय तालकं तत्र / सा दारमुदघाट्यत् // प्रवेश्य नृपति स्निग्धै—रालापैः समरंजयत् दिशातरफ जोतोयको गनागना पगलांनथी चोरनीपेठे ते चहुटामां श्राव्यो. // ६ए // बेक नाशिकासुधी थावेला श्वासवाळो तथा कामरोगथी थातुर थयेलो ते राजा तेणीना घरपासे था. वीने नखोथी बारणानो पागळीन गेकवा लाग्यो. // 70 // बारणे कोण ? एम मंत्रीए पूब वाथी तेणीए धीमेथी कह्यु के या वखते हमेशां मारे धेर भावनासे राजा होवो जोश्ये. // 11 // युवान छतां पण राजाना नामथी तेने कंपवायु थयो, त्यारे तेणीए तेने पेटीना वीजा खानामां पूरी दीधो. // 72 // परी तेणीए त्यां तालु देश्ने बारणु नघाड्युं, तया राजाने प्रवेश करावीने | मिष्ट वचनोथी खुशी को. // 3 // पनी तेणीए कह्यं के हे महाराज! आपने हुं स्नान करावं, | P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // 73 // स्नपये त्वं महाराज / रजन्यद्यापि जयसी // यस्मातांगस्य या केलि-स्तछि रासनचेष्टितं / // 4 // इति तहचसा यावत् / स्नातुं प्रववृते नृपः // संकेतितचरी श्वश्रू-स्तावद् द्वारे स्थिता जगौ / / 75 // उद्घाटय वधु हार-मद्यापि शयितासि किं // तत् श्रुत्वा तां नृपः केय-मिति जी. ५७ए त श्वान्यधात् / / 76 / / इसित्वा सावदद्देव / श्वश्रूम गृहकर्मणि / / पृथग्गृहस्थितेयत्यां / वेलायां नित्यमेत्यसौ / / 77 // राजा दध्यौ जरत्यापि / गृहीतं दुर्यशो मम // नवयौवनवद्भावि / जगा. | केमके हजु रात्री घणी , वळी नाह्याविना जे कामक्रीमा करवी ते गघाचारजेवू . // 14 // एवी रीतना तेणीना वचनथी जेवामां राजा स्नान करवा लाग्यो तेवामां संकेत करी राखेली ते. णीनी सासु बारणे यावीने कहेवा लागी के, // 35 // हे वहु ! दार उघाड? हजुसुधी शुं सुती पमी बं? ते सांजलीने राजा जाणे डरी गयो होय नहि तेम बोल्यो के aa वळी कोण ? // // 76 // त्यारे शीलवती हसीने बोली के जूदा घरमा रहेली मारी सासु हमेशां घरना कामकाजमाटे था वखते यहीं आवे . // 9 // त्यारे राजाए विचार्यु के या मोकरीए पण जाणेलो मारो या अपयश हवे युवान पुरुषनीपेठे पाखा जगतमां फेला जशे. // 70 // सोना उग्र Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-| घनजांघिकं // 7 // पाराग्रे सर्षपो वह्नि-शिखायामिव पारदः // स्त्रीस्वनावान हृद्यस्या / वायं स्थैर्यमाप्स्यति // 70 // वार्षकस्य बलादेषा / निर्नया निरपत्रपा // विगोपयति राजान-मपि रंक मिव दणात् // 70 // वृघामूलोपवादोऽय-महो मे समुपस्थितः // प्रमत्तः सप्रतिष्टश्चे-हिनष्टस्त. 570 हि स ध्रुवं // 1 // म्लानमित्यालपत्तं सा / पुरुषोत्तम मा वम // श्मामध्यास्व मंजूषां / याति यावऊरत्यसौ // 2 // मंजूषाया अथाली / तुर्यवदारकं नृपे // सा तालकं दधौ बाढ–महो नागपर जेम सर्षव तथा अमिशिखामां जेम पारो तेम स्त्रीना स्वभावथी था मोकरीना हृदयमां था वात स्थिर रहेशे नहि. // // // वृधपणाना बलथी था मोकरी निर्नय तथा निलऊ थश्ने दाणवारमा मने राजाने पण रंकनीपेठे वगोवशे. // 70 // अरे! मारापर था मोकरीए जोयेलो अपवाद यावी पड्यो! जो ते प्रमत्त अने प्रतिष्टावाळो होत तो खरेखर नष्ट थात. // 1 // ए. वी रीते ऊंखवाणा पडी गयेला ते राजाने तेणीए कह्यु के हे पुरुषोत्तम! तुं खेद न कर? ज्या सुधी या मोकरी पाजी जाय त्यांसुधी तुं या पेटीमां बेशी जा? // 7 // पनी राजा ज्यारे ते | पेटीना चोथा खानामां पेठो त्यारे तेणीए त्यां मजबूत तालुं दी , अहो! स्त्रीनन पण धैर्य केर्बु P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- धैर्य हि योषितां // 3 // न ग्रामपुरराष्ट्रेषु / माति यः सपरिबदः // मंजूषागहरे सोऽपि / ममौ नृपः स्वदोषतः // 4 // फलकांतरितास्तस्यां / पेटायां ते विजादयः // तूष्णीकाः सुचिरं तस्थुरौष्ट्रिका श्व तापसाः // 5 // विवृत्याथ तया दारं / श्वश्रूर्वेश्मन्यवेश्यत // तदीयं कंठमालंब्य / मुक्तकंठमरोदि च // 6 // कंदसे किमकस्मात्त्वं / तयेत्युक्ता जगाद सा // किं ब्रुवे मंदनाग्याह / / सोमऋतिर्वनाण यत् // 7 // विदेशस्थः समुद्रः प्रा-गुक्तमर्थ प्रपन्नवान् // पाहतो धर्मराजे. होय ! |शा जे राजा परिवारसहित गाम नगर अथवा राज्यमां पण समाय नहि ते पण पो. ताना दोषथी पेटीना खानामां समा गयो. // // वचे पाटीयां जडेली ते पेटीमां ते ब्राह्मणयादिक औष्ट्रिक तापसोनीपेठे घणा काळ्धी मौनपणे रह्या. // 5 // पडी तेणीए वाराणुं न. घामीने सासुने घरमा प्रवेश कराव्यो, तथा तेणीने कंठे वलगीने घांटो कहामीने ते रमवा ला. गी. // 6 // तुं अकस्मात केम रडे ? एम तेणीए पूज्वाथी ते शीलवती बोली के, अरे! ह मंदनाग्यवाळी शुं कहुं? केमके सोमनति ब्राह्मण कहे जे के, // 7 // विदेशमा रहेला समद त्त प्रथम तो वर्णवेलो धनसमूह पाम्या, तथा पनी धर्मराजे यादर करवाथी सुरसंपत्ति पाम्या.॥ P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- न / प्राप्नोऽथ सुरसंपदं // 7 // श्लेषोक्तिविदुषो वध्वा / व्याहृतं सरलाशया // तयेति प्रतिपदा- / माना / जज्ञे सापि विलापिनी // 7 // विलोक्य प्रातिवेश्मिक्य-स्ते हे क्रंदनतत्परे / तत्रैत्य रु. | रुदुस्तारं / तासां दूरे न दृग्जलं // 50 // सा च वार्ता वितस्तार / निखिलेऽपि पुरे क्रमात् // ए७२ | वार्ता स्त्रीयानमारूढा / स्याहायोरपि जांधिकी // 1 // अथेन्या याययुस्तत्र / कर्तु तस्योर्ध्वदेहिकं // सर्वेऽपि तद्गृहहारि / संयैवं मिथोऽज्यधुः // 7 // श्लेषोक्ति एटले वियर्थी वचन बोलवामां चतुर एवी वहुए कहेवु वचन सत्य मानीने स. रख बाशयवाळी तेणीनी सासु पण विलाप करवा लागी. // 79 // एवी रीते तेन बन्नेने रडती जोने पमोशनी स्त्रीने पण त्यां यावीने मोटेथी रडवा लागी, केमके स्त्रीननी अांखोमां आंसु श्राववां कई बेटां नथी होता. // ए०॥ पछी ते वात अनुक्रमे पाखा शहेरमा फेलाइ गश्, केमके स्त्रीरूपी वाहनपर चडेली वात वायुथी पण वेगवाळी थाय . / ए१ // हवे तेनी मरणक्रिया करवामाटे त्यां शेठशाहुकारो श्राव्या, तथा तेन सघला तेना घरने | बारणे एकठा थश्ने परस्पर कहेवा लाग्या के, // 7 // था समुद्रदत्त परदेशमा पुत्ररहितज म | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // ए॥ अपुत्र एव दूरस्थः / समुद्रोऽयं व्यपद्यत / अपुत्रस्य गवत्येव / श्री राजकुलगामिनी // // ए३ // राजानुझां विनास्यौकः / प्रवेष्टुं तन्न युज्यते // सुलंघा ज्वलनज्वाला / दुर्खधं राजशा"| सनं // ए। // इति ते सहिताः सर्वे / भवनं त्रुभुजो ययुः // नास्थाने न च शुघांते / तैस्तदा५७३| प्रापि नृपतिः // 55 // राझौतरगः सकल-स्तैरपृनि परिबदः // पुनर्देवहतस्येव / तस्य शुहिं न कोऽप्यवक् // 6 // इतरेतरमालोच्य / तेऽय मंत्रिगृहं ययुः // न तत्र नोपपौक-स्तैर्लेने स: | रण पाम्यो , अने पुत्ररहित मनुष्यनी लक्ष्मी राजकुलमांज जाय . // 3 // माटे राजाना हु. | कमविना थाना घरमां जq लायक नथी, केमके अमिनी ज्वाला उलंगवी सारी, परंतु राजाना हुकमर्नु नलंघन करवू सारुं नथी. // 4 // एम विचारीने तेज सघला राजमंदिरे गया, परंतु सन्नामां के जनानामां क्यांय पण तेजने राजानो मेलाप थयो नहि. / ए५॥ त्यारे तेनए राजाना सघला खानगी परिवारने पूज्युं, परंतु जाणे को देव तेने हरी गयो होय नहि तेम को. श्ये पण तेना समाचार कह्या नहि. // 6 // पड़ी तेन परस्पर विचार करीने मंत्रिने घेर गया. परंतु त्यां तेमज राजसनामां पण ते ने मंत्री मब्यो नहि. // ए // त्यारे तेन सिंहदत्त कोट Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्न- चिवस्तदा // ए॥ प्रारदसिंहदत्तस्य / तेऽथ मंदिरमाययुः // निःशासनो निषिरिख / न लेने | मा सोऽपि तैस्तदा // // विलदास्ते ततो राज्ञः / कुमारं गुणसागरं // योजितांजलयोऽन्येत्य / | प्रणम्येति व्यजिझपत् / / एए | वार्ता श्रुत्वाप्यकल्याणीं / समुद्रस्य प्रवासिनः // तऽहं न प्रवि. एन् टाः स्मो / यतः सोऽदपुत्रकः // 2700 // तत्कुमार प्रसद्याशु / प्रेष्यंतां निजपूरुषाः // दृष्टुं त. मेहसर्वखं / कुर्मो येनोर्ध्वदेहिकं // 1 // सोऽप्यूचे पुण्यवानस्मि / यत्केलिप्रियमद्य मां / / गौरवालने घेर गया, परंतु बेमालुम निधाननीपेठे ते पण तेजने मल्यो नहि. // // त्यारे वि. लखा पडेला ते गुणोना समुद्रसरखा राजाना कुमारपासे भावीने हाथ जोडी प्रणाम करीने विनंति करवा लाग्या के, // एए // विदेश गयेला समुद्रदत्तना मृत्युनी वात सांजलीने पण य. मो तेना घरमां गया नथी, केमके ते पुत्ररहित हतो. // 2700 // माटे हे कुमार! आप कृपा करीने तेना घरनी मीटकत तपासवामाटे पापना माणसोने मोकलो? के जेथी अमो तेनी मरण क्रिया करीये. // 1 // त्यारे ते राजकुमार पण बोल्यो के हुँ पण पुण्यवान बुं के बालक्रीडा कर| तो एवो जे हुं, तेनीपासे पिताजीना मानीता एवा तमो शेठीया बाजे पोतानीमेळेज यावे. Jun Gun Aaradhak Trust Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि व्यास्तातपादाना-मिन्या अन्याययुः स्वयं // 2 // तत्तत्कार्येषु जूपायै-रात्तवित्तफला अपि // पुनः पुनः फलंतीन्या / हुमा नित्यफला श्व // 3 // परं नास्ति ममेदानीं / व्यापारोऽयं शिशोखि // जीवत्सु तातपादेषु / मंत्र्यारदाक्योखि // 4 // तैरूचिरे कुमारें / त्रयोऽप्येते बुलोकिरे // रत्नत्रए७५ यमिवानव्य-रस्माभिर्न तु लेनिरे // 5 // कुमारः स्माद संब्रांत-मना मीधवादयः // कामी अहो गता राज-रथसारथयस्त्रयः // 6 // चिंतां च पूर्वमेतेषां / करिष्याम्येष वस्ततः // एवं तं लागे.॥२॥ अमुक अमुक कार्यप्रसंगे राजायादिको जेननु धनरूपी फल जो के ले, तो पण नित्य फलतां वृदोनीपेठे ते शाहुकारो फरी फरीने फल्या करे . // 3 // परंतु हजु पिताजी हयात बतां जेम मंत्री बने कोटवाल- तेम मारे बालकने दालमां या कार्य करखानुं नथी. // // त्यारे ते बोल्या के हे कुमारेंद्र ! ते त्रणेनी अमोए तपास करी, परंतु बनव्योने जेम (झानादिक) वण रत्नो तेम अमोने तेन मख्या नहि. // 5 // ते सांभळी मनमा गजरायेलो कुमार बोल्यो के राजा, रथ अने सारथिसरखा ते राजायादिक क्यां गया? // 6 // माटे प्रथम हं ते. उनी तपास करीश, अने पनी तमारं कार्य करीश, एवी रीते तेने पावरवाळो जोश्ने महाजने Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 506 धाम- वीदय साटोपं / पुनरूचे महाजनः // 7 // ऋजुस्वन्नाव मा वत्स-तो भाणीरिदं वचः // न वे. मासि प्रहरिष्यति / पुरं बलदृशो विषः // 7 // पूर्व विज्ञप्तिमेतेषां / प्रमाणय गुणालय // भुत्तुट्पी | डास्पृशां वेला-विलंबः सहते न नः // // तेनाथ प्रहिता वेश्म / समुद्रस्य स्वमंत्रिणः / ग. त्वा निरीक्ष्य संवेक्ष्य / यथादृष्टं बनापिरे // 10 // स्वामिन् समुदसंबंधि-धनस्याशा विमुच्यतां // | तस्योकः साधुशालाव-दिदानीमस्त्यकिंचनं // 11 // तत् श्रुत्वा विस्मितः प्राह / कुमारः प्रत्ययो फरीथी कडं के / / 7 // अरे नोळा ! करमत करीने तुं एम बोलमां ? तने हजु खबर नथी के. मके कदाच लाग जोनारा शत्रुन था नगर ले लेशे. // 7 // माटे हे गुणवान! प्रथम श्रा लोकोनी विनंति तु स्वीकार ? केमके अमाराथी भुख्या तरस्या विलंब सहन थ शकशे नहि.॥ // // पनी ते राजकुमारे पोताना हजुरी ने समुद्रदत्तने घेर मोकल्या, तेनए पण त्यां जश जो तपासीने जेवु हतुं तेवू यावीने कह्यु के, // 10 // हे स्वामी! तमारे समुदत्त शेग्ना ध. ननी याशा छोकी देवी, केमके तेनुं घर तो साधुना नपाश्रयनीपेठे कशी पण मिल्कतविनानुं . // 11 // ते सांजळीने विस्मय पामेलो कुमार बोल्यो के मने तमारां वचनपर विश्वास थावतो | Jun Gun Aaradhak Trust Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि न. मे // वाचि युष्माकमाकर्णि / यतोऽसौ प्राग्महाधनः // 12 // स्वयं गतोऽय सोऽप्यात-फलः / पुष्पफुमोपमं // तद्देश्म सर्वथा निःश्रिा दृष्ट्वा शीलवती जगौ // 13 // कथयावितथं नई। सा विचतिः क ते गता // पश्चादपि हि नोत्स्यते / सहस्रादा महीनुजः // 14 // साथोचे वत्स द्र. व्याशा वेशादेशांतरंप्रति // पति, प्रस्थितः सर्व / गृहसारं सहानयत् // 15 // केवलं मां च मंजूषां / चेमां नारकरी पथि // गृहे मुमोच को वेत्ति / यदस्या थस्ति कोटरे // 16 // परमार्थानथी, केमके पूर्व ते महाधनाढ्य संजाळायो बे. // 12 // परी ते कुमारे पोते त्यां जश्ने पुष्पफल तोमी लीधेला वृक्षासरखां तेना घरने सर्वथा धनरहित जोश्ने शीलवतीने कर्जा के // 13 // हे न! तुं सत्य कहे ? तारी समृधि क्यां गश्? केमके हजारो अांखोवाला राजानने पालथी पण तेनी खबर पडी जशे. // 14 // त्यारे ते बोली के हे वत्स! द्रव्य मेलववानी याशाना था. वेशथी ज्यारे मारा स्वामीए देशांतरमा प्रस्थान कर्यु त्यारे घरनी तमाम मीटकत ते पोतानी सा. थे ले गया . // 15 // केवल मने अने मार्गमा अति बोजो करनारी या पेटीने ते घरमां मुकी गया बे, परंतु कोने खबर के था पेटीनी अंदर शुं हशे! // 16 // पनी परमार्थ नहि जा. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिभृद्यत्र / रिकूटः समेखलः // सा मंजूषानवद्युक्तं / वोट्टणां नारकारणं // 17 / / ऋरिनारेयमि | युक्त-स्तैः प्रीतो पर्जगौ // रत्नवर्णादिन्निः पूर्णा / मंजूषेयं नविष्यति // 15 // स्वं धामैत्य 500 सनालोके / लोकमाने सकौतुकं // नित्वाद्यं तालकमसौ / मंजूषामुदघाटयत् // 20 // ततस्तत्र | त्यवदारा-ब्रह्मचिह्नविनाकृतिः // प्राच्यात्परिचयादयः / प्रादुरासीत पुरोहितः // 21 // कथ्यम णनारा घने पेटी जोश्ने खुश थयेला राजकुमारे हुकम करवाथी तेना नोकरोए ते पेटी मस्तकपर नपाडी. // 17 // जे पेटीमां घणा कूटवाळो (शिखरोवाळो ) तथा कंदोरावाने ( मेखलावाळो) राजा (पर्वत) बेठेलो, ते पेटी जंचकनारानने जे ज़ार करनारी थ ते युक्तज जे. // 10 // अहो! था तो बहु नारवाळी ! एम तेजए कहेवाथी खुशी थयेलो राजकुमार बोल्यो के खरेखर या पेटी रत्न तथा स्वर्ण यादिकथी नरेली होशे. // 15 // पछी तेणे पोताने घेर भावीने सजासदोनी नजरे कौतुकपूर्वक पहेर्बु तालुं नांगीने ते पेटी उघाडी. // 20 // त्यारे ते. | ना खानामांथी ब्रह्मचिह्नविनानी पाकातवाने तथा पूर्वना परिचयथी जळखी शकाय एवो पुरोहित / P.P.AC Gunratnasuri M.S. un en Aaradhelma Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- वागतोऽसीति / सन्यै पृष्टो हिजो जगौ // मा मां पृचत पार्षद्याः / पश्यत प्रथमं पुरः // // / तालकेऽथाग्रिमे निन्ने / तलारदो विनिर्ययौ // वदारकांततः शैल-गह्वरादिव कौशिकः // 3 // एवं तृतीयतर्यान्यां / वदारान्यां निरीयतुः // मंत्री च मेदिनीशश्च / त्रपासंकुचिताननौ // 24 // अपास्तजूषा यापाणि-पादं खलितरंटिताः // निर्विशेषाः सदृग्वेषा / जलाईमात्रवाससः // 25 // ईयिवांसो नवपरा-वत्तादिव दशांतरं // चत्वारस्ते चिरं चित्रं / न चक्रुः कस्य पश्यतः // 26 // प्रगट थयो. // 21 // अरे! यामां शीरीते तुं श्राव्यो? एम सजासदोए पूज्वाथी ते ब्राह्मण बोव्यो के. हे सन्नासदो तमो मने पूगे नहि, परंतु पहेलां पागल तपास चलावो? // 2 // ते पळीनं ताबु नांगवाथी पर्वतनी गुफामांथी जेम घुवर तेम ते खानामांथी कोटवाल निकव्यो. // 23 // एवी रीते त्रीजा बने चोथा खानामांथी लङाथी संकोचायेलां मुखवाळा मंत्री अ. ने राजा निकल्या. // 24 // याऋषणविनाना भने नेक हाथथी पगसुधी खरमायेलां शरीरवाळा कई पण तफावतविना तुल्य वेषवान, अने फक्त जलथी नींजायेला वस्त्रवाळा, // 25 // जाणे संसारचक्रमांथी बीजी दशाने प्राप्त थया होय नहि एवा ते चारे कया जोनार माणसने घणा का. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धांध- प्राहुर्विनोदिनः केचि-दहो नाग्यं कुमार ते // जिज्ञासिता थमी प्रादु-र्जुताश्च स्वयमेव यत् / / मा // 27 // परे प्राहुरहो नक्ता / नृपेऽमात्यादयस्त्रयः॥ न वस्वामिनमत्याक्षु-र्यदीहक्संकटेऽप्यमी | // // दशां नीतोऽसि केनेमां / तात तं हन्मि वेभि चेत् // एवं ब्रुवंतमाटोपा-पुत्रं नृपो न्यवारयत् // 25 // जोषं नजैष संरंनो / वृथा तत्वं न बुध्यसे / आकारय सदाकार / तामेव श्रे ष्टिनः प्रियां // 30 // राजाप्यथ समुबाय / धौतकायः शुनोदकैः // सिंहासनमलंचक्रे / नव्यशृंगाळसुधी पाश्चर्य न करखा लाग्या ? // 26 // वळी केटलाक मश्करान बोल्या के हे कुमार! तारं पण अहोनाग्य ! केमके जेननी तलास करवानी तारी श्बा हती तेज था पोतानीमेळेज प्र. गट थया ! // 27 // बीजा केटलाक बोल्या के यहो! या मंत्री श्रादिक त्रणे राजाना महा. जतो जणाय ! केमके तेजए यावा संकटमां पण पोताना स्वामीने गेड्यो नथी. // 20 // हे पिताजी! पापना यावा हाल कोणे कर्या ने? तेने हुं जाएं तो जीवथीज मारी नाखु, एवी रीते श्रामबरथी बोलता एवा पोताना ते पुत्रने राजाए अटकाव्यो, // 25 // (अने कहूं के) | हे उत्तम प्राकृतिवाळा पुत्र! तुं मौन रहे, तारो या जुस्सो नकामो मे, कैमके खरी बिनानी तने | Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 501 धम्मि- रनासुरः // 31 // दिजादयोऽपि ते स्नाता / निषेदुः पस्तिो नृपं // नृपाहूताययौ तत्र / तदा सा / शीलवत्यपि // 32 // कुलदेवीमिवान्येत्य / मुक्तसिंहासनो नृपः // तां नत्वा प्रणयपहो। योजितांजलिरस्तुत // 33 // त्वं योषिऊनषासि / त्वं वंद्यासि महासति / / विकटे संकटेऽपि खं / य| निश्चयमपालयः // 34 // वीरा अपि वयं नात / यं जेतुं प्रनविष्णवः // त्वया त्वबलयाप्येष / वि. षमास्त्रो व्यजीयत // 35 // विनश्यति सतीनां हि / शापात्दमापा अपि दाणात् // महान मयि प्र. माहेती नथी. हवे शेग्नी ते स्त्रीनेज तुं बोलाव? // 30 // पजी राजा पण उठीने तथा उत्तम जलथी शरीर धोश्ने नवा शृंगारथी देदीप्यमान थश्ने सिंहासनपर बेठो. // 31 // वळी ते बा. झणयादिक पण स्नान करीने राजानी यासपास बेग, तथा राजाए बोलावेली ते शीलवती पण ते वखतेज त्यां यावी. // 35 // त्यारे राजा सिंहासनपरथी जतरी सामे प्रावी प्रेमपूर्वक तेणीने नमीने हाथ जोडी स्तुति करखा लाग्यो के, // 33 // हे महासति! तुं स्त्री मां मुकुटसमान तथा वंदन करवालायक नगे, केमके यावा विकट संकटमां पण तें तारा शीलवर्नु रक्षण कयु . // 3 // थमो सुन्नटो पण जेने जीती शक्या नहि एवा ते कामदेवने तें पबलाए पण जीती लीधो. // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धारम- सादोऽयं / जीवन्मुक्तोऽस्मि यत्त्वया // 36 // जननीव सुतस्येद-मागस्त्वं सोढुमर्हसि // गुरोखि | न ते शिदा / जीवतां विस्मरिष्यति // 30 // विद्वान विद्यावधिवश्यो / गंजीरो गुणवानपि // यत्त्वं | विचिकृषे दोषः / स खलु प्राच्थकर्मणां // 30 // प्राझाः परःशताः संति / वि शूराः सहस्रशः // एए| जयत्यदाणि यः पंच / स वीरोऽतिबलः स हि // 35 // नवलदासुखं शीलं / विषयाः दणसौख्य // 35 // सतीनना श्रापथी राजा पण दणवारमां विनष्ट थाय , परंतु तें तो मारापर मोटी कृ. पा करी के मने जीवतो मुक्यो. // 36 // माता जेम पुत्रनो तेम तारे मारो या अपराध माफ करवो, तथा गुरुनी जेम तारी या शीखामण हुँ जीवीश त्यांसुधी चुलीश नहि. // 37 // (त्यारे शीलवती बोली के ) विद्वान, विद्याननी सीमासरखो, कुलीन, गंभीर तथा गुणवान एवो पण तुं जे विकारी थयो ते खरेखर तारां पूर्वकर्मनो दोष बे. // 30 // था पृथ्वीपर सेंकमोगमे विद्वानो तथा हजारोगमे शूरा माणसोने, परंतु जे पांचे इंदिनने जीते , तेज सुनट तथा अतिबलवा. न जे. // 35 // शील लाखोगमे नवोमां सुख देनाएं बे, बने विषयो क्षणमात्र सुख प्रापनारा बे, माटे एक दणमाटे कयो विचक्षण मनुष्य अनेक नवोनो विनाश करे? // 40 // जे मनु Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मिः। दाः // विचदाणः दणार्थ को। नवानकान विनाशयेत् // 40 // या चिंतामणिवऊन्म–कोटी भिरपि दुर्लभा // विदुषा इष्यते सेयं / नरता न रताशया // 41 // ततः परपुरंध्रीस्त्वं / राजन्ना जन्म वर्जय // एवं जययशःकोशै-रतिस्फारः स्फुरिष्यसि // 42 // तयैवं स्थापितः शीले / शैलेश एए३ श्व निश्चलः // स खं विश्वं जगौ वृत्तं / राजा सामाजिकाग्रतः // 43 // समदं जूभुजस्तस्या / थानीय सदनात्स्वयं // ते लेखाचरणे सोम-वृति तस्तदा ददौ / / 44 || चक्रे देशादनांनाव्यपणं चिंतामणि रत्ननीपेठे कोडोगमे भवोथी पण उर्खन बे, तेने विद्वान माणस विषयवांछाथी दुषित करतो नथी. // 41 // माटे हे राजन् ! तुं क जीवितपर्यंत परस्त्रीनो त्याग कर? अने एम कर्याथी तुं जय, यश तथा लक्ष्मीथी विस्तार पामीने याबादी मेलवीश. // 42 // एवी रीते शीलमां तेणीए स्थिर करेला राजाए पर्वतनीपेठे निश्चल थश्ने सन्नासदोनीपासे पोतानुं सघg वृत्तांत कही संजलाव्यु. / / 43 // ते वखते सोमभूति ब्राह्मणे डरीने ते पत्र तथा बाजूषण पोता. नीमेळेज पोताने घेरथी लावीने राजानी समद तेणीने आप्यां. // 4 // आ अनर्थोनुं मूल या ब्राह्मण , एम विचारीने पदी माळामांथी जेम मानना कांटाने तेम राजाए ते ब्राह्मणने दे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम- मयं मूलमिति विजः // राझा बहिर्विहंगेन / नीमादुर्वातितांडवत् // 45 // शीलवत्यपि पेन / / साई | खगृहे प्रहितोत्सवैः // परेषां च दुःप्रधर्षा-दहेखि फणामणिः // 46 // . समयेऽथ समायातः / समुद्रः स विदेशतः // शीललीलायितं श्रुत्वा / वध्वा बाढममोदत // एए | // 4 // तत्र ज्ञानत्रयखनिः / श्रीशीलगुरुरन्यदा // श्रागागौरयशःपूर-पूरिताखिलतलः॥॥ तं नंतु निर्ययौ जुमा-नमात्यादिनिरन्वितः // दिव्ययानेन गीर्वाणै-खि त्रिदिवनायकः // 4 // शमांथी दूर कर्यो. // 45 // अन्योथी न पकमी शकाय एवा सर्पनी फणापर रहेला मणिसरखी ते शीलवतीने पण राजाए नत्सवपूर्वक पोताने घेर मोकली. // 46 // पनी केटलेक समये विदेशथी पावेला समुदत्ते पोतानी स्त्री- ते शीलचेष्टित सांजळीने तेणीनी प्रशंसा करी. // 4 // हवे एक दिवसे निर्मल यशना समुहथी समस्त पृथ्वीतलने नरनारा तथा त्रण झाननी खाणसरखा श्रीशील नामना गुरु त्यां याव्या. // 4 // त्यारे देवोसहित जेम इंद्र तेम मंत्रियादिक सहित राजा दिव्य वाहनमां बेशीने तेमने वंदन करवामाटे यां | थाव्यो. // ४ए / प्रत्यक्ष प्रनाववाळी महान औषधीसरखी शीलवतीसहित समुद्रदत्त पण ते गुरु / Gunratnasunt Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एए धम्मि- महौषध्येव सर्वत्र / वध्वा दृष्टप्रजावया // समं समुद्रदत्तोऽपि / ययौ गुरुपदांतिकं // 20 // नवा निषले क्रमतो / नृपे लोके च निर्ममे / / अपेयीकृतपीयूष-सारिणी देशनां मुनिः / / 51 // दे. हिनेह नवारामे / विरामब्रमकारिणा // दुःप्रापोऽनल्पसंकल्प-कल्पफुर्मानवो नवः // 5 // तं प्राप्यापि प्रमादेन / विचारजडबुध्यः // एरंममिव मन्वानाः / केऽपि स्युर्दुःखनाजनं // ५३॥ने दाः पंच प्रमादस्य / मदनस्येव सायकाः // व्यामोह्य सर्व कुर्वति / ही जनं नरकाध्वगं // 24 // नेदस्तत्रादिमोऽवादि / सुराव्यर्च्यपदैः सुरा // चेतना मृतकस्येव / यया मूढस्य नश्यति // 25 // ना चरणोपासे श्राव्यो. // 50 // पनी अनुक्रमे राजा बने लोकोना बेगवाद ते मनिराज का मृतनी नहेरने पण जीतनारी धर्मदेशना देवा लाग्या के, // 51 // या संसाररूपी बगीचामां बेसता अने फरता प्राणीने अनेक संकल्पोमाटे कल्पवृक्षसरखो मनुष्यनव र्खन . // 12 // व. ही ते मख्या छतां पण अविचारी अने जड बुध्विाळा केटलाक प्राणीन तेने एरंमसमान जाणीने दुःखोना नाजनरूप थाय . // 53 // कामदेवना बाणसरखा ते प्रमादना पांच नेदो ने के | जेन सर्व लोकोने मोहमां नाखीने नरकगामी बनावे . // 24 // देवोनी श्रेणिथी पूजनीय च P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- दैतियीकस्तु विषया-स्तत्वालोकस्य दस्यवः // ददतेऽसाध्यमांध्यं ये / काचबिंदुवदंगिनां // 16 // कषायास्तु तृतीयः स्या-द्देदो यैराकुलीकृतं // मध्यस्था मन्वते जात–सन्निपातमिवांगिनं // 5 // तुर्यो नेदस्तु निडा स्या-द्यानिलिंगुसहोदरी // निरुणहि दृशावेव / नृणां गयानिषेदुषां // // 27 // चतस्रो विकथानेदाः / प्रमादः पंचमः स्मृतः॥ वातूल व तूलस्य / यः स्थैर्य हंति चे. | तसः // एए // मोहपंचाननस्यामी / नेदाः पंचाननोपमाः // ग्रसंते नांगिनस्कांस्का-नत्राणान | रणोवाळा जिनेश्वरोए तेननो मदिरा नामे पहेलो भेद कह्यो बे, के जेथी शबनी पेठे मूढ माण सर्नु चैतन्य नाश पामे . // 55 // तेजनो बीजो नेद तत्वज्ञानने बुटनारा विषयो ने, के जेन पडळनीपेठे प्राणीनने असाध्य अंधापो आपे . // 56 // बीजो भेद कषायो ने, के जेथी व्या. कुल थयेला प्राणीने विहानो सन्निपातवाळा पाणीसरखो माने . // 27 // तेजनो चोथो नेद निडाने, के जे भिलामासरखी ने, अने तेनी गयामां बेठेला प्राणीननी ते दृष्टिनेज रोकी रा. खे // 7 // विकथाना चार नेदो , धने पांचमो प्रमाद बे, के जे पवन जेम रुना पुममां| नी स्थिरताने तेम चित्तनी स्थिरतानो नाश करे . // 27 // मोहरूपी सिंहना पांच मुखोसर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः। हरिणानिव // 60 // शांतमोहाश्चतुर्झनाः / श्रुतकेवलिनोऽपि हि // प्रमादपावश्येन / ब्राम्यति सार्थ नवकोटिषु // 61 // श्रेयःफले यतध्वं त–दप्रमादधनार्जनाः // न वस्तु दुर्लभं प्राप्य / प्रमाद्यति सचेतसः // 6 // ततः प्रमुदिताः पौरा / गुरोरत्नखनेखि // संगृह्णति स्म नियम-रत्नानि स्वखशएए क्तितः // 63 // अथ शीलवती नत्वा / गुरुराजं व्यजिज्ञपत् / श्रमी राजादयो जाताः / प्रजो कि मयि कामुकाः // 64 // नऊगार गुरुर्धन्ये / कमैव बलवत्खलु // अमी हि प्राग्नवान्यासा-द्धखा था पांच नेदो डे, के जेन शरणविनाना हरिणोनीपेठे कया कया प्राणीनने ग्रसी जता न. थी? // 60 // शांतमोहवाळा चतुर्सानी श्रुतकेवलीन पण प्रमादने वश थवाथी कोडोगमे नवो. मां नमे . // 61 / / माटे अप्रमादरूपी धन मेलवीने तमो कल्याणकारी फलमाटे प्रयत्न करो? केमके बुध्विान माणसो दुर्खन वस्तु पामीने प्रमाद करता नथी. // 6 // पनी खुशी थयेला नगरना ते लोकोए रत्नोनी खाणमांथी जेम तेम गुरुपासेथी पोतपोतानी शक्तिमुजब नियमरूपी ग्लो ग्रहण कर्या. // 63 // हवे शीलवतीए गुरुमहाराजने नमीने विनंति करी के हे प्रनो! या राजायादिक मारापते केम रागी थया? // 64 // त्यारे गुरु बोल्या के हे धन्ये! कर्मज खरेखा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घास- नृवुस्त्वयि रागिणः // 65 // तथाहि जबूढीपेऽत्रैखत-क्षेत्रे द्युतिलके पुरे // शिवचतिर्वितीनां / महेन्योऽजनि मंदिरं // 66 // // | महाश्रियां सधर्मिण्यां / तस्य शस्यकराकृतिः // अजायतं सुतः सिंहः / सिंहस्वप्नेन सूचितः // 6 // एए| अनुचंद्रकलास्वप्ना-चंद्रलेखास्य नंदिनी // यौवनं चंद्रलेखेव / वर्धमाना बनार सा // 60 // सिं | हो देवश्रियं कन्या-मवन्यां मेनकामिव / महेन्यसंनवां पित्रो-निर्देशादुदयबत // ६णा अथ वळ्वान बे, या लोको खरेखर पूर्वनवना अन्यासथी तारापते रागी थया हता. // 65 // ते कहे जे.. या जंबूहीपमा ऐवतक्षेत्रमा गुतिलक नामना नगरमां ऋधिना मंदिरसरखो शिवजूति नामे एक मोटो शेठ हतो. // 66 // तेने महाश्री नामनी स्त्रीथी सिंहस्वप्रथी सूचित थयेलो मनोहर प्राकृतिवाळो सिंह नामे पुत्र थयो. // 67 // वळी तेने चंद्रकलाना स्वप्रथी चंद्रलेखा नामे पुत्री थ, के जे चंनी कलानीपेठे वृधि पामीने यौवनावस्था पामी. / / 67 // हवे ते सिंह पोताना मातापितानी याकाथी पृथ्वीमा रहेली मेनकासरखी मोटा शाहुकारनी देवश्री नामनी कन्या परयो. // 65 // हवे ते नाना शिवचतिनो मोटो भाइ देवधर व्यापारनिमित्ते कनकपुर नामना न PPA Gunrainagu MS Jun Gun Aaradhak Trust Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमित देवधरो नाता / शिवनृतेश्च कन्यसः // श्याय व्यवसायेन / कनकोपपदं पुरं // 70 // इत्यस्य नाग्यलन्यस्य / धाम्नि नंदस्य तस्थुषः // तत्र तस्याभवत्तेन / सत्रा मैत्र्यमकृत्रिमं // 11 // नाना. गुणधरं सोऽथ / सानंदो नंदनंदनं / / युवान वीक्ष्य योग्याय / तस्मै भ्रातृसुतां ददौ / / 72 // गतः एए| सिंहोऽपि वाणिज्ये / चंपायामिन्यसनवे // खसख्ये सूरदेवाय / मुदा स्वां नंदिनीमदात् / / 3 / / महाश्रियापि तस्थुष्या / तदा च स्वपितुर्गुहे / / स्वसखीसूनवेऽदायि / गुणचंद्राय सा कनी // 4 // थथ चंद्रपुरादागात / पूर्वसंचितसौहृदः // नाना महेश्वरदत्तः / श्रेष्टी युतिलकं पुरं / / 75 // त. गरमा गयो. / / 70 // त्यां नाग्यथी मळे एवा नंद नामना शेठने घेर रहेताथकां तेने तेनीसाथे | दिलोजान मित्रा थरु. // 71 / / हवे विविधप्रकारना गुणोवाळ ते नंदशेउना युवान पुत्रने जो इने योग्य जाणी तेनापते पोताना नाश्नी दीकरोतुं सगपण कयु. // 7 // वळी व्यापारमाटे चंपानगरीमां गयेला सिंहे पण पोताना मित्र सूरदेव नामना एक शेठना पुत्रवेरे हर्षयी पोतानी बहेननं वेवीशाल कीg. // 73 // हवे ते वखते पोताने पीयर गयेली महाश्रीए पण पोतानी ब. | हेनपणीना पुत्र गुणचंद्रसाथे पोतानी ते पुत्री- सगपण कयु. // 74 // वळी एवामां पूर्व करेली P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धाग्य- मालोक्य प्रमुदितो। शिवतिर्ददौ सुतां // प्राग्दत्तां तामजानानः / शंखदत्ताय तदनुवे // 6 // काकतालीयकन्याया-दन्यैश्चाप्यमुनापि च // एकमेव ददे लमं / वैवाहिकजनेऽखिले // 7 // शिवचतिः समुत-प्रनृतप्रीतिनाजनं // प्रावीवृतन्महं गेहे / प्रीणितप्रमदाजनं // 70 // नबूल. ध्वनयश्चंद्र-मुखीनी मृदुमंजुलाः / महोत्सवाब्धिवीचीनां / ध्वनितानीव रेजिरे // 7 // स्वज नोत्कलिकाकृष्ट-वागालमवासरः // समं समेयरुस्ते च / वराः परिकरान्विताः // 70 // सहसा मित्राश्वाळो महेश्वरदत्त नामनो शेठ चंद्रपुरथी युतिलकपुरमा श्राव्यो. // 15 // तेने जोड्ने खुशी थयेला शिवतिए पूर्वनां सगपणोने नहि जाणवाथी तेना शंखदत्त नामना पुत्रने पोता. नी पुत्री पापी. // 16 // हवे काकतालीय न्यायथी बीजानए तथा था शेठे पण सर्व वेवाश्नने एकज दिवसर्नु लम थाप्यु. // 77 // पनी शिवतिए अत्यंत प्रीति नपजावनारो तथा स्त्रीन ने खुश करनारो विवाहमहोत्सव पोताने घेर चालु को. // 70 // चंडसरखां मुखवाळी स्त्रीननां कोमळ मनोहर गीतोना अवाजो महोत्सवरूपी समुद्रना मोजांना ध्वनिननीपेठे शोगवा लाग्या. // 70 // स्वजनोना नत्साहथी जाणे खेंचाइ आव्यो होय नहि तेम लमनो दिवस पण Jun Guna PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि| तान् वरान वीदय / चतुरश्चतुरोऽप्यलं // किंकर्तव्यतया मूढः / शिवतिरत्ततः // 1 // केचिः | ना कोलाहलं चक्रु-शुक्रुशुः केऽपि तं जनाः // अन्योन्यं विवदंतेस्म / वराणां खजना अपि // // 2 // वैसंस्थुव्यमतुल्यं त-दीदय कन्या विषादिनी // विषादिनिनिहतुं स्व-मीहतेस्म हताश६०१ या // 3 // सा ततः साततश्वित्र-मनोरथपरंपरा / परं परानवं चित्ते / चिंतयंती ययौ वनं / / // 4 // अकुंठोत्कंठया मृत्योः / कंठे पाशं विपत्यसौ // यावत्तावध्वनिर-न्मुग्धे मा कुरु भावी पहोंच्यो, थने तेथी ते चारे वरो परिवारसहित साथेज श्रावी पहोंच्या. // 70 // एवी रीते ते चारे वरोने अचानक श्रावेला जोश्ने चतुर एवो पण शिवभूति ढवे शुं कर? एम विचारमूढ थ गयो. // 71 // केटलाको कोलाहल करवा लाग्या, अने केटलाक माणसो तेनापर गुस्से थवा लाग्या, तथा ते वरोनां सगांज पण परस्पर विवाद करवा लाग्या. / / 2 / / एवी रीतनो अतुल्य कोलाहल जोश्ने खेद पामेली ते निर्जागी कन्या फेरयादिकथी आत्मघात करवा. ने बवा लागी. // 3 // दुःखथी बेदागने मनोरथोनी श्रेणि जेनी एवी ते कन्या था म. हापरानवने विचारतीथकी वनमां गश्. // 4 // मृत्युनी अति उत्कंठाथी जेवामां ते गळामां फां. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धान- साहसं // 5 // निषेधयति मां कश्चि-मृत्योर्मोऽथवा सुरुः // चिंतयंतीति सापश्यत् / पुरस्तः / मारुतले मुनिं / / 76 // तं वीदय विस्मिता वीदा-पन्नतां सा विद्राण तां // ववंदे तत्पदद्वंद-मद सुखदायकं // 7 // मुनिरूचे महानागे / किमेवं दुःखभागसि // अपायः किमयं काये / विमाये क्रियते त्वया // // सुख दुःख नवेन्नृणां / नवे कर्मविपाकतः // अपि पाकरिपुः कर्म-विसो नाखे ने तेवामां एवो अवाज थयो के हे मुग्धे तुं साहस कर नहि. // 5 // मने कोश्मनुष्य अथवा देव मृत्युथी निषेध करे , एम विचारतांथकां तेणीए श्रगामीना नागमां वृदानी. चे एक मुनिने जोया. // 6 // तेमने जोश्ने विस्मय पामेली ते कन्या पोतानो ते गजराट छो. डीने अनुपम सुख देनारा तेमना बन्ने चरणोने जश् नमी. // 7 // सारे मुनि बोल्या के हे महानाग्यशाली! तुं थाम शामाटे सुःखी जणाय ? वळी हे निष्कपटी! तुं था शरीरनो शामाटे विनाश करे ? || 6 // श्रा संसारमा प्राणीजने सुख फुःख कर्मोना विपाकथी थाय , कर्मोना विपाकथी इंऊ पण मुक्त थ शकतो नथी. // नए / माटे | आ. के. खा. कोषा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्णि पाकाच न मुच्यते // 7 // यतितव्यं ततः कर्म-धंसने धीरचेतसा / / खलो यो दंड्यते सै-। व / धनेन धनेन किं / ए० // दुःकर्म तत्कथं जेयं / तयेत्युक्ते मुनि गौ / कर्ममर्माविधं ध. | मै-मेव शर्मकरं श्रय // ए१ // तया को धर्म इत्युक्ते / यतिरूचे सचेतने // दधाति सर्वधर्मेषु / 603) संयमः सर्वसारतां // ए॥ अपारे खलु संसार-सागरे सारसंयमं // यानपात्रसमं प्राप्य / यांति धीराः पदं पदं // 23 // इत्याकर्ण्य सकर्णा सा / संयमं साधुसंनिधौ // आदाय पालयामास / धीरमनवाळाए कर्मोना विनाशमाटे यत्न करखो जोश्ये, अने तेथी खल एवं जे कर्म तेनेज शिदा थवी जोश्ये, शरीरने शिदा करखाथी शुं फायदो बे ? // 50 // त्यारे दुष्कर्मने शीरीते जी. तवं? एम तेणीए कह्याथी मुनि बोल्या के, कर्मोना मर्मोने नेदनारा अने सुख करनारा धर्मनोज तुं याश्रय कर? // 1 // कयो धर्म ? एम तेणीए कह्याथी मुनि बोल्या के हे बुझिमति ! सर्व धर्मोमां संयमधर्म सारत ने, // ए॥ था अपार संसारसागरमां वहाणसरखा मनोहर संय. मने पामीने धीरपुरुषो मोदस्थानमां जाय . // 23 // ते सांनळीने ते बुध्विान कन्या साधुपासे संयम लेख्ने साध्वी साथे रहीने घणा कालसुधी पालवा लागी. // ए // अंते अनशन P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 604 धम्मि-| साध्वीनिः संगता चिरं // 4 // सा प्रांतेऽनशनं प्राप्य / शुघाराधनतत्परा // सुरलोके द्वितीयेsमानु-दहितीयातिः सुरी // ए५ // जुक्त्वा नोगांस्ततच्युत्वा / त्वं जाता शीलवत्यसि // प्राग्नवे यावजूतां ते / पितरावधुनापि तौ // ए६ // श्तश्च तेऽपि चत्वार-श्चतुराग्या वरास्तव / / वृत्तं वि. झाय विज्ञायाः / स्वचित्तेचिंतयन्निति // ए // हास्यास्पदाः स्वमित्राणां / यास्यामः स्वगृहं कथं // ध्यात्वेति ते वनेऽन्वन / तपसे तापसास्ततः // // मृत्वा सर्वेऽपि देवेषु / जाता नवनवासिषु // नब्धृतास्ते ततः माप-मुख्या नऽनवन्नम। // एए // पूर्वसंस्कारतस्तेऽत्र / जातास्त्वय्यनु. लेश्ने शुधबाराधनापूर्वक काळ करी बीजा देवलोकमां ते अनुपम कांतिवाळी देवी थइ. // // एए // भोगो जोगवी त्यांथी चवीने तुं शीलवती थर, वळी पूर्वनवमां जे तारा मातपिता हता| - तेज था नवमां पण . // 6 // हवे ते चारे तारा चतुरशिरोमणि वरो तारुं विदुषीनुं वृत्तांत जाणीने पोताना मनमां विचारखा लाग्या के, // ए // आपणा मित्रोमां हास्यपान श्रयेला था. पणे हवे पोताने घेर शीरीते जशुंएम विचारीने तेन वनमां जश् तापस थइ तप तपवा ला. ग्या. // ए॥ पजी मरीने ते सघला भवनवासी देवोमां नत्पन्न थया, तथा त्यांथी नधरीने हे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- रागिणः // रागद्वेषौ यतो यातो। जन्मकोटीषु जन्मिनां // 1400 // पूर्वस्मिंश्व नवे योऽनृत् / / | सोदर्यस्तव वर्यधीः // सांप्रतं सैष ते नर्ता / विचित्रं नवनाटकं // 1 // श्रुत्वेति प्रतिबुघास्ते / प्र णम्य मुनिपुंगवं // योजितांजलयश्चारु-चारित्राय ययाचिरे // 2 // अदीदयन् मुनिः सर्वान् / 605] शीलवत्या समन्वितान् // सा तेऽपि तेपिरे खा-धारातीव्रतरं तपः // 3 // सर्वे संयममाराध्य / शु. ध्याना ययुर्दिवं // क्रमेण सिघिसौख्यानां / नविष्यति च भाजनं // 4 // इति यथाजनि शी. न! ते या राजाधादिक थया. // एए | पूर्वना संस्कारथी तेज अहीं तारामां अनुरागवाळा थया, केमके राग थने देष क्रोडोगमे जन्मोमां पण प्राणीनी पाउल जाय . / / श००० // वकी पूर्वनवमां उत्तम बुध्विाळो जे तारो नाश् हतो, तेज हालमां तारो भर्तार बे, केमके था सं. सारनाटक विचित्र प्रकारनुं . // 1 // ते सांनळीने तेज सघला प्रतिबोध पामीने मुनिराजने नमीने हाथ जोमी मनोहर चारित्रनी मागणी करखा लाग्या. // 2 // त्यारे मुनिए शीलवतीसहित तेन सर्वने दीदा आपी, पनी ते शीलवती तथा तेन सघळा खगधारासरखं तीव तप तपवा ला. ग्या. // 3 // पनी तेज सघन संयम थाराधीने शुछ ध्यानथी देवलोकमां गया, तथा अनुक्रमे | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ। -धाम्म | लवती सती / निजसुशीलतया विदिता अवि // विमलशीलधना नविका जना / श्ह नवंतु तथा | सुकृतप्रथाः // 5 // एकाकिन्यपि सा शील-वती मातर्महासती / यथा तथा वशान्यापि / ववशा शीलालीलया // 6 // लघोरप्यंब मे शिदां / कदीकुरु सुखाकरीं // अस्यामंगलरूपस्य / पश्य व. 606 मपि मा मुखं // 7 // एवं स्ववर्णनं श्रुएवन् / स मौनी प्रेरयन् रथं // कियतीमपि कांतार-जुवं यावदः तेन मोदसुखना नाजनरूप थशे. // 4 // एवी रोते जेम पोताना सुशीलपणाधी ते शीलवती सती पृथ्वीमा प्रख्यात थर, तेम हे नविक लोको! तमो या जगतमां निर्मल शीलरूपी धनवाळा थश्ने पुण्यशाली था? // 5 // माटे हे माता! एवी रीते ते शीलवती एकली पण जेम महासती थइ तेम बीजी स्त्री पण शीलनी लीलाथी पोताना यात्माने वश राखी शके . // 6 // वळी हे माता! मारी बालकनी पण एक शिखामण तमो स्वीकारो? अमंगलरूप एवा aa धम्मिलनुं तमो पण मुख न जुन.॥७॥ एवी रीतनुं पोतानुं वर्णन सांगलतोयको ते मौनधारी धम्मिल स्थ हंकारतोषको जेवामां के P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः लंघयत // 7 // तावच्छश्राव शंखादि-वादितध्वनिमध्वनि // हयहेषासुचटदवेडा-दिवाग्वि गुणीकृतं // // ददर्श च ध्वजवातं / पुरस्ताचलदंचलं // वियत्तरंगिणीरंग-तरंगत्रमकारिणं / // 10 // स दथ्यौ ये मया चौराः / समरे प्राग्निजनिरे // तदैरात्किमसावेति / पुरस्तजातिजव्रजः 607 // 11 // श्रुत्वा तं तुमुलं नीते / कमलाविमले उन्ने // मयि जीवति मा भैष्ट-मित्यसौ प्रत्यबो धयत् // 12 // तदा परबलात्तत्र / परित्यक्ताखिलायुधः // सौम्यवेषसुरूपश्च / विपश्चित्कश्चिदाययौ ट्लीक वनचमि लंगी गयो, // // तेवामां तेणे मार्गमां घोडानना हेपारखोथी सुन्नटोना सिंहनादोथी तथा बंदीननी वाणीथी बेवडो थयेलो शंखयादिक वादिवोनो अवाज सांनब्यो. // // // वळी तेणे वागळ आकाशगंगाना उबळता मोजानना जम करावनारा चलायमान बे. मानवाळा पताकाना समुहने जोयो. // 10 // त्यारे धम्मिले विचार्य के पूर्व रणसंग्राममां जे चोरोने में मार्या बे, तेजना नातीलानो समूह तेजना वेस्थी शुं था सामो आवे ? // 11 // हवे तेननो ते कोलाहल सांजलीने कमला बने विमला बन्ने डरवा लागी, त्यारे तेणे तेनने कहूं के मारा जीवतां तमारे मरवू नहि. // 12 // एवामां त्यां ते सैन्यमांथी सघळां हथियारो लो. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 600 धम्मि-| // 13 // अयं दूतो नवेन्नून-मिति ध्यायिनमन्यधात् // धम्मिलं स पुमान् मौलि-मौलीकृतकरसार्थ | ध्यः // 14 // आर्यपुत्रायमासन्नो / दृश्यते योजनाचलः // अत्रास्त्यजितसेनाख्यो / वानपक्षीप्र भुबली // 15 // अर्जुनः स्तेनसेनानी-स्तस्यादुत्कटो विषन् / स त्वया घातितोऽश्रावि / चरे. न्यस्तेन संप्रति // 16 // बंधुबुलिं दधानोऽसौ / हल्लेखोन्मेषिमानसः // श्हागात् सपरीवारः / संप्रति त्वां दिहदते // 17 // धम्मिलोऽपि रथं मुक्त्वा / विनीस्तमनिसंचरत् // तेन मुक्ततुरंगेण | डीने उत्तम वेषवाळो तथा सुंदर रूपवानो कोश्क चतुर माणस श्राव्यो. // 13 // खरेखर या दूत दशे एम विचारता ते धम्मिलने मस्तकपर मुकुटरूप करेल ने बने हाथो जेणे एवा ते पुरुषे कडं के, // 14 // हे यार्यपुत्र ! था नजीकमां जे अंजनाचल पर्वत देखाय ने त्यां अजितसेन नामनो वनपल्लीनो बलवान खामी रहे . // 15 // चोरोनो सेनापति अर्जुन तेनो मोटो शत्रु हतो, तेने ते मार्यो एम गुप्त राखेला पुरुषोना मुखथी तेणे हमणा सांजल्यु जे. // 16 // अने तेथी यति थानंदित मनवाळो थश्ने ताराप्रते बंधुनी बुद्धि धारण करतोयको ते ग्रहीं परिवारसहित श्राव्यो बे, अने हवे तने ते मलवानी श्छा राखे . // 17 // त्यारे धम्मिल पण रथ छो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhiak Trust Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- रंगणालिंग्य नाषितः // 17 // त्वयापायि मुखेनामिः / पंजरेऽक्षेपि केसरी // दांतश्च दृग्विषो जो / गी। हतो यदयमर्जुनः // 15 // अजय्ये नटसंहत्या-ऽर्जुनेऽस्मिन्निहते त्वया // निःशव्यहृदय. सार्थ त्वेन / निशि निति नः सुखं // 20 // ततः प्रसीद नः स्थानं / स्वपादाभ्यां पवित्रय // अस्तु 600 लोकस्त्वदालोक-सुधापानप्रमोदनः // 11 // तेनेत्यन्यर्थितः पसी / प्रति सोऽचालयद्रथ // न प. रप्रार्थनानंगं / वितन्वंति विदणाः // // स च पल्लीपतिस्तस्य / महोत्सवमचीकरत् // अशन. मीने निर्जय थ तेनीसामे गयो, त्यारे अजितसेन पण घोडापरथी नतरी आनंदथी तेने जेटीने बोल्यो के, // 10 // जे या अर्जुनने मार्यो के तेथी तें मुखवडे अमिपान कर्यु , केसरी सिंहने पांजरामा पूर्यो , तथा दृष्टिविष सर्पने तें दम्यो . // 17 // सुनटोनी श्रेणिथी न जी. ती काय एवा ते अर्जुनने मारवाथी हवे अमारां हृदयतुं शल्य निकळी जवाथी अमोने रात्रीए सखे निद्रा भावे . // 20 // माटे हवे तुं कृपा करीने तारां चरणोथी अमारे स्थान पवित्र क. र? के जेथी त्यांना लोको तने जोवारूप अमृतपानथी आनंदित थाय. // 21 // एवी रीते ते. णे प्रार्थना कर्याथी धम्मिले तेनी पक्षी तरफ पोतानो रथं चलाव्यो, केमके विचक्षण माणसो पर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धभिः। वासघासाद्यं / प्रीत्या सर्वमपूरयत् // 23 // पूज्यमानो नवनवै-खाद्यैस्तेन सोऽन्वहं / वासरानतिः मा चक्राम / तत्र सौख्यर्डिनासुरान् // 24 // विधत्ते वर्णनं तस्य / विमला विमलाशया // कमला| याः पुनः कर्ण-कोटरे तत्कटूयते // 25 // कदापि प्रापितस्तेन—प्रेमपूरितमानसं // आपृच्छ्या जितसेनं सो ऽचलचंपापुरीमनि // 16 // प्रस्थानः सोऽनवरतै–श्चंपापरिसरं गतः // संस्थाप्य स्पंदनं सीम्न / विमलामेवमालपत् // 27 // वासाय पत्तनस्यांत-निशांतं प्रेक्ष्य मंदिरं // एमि नी प्रार्थनानो नंग करता नथी. // 22 // पजी ते पल्लीपतिए तेना संबंधमां महोत्सव कर्यो, तथा तेनेमाटे नोजन स्थान तथा घासादिक संघg प्रीतिपूर्वक पूरुं पाडयु. // 23 // पजी हमेशा तेनावडे नवांनवां वस्त्रादिकोथी सत्कारातो ते धम्मिल त्यां सुखसमृध्थिी आनंदित दिवसो व्यतीत करखा लाग्यो. // 24 // विमला तो निर्मल श्राशयथी ते धम्मिलनी प्रशंसा करे , परंतु कमलाना कानमा ते कमवी लागे . // 25 // चोरने मारवाथी खुश थयेला हृदयवाळा ते थ. जिंतसेननी रजा लेश्ने धम्मिल चंपानगरीतरफ चालवा लाग्यो. // 26 // अनुक्रमे निरंतर प्रया. णोथी ते चंपानगरीपासे पहोंच्यो, त्यां तेनी सीममा स्यने राखीने विमलाने कहेवा लाग्यो के, | .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घम्मि- यावावां ताव-दानीते इह तिष्टतं // 20 // विमला स्नेहला प्राह / वत्स स्वबोऽसि चेतसा / न. गरे सागरे ग्राहा / श्व धूर्तास्तु रिशः // 25 // तैर्वत्स वंचितः कूट-वणिग्निरिव पामरः // यावयोरसि दुःप्राप-स्तन्मे दोदृयते मनः // 32 // अन्यधाचम्मिलो मात-न भेतव्यं मनाग६११| पि // वंचयेऽहं जगत्सर्वं / न कोऽपि मयि वंचकः // 33 // युक्त्वा सोऽचलचंपां-प्रति गैदिष्ट चांतरा / / चंद्रां चंद्राशुसंकाश-वारिसंवर्धिनी धुनीं // // 27 // हवे आपणने रहेवामाटे नगरनी अंदर हुँ सगवमवावु घर जोड्ने यावं त्यांसुधी तमो बन्ने निर्णय थश्ने यहीं रहो? / / 2 / / त्यारे ते स्नेही विमला बोली के हे वत्स! तुं स्वब चि. त्तवाळो छो, भने समुद्रमा जेम मगरो तेम नगरमां घणा ग लोको होय . // 27 // माटे बु. चा वणिकोथी जेम नोळो मनुष्य तेम जो तेजथी तुं ग्गा गयो तो अमोने तारो पत्तो मळ्वो केल थशे, माटे तेथी मारुं मन भाय ने. // 32 // त्यारे धम्मिल बोब्यो के हे माताजी! तमारे जरा पण म नहि, हुं समस्त जगतने उगुं एवो इं, परंतु मने को ठगे एम नथी. // 33 // एम कहीने ते चंपानगरीप्रते चाल्यो, एवामां वच्चे तेणे चंजनां किरणोसरखां जलथी वृद्धि / P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- // 34 // पद्मासीनेषु भुंगेषु / गायत्सु त्वतिपुष्करा // सन्यीकृत्य विहंगाली / या नृत्यत्यूमिहस्तकैः // 35 // निम्नाः कूपा अपेयोब्धिः / सरोऽटपं जीप्रदा हृदाः // हसति स्फारमिंमिर-बलाद्यान्यजलाशयान // 36 // नद्यां ततानवद्यांगः / क्रीमन कुंजरलीलया // विज्ञः स पद्मपत्रेषु / नखल्बे. धादि निर्ममे // 37 // त्रचामरचक्राद्या-कारवंति मृदूनि च // धन्यपाणितलानीव / पद्मपत्रा णि रेजिरे // 38 // चंद्रायाः सलिलैगगां / गद्भिस्तंत्र तान्यपि // निन्यिरे यतिचेतांसि / शु. पामती चंद्रा नामनी नदीने दीठी. // 34 // कमलपर बेठेला नमराजे गाते ते जे नदी पनि जनी श्रेणिने सजासदरूप गणीने मोजानरूपी हाथोवडे नाचती हती. // 35 // कुवान तो . माने, समुद्र पीवालायक नथी, तळाव नानुं होय में, अने हो जय आपनाराजे, एवी रीते अ. न्य जलाशयोनी ते नदी विस्तीर्ण फीणना मिषथी हांसी करती हती. // 36 // ते नदीमां मनो. हर शरीवाळो तथा चतुर एवो ते धम्मिल हाथीनीपेठे क्रीमा करतोयको कमलपत्रोपर नखथी कोतरणी करवा लाग्यो. // 35 // तेथी बत्र, चामर तथा चक्रयादिक याकारवाळा जाग्यवान म. नुष्यनी हथेलीसरखा ते कोमळ कमलपत्रों शोजवा लाग्यो. // 30 // हवे श्रागमो मुनिना म. | Jun cun Aaradhak Trust Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्मि ध्यानमिवागमैः // 35 // रविसेनस्तदा चंपा-धिकपिलनुपः // तत मित्रयुतः क्रीमं-स्ता. न्यालोकत कौतुकी // 40 // कोऽप्यस्ति सरिदोघस्योपरि नूनं कलानिधिः // दृश्यते यस्य वि. झान-मिदमित्युन्निनाय सः // 41 // यत्र तं दत्तसन्मान-मानयेथां कलाविदं / शिदयित्वेति जंघालौ / नरौ प्रैषीन्नृपात्मजः // 42 // कूलं कूलंकषायास्तौ / वीदयमाणौ समंततः / / यत्रास्ते ध. म्मिलस्तत्रा-गत्यादः सत्यमूचतुः // 43 // कलानिधान विज्ञान-मालोक्य तव अपनः // त्वदि. नने जेम शुक्लध्यानमां ले जाय ने, तेम गंगामां जतुं चंडानुं जल ते कोतरेलां कमलपत्रोने गंगामां ले गयु.॥३५॥ ते वखते चंपानगरीना कपिलराजाना पुढे त्यां मित्रोसहित क्रीडा क. रतांथकां ते कोतरेलां कमलपत्रो कौतुकथी जोयां. // 40 // त्यारे तेणे विचार्य के था नदीना प्रवाहनी नपरवास खरेखर को कलावान मनुष्य बे, के जेनी या चतुराश् नजरे पडे . // 41 // ते कलावान माणसने यहीं सन्मानपूर्वक लावो, एम हुकम करीने ते राजपुत्रे नतावळी चालना बे माणसोने त्यां मोकल्या. // 4 // ते माणसो चारे बाजु नदीनो किनारो जोताथका ज्यां धम्मिल हतो त्यां धावीने तेने सत्य वात कहेवा लाग्या के, // 43 // हे कलाना भंमार! तारी) PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 धनि | दृदारसाहत्ते / निर्निमेषदृशौ दृशौ // 44 // तत् श्रुत्वा धम्मिलोचाली-नालीकसदृशाननः / / ददर्श च पुरः शूर-मिव दीप्तं नृपांगजं // 46 // कुमारेणापि सोऽन्येत्य / बाहुन्यां बहु सखजे // श्रापृच्ब्य स्वागतं चक्रे / वास्तव्यं तत्कलास्तवं // 4 // मच्चेतश्चंद्रकांतस्य / द्रविका तावकी क ला // न दिवापि प्रनाभंगं / नजते सौम्य कौतुकं // 4 // श्रुतज्ञता समाख्याता / कलयैव त. | वानया // घनवृष्टिं विना क्वापि / न रंगति तरंगिणी // 4 // पृष्टव्योऽसि कुतः प्रह्व / क ते स्व. कला जोश्ने राजपुत्र तने जोवानी श्वाना रसथी देवसरखनिमेषरहित थांखोने धारण करी र. ह्यो ने // 4 // ते सांजळीने कमलसरखां मुखवाळो धम्मिल ( तेन्नी साथे ) चाल्यो, तथा वागळ तेणे सूर्यसरखा तेजस्वी राजकुमारने जोयो. / / 46 // त्यारे कुमार पण तेनी सामो या. वीने बन्ने हाथोथी तेने खूब नेट्यो, पछी तेनी. खबरअंतर पूरीने तेणे तेनुं सन्मान कर्य, केमके तेनी कलानी स्तुति योग्यज हती. // 4 // हे सौम्य! याश्चर्यनी वात बे के मारा मनरूपी चंद्र कांत मणीने करावनारी तारी या कला दिवसे पण कांतिनो नंग धारण करती नथी. // 4 // या तारी कलाज तारुं शास्त्रोनुं जाणपणुं सूचवी यापे डे, केमके मेघनी वृष्टिविना नदी क्यांय / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्भिब परिबदः // इति तेनोदिते प्राह / धम्मिलोगोधरध्वनिः // 50 // समागम कुमाराहं / कुशा ग्रपुरपत्तनात् // श्रास्ते मम परीवारः / पुरीपरिसरावनौ // 51 // ततः कलावतस्तस्य / वासायावा. सदित्सया / पुरांतः पुरुषान् प्रैषी-न्मंक्षु दितिपतेः सुतः // 12 // ययौ च स्वयमारामं / कमला. 615|| विमलाश्रितं // धम्मिलेन सहालीन-बंधुरस्कंधसिंधुरः // 53 // कोऽयमेतीति कमला—पने विम लयोदितं // दिष्ट्या तव प्रियोऽयं सोऽन्येति सिंधुरवाहनः // 55 // कियान परिबदः प्रापि / पण नक्षसायमान थती नथी. / / 4 / / वळी हे सऊन! तने हं पूर्व बु के तुं क्यांधी आवे ? तथा तारो निर्मल परिवार क्यां बे? एवी रीते तेणे कह्याथी मेघसरखी ध्वनिवाळो धम्मिल बोल्यो के, // 20 // हे कुमार! हुं कुशाग्रनगरथी थाव्यो बुं, तथा मारो परिवार नगरना पादरमां बे. // // 51 // पछी ते कलावान धम्मिलने रहेवामाटे यावास देवानी नाथी ते राजपुत्रे तुरत नगरनी अंदर पोताना माणसोने मोकल्या, // 5 // अने पोते धम्मिलसहित मनोहर स्कंधवाळा हाथीपर बेशीने कमला अने विमलायी आश्रित थयेला वनमां गयो. // 53 // था वळी कोण यावे ? एम कमलाए पूज्वाथी विमला बोली के बरे था तो सारं थयुं के तारो या स्वामी Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। पश्यानेन कलावता // अहो निरवधि ग्यो-दधिः सुकृतिनां नृणां // 55 // ऊचे कमलया खेमाई दा-दहंत्या कल्मषं मुखं // देवानां प्रिय एवायं / मातर्मम न तु प्रियः // 26 // वाच्यं तदेव ये न स्या-दकस्मादेहिनां ज्वरः // वद कस्माजुरोरेत-दुरीचक्रे त्वया व्रतं // 17 // अयमुच्चासनस्थो. | ऽपि / सतां नाश्रयति श्रियं // स्नुहिः शैलशिरस्थोऽपि / न हि कल्पामायते // 27 // असो हाथीपर बेशीने यावे . // 55 // अरे! तुं जो तो खरी के थाने केटलोबधो परिवार मेलव्यो जे? यहो! पुण्यशाली मनुष्योनो नाग्यरूपी समुद्र अवधिविनानो होय . // 55 // त्यारे क. मला खेद पामीने कलुषित मुखने धारण करतीथकी बोली के हे माता! ते तो देवानां प्रिय ए. टले मूर्ख , परंतु ते मारो प्रियतम नथी. // 26 // जेथी प्राणीनने अकस्मात ताव चडे एज तुं बोले , कहे तो खरी के थावं व्रत तें कया गुरुपासेथी अंगीकार कर्यु ? // 27 // श्राधमिल जंचे आसने बेठा तां पण संत पुरुषोनी शोजाने धारी शके नहि, केमके पर्वतना शि| खरपर रहेछु पण थोरनुं वृक्ष कल्पवृक्ष यश् शकतुं नथी. // 20 // वळी ते घणा परिवारवाळो हो| वा बतां पण मारा मनने पाश्चर्य करी शके तेम नथी, केमके कुचेष्टा करनारा विदूषकनी बास- | PP.AC. Gunia nasul MS. Jun Gun Aaradhak Trust Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः वरिपरीवारो / न मे कौतुकयत्यपि // न हि किं वेष्ट्यते लोकैः / कुचेष्टाकृविदूषकः // 5 // एवमालापिनी तां च / विमलां च स्थस्थितां // आदाय प्राविशत्पुर्या / महेन स महीनसूः / 60 / सारसद्मनि संस्थाप्य / पूरयित्वाशनादिकं / / वसनाशननिश्चितं / कुमारो धम्मिलं व्यधात् / / 61 / / 617/ | तं विलासियशोराशि-प्रकाशितदिगंतरं / न कदापि सदाचार-मिव तत्याज राजसूः // 6 // | यत्र झाने च विझाने / कुमारस्तं परीदते // तत्र यबत्यसौ जात्य-सुवर्ण श्व वर्णिकां / / 63 / / पास शुं लोको एकठा थता नथी? // 5 // - एम बोलती ते कमलाने तथा विमलाने पण रथमां बेसामीने ते राजपुत्र महोत्सवसहित नगरीमां दाखल थयो. // 60 // पछी तेने मनोहर घरमां जतारीने तथा भोजनयादिक पूरी पा. मीने ते राजकुमारे धम्मिलने स्थान तथा नोजनमाटे निश्चिंत कर्यो. // 61 // फेलाता यशना समुहथी दिशानने प्रकाशित करनारा ते धम्मिलने सदाचारनीपेठे को पण समये पोताथी ज दो पाड्यो नहि. // 6 // जे ज्ञान अथवा विझानसंबंधि कुमार तेनी परीदा करे , तेमां ते जमदा सुवर्णनीपेठे नमुनो आपे . // 63 // ते राजकुमार वनक्रीमा, जलक्रीमा तथा कलाः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि-| वनावनिसरःकेलि-कलान्यासादि यध्यधात् // कुमारस्तस्य सोऽप्यासीत् / तृतीयं चकुरदतं // 64 // धम्मिलस्य कुमारस्य / सौहृदे हृदयाबुन्निः // रूपानेदोऽस्तिनधात्वो-रिवादर्शि न चार्थतः // 65 // कुमारस्य वयस्या ये / तेऽप्ययुस्तस्य वश्यतां // न हि साहित्यसौहित्यं / दूरे लदाणलक्षिणः // 610 // 66 // सर्वः पौरजनोऽरंजि / खं तेन न पुनर्गुहं // विधुर्धवलयत्येव / जगन्न तु निजं मृगं // | // 6 // विदग्धवदनात्तच्चा-श्रावि नृपवान्यदा // यदा न सुहृदां किंचिद्-दुयं ज्ञानिनामिव // ज्यास यादिक जे कई करतो हतो तेमां ते धम्मिल तेना त्रीजां यदायनेत्ररूप थपड्यो. // // 64 // धम्मिलनी अने ते राजकुमारनी मित्राश्वच्चे विद्वानोए यस् अने भूधातुनीपेठे फक्त रूपथी नेद जोयो, पण अर्थथी जोयो नहि. // 65 // हवे ते राजकुमारना जे मित्रो हता तेन पण ते धम्मिलने वश थर गया, केमके व्याकरण जाणनारने साहित्यनो सार कई दूर रहेतो नथी. // 66 // एवी रीते तेणे नगरना सर्व लोकोने रंजित कर्या, परंतु पोताना घरने ते रंजित करी शक्यो नहि, केमके चंद्र जगतने उज्ज्वल करे , परंतु पोताना हरिणने नज्ज्वल करी शकतो नथी. // 67 // एक दिवसे कोश्क चतुरने महोडेथी राजकुमारे ते वृत्तांत सांनब्यो, के. / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 61 धम्मिः // 6 // तत्परीदितुमन्येाः / कुमारः सुहृदो जगौ // वयस्याः प्रातरायात / वनं सर्वे सवलनाः॥। // 6 // // मदर्थमयमारंनो / नूनमेवं व्यचिंतयन् // श्रागत्य धम्मिलो धाम / जीर्ण मंचकमाश्रयत् // 70 // हिमदग्धांबुजबाय-मुखं निःश्वासवर्षिणं // हिता तं हेतुमप्रादीद्-दुःखस्य विमला बलात् // 71 // स जगौ दैवदोषेण / दुःखं तदुपढौकते // मातर्न माति यत्पाथः-पतिप्रतिमया हृदि // 7 // केनापि झापितो गेह-वृत्तं मम नृपांगनः // तेनाह्वयति स प्रात-तिर्मी सप्रियं वने मके ज्ञानीनीपेठे मित्रोथी कई अजाण्युं रहेतुं नथी. // 17 // पड़ी तेनी परीदा करवामाटे एक दिवसे ते राजकुमारे पोताना मित्रोने कह्यु के, हे मित्रो! प्रजाते तमो सघळानए पोतपो. तानी स्त्री सहित बगीचामां यावq. // 6 // खरेखर या प्रयास मारेमाटेज कर्यो , एम वि. चारीने धम्मिल घेर थावीने एक जीर्ण मांचापर पड्यो. // 70 // हिमथी बळेलां कमलसरखा मु. खवाळा अने निसासा नाखता एवा ते धम्मिलने ते हितेच्नु विमलाए हठ लेश्ने तेना दुःखनुं कारण पूज्युं. // 11 // त्यारे ते बोल्यो के हे माताजी! कर्मयोगे मारापर ते दुःख थावी पडयं ने के जे समुज्जेवहुं थश्ने मारा हृदयमां पण मातुं नथी. // 32 // कोइए पण मारा घरनुं वृ Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- // 73 // यदायास्यति सर्वेषा / श्वरेषा न मया समं // नवितास्मि तदा सर्व-जनानां हास्यना जनं // 14 // अंब कंबुसहग्बुधि-धाम तत्त्वं तथा कुरु // यथा प्रीतिं विनाप्येति / प्रातरेषा स. मं मया // 7 // .. विमलाथ तमाश्वास्य / कमलामुपसृत्य च // मातुः समुचितां तस्यै / शिक्षामदामधीर्ददौ // 16 // ईयास्त्वं सप्रियः प्रात-र्वनमेवं नृपांगजः // आदिशम्मिलं तेन / प्रातरेष तांत राजपुत्रने जणावी दीधुं बे, अने तेथी तेणे मने प्रजातमां स्त्रीसहित बगीचामां बोलाव्यो | जे. // 13 // माटे जो या कमला देषी थने यावती काले मारीसाथे नहि श्रावे तो हं सर्व लोकोप्रति हास्यपात्र थश्श. // 14 // माटे हे शंखसरखी निर्मल बुधिना धामसरखी माता! तुं तेम कर के जेथी प्रभाते ते प्रीतिविना पण मारीसाथे थावे. // 15 // __त्यारे महाबुध्विान ते विमला तेने आश्वासना थापीने तथा कमलापासे जश्ने तेणीने | माताने उचित शिखामण देवा लागी के, // 16 // तारे प्रनाते स्त्रीसहित बगीचामां श्रावq ए. म राजपुत्रे धम्मिलने हुकम कर्यो , माटे प्रनातमां ते बगीचे जवानो . // 9 // माटे तुं न / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ 621 धम्मि- वनंगमी // 77 // तत्र चर्चा समं गले-रत्यंतकोपनुः // प्लोषत्यशेषसौख्यन् / दीप्तः | कोपो. हि वह्निवत् // 9 // रोचते ते न चेदेष-स्तदा युवसु जरिषु // वृणुयास्त्वं मनोऽनीष्टमपरं तत्र कंचन // 5 // वसे स्वबंदता न स्या-कदाचन सुखावहा // दृष्टांतादसुदत्ताया-स्तथारिदमनस्य च // 70 // मातः सा वसुदत्ता का / को वारिदमनो नृपः // एवं कमलया पृष्टे / निर्व्याज व्याजहार सा / / 71 // यस्त्यवंती सवंतीव / पुरी सत्कमलालया। तत्राघनदत्ताख्यः रिसाथे त्यां जजे, अने हवे अति गुस्सावाळी न थजे, केमके दीपायमान थयेलो कोप अग्निनीपेठे सर्व सुखोरूपी वृदोने बाळी नाखे . // 7 // अने कदाच तने आ नार न रुचतो होय तो त्यां घणा युवानीया मांथी कोश्क बीजा मनगमता नरिने वरी लेजे. // 70 // वली हे वत्स! स्वबंदीपणुं को पण समये सुखकारी नीवडे नहि, तेमाटे वसुदत्ता तथा अरिदमनन दृष्टांत जाणी लेवू. // 70 // हे माता! ते वसुदत्ता कशी तथा अरिदमन राजा कयो? एमक मलाए पूज्वाथी तेणी निष्कपटपणे बोली के, // 71 // उत्तम लक्ष्मीना ( कमलोना) स्थानस रखी नदीजेवी अवंती नामनी नगरी बे, त्यां महाधनवान धनदत्त नामे सार्थवाह रहेतो हतो. // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धग्मि- / सार्थवाहो महाधनः // 2 // धनश्रीरिति तस्यासी-प्रिया सीमा सुयोषितां // पुत्रो धनवसुः | पुत्री / वसुदत्तेति विश्रुता / / 73 // धनदेवस्य कौशांब्याः। पुरस्तत्रेयुषः सुतां / / वसुदत्तामदत्ता सौ / साथैशो जातसौहृदः // 4 // व्यवसायबलोपात्तां / श्रियं तां च श्रियोऽधिकां // धनदेवः | समादाय / मुदितः स्वपुरीं ययौ // 5 // तत्र लेने स गार्हस्थ्य -फलं वैषयिकैः सुखैः // पित्रोः सेवातिहेवाकः / समं दयितया तया // 6 // स काले वसुदत्ताया। दौ सुतावुपपीपदत् // यशो | // 2 // तेने नत्तम स्त्रीननी सीमासरखी धनश्री नामनी स्त्री हती, तथा धनवसु नामे पुत्र थ. ने वसुदत्ता नामे प्रख्यात पुत्री हती. // 3 // कोशांबी नगरीथी त्यां श्रावेला धनदेवसाथे मित्रा थवाथी ते सार्थवाहे तेने पोतानी वसुदत्ता पुत्री आपी. // 7 // पड़ी ते धनदेव व्यापार ना बळथी मेळवेली लक्ष्मीने तथा लक्ष्मीथी अधिक ते वसुदत्ताने लेश्ने खुशी थयोथको पोतानी नगरीमा गयो. / / 75 // त्यां मातपितानी सेवा करतोयको ते धनदेव तेणीनीसाथे विषयसुः / ख जोगवतोयको गृहस्थावास, फल जोगववा लाग्यो. // 6 // पछी नदार संपदायी जगतने | माननीक एवा यश अने धर्म जेम नत्पन्न थाय रे, तेम अवसरे तेने ते वसुदत्तायी बे पुत्रो न / P.P.AC.GunratnasuriM.S Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। धर्मों जगन्मान्या-वुदार व संपदि // 7 // पुनः सापनसत्वाचू-धदा प्रीतिप्रदा तदा // धन| देवो धनप्राप्त्यै / जगाम विषयांतरं // जज | वसुदत्तान्यदा कंचि-द्यांतमुजायिनीप्रति // सार्थ विझा परिझाय / श्वशुरावित्यजिदपत् // 0 // अहं याता विशालायां / मिलनाय पितुश्चिरात् // सांप्रतं सार्थसामय्या-मनुझां स्पृहयामि वां // ए०॥ यवोचतां ततो न्याय-जासुरं श्वशुरौ वचः // वधु तावदिहैवाख / यावदेति तवं प्रियः // 1 // त्वं गुर्वी दुरतोऽवंती। सार्थस्त्वनुपलदितः // त्पन्न थया. // 7 // वळी प्रीति थापनारी ते वसुदत्ता ज्यारे फरीने गर्भवती थर, त्यारे धनदेव धन कमावामाटे देशांतरमा गयो. // 7 // पनी एक दिवसे नायिनीतरफ जता कोश्क साथने जाणीने ते वसुदत्ताए पोताना सासुससराने विनंति करी के, ॥Gण| हमणा सथवारो , मा. टे हं घणे काळे मारा पिताने मलवामाटे विशाला नगरीए जश्श, अने तेमाटे तमारी साझा नी है इला राखु बुं. // 50 // त्यारे तेणीना सासुससराए न्याययुक्त वचन कह्यु के, हे वधू! ज्यांसुधी तारो स्वामी अहीं आवे त्यांसुधी तुं यहींज रहे. // 1 // वळी तुं गर्नवंती , अने अवंती नगरी दूर , तेमज या सथवारो पण अजाण्यो बे, माटे त्रिदोषवाळा यावा प्रयाणमाटे Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धग्मि- प्रयाणं ततत्रिदोषीद-मनुजानीवहे कथं // ए॥ एवं ताभ्यां निषिघापि / तटान्यामिव वाहिनी / मा // रसेनाकुलिता स्वैरं / तौ विबुप्य चचाल सा // 3 // वाक्यं हितमपि ब्रूया-न ह्यरोचकिनः सुधीः // श्यौदासीन्यमालंब्य / ताववीवततां न तां / / ए // गृहीतपुत्र हितया / सा यावनिर्ययौ 624 पुरात् // तावत्प्रचलितः सार्थो / हियैव ववले न सा // 5 // धावमानापि सा नाप-तं सार्थ मंथरा गतौ // सार्थमप्राप्नुवत्येषा / ययावन्येन वर्मना // 6 // धनदेवः समायासी–त्तस्मिन्नेव अमो तने शीरीते अनुझा पापी शकीये ? // 2 // एवी रीते किनारानवडे जेम नदी तेम ते. नए निषेध्या उतां पण रसातुर थश्यकी स्वेचारे तेनुनी बाझा लोपीने ते त्यांधी चालती थइ // ए३ // सुबुद्धि माणसे जेने न रुचे तेने हितवचन पण कहेवू नहि, एम विचारीने ते. जए मौन धारण करीने तेणीने प्रत्युत्तर याप्यो नहि. // ए४ // पगी ते बन्ने पुत्रोने लेने जे. वामां नगरथी बहार नीकळी, तेवामां सथवारो तो चालतो थ गयों हतो, अने ते पण लाजनी मारी पाती वळी नहि. // 5 // पनी ते दोडतीयकी पण धीमी गतिने लीधे ते सार्थने मेलवी शकी नहि, अने सार्थ न मलवाथी ते बीजे मार्गे निकळी गइ. // ए६ // हवे तेज दिवसे ध P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- दिने गृहे // अपश्यन् दयितां नेत्रोत्सवां पब मातरं // ए७ // सावदत्पुत्र पुत्रान्यां / साकमकी चैव दैवतः // वधूर्विधूतशिदा न-श्वचालोऊयिनीप्रति // ए // निंदनंतर्मनस्तस्या। अविमृ. श्य विधेयतां // कलत्रपुत्रस्नेहेन / सोऽपि तामनुजग्मिवान // ए // कथं पथि प्रिये यासि / क६२५| थं वा स्थास्यतः सुतौ // इति ध्यानजुषस्तस्य / नाध्वक्वेशो मनोऽदुनोत् / / 2500 // ब्रमन्ननुक्रम तस्या / शरण्यामरण्यगां // खेद्यमानां तनूजाच्या-मपश्यत्प्रेयसी पुरः // 1 // ततः प्रमुदितः खां नदेव पण घेर याव्यो, अने त्यां नेत्रोने आनंद आपनारी पोतानी स्त्रीने नहि जोवाथी तेणे (पोतानी) माताने पूज्यु. // 7 // त्यारे ते बोली के हे पुत्र! बाजेज दैवयोगे अमारी शि. खामण नहि मानीने ते बन्ने पुत्रोने साथे लेश्ने नायिनीतरफ गश् . ॥.ए // ते सांजळी मनमा तेणीना अविचारी कार्यने निंदतोथको ते धनदेव पण स्त्री बने पुत्रना स्नेहने लीधे ते. पीनी पाउल गयो. // ए० // हे प्रिये ! तुं मार्गमा शारीते जश्श? अथवा पुत्रोना शा हाल थशे? एम विचारतांथका मार्गना थाके तेना मनने दुखाव्यु नहि. // श्ए०० // पनी तेणीने पर ले पगले चालता एवा-तेणे थाधारविना वनमा रहेली तथा बन्ने पुत्रोवडे खेद पामती एवी पो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- ते / कांते रुष्टेव यासि किं // ति जल्पन्ननटपेजः। प्रियया समगस्त सः॥२॥ वल्लनां दृढमा लिंग्य / सुतावंके निवेश्य च // स साहसी सदानीतं / नोज्यं तेषां मुदे ददौ // 3 // ननः स्वनवनं मुक्त्वा / प्रतीच्या मिलितस्तदा // गनस्तिः कलयनस्तं / तस्यापि तमसूचयत् / / 4 // विहा. य वर्त्म स नज–नेकांत कांतया समं // निशि शय्याकृते धूली—स्तूलीखि विवेद सः // 5 // | तदा सा वसुदत्तापि / संगते हृदयंगमे // मेने मनोविनोदाय / तदासनवनं वनं // 6 // तत्रस्थै| तानी स्त्रीने अगामीना नागमां दीठी. // 1 // त्यारे मनमां खुशी थश्ने हे प्रिये! तं रीसायेली. नीपेठे केम चाली जाय जे ? एम बोलतोयको घणी श्वानेवालो ते धनदेव तेणीने मल्यो. / / // 2 // पछी पोतानी ते स्त्रीने खूब आलिंगन देश्ने तथा बन्ने पुत्रोने खोळामां बेसामीने ते साहसीके तेनने खुशी करवामाटे साथे लावेवू नोजन थाप्यु. / / 3 // ते वखते सूर्य पण पा. काशरूपी पोतानुं घर छोमीने पश्चिम दिशाने मळी अस्त पामतोथको ते धनदेवना अस्तने पण सूचबवा लाग्यो. // 4 // त्यारे ते मार्ग प्रेमीने स्त्रीसाथे एकांते रह्योथको रात्रीए शय्यामाटे धू. | ळने पण गादलांसमान मानवा लाग्यो. // 5 // ते वसुदत्ता पण पोताना स्वामीना मेलापथी ते P.P.AC.Gunratnasur Jun Gun Aaradhak Trust Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ घम्मि- व कुरंगीव / सा सुखं सुषुवे सुतं / / सोऽप्यानीय लतागुटमां-स्तस्या निर्यातमातनोत् // 7 // न / वप्रसवगंधोऽस्या / वनस्थं व्याघमाह्वयत् // स जन्मांतरवैरीव / कांतं प्रथममग्रहीत / / 7 // तां द. शां प्रेयसो वीदय / वसुदत्तापि तापिनी // मूर्बामानंच पंचत्व-नाट्यप्रस्तावनामिव // ए // स्त. 67 न्यं स्तनंधयो जात-मात्रो मात्रोशितः पुरः // अविंदंश्च मृतः प्रात-मूर्गभंगे रुरोद सा // 10 // एकांते कांत कांतारे / कांतां श्वापदसापदि // विहाय हा के लीनोऽसि / जल्प जल्प हृदीश्वर // वनने पण मनने आनंद आपनारं वासजुवन मानवा लागी. // 6 // पछी त्यांज हरिणीनीपेठे तेणीए सुखेथी पुत्रने जन्म थाप्यो, त्यारे धनदेवे पण वेलमीनना गुबान त्यां लावीने तेणी. ने वायुना उपवथी रहित करी. // 7 // एवामां तेणीना नवीन प्रसवना गंधे वनमा रहेला वा. घने वोलाव्यो, तथा जन्मांतरना वैरीनीपेठे तेणे प्रथम तो तेना भर्तारनेज ग्रहण को. // 7 // पोताना स्वामीनी ते दशा जोश्ने खेद पामेली वसुदत्ता पण मृत्युरूपी नाटकनी प्रस्तावनासरखी मर्ग पामी. // // जन्मतांज माताए पासे गेमी दीधेलो ते धावणो बालक धावण नहि मळ. वाथी मृत्यु पाम्यो, पडी प्रनाते ज्यारे तेनी मूर्ग उतरी सारे ते रडवा लागी के, // 10 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 धम्मिः // 11 // तादृक्प्रेमगुणस्थेम / क्षेमंकर गणाकर // यत्रबायोपमं दत्वा। दर्शनं यासि यानि किं मा // 15 // जानासि व्याघ्र रे पाल-परीदां वनवास्यपि // मां मुक्त्वा निर्गुणां गौर-गुणं यत्प्रियमग्र हीः // 13 // रे जात सुविनीतेषु / त्वमेवैकशिरोमणिः // यदशक्तोऽपि जनक-क्षुमं मामशिश्रयः // 14 // धिग्मामात्मरुचिध्वस्त-गुरुशिदासुखासिकां // विषवल्लीमिव प्रेय-स्तनयदयकारिणी कांत ! जंगली पशुननी आपदावाळा था वनमां मने एकली गेमीने बरे! तुं क्यां चाल्यो ग. यो! हे हृदीश्वर! तुं बोल बोल ? // 11 // अरे! एवा प्रेमरूपी गुणमां निश्चल थयेला हे क्षेमं. कर! हे गुणाकर! वादळ्नी गयासरखं दर्शन देश्ने तुं केम चाल्यो जाय ? // 12 // अरे वा. घ! तु जंगली उतां पण पातनी परीदा जाणे , केमके तें मने निर्गुणीने गेडीने मारा गुणवान प्रियतमने ग्रहण कर्यो. // 13 // अरे पुत्र! विनीतोमां पण तुंज एक शिरोमणि गे, केमके यशक्त जतां पण तें पोताना पितानो मार्ग ग्रहण कर्यो. // 14 // अरे! फक्त स्वेगचारथी सा. सुससरानी शिखामणरूपी मिठाइने तजनारी तथा विषवल्लीनीपेठे पतिपुत्रनो क्षय करनारी एवी मने धिक्कार ! // 15 // एवी रीते शोकथी व्याकुल थयेली ते वसुदत्ता बन्ने पुत्रोने लेश्ने चा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // 15 // इति शोकाकुला पुत्र-दयमादाय साचलत् / / सरितं च पुरोऽद्रादी-दात्तमूर्तिमिवापदां / / // 16 // तदाकस्माद् घने वृष्टे / जनकात्प्राप्य पर्वतात् // कमलौघं महेलेव / यानृत्यलहरी जैः / / // 17 // अस्याः पिता स्थिरः शैलः / प्रियो रनाकरो महान // तथापि चपला वा / किं ही ना. 62 हमिवासकौ // 10 // ध्यात्वेति सरितस्तीरे // बालमेकं मुमोच सा // द्वितीय पाणिनादाय / स्व. यमंतर्विवेश च // 15 // अस्खलचरणस्तस्या / अंतर्नदीशलातले // तद् दृष्ट्वा तीरगो बालो। ली, एवामां बागळ मूर्तिवंत यापदासरखी एक नदीने तेणीए जो. // 16 // ते वखते पितापा. सेथी धननो समुह मेलवीने जेम स्त्री तेम अकस्मात वरसाद थवाथी पर्वतमांथी जलनो समुह मेलवीने ते नदी मोजांनरूपी हाथोथी नाचवा लागी. // 17 // थानो पिता स्थिर एवो पर्वत , तथा महान रत्नाकर गार , तोपण अरेरे! या नदी मारीपेठे शुं चपल अने वक्र नथी? // 17 // एम विचारीने तेणीए एक बाळकने नदीकिनारे मुक्यो, अने बीजाने हायमा लेख्ने पोते नदीमा प्रवेश को. // 15 // एवामां नदीमा रहेला पत्थरपरथी तेणीनो पग लपसी गयो, ते जोड्ने किनारापर रहेलो बालक नदीना जलमां मुबी गयो. // 20 // जलप्रवाहना धसाराने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म निममऊ सरिजले // 20 // श्रोतःसंपातकातर्यात् / पाणिस्थोऽपि सुतच्युतः // तस्या मिथ्यात्वमू. नई ढाना-मिव धर्मो जिनोदितः // 21 // वराकी सा नदीपूरे / स्वमंगं धर्तुमदमा // वहमाना त टस्थस्य / शाखायामलगत्तरोः // 12 // सा दाणादलितश्वासा / ब्रमद्भिस्तत्र तस्करैः // बध्वावला बलासिंह-गुहां पल्लीमनीयत // 3 // स्तेनैः शुश्रूषितान्यंगा-दिनिः संप्राप्तपाटवा // समये प्रा. भृतीचक्रे / चौरचक्रेश्वरस्य सा // 24 // तेनापि लोचनानंदि-रूपा प्रेमातिशालिना // अवरोध लीधे थयेला गजराय्यी मिथ्यात्वथी मूढ बनेला माणसोना हाथमाथी जेम जैनधर्म तेम तेणी. ना हाथमा रहेलो बालक पण नदीमां पी गयो. // 21 // हवे ते बिचारी रांकमी नदीना पूरमां पोतानुं शरीर धारण न करी शकवायी तणातीयकी किनारापर रहेला एक वृदानी डाळीने वळगी पडी. // // थोडी मुदते जेटलामां तेणीनो श्वास वव्यो तेटलामां त्यां जमता चोरो ते अषलाने बलात्कारे बांधीने सिंहगुहा नामनी पोतानी पल्लीमां ले गया. // 23 // त्यां चोरोए ते. पीना शरीरपर तैलमर्दनादिक करवाथी ज्यारे हुशियारीमां यावी त्यारे अवसर जोश्ने तेनए पोताना स्वामीने भेट करी. // 24 // अांखोने आनंदित करनारा रूपवानी एवी तेणीने ते अ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 631 धम्मिः पुरंध्रीणां / धौरेयी सा व्यधीयत // 25 // तमदमाः परिन / सोढुमूढाः पुरंध्रयः // तस्याश्विदा. | एयनिद्राबु-लोचना बाबुलोकिरें // 16 // वसुदत्ता सुतं सूता / समये स्वात्मसन्निनं // पुत्रा मातृसमाः प्रायः / पुत्र्यः पितृसमाः पुनः // 17 // तदांतःपुरिकाः सर्वा / रोषदष्टोष्टपल्लवाः // सं. ऋय स्वामिनं गृढ-रोषैर्वाक्यैर्व्यजिझपन् / / श // विरक्तो यद्यपि स्वामी। वचोऽस्माकं न मन्यते // जिह्वा कंम्यते वक्तुं / तथापि स्नेहतो हितं // 27 // श्यं परनरासक्ता / नवीना वनिता तव तिप्रेमी चोरनायके पोताना अंतःपुरनी स्त्री मां पटराणी करी. / / 25 / / त्यारे ते पराजव सहन न करी शकवाथी तेनी परणेली स्त्रीने आंखो फाडीने तेणीना छिडो जोवा लागी. // 26 // प. जी समय श्राव्ये ते वसुदत्ताए पोतासरखा एक पुत्रने जन्म याप्यो, केमके प्रायें करीने पुत्रो मा. तासरखा तथा पुत्री पितासरखी थाय . // 27 // त्यारे सघली अंतःपुरनी स्त्री रोषयी होठ करमतीथकी एकठी थश्ने गुप्तरोषवाळां वचनोथी पोताना खामीने कहेवा लागी के, // 20 // जो के विरक्त थयेला स्वामी श्रमारं वचन माने नहि तो पण स्नेहनेलीधे अमारी जीन हित कहेवाने तल्पी रही . // 2 // था तमारी नवीन स्त्री परपुरुषमा बासक्त थयेली , जो म P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म | // सुतं त्वदिपरीतास्य / सुषुवे कथ्यमन्यथा // 30 // बहुप्रिया च या नारी / यो भृत्यो बहुनायकः // बहूबिष्टं च यत्रैदयं / तद्बुधः पखिर्जयेत् // 31 / / ततः स तुबधीर्भिवः / खने स्वमुखमैदत // राहुश्यामं विमालादं / लंबोष्टं नतनाशिकं // 35 // जातस्यापि ततस्तस्या–पश्यदास्यमसौ रसी॥ 635 | इंदुगौरं सरोजादं / विंबाकारोष्टमुन्नसं // 33 // पश्यन्नास्यविपर्यास-मसूनां नाशिनासिना // बु. लोव कदलीकांड-लावं शावं स निःकृपः // 34 // स्तेनैस्तदा तदादेशाद्-दृरं नीत्वोरुरज्जुनिः न होत तो तमाराथी विपरीत मुखवाळा पुत्रने ते केम जन्म आपे? // 30 // जे स्त्री घणा न तारखाळी होय, जे नोकर घणा शेठोवाळो होय, तथा घणानी एठी जे निदा होय तेनो मा ह्या माणसे त्याग करवो जोश्ये. // 31 // त्यारे ते तुब बुध्विाळा जिल्ले खम्मा पोतार्नु राहसर. खं श्याम, बिलामाजेवी.अांखोवायुं, लांबा होठवावु तथा नमेला नाकवा मुख जो. // 3 // पजी तेणे नत्सुक थश्ने ते बालकनुं चंद्रसर उज्ज्वल, कमलसरखी अांखोवाद्यं, पाकां टीमोरांसरखा होठवा तथा नंचा नाकवाबु मुख पण जोयु. // 33 // एवी रीते मुखनुं विपरीतपणुं जो. ने ते निर्दयं जिल्ले केळना रोपानीपेठे प्राणनाशक तलवारथी ते बालकने कापी नाख्यो. // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- // अबंधि कंटकाकीर्णे / वसुदत्तापि पादपे // 35 // तत्र बघा निरुघाशा / पाशाश्लिष्टेव पक्षिणी // दिशो दशापि पश्यंती / दुःखितेति व्यसादयत् / / 36 // अहो गुरुवचोलोप–कुपितेनेव वे. धसा / नरकः प्राघुणीचके / मानवेऽपि नवे मम // 37 // मार्गभ्रंशे मृतौ पत्यु-वियोगे तनुज६३३ | न्मनां / / सरिप्लावे दृढं बंधे / जीवितायेन नाच्यवं // 30 // युग्मं // कं यजे के जजे के वा। नाषये विजने वने // एवं सा दधती खेदं / तत्रैव सुचिरं स्थिता // 35 // // 34 // पनी तेज वखते तेना हुकमथी चोरोए वसुदत्ताने पण दूर ले जश्ने मजबूत दोरमां थी कांटावाळा वृतपर बांधी दीधी. // 35 // त्यां बंधायावाद निराश थश्ने पाशमां पडेली पति णीनीपेठे दशे दिशातरफ जोतीथकी मुखित थश्ने संताप करवा लागी के, // 36 // अरे! सासुससराना वचननुं नवंघन करवाथी जाणे मारीपर गुस्से थयेला विधाताए था मनुष्यभवमां पण मने नरकातिथि करी बे. // 37 // केमके मार्गमां जूली पम्वाथो, स्वामीना मृत्युयी, पुत्रो. ना वियोगथी, नदीना पूरथी तथा मजबूत बंधनथी पण मारो जीव गयो नहि. // 30 // हवे हं या निर्जन वनमां कोने पूर्जु? कोने गजें? अथवा कोने कहुं ? एवी रीते खेद करतीथकी ते PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्न अन्यदोऊयिनीयायी / नुन्नस्तत्सुकृतैखि // कोऽपि मध्यंदिने सार्थ-स्तस्थौ तत्रैव कानने // 40 // नरैर्निराशया ब्रांतै-बघा सादर्शि पादपे॥ अमोचि च दयासारै-धनाद्रांधवैखि // | // 41 // थानीय सार्थवाहस्य / तदानीं तैः समर्पिता // तेन पृष्टा निजं वृत्त-मन्यधत्त च सा. 634 | दितः॥ 42 // गंगावीचीवरे दत्वा / चीवरे बहुमानतः // सोऽमनोजवशः प्राह / तां मनोजवतः सुवाक् // 43 // दधासि पुत्रि किं खेदं / नेदं किं ते कुटुंबकं / / मध्यस्थामुष्य सार्थस्य / सुखत्यांज घणा कालसुधी रही. // 30 // . एक दिवसे नायिनीतरफ जनारो कोश्क सार्थ तेणीना पुण्योथी. जाणे प्रेरायो होय नहि तेम मध्याह्नकाळे तेज वनमां बावीने ठेो. // 40 // त्यां जलनी अाशाथी जमता लोकोए ते. णीने वृक्षपर बांधेली दीठी, त्यारे ते ए बंधुन्नीपेठे दया लावीने तेणीने बंधनरहित करी. // // 1 // पनी तेज वखते तेनए लावीने तेणीने सार्थवाहने सोंपी, अने तेणे पूजवाथी तेणीए मूळथी पोतानुं वृत्तांत कही संभलाव्यु. // 4 // त्यारे तेणे वहु अादरसत्कारपूर्वक तेणीने गं: / गाना मोजांसरखा मनोहर वस्त्र याप्यां, तथा पनी कामदेवने वश थयाविना तेणे मनना आवे. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jur Gun Aaradhak Trust Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि. महायिनी ब्रज // 4 // कृतसातेन सा तेन / प्रीणितेति मृदूक्तिभिः // चचाल निर्विचालस्य / दुःखपूरस्य पारमा // 45 // सह तेनैव सार्थेन / प्रस्थितोरुपरिबदा / जीवंतस्वामिनं नंतुं / सुत्र तास्ति तपोधना // 46 // सा चक्षुःपथमायाता-नंदसुंदरया तया // ववंदे तन्मुखार्म / शर्मका६३५ | रिच शुश्रुवे // 4 // घनव्यसनकझोला-ज्जराजन्मजलाकुलात् / / आतंकपंकसंकीर्णा-जवां नोधेर्बिजाय सा // 4 // तं तरीतुं तरीतुंग-स्थिति जग्राह साग्रहा // सार्थनायमनुज्ञाप्य / व्रतं शथी तेणीने मिष्टवचनोथी कां के, // 43 // हे पुत्रि! तुं शामाटे खेद करे ? या शं तार कुटुंब नथी? या सार्थनी अंदर रहीने तुं मुखेथी नऊयिनी जा? // 44 // एवी रीते शांत करनारा ते सार्थवाहे कोमळ वचनोवडे खुश करवाथी ते निरंतर पमतां दुःखोनो पार पामीने चालवा लागी. // 45 // हवे तेज सार्थनीसाथे मनोहर परिवारवाळी सुव्रता नामनी साध्वी जी. वंतस्वामीने वांदवामाटे चालती हती. // 46 // आनंदथी सुंदर थयेली एवी ते वसुदत्ताए ते सा. ध्वीने जोश्ने वंदन कयु, थने तेणीना मुखथी सुखकारी धर्म सांगव्यो. // 4 // त्यारे घणां दः. | खोरूपी मोजांनवाळा, जराजन्मरूपी जलथी पाकुल थयेला, तथा नयरूपी कादवथी नरेला वा PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म | सा सुव्रतांतिके // 4 // ससंवेगा रस वेगात् / पिवंती समयोदधेः // पुरीमवपुरीहा सा / क्रमामा दुऊयिनी ययौ // 10 // तत्र पित्रोमिलित्वा सा / निजं वृत्तं निवेद्य च // तयोरप्यनवत्तत्वा वबोधस्य निबंधनं // 11 // निशम्य वसुदत्ताया-श्चरित्रमिति चित्रकृत् / / गुरूणां मंजुला वावः / 636 | कः सुधीवधीरयेत् // 52 // श्रास्तां स्त्रियो न मन्यते / ये नृपा अपि सहचः // ते परैः परिजू यंते / राजारिदमनो यथा // 23 // नगरी सारसाहित्य–विद्येवास्ति तमालिनी // वर्ण्यवर्णक्रमासंसारसमुद्रथी ते मखा लागी. // 4 // ते संसारसागरने तखामाटे तेणीए ते सार्थपतिनी रजा लेश्ने अाग्रहसहित होमीसरखी नंची स्थितिवाद्यं चारित्र ते सुव्रतासाध्वीपासे ग्रहण कर्य. ॥णा पनी वैराग्यवाळी तथा सिघांतसमुद्रनो रस पीतीथकी शरीरनी पण ममता छोडीने ते अनुक्रमे न. गायिनी नगरीमां ग. // 50 // त्यां पोताना मातपिताने मळीने तथा तेजने पोतानुं वृत्तांत क. हीने तेजने पण तत्त्वज्ञानना कारणरूप ते थ पमी. // 51 // एवी रीतनुं वसुदत्तार्नु आश्चर्यकारी चरित्र सांजलीने कयो सुबुछि माणस मातापितादिक वडिलनी हितकारी वाणीनुं नलंघन | करे? // 5 // स्त्रीनं तो एकबाजु रही, परंतु जे राजा पण हितवचन मानता नथी, तेज प.। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्नि स्तोक-श्लोकसद्वृत्तमालिनी // 14 // मराल व सत्पदा-स्तत्रारिदमनो नृपः // पत्नी प्रियम ती तस्य / पद्मिनीव गुणालया // 55 // श्रेष्टी धनपतिस्तत्र / बालमित्रं महीपतेः // हरन्न्यायगु. |णेनोग्रं / श्रियश्चापव्यदृषणं // 56 / / सूत्रधारोऽनवत्तत्र / दरिद्रो धनदाधिः // यः स्वाख्यां बेद६३७ | नार्थेन / दारूपेणाकृतार्थयत् / / 57 // समये तनये जाते / स च तस्य प्रियापि च // अतां प | अरिदमन राजानीपेठे अन्योथी परानव पामे . // 53 / / जंच वर्णना लोकोना क्रमवाळी (मनोहर अदरोना क्रमवाळी ) घणी कीर्तिवाळा सदाचारी लोकोथी शोजिती (घणा श्लोको त| था मनोहर काव्योथी (जपकावाळी) साहित्यविद्यासरखी तमालिनी नामनी नगरी 3. // 24 // त्यां नत्तम पदवाळो (पांखोवाळो) हंससरखो अरिदमन नामे राजा हतो, अने तेने कमलिनी सरखी गुणोना ( तंतुनना) स्थानवाळी प्रियमती नामे राणी हती. // 55 // त्यां पोताना न्या. |यगुणथी लक्ष्मीना चपलपणारूप जयंकर दूषणने हरनारोअने ते राजानो बालमित्र धनपति ना. | मे शेठ वसतो हतो. // 26 // वळी ते नगरमां एक धनद नामे दरिडी सुतार रहेतो हतो, के | जेणे वेदनना अर्थवाला दाधातुना रूपवडे पोता नाम कृतार्थ कर्यु हतुं. // 27 // पनी जे स. ) P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 / . . . . धम्मि- रखोकस्य / पाथी दारिद्यदोषतः // 27 // वय॑मानो विधात्रेव / तनयस्तस्य केवलं // तुषांश्चखाद माई | शालीनां / लीनो धनपतेहे // 25 // असौ भृशं बुसग्राम-लालसत्वान्महाजनैः // अपभ्रंश गिरा चक्रे / कोकास इति नामजाक् // 60 // पुत्रोऽन्यदा धनपते-नाम्ना धनवसुः श्रिये // यियासुर्यवनं दीपं / नवं पोतमसळायत् // 61 // पायौघैः पुण्यनैपुण्यः / स तं पोतमबीनरत् // ला. नदैः संयमी चेतो / मूलोत्तरगुणैखि // 6 // चेटा श्वांगसां पत्युः / पोतक्रीमनपंडिताः // सर्वे मये ते सुतारने एक पुत्र थयो त्यारे ते सुतार अने तेनी स्त्री बन्ने गरीबाश्नेलीधे मृत्यु पाम्या. // 50 // केवल विधाताथीज पोषातो एवो तेनो ते पुत्र धनपति शेठने घेर रहीने मांगरना फो. तरां खातो हतो. // एए॥ एवी रीते घणा फोतरां खावानो लालचु होवाथी महाजनोए अपवंश नाषामां तेनु कोकास नाम पाडयु.॥ 60 / / हवे ते धनपतिशेठना धनवसु नामना पुत्रे एक दि. वसे धन कमावामाटे यवनहीपे जवाने नवं वहाण तैयार कयु. // 61 / / पनी साधु लाज देना रा मूलोत्तर गुणोथी जेम पोतार्नु मन परे, तेम करीयाणाना समूहथी ते पुण्यशालीए ते व| हाण यु. // 6 // समुद्रना नोकरसरखा वहाण चलाववामां चतुर एवा सर्वे खलासीनने तेणे PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 635 | धम्भि- निर्वेशदानेन / तेनातोष्यंत नाविकाः // 63 // यापृच्छ्य शकुनोत्साह-प्रेरितः पितरौ त्वरी।। पारुरोह स बोहिउँ / विमानमिव खेचरः // 64 // ययाचे स पितुः पार्श्वे / कोकासं नक्तिनासरं // देहशुश्रूषकेऽमुष्मिन् / जायेऽहं सुखनागिति // 65 / / तीर्णोऽब्धिं हनुमान यस्य / वायोः पो. | तः स्वयं सुखं // साहाय्यात्तस्य पोतोऽयं / प्राप पारं किमद्लुतं // 66 // संप्राप्ते यवनदीपे / वाधों | मुक्त्वा स वाहनं // मिलितेलापतिश्चके / व्यवसायमुपायवित् / / 67 / / कर्मव्यग्रोऽपि कोकासोधनदान आपीने खुशी कर्या. // 63 // पछी ते पोताना मातपितानी रजा लेख्ने शकुनना न. सादथी प्रेरायोथको विद्याधर जेम विमानपर तेम ते जतावलथी वहाणपर चड्यो. // 64 // मा. रा शरीरनी चाकरी करनार जो या होय तो मने ठीक पडशे, एम कहोने तेणे ते शक्तिवान कोकासने पोताना पितापासे मागणी करी साथे लीधो. // 65 // जे वायुनी मददथी वायुनो पुत्र हनुमान पोते सुखेथी समुद्र तरी गयो हतो, तेनी मददथी था वहाण पण किनारे पहोंच्यं तेमां शुं आश्चर्य ? // 66 / पछी ते धनवसु यवनद्दीपमां जश् समुष्मां वहाण गेडी राजाने मली युक्तिपूर्वक व्यापार करवा लाग्यो. // 67 // कार्यमा व्यग्र उतां पण ज्यारे ते कोकासने फ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 640 धाम्म | ऽवकाशं लगते यदा // कुलकस्य तदा तदणः / प्रयाति निलये स्वयं // 6 // स तु तदा क्रमा-। साथ याते / मर्मझो वास्तुकर्मणि // पाठयत्यशः पुत्रान् / ते तु सर्वे प्रमादिनः // 6 // // न हि स्व. गृहविद्यायां / शिष्याः प्रायेण सादराः // सुरूपायामपि स्वीय-कामिन्यां कामुका व // 70 // | कलौवे सोऽभियुक्तोऽन्त / कोकासस्तैरनाहते // नक्ते पिंमोलभोक्तेव / त्यक्ते जुपतिनंदनैः // 7 // | तस्यानियोगमालोक्य / कुलकः पुलकं वदन // तमेवाबीनणन्न स्व–परव्यक्तिर्गुणार्थिनां // 7 // रसद मलती त्यारे ते पोते कुलक नामना सुतारने घेर जतो. // 17 // ते हुशियार सुतार वंश परंपराथी चाली पावती पोतानी वास्तुविद्यामां प्रवीण होवाथी पोताना पुत्रोने ते विद्या नणाव | तो हतो, परंतु तेन सघला थाळसु हता. // ६ए / केमके मनोहर रूपवाळी एवी पण पोतानी स्त्रीमां जेम कामी तेम प्रायें करीने शिष्योपोताना घरनी विद्यामां यादरवाळा होता नथी. // 30 // पछी राजपुत्रोए गेमी दीधेलां भोजनमा जेम वयु घट्युं खानारो तेम तेनए नपेक्षेली कलान ना समुहमां ते कोकास यादवाळो थयो. // 11 // तेनो उद्यम जोश्ने ते कुलक सुतार रोमां | चित थयोथको तेनेज गणाववा लाग्यो, केमके गुणवान माणसोने स्वपरनो तफावत होतो न. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- सोऽपि वल्पदिनैः शिल्प-कल्पमस्खल्पमगृहीत // बुद्धक्षितस्य किं वेला -प्रयासः प्राशने लगे त् // 13 // लक्ष्मी च वास्तुविद्यां च / प्राप्य यानेन तेन तौ // धनश्च सूत्रधारश्च / पुनः स्वस्था | नमीयतुः // 14 // आजीवनाय पस्य / विज्ञानज्ञापनाय च // काष्टतदणा सुकाप्टेन / कपोता. | स्तेन. तेनिरे / / 75 // ते जीवंत वोड्डीनाः / सत्वरं गगनाध्वना.॥ दुर्भिदस्य शिरःशुलं / कुशू. लंपतेर्ययुः / / 76 // ततः शालिकणवातं / निरातकाः कपोतकाः // नभृत्य वार्धकः पार्श्व-मीयुर्वैवधिका श्व / / थी. // 12 // ते कोकासे पण समस्त शिल्पशास्त्र थोडा दिवसोमांज शीखी लीधुं, केमके भु. ख्या माणसने चोजन करवामां शुं वखत के प्रयास लागे ? // 73 // पनी ते धनवसु लक्ष्मीने तथा ते कोकास सुतार वास्तुविद्या मेलवीने ते वहाणपर बेशी फरीने पोताना नगरमां याव्या. // 4 // पोतानी आजीविकामाटे तथा राजाने पोतानी कला देखामवामाटे ते सुतारे उत्तम काटनां होला बनाव्यां. // 79 // ते होला जाणे जीवतां होय नहि तेम तुरत आकाशमार्गे न. | मीने दुकाळना मस्तकमां शूलसरखा राजाना अनाजना कोठारमां गया. // 16 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // 9 // तेनानायासलन्येन / शालिना रसशालिना // सवृत्तिं कल्पयामास / परकार्येष्वनादरी मा // 70 // दियमाणे सदा शालौ। कोशे च कृशतां गते // यदृष्टचारसंचारं। कोशाध्यदा नृपं जगुः // // मुमोच नृपतिस्तत्र / ततश्उन्नतरांश्चरान // तेऽपि काष्टकपोतानां / वृत्तं नृपमजि. 63 झपन् / / 70 // वैज्ञानिकशिरोरत्न-मयं कृतचमत्कृतिः // अहो बाहूयतामाशु / तानेवं भृदा| दिशत् // 1 // ते कपोतानुसारेण / चरंतश्चतुराश्चराः // पाहुः कोकासमोकःस्थं / नृपस्त्वामाब .. त्यांथी ते होलां निर्भयपणे चावलनो समुह लेश्ने मजुरोनीपेठे ते सुतारनी पासे याव्या. // 7 // एवी रीते विना प्रयासे मलता रसयुक्त चावलवडे करीने ते कोकास परनी नोकरीमां अनादरवाळो थश्ने पोतानी आजीविका चलाववा लाग्यो. // 7 // एवी रीते हमेशां चावल चोरावाथी ते कोठार ज्यारे नबो थर गयो, अने त्यां कोश्नी जाव श्राव जोवामां न यावी, त्यारे कोठारीए ते बावत राजाने जाहेर करी. // 7 // त्यारे राज़ाए त्यां पोतानां गुप्त माणसो रा. ख्यां, तथा तेनए पण राजाने ते काटनां होलाजनुं वृत्तांत जणाव्यु. // 7 // अहो! आश्चर्य करनारा तथा कलावंतोमा मुकुट सरखा ते माणसने जलदी बोलावी लावो, एम राजाए तेनने . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधा ... धम्मि, येदिति // 72 // ततः प्रमुदितः कामं / कामधेनु कलावतां // जगाम जपतेर्धाम / स्थपतिस्तैः पुरस्कृतैः // 73 // साधिताशेषकाष्टौघा / दधाना वास्तवीं श्रियं / / नृप स्थपतिविद्येव / जीयाद्राज्य स्थितिस्तव // 4 // वास्तुविद्यानवद्यत्व-सूचनैर्वचनैरिति // प्रीणितः पृथिवीप्राणो। वर्धकिनाथ | सोऽवदत् // 5 // त्वं दृष्टश्रुतविज्ञानि-सीमासीमामतः शृणु // गिरं बुध विधेह्येवं / यंत्रं गगन हकम को. // 71 // त्यारे ते चतुर गुप्तपुरुषो ते होलानने अनुसारे जश्ने घरमा रहेला को. कासने कहेवा लाग्या के तने राजा बोलावे . // 7 // त्यारे ते सुतार अत्यंत खुशी थश्ने तेने अगाडी करी पोते कलावंतीने कामधेनुसरखा राजमंदिरमा गयो. / / 73 // हे राजन् ! जी. तेल ने सर्व दिशाननो समुह जेणे (साघेल ने सर्व काष्टोनो समुह जेणे ) सत्य लक्ष्मीने (वा. स्तुविद्यानी शोनाने) धारण करनारी एवी सुतारनी विद्यासरखी तमारी राज्यस्थिति जय पामो? // 4 // एवी रीते वास्तुविद्याना अस्खलितपणाने सूचवनारां वचनोथी कोकासे खुशी करेलो राजा बोल्यो के, // 79 // तुं जोयेला अने सांगळेला विज्ञानवाळानी अवधिसरखो गे, माटे हे चतुर! तुं मारुं वचन सांगल? एवी रीतर्नु आकाशमां चालनारं एक यंत्र तुं बनाव? // 6 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ / धाम्म- गामिनं // 6 // एवं सस्नेहमानाष्य / विजुष्य वसनादिना // दत्तातिमानसंमानं / नृपतिर्विससर्ज तं // 7 // सोऽविमानविमानश्री-मानापहरणदमं // यंत्रं जनदयारोह-योग्यं मंक्षु विनिर्ममे ....|G // दिवसे श्रेयसि दगापः / समं तेन कलावता // तं दारुयंत्रमारुह्य / खेचरैः सख्यमन्व नृत् | 644 // 7 // यदृरं यद्दुरारोहं / यद्गै यच्च दुस्तरं // यानेनानेन तत्सर्वं / तस्य केलिगृहं कृतं // / ए० // कदापि पुलिने नद्या / गिरेः शृंगे कदाचन // कदाचित्काननकोडे / स चिक्रीड कुतू. एवी रीते तेने स्नेहपूर्वक बोलावीने तथा वस्त्रादिकथी शणगारीने राजाए अति आदरसत्कारपूर्वक तेने विसर्जन को. // 7 // हवे ते कोकासे अनुपम विमाननी शोनाना मानने हवा. ने समर्थ तथा बे माणसोने बेशवालायक तुरत एक यंत्र बनाव्यु. // 7 // पनी शुज दिवसे राजा ते कलावाननी साथे ते काष्टयंत्रपर चमीने खेचरोसाथेनी मित्रानो अनुभव लेवा लाग्यो. // // जे कोश् स्थान दूर, फुःखे चडी शकाय तेवू, दुर्गम तथा दुःखे तरी शकाय तेवु हतुं, ते सघळां स्थानो या विमाने तेने कामागृहसरखां करी दीघां / ए // अने तेथी को वखते नदीना पटमां, को वखते पर्वतना शिखरपर तथा कोश् वखते वनना मध्य भागमां ते कुतूहली P.P.AC.Gunratnasuri Jun Gun Aaradhak Trust Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- हली // 1 // कामचार तयोदिय / प्राह प्रीतिमती प्रियं / अपराई मया किं ते / यहच्ये देश | दर्शनात् / / ए // स्वमेव धिन्वसि दूरी-कृत्य स्निग्धमिमं जनं // विश्वनरेरपि स्वामिन् / दृष्टिः कु. दिन रिस्तव / / ए३ // त्वयि तार्य श्वादन-देशदर्शिनि नर्तरि // न नूप कूपमंमूक-खापवा६४५ | दो गतो मम // ए४ // तन्मे पूरयतादेक-यानावस्थानदोहदं // मोहदं वचनं तस्या / इदं त. | दणो जगौ नृपः // ए५ // स जगावुनयोरेव / यंत्रोऽयं देव वाहकः // सीदत्यधिकसंपर्के-णाति. | राजा क्रीमा करवा लाग्यो. // ए१ // एवी रीते तेन बन्नेने स्वामुजब फरता जोश्ने प्रीतिमती राणीए पोताना खामीने कह्यु के, हे स्वामी! में यापनो शुं अपराध कर्यो ? के मने श्राप दे. शो देखामता नथी. // 55 // हे स्वामी था स्नेही जनने दूर करीने श्राप पोतेज जे मोज मा. णो गे, तेथी एम जणाय ने के श्राप जगतनुं पोषण करनारा बतां पण पापनी दृष्टि तो पेटनरीज . // 73 // वली हे राजन् ! गरुमनीपेठे सर्व देशोने जोनारा एवा आप मारा स्वामी - तां मारो कुवाना देमकापणानो अपवाद गयो नहि. // ए४ // माटे एक वाहनमां बेशवानी मा. |री मनकामना थाप पूरी करो? हवे एवी रीतनुं मोह उपजावनाएं तेणीनुं वचन राजाए कोका P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्नः नारेण गौखि // ए६ // एवं नृपो निषिकोऽपि / याने पत्नी न्यवीविशत् // बलिनोऽप्यबलावाचा सार्थ / बध्यंते ही भवस्थितिः // 7 // अहो स्वबंदतामंद-तापक: नृणां नवेत् / / जल्पन्निति समं राझा / तत्र तदाप्युपाविशत् // ए // यावदूरं ययौ यानं / तावद् रिजरार्दिताः॥ तत्र दुर्वायुहः | भि-स्तंत्रीनिः सह कीलिकाः // एक // विशीर्णाशेषसंधानो / दधानो जिह्मतां गतौ // कणासने कहूं. // 55 // त्यारे कोकास बोल्यो के हे देव! या यंत्र फक्त बे मनुष्योनोज बोजो नं. चकी शके तेवू , परंतु जो तेथी वधारे माणस तेमां बेशे तो अति नारथी बळदनीपेठेते क. दाच त्रुटी पडे. // 6 // एवी रीते निषेध कर्या छतां पण राजाए पोतानी ते स्त्रीने ते वाहनमां बेसाडी, बलवानो पण स्त्रीना वचनथी बंधा जाय बे, अरेरे! संसारनी स्थिति केवी ! // 8 // यहो! स्वबंदीपणुं माणसोने अत्यंत खेद करनारं थाय बे, एम बोलतोयको ते कोकास पण ते वाहनमां बेगे. // ए // पछी जेवामां ते वाहन दूर गयुं तेवामां घणा नारथी दुर्वायुने हरनारी तंत्रीनसाथे जोडेली खोलीन नीकळी पमी, // ए // अने तेथी तेना सघला सांधान विखरा३ जवाथी थने गति अटकी पडवाथी ते यंत्र बुढा बलदनीपेठे एकदम जमीनपर पटकी पड़यं. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमि। लोणितले यंत्रो / जरद्रव श्वापतत् // 3000 // निःश्रि विप्रतिचारेण / रेणुनेवावगुंवितं // दध | दास्यं धराजानि-स्तदराजा न्यगद्यत // 1 // राजन्नलं विषादेन / विषादेनः सुदारुणं // कृति नो हितकार्युक्त-समुलंघनजं विदुः // 2 // अयं ते विविषां देश-स्तबन्नमिह तिष्टतात् / / तदो. 647] पकरणं किंचि-नगराद्यावदानये // 3 // प्रविवेश सदेशस्थं / स तोसलिपुरं ततः॥ आपृच्छ्या . पृच्छ्य कस्यापि / तदणो मंदिरमीयिवान् // 4 // ययाचे स्थनिर्माणा-कुलं वासी स तदाकं / / वा. // 3000 / / एवी रीते उलटी रीते चालवाथी जाणे धूळथी बाबादित थयुं होय नहि तेम निस्तेज मुखने धारण करनारा ते राजाने कोकासे कहूं के, // 1 // हे राजन् ! हवे खेद करवायी सर्य, केमके हितकारीना वचनना नखंघनथी नत्पन्न थयेलां पापने विहानोए विषयी पण जयं कर कहेछ बे. // 2 // हवे aa तारा शत्रुजनो देश बे, माटे अहीं तारे गुप्तपणे रहे, के जेट लामा हुं नगरमांथी कर्शक सुतारनुं हथियार लावू. // 3 // पनी ते कोकास नजीक रहेलां तोस. लीपुर नगरमा गयो, तथा पूजतो पूबतो कोश्क सुतारने घेर पहोंच्यो. // 4 // त्यां तेणे स्थ व. | नाववामां पडेला ते सुतारपासे वांसलो माग्यो, अने. ते वांसलानी मागणीज ते कोकासन स. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- सीयांचैव तस्यात् / सूत्रधारत्वसूचिका // 5 // सोऽन्यधात काकजंघस्य / रथोऽयं पृथिवीपतेः // सार्थ | निविलंबं मया कार्य-स्तवासी कथमर्पये // 6 // कोकासः प्राह तन्मुंच / तक्षणीं येन तत्दाणं / / दर्शयामि रथं सिहं / कार्य जाग्यवतामिव // 7 // तदा तदर्पितां वासी-मादाय स कलानिधिः // 640 रथे मुहूर्त्तमात्रेण / चक्रदयमयोजयत् // 7 // हस्तलाघवमन्यस्य / नेदृशं भुवि संजवि // जझा. वित्यनुमानेन / तं कोकासं स सूत्रभृत // // अन्यां वासी तवासीन-स्यात्रानेष्येऽहमित्यसौ // तारपणुं सूचवनारी थर. // 5 // हवे ते सुतार बोल्यो के था काकजंघ राजानो स्यबे, बने ते मारे तुरत पूरो करखो , माटे हुँ तने वांसलो शीरीते यापी शकुं? // 6 // त्यारे कोकास बो. व्यो के जो एम ने तो तुं वांसलो गेमी दे, के जेथी हुँ तने गाग्यवानोना कार्यनीपेठे दणवा. रमां या रथ बनावी बापुं. // 7 // त्यारे तेणे आपेलो वांसलो लेश्ने ते कलानिधान कोकासे बे घडीमांज स्थनी अंदर बन्ने चक्रो जोमी दीघां // 7 // यावी हाथचालाकी बीजा कोश्नी पण आ पृथ्वीमां संगवती नथी, एवी रीतना अनुमानथी ते सुतारे तेने कोक्कासतरीके जाणी लीयो. | // // तुं यहीं बेठो ने एटलामां हुं तने वीजो वांसलो लावी बापुं बुं, एम कही तेने ठगीने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- तं विप्रतार्य नर्तुः / कोकासागमनं जगौ // 10 // अदीघरघराधीश-स्तं निजैः सुनटवजैः / / नृ. M णां पुण्यदये ख्याति–रेव बंधनिबंधनं // 11 // नापयित्वा तमप्रादीत् / सकोप श्व कोःपतिः // | अरे वद वद कास्ति / स शत्रुदमनो नृपः // 15 // यत्र त्वं ननु तत्रैव / स शत्रुदमनो नवेत् // ६४ए विरहो युवयोर्वायु-वह्नयोखि न संचवी // 13 // कांदिशीकतया तेन / स्वामिस्थानं न्यवेद्यत // | नयामितापिते चित्ते / न तिष्टेजुह्यपारदः // 14 // सप्रियः स नृपोऽनेनो-दग्रसेनेन जनसे // तेणे राजाने कोकासर्नु अागमन सूचव्यु. // 10 // त्यारे राजाए पोताना सुगटना समुहथी तेने पकमी मगाव्यो, केमके पुण्योनो दय थवाथी माणसोनी प्रशंसाज बंधना कारणरूप थपडे ने. // 11 // पनी राजाए गुस्से थयेलानीपेठे तेने डरावीने पूज्यु के, अरे! तुं बोल बोल के ते अरिदमन राजा क्या ? // 12 // ज्यां तुं त्यांज खरेखर ते अरिदमन होवो जोश्ये, केमके वायु घने अग्मिनीपेठे तमारा बन्नेनो विरह संभवी शकतो नथी. // 13 // त्यारे ते कोकासे पण न यथी गजराश्ने राजानुं ठेकाकही दीधुं, केमके नयरूपी अमिथी तपेलां मनमां गुप्तवातरूपी | पारो तेरी शकतो नथी. // 14 // पनी चैतन्यवाला प्राणीने जेम मोहनीय कर्म, तेम वळवान सै. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पायः सचेतन श्व प्राणी / मोहनीयेन कर्मणा // 15 // क्रीमाशुकमिवावट्य / रिपुं वाजिरपंजरे // त- / मास्य प्रियां प्रीतिमती-मवरोधे रुरोध सः // 16 // पार्थिवः प्रार्थयामास | कोकासं स्वकतामिमां // अशेषशेषसहिद्यान / कुमारान् मम शिदय // 17 // तदरत्नमयाचख्यौ / कलापीयं कला नृप | // न नृपतिनुवां नाति / श्मश्रुश्रीखि योषितां // 17 // एवं वदन्नपि नृपा-ग्रहतो महितोद्यमः // सकष्टं काष्टकर्मासौ / कुमारानध्यजीगपत् // 15 // क्रीडया निर्मितौ तेन / चारू दारुमयौ ह. न्यवडे करीने ते राजाए स्त्रीसहित ते अरिदमन राजाने पकमी लीधो. // 15 // पनी तेणे ते यरिदमनने क्रीमा करवाना पोपटनीपेठे पोताना यांगणामां रहेला पांजरामां पूरीने तेनी स्त्री प्रियमतीने पोताना जनानखानामां मोकली दीधी. // 16 / / पनी राजाए कोकासने विनंति करी के | बाकीनी सघळी सविद्यावाळा था मारा कुमारोने तुं तारी कला शिखाव ? // 17 // त्यारे कोकास बोल्यो के, हे राजन् ! था कला पण जो के कला , तोपण स्त्रीनने जेम दाढीमुन तेम राजपु. त्रोने या कळा शोजशे नहि. // 10 // एम कह्या छतां पण राजाना याग्रहथी ते उद्यमपूर्वक | केटलीक मुश्केलीए कुमारोने सुतारकाम शिखववा लाग्यो. // 15 / / पजी तेणे विनोदमाटे का. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घन्मि- यौ॥ अयाचिषातां दोणींदु-पुत्रावारोढुमन्यदा // 20 // तदाचचक्षे धत्तश्चे-इत्सौ मत्सौहद ह. दि // मा याचिष्टां तदाता-वेतौ प्रेतौकसोऽध्वगौ / / 21 // एवं निवार्य कार्येण / केनापि व्याः | पृतोऽनवत् // यदा तदा तदा ताऱ्या-विमौ तावध्यरोहतां // // तावर्वतौ प्रकुर्वतौ / वैपट्ये 651 निर्मदं ननः / नड्डीनौ मैत्रीलानेच्चू / श्वादित्यस्य वाजिनां // 23 // दणांतरेऽथ तच्चुधि / प्र. कुर्वति गुरौ जगुः // कुमारा श्तरे दारु–वाहवाहनतां तयोः // 24 // स दध्यावहहा कीहटना बे मनोहर घोमा बनाव्या, एक दिवसे ते बन्ने घोमा बे राजपुत्रोए चडवामाटे तेनीपासे मा. ग्या. // 20 // त्यारे कोकासे तेजने कह्यु के हे वत्स! जो तमो हृदयमां मारी मित्राश्धारण करता हो तो आकाशमां गमन करनारा था बन्ने घोडाननी तमो मागणी न करो. // 21 // एवी रीते तेनने निवारीने ज्यारे कोकास कक कामे लाग्यो त्यारे ते बन्ने राजकुमारो ते बन्ने घो. डापर चडी बेठा. // 2 // त्यारे ते बन्ने घोमा विस्तारमा आकाशने पण मदरहित करताथका सूर्यना घोडाननी मिलाइ मेलववाने जाणे श्खता होय नहि तेम नड्या. // 3 // पड़ी थोड़ी | वारे कोकास ज्यारे ते घोमानी तपास करवा लाग्यो सारे वीजा कुमारोए ते बन्ने कुमारोनं P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धान- पारेने बालचापलं // कुमारान्यामजानद्यां / वाजिवारणकीलिकां // 25 // श्यता वियता यां सार्थ | तौ / कालेन स्वयमेव तौ // बालौ नविष्यतो हंत / क्षुत्तृट्पीमार्दितौ मृतौ // 26 // पृछतः सुत योः शुहिं / राझो दास्ये किमुत्तरं // जपतस्थावनर्थोऽयं / मम प्राणवधावधिः // 27 // जनान६५२ नादुदंतेऽस्मिन् / झाते मुक्तकृपो नृपः // कोकासमादिशद्दध्यं / का मैत्री ऋतुजा सह // 20 // द. धानाशुरुवात्सल्यं / राजपुत्रात्कुतोऽपि सः // नाविनं स्ववधं ज्ञात्वा / चक्रयंत्रं वितेनिवान् // 25 // ते काष्टमय घोडापर चडवू जणाव्यु. // 24 // त्यारे तेणे विचार्यु के अरेरे! ते घोमानने पा. aa वाळवानी खीली नहि जाणता एवा ते कुमारोए था केवु बालचापल कयु !! // 25 // बरे. रे! हवे ते बालको आकाशमां चालताथका अमुक वखते भुखतरसथी शुःखी थने पोतानीमेळेज मृत्यु पामशे. // 26 // हवे राजा ज्यारे मने था पुत्रोमाटे पूबशे त्यारे हुं शुं नत्तर था. पीश? था तो मारा प्राणोनो नाश थवाजेवो अनर्थ आवी पड्यो. // 27 // पनी लोकोना मुख थी ज्यारे या वृत्तांत जाण्युं त्यारे राजाए निर्दय थश्ने कोकासने मारी नाखवानो हकम कर्यो, | राजासाथेनी मित्राश् शा कामनी ? // 20 // गुरुपर प्रेम धरनारा कोश्क राजपुत्रपासेथी पोता. P.P.AC. Gunratnasuri M.s. Jun Gun Aaradhak Trust Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- कुमारानादिशत्सर्वा–नेष शक्तिनरान्वितान् // आरोहत दाणं चक्र --मिदं वक्रेतराशयाः // 30 // / शंखध्वनौ श्रुतेऽस्येमां / भिंदाध्वं मध्यकालिकां // भविष्यथ ततो देवा। श्व व्योमविहारिणः // // 31 // एवमस्त्विति तैरुक्ते / स निन्ये राजपूरुषैः / वध्यमां गिरेद॑तं / पोतः कुपवनैखि // 653 // 32 // वध्यमानः स तैर्मुक्त-शंकः शंखमपूरयत् // तध्वनेरनु ते जघ्नुः / कुमाराश्चक्रकीलि कां // 33 // ततो वारिरुहाकारे / चक्रे संकोचमंचति // राजपुत्रा रटतोऽपि / व्यलीयंत यथालयः नो थनारो वध जाणीने तेणे एक चक्रयंत्र बनाव्यु. // // पनी तेणे ते सघळा जक्तिवंत कु. मारोने कह्यु के हे शुज प्राशयवाळा कुमारो! तमो थोडीवारसुधी या चक्रपर चडो? // 30 // पजी ज्यारे तमो शंखनो अवाज सांगलो त्यारे तमारे aa चक्रनी वचली खाली नांगवी, के जे. थी तमो देवोनीपेठे याकाशगामी यशो. // 31 // ठीक ने एम जेवामां तेज कहे , तेवामां कुवायु जेम वहाणने पर्वतना खराबापर ले जाय जे तेम राजाना माणसो ते कोकासने वधमीमां ले गया. // 32 // पछी ज्यारे तेन तेनो वध करवा लाग्या त्यारे तेणे निःशंक थाने शंख वगाड्यो, ते शंखध्वनि सांजलतांज ते कुमारोए ते चकनी खोली नांगी नाखी. // 33 // ते। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म | // 34 // कोकासे निहते ज्ञात्वा / कुमारमरणं नृपः // साधयन्निधनं शोका-रिपमुदबिनत मा // 35 // यथारिदमनो राजा / यथा वा तौ नृपांगजौ // विनंदयसि तथा स्वैरा-चारात्त्वमपि नं. दिनि // 36 // 654 कलाकौशलसौजाग्य-रूपश्रीशूरतादियुक // वद त्वं कोविदे तत्ति / न्यूनो येनैष ध. म्मिलः // 37 // एतावद्गुणसंपूर्णः / सारदेहो द्विधापि हि // यद्यसावपि ते नेष्ट-स्तदिष्टः को ज वखते ते कमलाकार चक्र संकोचा गयु, अने तेथी नमराजनीपेठे बूमो पाडता ते सघला कुमारो मरण पाम्या. // 34 // हवे कोक्कासने मार्याबाद कुमारोनुं पण मृत्यु थये जाणीने ते राजाए शोकथी आपघात करतांयकां ते शत्रु एवा अरिदमन राजाने पण मारी नाख्यो. // 35 // माटे हे पुत्री! जेम अरिदमन राजा अथवा जेम ते बने राजपुत्रो तेम तुं पण स्वेडाचारथी ना. श पामीश. // 36 // वळी आ धम्मिल कलाकौशल्य, सौगाग्य, रूप, लक्ष्मी तथा शौर्यबादिक गुणोवाळो बे, तो | हे. चतुर पुत्री: तुं कहे के था धम्मिलमा हवे शुं न्यूनपणुं रहेधुं बे? // 37 // पाटला गुणोथी / PP.AC. Gunratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 655 धम्मि- चविष्यति // 30 // अयं विज्ञाय तेऽवज्ञां / यद्यन्यां परिणेष्यति // तदापि त्वदहंकार-हंकार | स्यास्ति का गतिः // 35 // न निर्वढत्यहंकारः / पुरुषैः सह योषितां / / सव्यः करः सनूषोऽपि / मलस्यैवापनुत्तये // 40 // ति तहचनैवैद्यौ-षधैखि हृदि स्थितैः / / जीर्णज्वर श्व दीण-स्त. | स्या रोषोंगशोषकः / / 41 // जगौ चैवं मया मात-र्न जातु त्वं विलंध्यसे // प्रमाणयिष्यते सर्व / त्वत्संमतमतः परं // 42 // इति तदाक्यसिक्तस्य / धम्मिलस्यार्धवृष्या // पराभवनवस्ताप-व्या. जरेलो अने बन्ने प्रकारे सारत शरीवाो या धम्मिल पण जो तने प्रिय नथी लागतो, तो प. जीतने वीजो कोण प्रिय थशे? / / 30 / / हवे या तारी अवज्ञा जाणीने कदाच बीजी स्त्री पर. पशे, तो पनी तारा अहंकाररूपी हुंकारानी शुं गति थशे? // 35 // पुरुषोसाथे स्त्रीननो अहं. कार नभी शकतो नथी, केमके यानुषणोवाळो पण डावो हाथ फक्त विष्टानेज साफ करवामाटे नपयोगी थाय . // 40 // एवी रीते वैद्यना औषधसरखां तेणीनां वचनो कमलाना हृदयमां दा. खल थवाथी जीर्णज्वरनीपेठे अंगने शोषनारो तेणीनो रोष दीण थयो. // 1 // बने तेथी ते | बोली के हे माता! में कोइ पण वखते तारुं वचन उल्लंघ्यु नथी, माटे हवेथी हुँ तारी सर्वसंम P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्नः। पः प्राप दयं क्षणात् // 43 // शांतं तस्य मनोनुःखं / शांता निःश्वासवायवः // शांतं निद्रादृशोमा वैरं / ततः शांता सुख निशा // 4 // प्रातर्जातोदयस्यांशो-गजस्तिभिरनीयत // धम्मिलस्या| स्यकालिम्ना / समं संतमसं शमं // 45 // ततो गंगातरंगाने / वसानो वाससी रसी // स्वल्पहैमविजूषोंग-वर्णनतिजयादिव // 46 // मूर्तेनेव प्रमोदेन। चंदनेनांचितोऽनितः॥ पुष्पस्रग्निः प्रितिने प्रमाणरूप गणीश. // 4 // हवे ते अर्धजरती विमलाए तेणीना ते वचनथी सींचेला ध. म्मिलनो परानवथी नत्पन्न थयेलो खेदनो विस्तार दाणवारमा दय पाम्यो. // 43 // तेना मनन दुःख शांत थयु, तेना निसासाना वायुन शांत थया, निद्रा बने अांखोवच्चेनुं वैर शांत थयं, अ ने तेथी सुखेसमाधे शांतिपूर्वक तेनी रात्री निर्गमन थश्. / / 44 // पनी प्रजाते जदय पामेला सूर्यना किरणोवडे करीने धम्मिलनी ऊंखवाणापणानी साथे अंधकार पण नष्ट थयो. // 45 // हवे धम्मिले उत्सुक थश्ने गंगाना मोजांसरखां वस्त्रो पहेयी, तथा शरीरना रंगना विनाशना न. यथी जाणे होय नहि तेम तेणे वर्णना थोमां भाषणो पहेयो. // 46 // तथा मूर्तिवंत हर्षव. | डे करीने होय नहि तेम चोतरफ चंदनवडे लिप्त थयेलो, तथा पोतानी प्रियाना प्रेमरूपी पाशो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- याप्रेम-पाशैवि परिस्कृतः // 4 // कमलाविमलालीढ–मारुह्म रथमश्लथं // जगामाराममात- | | न्वन् / स लोकनयनोत्सवं // 45 // तदा तदाययुः खंड-मखमयुतिमंमलाः // कुमाराः सस्त्रि योऽन्येऽपि / सरतिस्मरवित्रमाः // 20 // सह भृत्यगणैः स्वैर-मैरावत व हिपैः // अलंचके वनं 657 | केलि-जाजनं राजनंदनः // 51 / / समं मित्रैः कुमारेण / पुष्पाव वयनादिकाः // नरेणारेनिरे त. व / का न काननकेलयः // 55 // तद्भूत्यैर्मडपस्तत्रा-सूत्रि ब्रह्मांमजित्वरः / / नकचंद्रोदया य. वडे करीने होय नहि तेम पुष्पमालानथी विऋषित थयेलो, // 4 // एवो ते धम्मिल कमला अने विमलाथी युक्त थयेला वेगवान रयपर बेशीने लोकोनी अांखोने यानंद उपजावतोयको बगीचामां गयो. // 45 // ते वखते अविजिन्न कांतिमंगलवाळा तथा रतिसहित कामदेवनो ब्रम नपजावनारा बीजा कुमारो पण पोतपोतानी स्त्री सहित ते बगीचामां आव्या. // 50 // पी बीजा हाथीन सहित जेम ऐरावत तेम नोकरोना समुहसहित ते राजकुमार पण पोतानी मेळेज ते क्रीमा करवालायक वनमां व्यो. // 51 // त्यां ते राजकुमारे पोताना मित्रोसहित यानंद| थी पुष्पो वीणवां यादिक कश् कश् वनक्रीडा न करी ? // 55 // वळी त्यां तेना नोकरोए ब्रह्मां / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jurr Gun Aaradhak Trust Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्म- स्मिन् / व्यक्तमौक्तिकतारकाः // 13 // शनावसरे श्रांतान् / सखीन मंम्पमीयुषः // अबू भुजत्स | माल जानि-निजाञ् जनितगौरवः // 24 // ते स्वादुजांजि भुंजाना / नाना भैदयाणि मेनिरे / बुधान मुधा सुधास्वाद-सादरानपरानपि // 55 // मुग्धया स्निग्धया सार्धे / विदग्धं प्रियया सह 650 पम्पिलं प्रेदश मूर्खानं / धुन्वन् दध्यौ धरेशनः // 26 // वधूवैधुर्यमस्यापि / यदगद्यत कदैः | // ताने सुजनस्यापि / खलाः स्खलितकांदिणः // 27 // अनयोस्तादृशः प्रेम-बंधः श्लिष्टो वि डने पण जीतनारो एक मंडप बनाव्यो, के जेमां मोतीनरूपी तारानेवाळा अनेक चंडवा शोजता हता. // 53 // हवे थाकेला ते पोताना मित्रो गोजनसमये ज्यारे ते मंझपमां श्राव्या त्यारे ते राजकुमारे यादरमानपूर्वक तेनने जमाड्या. // 14 // ते त्यां नानाप्रकारनां स्वादिष्ट भोजन जमताथका अमृतना स्वादमां श्रादरवाळा बीजा देवोने पण तुब मानवा लाग्या. // 55 // मुग्य तथा स्नेहवाळी स्त्रीनी साथे रहेला ते चतुर धम्मिलने जोश्ने ते राजपुत्र मस्तक धुणावतोयको विचारखा लाग्यो के, // 56 // चुगलखोरोए या धम्मिलनी स्त्री- पण जे विधुरपणुं मने जणा| व्यु जे, तेथी हुँ धारु बु के उर्जनो सऊनोनुं पण बुरुं करवानी श्डावाळा होय . // 27 // व्या P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। लोक्यते // स्वरव्यंजनयोः संधौ / यादृग्लादणिकैः कृतः // 20 // जोजनादनु सर्वेऽपि / स्वां स्वां .: | पत्नीमनर्तयन् // बेमामिवाब्धिकलोलाः / पटहध्वनिधारिणः // 17 // कमलां नर्तयामास / धम्मि लोऽपि सुधीरधीः // मृदंगध्वनिना गर्जन / पर्यन्य श्व केकिनी // 60 // मृदंगरंगदं प्रेक्ष्य / प्रेयां६५ समनुरागिणी // नविष्यत्वमतीतानां / दिनानां कमलैहत // 61 // स्वबंदतालतामूलं / प्रतिकूल गुरुष्वपि // पौनःपौन्येन निंदती / सा खमेवमचिंतयत् / / 62 // वोज्ज्वलगुणवर्ण-पूर्णेऽमु. करणीनए स्वर अने व्यंजननी संधीमां जेवू जोडाण कयु होय तेवो या बने बच्चेनो प्रेमबंध जो. मायेलो देखाय . // 17 // हवे नोजनबाद समुद्रनां मोजांन जेम होडीने तेम तेन सघला मृदंग बजावताथका पोतपोतानी स्त्रीने नचाववा लाग्या. // 27 // पछी मेघ जेम मयूरीने तेम मृदंगना अवाजथी गर्जना करता ते बुद्धिवान धम्मिले पण कमलाने नचावी. // 60 // ते वखते मृदंगनो ताल देता एवा पोताना प्रियतमने जोश्ने अनुरागवाळी थयेली कमला गयेला दिव. सोनो भविष्यकाळ श्वा लागी. // 61 // स्वबंदीपणारूपी लताना मूळसरखा तथा वडीलोपते पण प्रतिकूल एवा पोताना यात्माने फरीफरीने निंदती एवी ते कमला विचारखा लागी के.॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust HA Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्भि- ष्मिन निधाविव // हीनजाग्या व्यवाहार्ष / हा श्मशानघटीधिया // 63 // रक्षिताशेषविपदं / दत्तः / सार्थ निकंपसंपदं // अमुं कल्पङ्गुमल्प-तुल्यमहमलंनयं // 64 // किं भ्रांता किमु दिङ्मूढा / किं | सोन्मादा किमुन्मदा // अनुवं यददामत्र / चिंतारत्ने दृषदृशं / 65 // सरघावन्ममानेका-क्रोश | देशशतैरपि // मदारिख नाकुन्यत् / सोऽयं जातु मनागपि / / 66 !! तृणदेऽपि पयोदानि-स्ति| // 6 // वखाणवालायक उज्ज्वल गुणोरूपी स्वर्णयी घरेला निधानसरखा था धम्मिलप्रते पण में अभागणीए अरेरे! श्मशाननी हांडलीनी बुधिपूर्वक व्यवहार को. // 63 // सर्व पापदान| थी रदण करनार तथा निश्चल संपदा आपनारा एवा या कल्पवृदने में तुब वृदानी बरोबर ग. एयो. // 64 // शुं हुं ब्रमित थर हती ? के दिग्मूढ बनी हती? के उन्मादी थइ हती? के मदो. न्मत्त थर हती? के या चिंतामणि रत्नमां पण में पबरनी दृष्टि धारण करी ! // 65 // मधमाखनी माफक मारां अनेक आक्रोशोरूपी सेंकमोगमे दंशोथी पण महान वृदानी पेठे आ धम्मिल जरा पण दोन पाम्यो नथी. // 66 // घास देनारप्रते पण दूध यापनारी तिर्यचीसाथे पण मा. री तुलना थर शके तेम नथी, परंतु दृध देनारने पण फेर देनारी नागणीसाथे मारी तुलना कः | un Gunaradhakrist P.P.AC.GunratnasuriM.S. Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः रवीजन मे तुला // विषदानिः पयोदेऽपि / जुजंगीनिस्तु सोचिता / / 67 // सा ध्यायंतीति सः | प्राणा / दृग्बाणान विससर्ज तान् // नपर्युपरि विछो यै-धैर्यप्राणान मुमोच सः // 67 / समग्रे सुहृदां वर्गे / खं खं मंदिरमीयुषि // धम्मिलोऽपि निजं धाम / समं तान्याम ऋषयत् // 65 // प्र. दीपसाक्षिकं सायं / कमलां परिणीय च // जे विलासनवनं / नवसंगमरंगवान् // 30 // पूर्व हृदा ततो वाचा / कायेनापि ततस्तयोः // तदानीमंतरं लमं / प्रकृतिप्राणिनोरिख // 11 // अन्योखी नचित . // 67 // एम विचारतीथकी ते प्रेमाळ कमला एवां तो कटादोरूपी बाणो फेंकवा लागी के जेथी उपरानपर वींधायेलो ते धम्मिल पोताना धैर्यरूपी प्राणोने गोडवा लाग्यो. // // 6 // पनी सघळो मित्रवर्ग ज्यारे पोतपोताने घेर गयो, त्यारे धम्मिल पण ते बन्नेसहित पोताने घेर गयो. // 60 // संध्याकाळे दीपकनी सादीए कमलाने परणीने ते नवा संगमना रंग वाचे धम्मिल विलासभुवनमां गयो. // 70 // ते वखते त्यां प्रथम हृदयथी पछी वचनथी तथा पजी कायाथी तेज बनेनो प्रकृति अने प्राणीसरखो संगम थयो. // 71 // परस्पर आलिंगन करवाथी हृदयमांथी सर्व दुःखो नाश पामवाश्री तेजने चार पहोरनी रात्रि पण एक पहोरजेवडीला Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 662 धम्मि| ऽन्याश्लेषहृल्लेखात्-त्रासिताशेषःखयोः // ससाद्यामस्य जामित्वं / चतुर्यामापि यामिनी // 7 // / सार्थ मूत्यैव विव्रतोर्मेदं / हृदा त्वेकत्वशालिनोः // जग्मुः कतिचिदज्ञातो-दयास्ता दिवसास्तयोः / // 33 // सोऽन्यदा प्रेमकलहे। कलहेमडविं प्रियां // जगौ वसंततिलके / मा जुस्त्वमतिकोपना | // 7 // वसंततिलकानाम / रिमन्युरमन्यत // साकस्मादपि तद्दिा-जोलसंघटदुस्सहं // // 35 // भर्तृरागः क्रुधोत-देहलोहित्यदंभतः // बहिर्वासमदात्तस्या / निर्गश्चित्तपत्तनात् // गी. // 72 // फक्त शरीरथीज जेदवाळा, परंतु हृदयथी एकरूप थयेला एवा तेज बन्नेना नदया स्तना छानविनानाज केटलाक दिवसो पसार थया. // 13 // हवे एक वखते प्रेमकलहने प्रसंगे मनोहर स्वर्णसरखी कांतिवाळी ते कमलापते तेणे कडं के, घरे वसंततिलका! तुं अति कोपा. यमान न था? // 14 // एवी रीते (धम्मिलना मुखथी निकळेला ) वसंततिलकाना नामने अ. त्यंत गुस्से थयेली ते कमला विजळीनो गोगे पडवासरखं दुस्सह मानवा लागी. // 55 // क्रो. धथी नत्पन्न थयेली शरीरनी लालाशना मिषथी भर्तारपरना रागे तेणीना चित्तरूपी नगरमांथी | निकलीने बहार पमाव नाख्यो. // 76 // पनी हृदयमांथी हारने तोडतीथकी तथा हाथरूपी पल्ल PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // 16 // त्रोटयंती हृदो हारं / धुन्वती पाणिपल्लवं // किरती रोषहुंकारान् / सोपालंजत धम्मिलं // .... // // चिरं स्वचित्तमौ या / त्वया धूर्त निधीयता // तदाविःकरणे तेऽद्य / रसना पिशुनाय ते // 70 // यन्मया रमसे धूर्त / व्यवहारः स केवलं // तत्वतो वसति स्वांते / वसंततिलका तव 663 // // ज्ञातोऽसि हदि तामेव / न्यस्य मां रमयन्नसि // तदेवं नापसे यस्मा -दुझारो नक्तसं. निनः // 70 // वृथैव नार्यो निंद्यते / ग्रंयकारैः पुरातनैः // निंदाास्तु नरा एव / येषु युष्माहवोने कंपावतीयकी अने क्रोधथी हुंकारा करतीयकी ते धम्मिलने ठपको देवा लागी के, // 7 // अरे! धूर्त ! पोताना चित्तरूपी मीमां जेणीने तें निधाननीपेठे राखी मेली हती, तेणीने प्रगट करवामां बाजे तारी जीभेज चाडी खाधी जे. // 70 // वळी हे धूर्त : तुं मारीसाथे जे रमे , ते तो केवल व्यवहारमात्रज ने, परंतु तत्वथी तो तारा हृदयमां वसंततिलकाज वस) रही जे. // // हवे मने मालुम पड्युं के हृदयमां तो तेणीनेज चिंतवीने तुं मारीसाथे रमे , अने तेथीजया. म बोले , केमके जोजनसरखो उटकार आवे . // 7 // पुरातन ग्रंथकारो स्त्रीजनी फोकट| ज निंदा करे , निंदालायक तो पुरुषोज , के जेजमां ताराजेवा बुचाउनो समावेश थाय | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धम्मि- शाः शमः // 70 // जज तामेव सुनगां / मया कितव किं तव // इत्युक्त्वा यावकार्येण | सा / पादेन जघान तं / / 71 // ये दृप्ता ये सदाचारा / ये च नारदमा अवि // स्त्रीनिस्तेऽप्यनियंते / रश्मिन्निवृषणा श्व // 7 // महेला अवहीलंति / मार्दवत्राजिनं जनं // आरोहंति तरोर्मूर्ध्नि / 664 पश्य वख्यः क्षमावः // 3 // वर्षत्युग्रं बाणजातं / पार्णिघातं प्रकुर्वती // न चाटुनिरपि प्राप। शांति सारिचम स्वि // 4 // निंदन्नामांतरोभार–व्यसनां रसनां निजां // हसन्नतः प्रियाघाटये / बे. // // माटे अरे बुच्चा! तेज सुजगाने हवे तुं जज? मारीसाथे तारे शुं प्रयोजन ? ए. म कहीने पळताथी नींजेला पगवडे तेणीए तेने लात मारी. // 71 // जे पुरुषो या पृथ्वीमां अहंकारी, सदाचारी तथा जार उपामवामाटे पण समर्थ डे, तेन पण दोरीजथी जेम बढ्दो तेम स्त्रीनथी पराभव पामे . / / 72 // कोमळता धरनारा पुरुषने स्त्रीज पजवे , जुन के पृथ्वीमांथी उत्पन्न थयेला (दमावाळा ) वृदाना बेक मथाळापर वेलमी चडी जाय . // 3 // (दु. र्वचनोरूपी) नयंकर बाणोने वरसती तथा पाटु मारती एवी शत्रुनी सेनानीपेठे ते कमला ध. म्मिलना कालावालाथी पण शांत थ नहि. // 4 // हवे ते धम्मिल बीजं नाम लेवाना व्यस P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- गृहादथ स निर्ययौ // 5 // नित्यमंतर्बलत्कृष्णा-गुरुवासितदिग्गणं // निशांते सोऽविशत्ति चि-नागौकः श्रीपथांतिके / / 76 / / नागदेवं स वंदित्वा / निविष्टो विष्टरे पुरः // अंतश्चित्तं प्रि. यावृत्तं / यावख्यायन् स तिष्ठति // 7 // ससखीका कनी कापि / तावत्तत्राययौ प्रगे // बोधयंती 665 | स्मरं सुप्तं / यूनां पादांगदखनैः / / // धनागा नागमत्यर्च्य / सा यावद्योजितांजलिः // वरदा हे वरं देहि / वरदेहविगासुरं // 7 // अथ तदीदाणोत्पन्न-पाणिग्रहमहाग्रहः // धम्मिलः प्रा. नवाळी पोतानी जीनने निंदतोथको तथा अंतःकरणमां स्त्रीनी धृष्टताने हसतोयको घरमांथी निकळी गयो. // 5 // हमेशां बळता कृष्णागुरुथी सुगंधी थयेल दिशासमुहवाळा अने राजमार्गः मां रहेला एवा कोश्क नागदेवताना मंदिरमां ते परोढीये दाखल थयो. // 6 // पगे ते नागदेवने वांदीने अगाडी बासनपर बेशीने मनमां स्त्रीन पाचरण चिंतवतोयको जेवामां बेठगे ने तेवामां // 7 // प्रनातमां कांकरना शब्दोथी युवानोना सुतेला कामदेवने उगमतीथकी कोइक कन्या सखीनसहित त्यां यावी. // 1 // ते निष्कपटी कन्या नागने पूजीने हाथ जोडी ए. वी रीते मागवा लागी के हे वरदान आपनारा नागराज! मने तुं उत्तम शरीरथी देदीप्यमान वर ) P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म | ह कल्याणि / सिधास्तव मनोरथाः॥ 50 // पश्यंती चलितग्रीवं / सैकताना तमुत्तमं // अमंस्त | सार्थ | स्मरचौरेण / हियमाणं मनोऽपि न // 1 // सोऽपि तां लोपिताशेष-सुरूपप्रमदामदां // वीदयानल्पविकल्पाली-तल्पशिल्पित्वमाश्रय 666 / त् // 7 // यस्या वर्मणि सौलाग्य-रूपस्नेहत्रिवेणिके // तीर्थे निमज्ज्य मे युक्तं / नेजे दृ. 1 गनिमेषतां // 3 // कमलायाः पदस्तस्य / नई नवतु रिशः // मया यदीयसंसर्ग-निर्गतेनेय. आप? // नए // हवे तेणीने जोवाथी नत्पन्न थयेल ने विवाह करवानो महान अाग्रह जेने ए. वो ते धम्मिल बोब्यो के हे कल्याणि! तारा मनोरथो तारे सिह थयेलाज समजवा. // 50 // त्यारे पा वाळीने ते उत्तम धम्मिलने एकी नजरे जोती एवी ते कन्या कामदेवरूपी चोखडे हरातां ( पोताना ) मनने पण न जाणवा लागी. // 1 // ते धम्मिल पण लोपेल ने सर्व उत्तमरूपवाळी स्त्रीननो मद जेणीए एवी ते कन्याने जो श्ने अनेक विकल्पोनी श्रेणिरूपी शय्याना शिल्पिपणानो धाश्रय करवा लाग्यो. // ए२ // सौ. | जाग्य रूप थने स्नेहरूपी त्रिवेणीवाळां था. कन्याना शरीररूपी तीर्थमां स्नान करवाथी मारी दृष्टि | P.P.AC. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- मैदयत // 4 // तस्याः कोपोऽपि दृष्ट्यास्याः / स्पृहणीयो ममानवत // धनवृष्ट्या निदाघस्य / / की बुकाकुल श्वानिलः // 55 // कमला कुपितेयं च / दर्शिता विधिनैव मे // सिचिसूचक एवा लं / बिद्रपातनपूरणे // 26 // तां सोऽररिसदृक्पा -पुटोद्घटनशालिना / प्रवेश्य चकुरेण / 667 मनोवेश्मन्यवीविशत् / / ए // बाला वायत्यशालाथ / जगौ निर्व्याजगौरखा // त्वं कः पंकजसने जे अनिमेषपणाने प्राप्त थ ते युक्तज. // 3 // कमलाना ते पगर्नु पण घा[ज कल्याण थाज? के जेना संगथी निकळेला एवा मने या कन्या नजरे पमी. ॥ए। // वळी जेम खूथी न. रेलो ननाळानो वायु वरसाद लाववाथी मनगमतो नीवडे , तेम तेणीनो गुस्सों पण थाने जोवाथी मने मनोवांछित थापनारो थयो. // 55 // कमला जो गुस्से थर तो विधाताए मने श्राने देखामी, माटे पडेलां निद्रने सांधवामां सुयो सूचवनारज प्रशंसनीय . // ए६॥ अर्गलासरखी पापणोना उघडवाथी खुल्लां थयेलां चक्कुरूपी दारवडे प्रवेश करीने ते तेणीना मनरूपी मेंदिरमा दाखल थयो. // 7 // हवे उगंग्लापणानी शालासरखी अने निष्कपट गौरववाळी ते बालिका बोली के हे कमलसरखां लोचनवाला तुं कोण गे? तथा क्याथी आवेल गे? // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मित्र / कुतो वा समुपागमः // // धम्मिलोऽहं समायातः / कुशाग्रपुरपत्तनात // त्वं च निर्वचने / मा कासि / पृष्टे तेनेति सावदत् // एए // आर्य पुर्यामिहैवास्ति / वास्तव्यः सव्य तिनुः // सार्थवा | हो नागवसु-नागश्रीस्तस्य वल्लागाः॥ 3100 / / अंगजास्मि तयोरेषा / नागदत्तेति नामतः // स. 660 दात्र नागमन्यय॑ / याचे श्रीपीवरं वरं // 1 // ददे देवेन तुष्टेना-धुना मम नवान् पतिः // 3. त्युक्त्वा तां गतां गेह-मुवोष विरहानलः // // ततः सखीन्यो विज्ञात-वृत्तांतौ पितरौ सुतां / / (त्यारे ते बोल्यो के ) मारूं नाम धम्मिल , तथा हुं कुशाग्रनगरथी श्राव्यो.. वळी हे निष्क पटी! तु कोण ? एम तेने पूज्याथी ते बोली के, // // हे थार्य ! बाज नगरमा घणी स. मृधिवालो नागवसु नामे सार्थवाह रहे , तेनी नागश्री नामनी स्त्री . // 3100 // अने ते. उनी था हुं नागदत्ता नामनी पुत्री बु, तथा हमेशां यहीं नागदेवने पूजीने धनयी पुष्ट थयेला वरनी याचना करुं बु.॥ 1 // बाजे या देवे खुशी थश्ने मने तुं स्वामीतरीके आपेलो बुं, ए. म कही घेर गयेली एवी तेणीने विरहामि वाळवा लाग्योः // 2 // पनी ते वृत्तांत सखीनपासेयी | जाण्याबाद तेणीना मातपिताए पोतानी ते पुत्रीने महोत्सवपूर्वक धम्मिलसाथे परणावी. // 3 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। पर्यणाययतां तेन / महोत्सवपुरस्सरं // 3 // यस्ति तत्र महीगर्तु-स्तनया कपिलानिधा // यस्या / | निर्व्याजमाजन्म / सौहृदं नागदत्तया // 4 // शुश्राव सा वयस्यायाः। पाणिग्रहमहोत्सवं // नारी हृत्तिमिबंधे च / धीवरं धीवरं वरं ( ? ) // 5 // स एव मे वरो नया-यस्या किं च चिंतया // ६६ए। इति सा पितरौ प्रीता / स्वयंवरमयाचत // 6 // ततः पुत्र्यै कृते भृत्यैः / स्वयंवरणमंझपे // दात्रे. ज्यपुत्रानाहूय / नृपो मंचानऋषयत // 7 // अतृप्तः स्त्रीषु यःश्री-ष्विव नृपः शुनासने // न्यषीहवे ते नगरना राजानी कपिला नामे पुत्री ने, के जेणीने नेक जन्मथी ते नागदत्तासाथे नि. एकपटी मित्राने. // 4 // तेणीए पोतानी ते सखीना विवाहनो तथा स्त्रीनना हृदयरूपी मत्स्य ने बांधवामां धीवरसरखा अने नत्तम बुध्विाला एवा तेणीना स्वामीनो वृत्तांत सांजव्यो. // 5 // हवे मारो तेज वर थान ? घणी चिंतानी शी जरुर ? एम विचारीने तेणीए खुशी थश्ने पो. ताना मातपितापासे स्वयंवरनी मागणी करी. // 6 // पनी पुत्रीमाटे राजाए नोकरोमारफते स्वयंवर मंझप रचाव्यो, तथा दात्री बने शाहुकारोना पुत्रोने बोलावीने त्यां खुरशीनने शोभावी. // // 7 // घणां धनथी जेम राजा तेम स्त्री थी तृप्त नहि थयेलो एवो ते धम्मिल पण त्यां या. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म | दवम्मिलोऽप्येत्य / तत्र देवकुमारवत् // 7 // तदा राजसुतारूढा / नृविमानममानरुक् // वयस्याः सार्थ | हस्तविन्यस्त-वरमालाविनुषणा // // वर्षामान प्रतिहायों-वगणय्य गणं नृणां // वृत्तं प्राग्म नसा वने / धम्मिलं वरमालया // 10 // महा नृपतिः सादी-कृत्य स्वजनममलं // तयोरची करचार-पाणिग्रहमहोत्सवं // 11 // धम्मिले दृढसौहार्दै / भावुकत्वममन्यत // रविसेनः सिता. | दोद -क्षेपं निष्पन्नपायसे // 15 // श्तश्च प्राणितप्राये / गते प्राणप्रिये गृहात् / / सा शून्यमिव वीने देवकुमारनीपेठे शुभ आसनपर बेठो. // 7 // त्यारे ते अति कांतिवाळी राजपुत्री पण मा. सोए जंचकेली पालखीपर बेशीने तथा सखीना हाथमां वरमाला पापीने त्यां यावी. // // पनी प्रतिहारीथी वर्णन कराता माणसोना समुहनी अवगणना करीने प्रथमज मनथी वरेला ते धम्मिलने वरमालाथी ते वरी. // 10 // पनी राजाए स्वजनममलनी सादीए मोटी समृध्यिा ते. जनो मनोहर विवाहमहोत्सव को. // 11 // दृढ मित्राश्वाळा धम्मिलना बनेवीपणाने रविसेन तैयार थयेला दूधपाकमां साकरना मेलापसरखं मानवा लाग्यो. // 15 // हवे घरमांथी पोताना | प्राणसमान नरिना गयावाद ते कमला सघयं शून्यनीपेठे मानतीयकी शोक धरवा लागी // बा.क.सा. कोवा PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः मन्वाना / कमला शुचमादधौ // 13 // श्रतिचक्राम सा शेषं / निशः क्लेशेन यसा // विरह. व्यथिता बाला / श्रांतः पांथ श्वाध्वनः // 14 // गलदश्रुजलक्विन्न-नयनांजनयोगतः / / मुखमा लिन्यमन्यस्तं / दधाना विललाप सा // 15 // मया नमः सुधाकुंगो / मया दग्धः सुरफुमः / / मया च चूर्णितश्चिंता-मणिर्यत्प्रोषितः पतिः // 16 // यत्प्रसादाधमय न / शिरोदानेऽपि हीयते // पदा पदातिवदहं / हहा नाथ तमस्पृशं // 17 // रुष्टा तुष्टा च जाताहं / स तु तुष्टः सदाभवत् / // 13 // मार्गथी थाकेला पंथीनीपेठे विरहथी दुःखित थयेली ते बालिकाए रात्रिनो बाकीनो जाग घणा क्लेशथी व्यतीत को. // 14 // गलता अश्रुजलथी भींजाएली अांखोमाथी निकल. ता अंजनना संयोगथी शीखेलां मुखमालिन्यने धारण करतीथकी ते विलाप करवा लागी के, // 15 // अरे! में जे पतिर्नु अपमान कर्यु तेथी में अमृतनो कुंन जांगी नाख्यो, कल्पवृक्षाने बाळी मेल्यो, तथा चिंतामणिरत्ननो चूरो करी नाख्यो. // 16 // जेनी कृपाना करजथी मस्तक देतां पण हं बुटुं नहि ते पतिने पण अरेरे! में नोकरनीपेठे पगथी स्पर्श कर्यो ! // 17 // रे तो रोषवाळी पण थ बु, तेम संतोषवाळी पण थ बुं, परंतु ते तो हमेशां मारापर संताप / PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म। // रात्रिः श्वेता च कृष्णा च / दिवसस्त्वेकरूपञ्चाक् / / 10 / / प्राग्वनव नृषु द्वेषः / प्रिये कोपनता मा ततः // ततो भर्तृवियोगश्च / धिग्मां दुःखमयीं सदा // 17 // यदा संनिहितः सोऽनु तदा दा. वायितं रुषा // रोषे क्षीणे वियोगश्च / चर्तुः संवर्तकायते // 20 / / पादं निमि किं वाभि / वि. 672 | पं वाथ नजे चितां / / इति चिंताशताक्रांता / नैषीद् अःखेन सा दिनान् // 21 // अयस माप जामाता / सशंगारं मतंगजं // आरूढः पुरि बत्राम / पौरश्रीवीक्षणोद्यमी // // कपिलाश्लिष्ट थयो , केमके रात्री तो श्वेत तथा श्याम पण होय बे, परंतु दिवस तो एकरूपवादोज होय जे. // 17 // प्रथम तो मने पुरुषोपते द्वेषज थयों हतो, बने पडी प्रियतमप्रते हुं कोपायमान थ, अने पछी मने गरिनो वियोग थयो, माटे सदानी दुःखणी एवी मने धिक्कार . // 15 // ज्यारे ते मारी नजदीक हतो, त्यारे क्रोधयी हुं दावानलसरखी थ पडी हती, अने ज्यारे मारो कोध शांत थयो त्यारे स्वामिनो आ वियोग वंटोळीयासमान थ पड्यो . // 20 // शं या मारो पग हुँ कापी ना? अथवा फेर खालं? के चितामां बळी मरूं? एवी रीते सेंकडोगमे चिंता थी | दवाश्यकी ते दुःखे दिवसो कहाडवा लागी...॥ 11 / / हवे ते धम्मिल राजानो जमा थवाथी / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- वामांगो ऽनुगतोऽनेकसेवकैः // श्रीकरिनिकरपस्त-विश्ववैवस्वतातपः // 23 // वरिषणरुग्धाः | म / भ्रामयन् नामिनीमनः // स संचरन गृहदारं / कमलाया नपेयिवान् // 24 // तज्ज्ञात्वा त्व रितं स्नात्वा / दधाना शुध्वाससी // हस्तात्तवर,गारा / कमला निरगाद्गृहात् // 25 // प्रदक्षिण६७३ | य्य तं नाथं / दत्तार्घा सस्मितानना // हस्तेनालंब्य सा निन्ये / धम्मिलेन निजांतिकं // 16 // , ततः प्राप्तनृपावासो / वधूत्रयसमन्वितः // धनुनक्सततं सौख्य-मसौ दयपराङ्मुखं // 17 // शणगारेला हाथीपर चडीने नगरना लोकोनी शोना जोवामाटे नगरमां नमवा लाग्योः // 2 // कपिला तेने माबे पमखे बेठी , अनेक सेवको तेनी पाउल चाली रह्या , तथा जत्रोना समहथी सूर्यनो सर्व ताप दूर करायेलो . // 23 / / घणा बाजूषणोनी कांतिवाळो तथा स्त्रीनना मनने चलायमान करतोयको ते धम्मिल चालतो चालतो कमलाना घरना द्वारपासे आव्यो..॥ // 24 // ते जाणीने तुरत स्नान करी शुछ वस्रो पहेरीने तथा हाथमां उत्तम कारी लेश्ने कमला घरमांथी बहार आवी. // 25 // परी पोताना स्वामीनी प्रदक्षिणा देने तेणीए हसते चहेरे अर्घ्य दीधुं, त्यारे धम्मिले पण तेणीने हाथ फालीने पोतानीपासे लीधी. // 16 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- केनापि मापतेः पर्ष–निषणस्यान्यदा हयः // जुबैरुचैःश्रवोगर्व / खर्वयन् प्राभृतीकृतः // // सार्थ विजितो येन वेगेन / सारंगः सारगाम्यपि // सिषेवे वाहनत्वेन / रंहोऽध्येतुमिवानिलं // // // अनन्यासवशान्मा मा-मेष जैषीत्तुरंगमः // श्तीव पवनो नित्य-गतित्वं प्रत्यपद्यत // 30 // ये६७४ | न खवेगेन जितो गरुत्मा-नपि प्रपन्नः पुरुषं पुराणं // प्रायो धियां धाम नवंति वृथा / इत्याशया बुधिमिव गृहीतं // 31 // दत्तकुंकुमहस्तस्य / कृतनीराजनाविधेः // श्रदीयतार्वतस्तस्य / पृष्टे पजी राजभवनमां जश्ने ते तणे स्त्री सहित हमेशां ते अदय सुख भोगववा लाग्यो. // // 17 // हवे एक दिवसे सन्नामां बेठेला राजाने कोश्क माणसे इंद्रना घोडाना गर्वने पण जीतनारो एक घोडो जंचेप्रकारे नेट को. // 20 // चपल गतिवाळो हरिण पण जेना वेगथी जी. तायोथको जाणे वेगनो यन्यास करवामाटे होय नहि तेम पवननो वाहनरूप थने तेने सेववा लाग्यो. // 20 // अभ्यासविना कदाच मने या घोडो जीती न जाय तो ठीक, एम विचारी. नेज जाणे होय नहि तेम पवने तो नित्यगतिपाणुंज स्वीकार्यु जे. // 30 // प्रायें वृछ मनुष्यो बु. | हिना स्थानसरखा होय , एवी आशाथी जाणे बुधि लेवामाटे होय नहि तेम ते घोडाना वे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- पढ्ययनं बुधैः // 32 // वाहं वैदारिक वेषं / दधानः दमामृदाझ्या / पुष्पापूरितधम्मिलो। धम्मि| लोऽप्यारुरोह तं / / 33 / / वाजी स वाजमव्याज-मारन्य कशया हतः // प्रखरस्वखुरखुमं / तो. णेरप्यस्पृशन् रजः // 34 // त्वरयोत्तेरितां धारा-मधिरूढः स पंचमीं // पश्यतोऽपि जनवातात् / 675 दणाद् दूरीचकार तं // 35 // न स नागो महांगो वा / नाश्वो नाश्वतरश्च सः // यस्तं जेतुमिवा गथी जीतायेलो गरुड पण पुराणपुरुषपासे एटले विष्णुपासे गयो बे. // 31 // यापेल ने कुंकु. मना हाथा जेनापर, तथा उतारेल धारती जेनी एवा ते घोडानी पीठपर चतुर माणसोए प. लाण नाख्यु. // 3 // हवे राजानी झाथी मुसाफरनो वेष धारण करीने तथा पुष्पोथी पोता. नो चोटलो गुंथीने ते धम्मिल ते घोमापर चड्यो. // 33 // पनी चाबुक मारवाथी ते घोडो प्रकटीते वाजमां श्रावीने पोतानी कठोर खरीथी नखडेली पृथ्वीनी रजनो पण स्पर्श नहि करतोय. को, // 34 // ऊमपथी जोरमां यावेली पांचमी धारागतिने प्राप्त थयोथको जोता एवा लोकोना समुहथी ते धम्मिलने दाणवारमां दूर ले गयो. // 35 // एवो कोश हाथी, उंट, घोमो के ख. |चर नहोतो के जे तेने जीतवामाटे दोडता एवा ते घोडानी पाउळ दोमी शके. / / 36 / / समस्त P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- वैतं / धावंतमनुधावति / / 36 // निखिलं मातलं. धारा-धिरुटमिव दर्शयन् // अशरण्यामरण्यासाई | नी-मनयघम्मिलं यः // 37 // स्थितं तत्र नदीतीरे / स्वयं श्रांततया हयं // स मृदौ जुवि नि मुक्त-पर्याणं तमवेल्लयत // 30 // परितः सरितं सूरा-प्रणीः कनकवाझुकां // स ब्रमन्नव्रमुखामि-लीलया लंबितं तरौ // 35 // निविष्टानेकरत्नौष—करनिच्चरितत्सरं // वनश्रीवेणिसंकाशं / | खममेकमलोकत // 40 // युग्मं // कृपाणं पाणिनादाय / स कोशानिवासयत् // वंशस्तंबे च तं पृथ्वीतल जाणे तेनी गतिपर चडयुं होय नहि तेम देखामतोथको ते घोमो ते धम्मिलने एक निराधार वनमां ले गयो. // 37 / / पछी एक नदीकिनारे थाकीने पोतानी मेळेज नन्ना रहेला ते घोमानुं पलाण तारीने तेने कोमळ मिपर ते फेरखवा लाग्यो. // 30 // पनी ते सुनटशि रोमणि धम्मिले सोनेरी रेतीवाळी ते नदीनी यासपास ऐरावण हाथीनीपेठे नमताथका वृक्षपर लटकावेली, // 30 // तथा जडेला अनेक रत्नोना समुहना किरणोथी वृदने पण तेजस्वी कर नारी, अने वनलमीना चोटलासरखी एक तलवार दीठी. // 40 // पनी ते तलवारने तेणे हाथमां लेने म्यानमांथी बहार कहाडी, अने तेना तीक्ष्णपणानी परीदामाटे तेणे तेने वांसोनी. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि तैदण्य-परीदार्थमवाहयत् // 41 // एकेनैव स घातेना-नित् षष्टिं तृणध्वजान // भेतुं सिंहस्य | का वेला / करिकीकसपिंजरं // 42 // नुवन्नसेनिशातत्वं / गणयंश्विनकीचकान् // प्रदक्षिणय्य वं. 4 शाली / यावतुमियेष सः / / 43 // 647] नरमं पृथग्मुं। पतितं तावदैवत // अंतर्वशीकुमंगस्य / वह्निकुंमं च दीप्तिमत् // 4 // अहो मया नरः कोऽपि / तपस्यन् विजने वने // द्विधापि कालरूपेण / खनानेन चिबिदे // काडीपर चलावी जो. // 41 // त्यारे एकज घाथी तेणे साठ वांसोने बेदी नाख्या, केमके सिं. हने हाथीनु हामपिंजर भेदतां केटली वार लागे? // 42 // पजी ते तलवारना पाणीनी प्रशंसा करतोथको तथा बेदेला वांसोने गणतोयको ते वांसोनी जामीनी आसपास थश्ने जेवामां ते जावानी श्बा करवा लाग्यो, // 3 // तेवामां तेणे बेदाश्ने जूदा पडेला मस्तकवायूँ एक माणसन धड त्यां पडेबु जोयु, तेम ते वांसनी कामीनी अंदर एक बळतो अमिकुंड पण तेणे जोयो. // 44 // अरे! में या निर्जन व. नमां तप तपता कोश्क पुरुषने बन्ने प्रकारे कालरूप एवा था खगथी बेदी नाख्यो! // 45 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म // 45 // हहा मया नरममं / निरागसमभिन्नता // मकरख्यालगृध्राणां / पंक्तौ वात्मा न्यवेशयत् मा | // 6 // किं तीदणत्वेन शस्त्रस्य / किं वा प्राणेन तेन मे // यतो निर्मतुजंतूनां / नवेदेवंविधो वधः // 4 // निषिछोऽनर्थदंमोऽयं / गेहिनामहतोचितं // यस्मान्नृघातजाता मे / कालिमाभव६७० दाजवं // 4 // इत्युल्लसत्कृपाईण / निंदन्नात्मानमात्मना // गबन पुरो निरैदिष्ट / वापी तत्र म | हावने // 4 // यदंतः स्वादुतां धत्ते / वारि विश्वातिशायिनी // पातालस्थसुधाकुंम-प्रत्यासत्त्येव अरेरे! या निरपराधी माणसने मारीने में मारा श्रात्माने मगर, सर्प तथा गीधनी पंक्तिमां मे व्यो! // 46 // शस्त्रनुं ते तीक्ष्णपणुं पण शुं कामर्नु? तथा मारा ते प्राण पण शुं कामना? के जेथी यावी रीतनो निरपराधी प्राणीननो वध थाय. // 4 // अरिहंतप्रभुए गृहस्थीनने जे श्रा अनर्थदंम निषेध्यो ने ते उचितज , केमके आयी तो बेक जीवितपर्यंत मारापर माणसनुं खून करवानुं कलंक श्राव्यु. // 4 // एवी रीते नवसायमान थयेली दयाथी बार्ड थयेला आत्मा थी पोताने निंदतांथकां तथा पागल चालतांयकां तेणे ते महान जंगलमा एक वाव दीठी. // | // 4 // ते वावमा नरेछ पाणी पातालमा रहेला अमृतकुंमना सहवासथी जाणे होय नहि ते. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6AU धम्मि- संभृतं // 20 // यद्यदानीयते पार्श्वे / तत्तदंतर्निरीक्ष्यते // इति या सर्ववस्तूनां / दधात्याकारतामि व // 51 // तत्तीरेऽपश्यदेकां स / कन्यां वापीमिवापरां // स्मेरांनोजमुखी ब्रांत -चूलतां दृक्तरंव | गिणीं // 5 // किमियं जलदेवीति / तस्य चेतसि संशयं / साजिनवि संक्रांतैः / पात्रांति | प्रदैः पदैः / / 53 / / अन्युपेत्य च सा तेने / तेनेत्यालापगोचरा // श्रीविकासिनि कासि त्वं / कु तो वा किमिहागमः // 14 // सापि प्रीतिफलैर्नत्र-जलैरर्घ वितन्वती // खंडयंती गिरा खंगम लोकोत्तर स्वादने धारण करतुं हतुं. // 50 // जे जे तेनी पासे लाववामां आवतुं हतं, ते ते अंदर देखातुं हतुं, अने एवी रीते ते वाव जाणे सर्व वस्तुनो आकार धारण करती हती. // // 51 // ते वावने किनारे तेणे प्रफुल्लित कमलसरखां मुखवाळी, चलायमान भृकुटीरूपी लतावाली तथा दृष्टिरूपी मोजांनवाळी जाणे बीजी वाव होय नहि एवी एक कन्याने दीठी. // 5 // शुं या जलदेवी होशे? एवी रीते तेना मनमां उत्पन्न थयेला संशयने तेणीए कमलनी भ्रांति उपजावनारां पृथ्वीपर संक्रांत थयेला पोतानां पगलांनथी दूर कयों. / / 53 / / पनी धम्मिले पासे जश्ने तेणीने वोलावी के हे शोभाथी विकस्वर थयेली! तुं कोण बु? अने क्यांथी यहीं या. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- रसं खं वृत्तमब्रवीत् // 55 // शृणु वैताब्यनामास्ति / गिरिौरतरयुतिः // चारतानां जिनेंद्राणां / / साई यशःपुंज श्वांगवान् // 26 // नीलवृदादारश्रेणि-रौप्यपत्रमिव ध्रुवं / / यो युगांतदणदीण-नर बीजाप्तये बभौ // 17 // मुख्योऽखिलेषु शैलेषु / भारतेषु बनार यः // सिघस्यायतनं रत्न-कि१०० | रीटमिव मूनि // 27 // तत्रास्ति दक्षिणश्रेणेः / श्रियं विश्राणयत्पुरं / सारं शंखपुरं शंख-सहः वी बं? // 55 // सारे ते पण प्रीतिरूपी फलोथी तथा अश्रुरूपी जलथी तेनी पूजा करतीथकी. अने वाणीथी खांमना रसने पण जोततीथकी पोतानुं वृत्तांत कहेवा लागी के, // 55 // सांजळ? जरतक्षेत्रमा उत्पन्न थयेला जिनेंडोनो जाणे देहधारी यशनो समुह होय नहि एवो अति. श्वेत कांतिवाळो वैताब्य नामे पर्वत . // 56 // लीलां वृदोरूपी अदरोनी श्रेणिवार्धा जाणे शा. श्वतुं रुपानुं पतरं होय नहि तेम युगांतवखते नष्ट थयेला मनुष्यरूपी बीजनी उत्पत्तिमाटे ते शो. नंतो हतो. // 57 / / भरतक्षेत्रना सघळा पर्वतोमा मुख्य एवो ते पर्वत पोताना मस्तकपर रत्नना मुकुटनीपेठे सिहायतनने धारण करतो हतो. // 27 / / त्यां दक्षिणश्रेणिनी शोगाने धारण करनारं तथा शंखसरखा गुणवाळा माणसोना समुहवाईं शंखपुर नामे मनोहर नगर . // 25 // PP A Guinzainas ir MS Jun Gun Aaradhak Trust Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 601 धम्मि- गुणजनव्रजं // 55 // नराणां व्योमचाराणां / यत्सौधेषु ध्वजांचलैः // वातोधूतैरयत्नेन / दीयः | ते वर्त्मनः क्वमः // 60 // पाति पातकनिर्मुक्त लोकमन्युदयि जयि // तत्पुरं पुरुषानंदो। पा. लो विजयी जय। / / 61 // समरे वैरिकाकोला / अरिष्टफलगोगिनः // यस्यासिदंरमुजीर्ण / वी. याय्यं तत्यजुर्न के // 6 // श्यामलास्य प्रिया कामोन्मत्तपुत्रो यथार्थकः // विश्रुते हे सुते विद्यु-न्मती विद्युल्लता तथा / / 63 / / धर्मघोषयतिव्योम-गतिर्मुनिजनप्रियः // मूर्ती धर्म वा ते नगरना महेलोपर रहेली थने वायुथी नडती ध्वजानना डाथी आकाशगामी माणसोनो | मार्गनो थाक कई पण प्रयासविना दूर थाय बे. // 60 // पापरहित लोकोवान अभ्युदय तथा | जयवाळा एवा ते नगरनुं यन्युदय तथा जयवाळो पुरुषानंद नामे राजा रदाण करे बे. // 61 // रणसंग्राममां सुःखरूपी फल जोगवनारा शत्रुनरूपी कया कागडान तेनी तलवाररूपी दंडने न. गामेलो जोश्ने न नाशी गया ? // 6 // तेने श्यामलानामे राणी हती, तथा कामोन्मत्त नामे यथार्थ पुत्र हतो, तेमज विद्युन्मती अने विद्युल्लता नामे बे पुत्रीन हती. // 63 / / एक दिवसे | ते नगरना उद्यानमा अाकाशगामी तथा मुनिजनोमां प्रिय थयेला जाणे देहधारी धर्म होय न | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि| ध्यस्त / तत्पुरोधानमन्यदा // 64 // मुनि विवंदिषुर्जप-स्तत्रागात्सपरिबदः / नत्वा नृपे निविष्टे / च / विदधे देशनां मुनिः // 65 // सदानंदमयी मुक्ति-नगरीमाप्तुमुत्सुकाः // लिलंघयिषवो यूयं / जना यदि नवाटवीं // 66 // दानशीलतपोजावै–श्चतुर्भिश्चरणैः श्रितं // निषेधविधिसत्पा. ई-मत्पुरस्कृतवालधिं // 67 // वाग्रोधपट्टकाबह-गुरुगंभीरतोदरं // विवेकसुमहत्पृष्टं / विनय | स्कंधबंधुरं // 67 // मूलोत्तरगुणग्राम-स्फुरत्केसरमालिकं // सम्यक्त्वशीर्षमुत्सर्गा-पवादश्रुतिया| हि एवा धर्मघोष नामे मुनि पधार्या. // 64 // ते मुनिने वांदवानी हाथी राजा त्यां परिवारस हित गयो, तथा नमीने ते राजा बेगबाद मुनि धर्मदेशना देवा लाग्या के, // 65 // हे लोको! जो तमो हमेशां थानंदवाळी मुक्तिनगरीमां जवाने नत्सुक थया हो, तथा जो था संसाररूपी वनने जलंगवाने श्यता हो, // 66 // तो दान, शील, तप अने जावरूपी चार पगोवाळा, निषेध अने विधिरूपी बे पमखांवाळी आगळ धरेती लगामवाळा, // 67 // वचनगुप्तिरूपी तंगधी बां. घेला महागंजीरतारूपी जदरवाळा, विवेकरूपी मोटी पीठवाळा, विनयरूपी स्कंधथी शोजीता थये. | ला, // 67 // मूलगुण अने उत्तरगुणना समुहरूपी स्फुरायमान थयेली केशवाळीवाळा, सम्यक्त्व P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिा मलं // 65 // निःसंगसंगतिप्रोथ-महिंसारसनोदयं // प्रशांतिकविकाश्लिष्ट-दाणामिषतपोमुखं // 10 // वयंसाहससौवर्णा-भरणं तेजसोटवणं // सध्यानवपर्याणं / हृष्यत्स्वाध्यायहेषया // 1 // नजध्वं श्रुतवटगात-श्वरत्सरलवमनि // गुरुराजार्पितं धर्म-हयरत्नं तजुत्तमं / / 72 // सप्तन्निः 603 कुलकं // इत्युदित्वा स्थिते साधौ / सजा सा धौतकल्मषा // रराज वाहिनीपूर-बुता पुलिन. | वि / / 73 // रूपी मस्तकवाळा, उत्सर्ग अने अपवादरूपी बन्ने कोवान, // 65 // निःसंगतारूपी जमबांवाला, अहिंसारूपी जिह्वावाळा, शांतिरूपी चोकमांथी बांधेला मांसरहित तपरूपी मुखवाळा, // 70 // व. खाणवालायक साहसरूपी स्वर्णना आजूषणवाळा, महातेजवाला, सध्यानरूपी बांधेला पर्याणवाला तथा स्वाध्यायरूपी हेषाखथी खुश थता, // 71 // बने सिघांतरूपी लगामथी सरल मार्गे चा. लनारा गुरुमहाराजे आपेला धर्मरूपी उत्तम अश्वरत्ननो तमो स्वीकार करो? // 12 // एम क हीने मुनिराज मौन रह्याबाद ते सगा पापो धोवायाथी नदीना पूरथी साफ थयेला नदीना तळी | यांनी नमीसरखी शोजवा लागी. / / 73 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि पाले चुपपन्याय / सम्यग्झानधनो मुनिः // श्रनयोर्मम नंदिन्योः / को चावी जगवन् / सार्थ प्रियः // 14 // यः पुत्रहंता पुत्र्योस्ते / स प्रेयानिति साधुना // प्रोक्ते सा रोषतोषाच्या-माश्लि. या स्वगृहं ययौ // 79 // कामोन्मत्तस्ततो विद्या सिझये सोदरीयुतः // अस्या एव तटे नद्या / ចម वरं सौधं विनिर्ममे // 16 // मणिश्रेणिमयं पश्य / तदेतद् दृश्यते पुरः // स्फुटं स्फटिककैलासशिखरस्येव वर्णिका // 77 // मंत्रीज्यखेचरदगाप-वंश्याः षोडश कन्यकाः // मेलयित्वात्र सश्रीका हवे सम्यग् ज्ञानरूपी धनवाला ते मुनिने राणीए पूज्यु के, हे जगवन् ! या मारी बन्ने पु. त्रीजनो स्वामी कोण थशे? // 14 // तारा पुतने जे मारशे ते तारी बन्ने पुत्रीननो स्वामी थ. शे, एम मुनिए कह्याथी ते रोष श्रने संतोष बन्नेयी व्याप्त थश्ने पोताने घेर गइ. // 75 // प. जी ते कामोन्मत्ते पोतानी बहेनो सहित यहीं आवीने विद्या साधवामाटे आज नदीने किनारे एक मनोहर महेल बनान्यो. // 76 / / स्फटिकमय कैलासपर्वतना शिखरना नमुनासरखो अने म जिनी पंक्तिनवालो ते या महेल प्रगट रीते अगाडीना नागमा देखाय , ते तुं जो? // 7 // मंत्री, शाहुकार, विद्याधर तथा राजाना वंशमा उत्पन्न थयेली तथा शोनावाली विद्यादेवीसरखी Jun Gun Aaradhak Trust Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- / विद्यादेवीरिवामुचत् // 7 // श्रीचंद्रा 1 श्रीश्च 2 गांधारी 3 / श्रीसोमा 4 च विचक्षणा / / / श्यना 6 विजया 7 सेना 7 च / श्रीदेवी ए च सुमंगला 10 // // सोममित्रा 11 मित्रवती 15 / श्रीमती 13 च यशोमती 14 / / सुमित्रा 15 वसुमित्राहं 16 / मित्रसेनास्मि षोडशी // 70 // 65 सोऽत्रैव सरितस्तीरे / गहने वंशजालके // धूमपानरतो विद्यां / साधयन्नस्ति खेचरः / / 71 // त पसानेन सिघायां / विद्यायां परिणेष्यति // सर्वा अपि स नो रूप-गर्वखर्वितमन्मथः // 2 // त्वदने यन्मयाजपि / नेदं खमतिकल्पितं // किंतु गोष्टीरसे सवै / तथ्यं मया न्यगद्यत // 3 // शोल कन्याउने एकळी करीने तेणे था महेलमां राखी ने. // 70 / / श्रीचंद्रा, श्री, गांधारी, श्री. सोमा, विचदाणा, श्येना, विजया, सेना, श्रीदेवी, सुमंगला, || Jए / सोममित्रा, मित्रवती, श्री. मती, यशोमती, सुमित्रा, वसुमित्रा अने मित्रसेना नामनी हुँ शोलमी बु. // 70 // वली ते वि. द्याधर यहींज नदीकिनारे वांसनी घाटी कामीमां धूमपानमां रक्त थश्ने विद्या साधे . // 1 // रूपना गर्वथी हरावेल ने कामदेवने जेणे एवो ते विद्याधर aa तपथी विद्या साध्याबाद अमो सर्वने परणशे. // 2 // वली तारीपासे जे हुं या बोली बुं ते कई मारी मतिकल्पनाथी बोली। P.P.Ac.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म तत् श्रुत्वा धम्मिलो दध्यौ / नूनमेष स खेचरः // यो मया चिबिदे लीनों / वंशांतर्वशलीलया / / माई // 4 // ढहा दुष्टदिपेनेव / स मया खनशुंडया // पक्षिणीनामिवैतासां / निनो विश्रामपादपः॥ // 5 // नदिते प्राप्रिये मेधे / मोघिते मरुता मया // विलापिन्यः कलापिन्य / श्व स्थास्यं 606 | | त्यमूः कथं // 6 // विमृश्येति शनैर्विन्य-दिव प्रोवाच धम्मिलः // न तद्घातपापेन / सोऽयं लिप्तोऽस्ति मानवः // 7 // ततः सा शिरसः कंपा-व्यंजयंती मनःशुचं // गद्गदं न्यगदन्नूनं / ब. नथी, परंतु वातना रसमां में सघ साचुंज कह्यं . / / 73 // ते सांगलीने धम्मिले विचार्य के में वांसनी क्रीमाथी वांसनी कामीमां गुप्तपणे रहेला जे पुरुषने मार्यों में, तेज था विद्याधर ने. // 4 // अरेरे! दुष्ट हाथीनीपेठे खारूपी सुंढथी पदिणी सरखी था स्त्रीनो विश्रामवृक्ष में जांगी नाख्यो ! // 5 // था स्त्रीनना स्वामीरूपी मेघने जदय पामतांज पवननीपेठे में नष्ट कर्याथी मयूरीननीपेठे विलाप करनारी या स्त्रीनना हवे शुं हाल थशे? // 6 // एम विचारीने बीकणनीपेठे ते घम्मिल धीमेथी बोल्यो के, हे भ! ते विद्याधरना घातना पापथी या मा एस व्याप्त थयो . // 7 // त्यारे मस्तक धूणाववाथी मननो शोक प्रगट करतीथकी ते कन्या | P.P. Ac. Gunratniasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिा लिनी नवितव्यता || G // धम्मिलोनिदधे बाले / किमेवं खिद्यते वृया // दैवायत्ताः यतः कार्य -सिधिः किं तत्र शोचनैः // जय // साह साहसिकोत्तंस / न मे दुःखं मनागप्रि॥ चलत्यचल चूलेव / किं वाणी झानिनो मुनेः // 70 // यावदेतद्भववृत्तं / खेचर्योपियाम्यहं // तावदत्र प्र. | तीक्षेथाः / सौधमूनि बहक् // 1 // जोत्स्ये रागं मुनिप्रोक्त-प्रियप्राप्त्या तयोर्यदि // रोपयिध्ये पताकां त-द्रक्तां सौधस्य मूनि // ए॥ विरागश्चेत्तयो वी / तदा श्वेतां च तामिति // गदगदकं वोली के खरेखर नवितव्यता बलवान . // 7 // त्यारे धम्मिल बोल्यो के हे बालि. का! हवे तुं फोकट शामाटे खेद पामे बे ? केमके कार्यनी सिधि दैवाधीन , तेमां शोक कर वाथी शुं यवानुं ? || 7 || यारे ते कन्या बोली के हे साहसिकशिरोमणि! मने तो हवे जरा पण दुःख नथी, केमके पर्वतना शिखरनी पेठे शुंझानी मुनिनी वाणी चलायमान थाय ? // ए०॥ हवे हुँ जेटलामां या तारुं वृत्तांत तेनी बने विद्याधरीबहेनोने जणावं त्यांसुधी तारे या महेलनी टोचपर दृष्टि राखीने यहीं राह जो बेश. // 1 // मुनिए कहेला खामीनी प्राप्तिथी | जो हं तेनने खुशी थयेली जोश तो था महेलना शिखरपर हुं लाल रंगनी धजा चमावीश. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ isruseupeley unsunr "Swunseumesunavad धाम्म- वदंती सा विवेशांतः / प्रासादं सादरैः पदैः // ए३ // स चातक श्वोत्पश्यो-ऽपश्यत्सौधाग्रलंबितां सार्थ | // सितां पताकां वैराग्य-वार्षिफेनबटामिव / ए४ // नूनं मयि विरक्ते ते / खेचौं बंधुहंतरि // | इत्यसौ शशववृदां-तरितः प्रपलायितः // 55 // मा ग्लायतमियं वेला / युवयोश्चिरलालितौ // 6 | कंटकादिव्यथा चिंत्या / समये नाधुना पुनः॥ ए६ // एवं प्रसादयन् पादौ / तद्रलात्त्यक्तरित्रः // ए॥ श्रने जो तेन नाखुश थशे तो हुं त्यां श्वेतरंगनी धजा चडावीश, एम कहीने ते आ. दरयुक्त पगलांनथी महेलनी अंदर दाखल थ. // 23 // पड़ी ते धम्मिल चातकनीपेठे उचु जोतो रह्यो, एवामां तेणे तेजनी नाखुशीरूपी समुऽना फीणनी बटासरखी महेलनी टॉचपर स. फेद धजाने लटकेली जो. // ए४ // खरेखर ते बन्ने विद्याधरीनं पोताना नाश्ने मारनार एवा माराप्रते नाखुश थयेली , एम विचारीने ते धम्मिल ससलानोपेठे वृदोपाबळ लुपातो बुपाती त्यांथी नाशी गयो. // 55 // हे घणा कालसुधी लाड समावेला पगो! तमारो या अवसर ने, माटे तमो थाकशो नहि, तेम वळी था समये तमारे कांटाआदिकनी वेदनानो पण विचार कर| वो नहि. // ए६ / / एवी रीते पगोने हिम्मत थापतोयको तेना बळयी घणी ऋमि जळगीने, Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // मुक्त्वाश्व जीवमादाय / ययौ कंचन कर्व / ए // स्थितैः शैलांतरंत्यप्रा-ग्यामादृष्टनास्करे // शर्वरीणां नियामत्वं / जगृहे यत्र वासरैः // ए // चंपेशकपिलाख्यस्य / भ्राता रोषेण निर्गतः / // विदधे वसुदत्तोऽत्र / वासं वसुमतीप्रियः // ए // तारुण्ये तद्वः पद्मा-वत्यास्त्वग्व्याधिना वपुः धाए // बबाधे विद्युतो दीप्त्या / फलकाले तिलो यथा // 3100 // प्रविशंस्तत्र दृष्ट्वासौ / कांचिच्चूला कुलां स्त्रियं // व्यथामूलं विदन योग्य-भेषजैस्तामसङायत् // 1 // एतज्जनेन्यो विज्ञाय / वि. घोडाने पण तजीने फक्त जीव लेने ते कोश्क गामडामां गयो. // एy // पर्वतोनी बच्चे रहेला तथा बेला अने पहेला बरधा अरधा पहोरसुधी ज्यां सूर्य देखातो नथी, एवा ते गाममा रहेला दिवसोए रात्रिनुं लियामपणुं ग्रहण कयु हतुं. // ए // ते गाममां चंपानगरीना कपिल नामना राजानो वसुदत्त नामे जा रीसाइ नोकलीने राजा थ रह्यो हतो. // ए // तलनो रोपो फळसमये वीजळीना तेजथी जेम बाधा पामे , तेम तेनी पुत्री पद्मावतीनुं शरीर युवावस्थामां प. कुष्टरोगथी बाधित थयु हतुं. // 3200 // हवे ते गाममां प्रवेश करतांज तेणे कोक शूलरो. | गथी पीडाती स्त्रीने जोश, त्यारे तेना दुःखनुं कारण जाणीने धम्मिले तेणीने योग्य औषधी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म झानन्यायशालिने // गृहमानायितायास्मै / बहुमानं ददौ नृपः // 2 // स कुष्टप्युष्टलावण्यां / तः / सार्थ | स्मै कन्यामदर्शयत् // स प्राह मम रोगोऽयं / साध्यांनस श्वानलः // 3 // शुन्नेऽहनि समारने / | स तद्रोगप्रतिक्रियां // तया सिध्म शनैः शांतं / विद्ययेवाहिनो विषं // 4 // सम्यकतावते तस्मै / 250 | राझा हारखतेव सा // मुक्तामयवपुः पारितोषिकस्य पदे ददे // 5 // ऋनुजान्येारादेशि / न तं पश्यामि कंचन // कपिलेन समं राका / यः संधिं कुरुते मम // 6 // प्राज्याः प्रीतिनिदः साजी करी. // 1 // या वृत्तांत लोकोना मुखथी राजाए जाणीने विज्ञान अने न्यायथी शोन्नता ते धम्मिलने घेर बोलावीने घणुं श्रादरमान दीy. // 2 // पनी तेणे तेने कुष्टथी लावण्यरहित थयेली ते कन्या देखाडी, त्यारे धम्मिल बोब्यो के जलथी जेम अमि तेम या रोगने हं दूर क. री शकीश. // 3 // पनी शुन्न दिवसे तेणे ते रोगनो उपचार करवा मांड्यो, अने तेथी विद्याथी जेम सर्पनुं फेर तेम तेणीनो ते कुष्ट रोग धीमे धीमे शांत थयो. // 4 // पनी राजाए रोगरहित शरीवाळी ते कन्याने हारलतानीपेठे ते नत्तम कलावान धम्मिलने नामतरीके आपी. // 5 // | पनी एक दिवसे ते राजा बोल्यो के एवो कोश पण माणस मारा जोवामां नथी आवतो के जे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि| संति / केऽपि प्रीतिकरा थपि // नमां संधति प्रीतिं / ये खटपा जगतीह ते // 7 // गुरुरस्ति कविश्वास्ति / संति व्योनि कवीश्वराः // एतेषु कोऽपि संधत्तां / बुधंदू शनिनास्करौ // // गो. त्रप्रजव रंगाढ्य / शुवर्णक चूर्णक / / त्वां विन कोऽपि संघातुं / नेष्टे जर्जस्तिं गृहं // // न. 651 ने स्वन्नावतो निन्ने / संधातुं वस्त्रकर्णिके // त्वमेव सूचि शक्तासि / गुणसंग्रहशालिनी // 10 // कपिलराजासाथे मारी संधी करावे. // 6 // प्रीतिनो नंग करावनारा घणा होय , तेम केटलाक प्रीति करावनारा पण होय , परंतु जे नांगेली प्रीतिने सांधी शके, एवा या जगतमां विरलाज होय . // 7 // अाकाशमां गुरु ने, कवि (शुक्र), अने कवीश्वरो पण ने. परंतु एमानो को६ बुध अने चंद्रवच्चे, तथा शनि अने सूर्यवच्चे संधि करावनार नथी. // 7 // माटे हे उत्तम गोत्रवाळा! (पर्वतमांथी उत्पन्न थयेला) रंगवान, तथा सफेद वर्णवाळा चुनासमान धम्मिल! ताराविना था जीर्ण थयेलां घरने सांधवाने को समर्थ नथी. // ए // स्वजावधीज जिन्न एवा वस्त्रना बन्ने पोतोने सांधवाने हे सोश! दोरो ग्रहण करवाथी शोनीती एवी तुंज समर्थ जो. // // 10 // एवी रीते वसुदत्त राजाए कह्याथी धम्मिल बोब्यो के, हे राजन्! आप मने हुकम फर | Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि| वसुदत्ते वदत्येवं / धम्मिलेनान्यधीयत // मामादिश यथा कुर्वे / संधिकार्यमिदं तव // 11 // अ. | सार्थ थासौ पार्थिवाझातः / संजातशकुनोऽचलत् // चंपांप्रति प्रियावका-लोकनोत्सुकलोचनः॥१२॥ | निघ्नन् मार्गस्य दीर्घत्वं / प्रस्थानैरनवस्थितैः // प्राप चंपामयं पाप-कर्मनिर्मुक्तनागरां // 13 // प्र. विष्टोतर्ददर्शासौ / स्वस्वरदपरायणान् // समुपिंजतया लोकान् / धावमानानितस्ततः // 14 // किं दवः किं परानीको-पप्लवः किं सरिप्लवः // पौरदोजकृदेवं सो- प्रादीत्कंचिदिचदणं // 15 // मावो? के जेथी तमाएं या संधिकार्य हं करी बापुं. / / 11 / / पजी राजाए साझा पापवाथी शु. न शकुन थये ते पोतानी स्त्रीनुं मुख जोवाने नत्सुक नेत्रोवाळो धम्मिल चंपानगरीप्रते चालतो थयो. // 12 // अविभिन्न प्रयाणोथी मार्गनी लंबाई दूर करतोयको पापकर्मविनाना लोकोवाळी चंपानगरीमां ते पहोंच्यो. // 13 // जेवामां ते नगरनी अंदर दाखल थयो तेवामां तेणे जयथी पोतपोतानुं रक्षण करवामां तत्पर तथा आमतेम दोमता लोकोने त्यां जोया. // 14 // नगरना लोकोने जय नपजावनारो शुं दावानल लाग्यो ? के शत्रुना सैन्यनो नपदव थयो? के नदीनु पूर श्राव्यु बे? एम तेणे कोक विचदाण माणसने पूज्यु. // 15 // त्यारे ते बोल्यो Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- सोऽन्यधाजद्र पट्टेनो / नृपस्याद्य स्फुरन्मदः / व्यसनीव श्रुतध्यान-मालानमुदमूलयत् // 16 // | स. ब्रमन पातयन् गेहान् / नापयन सुनटानपि // पुरमदोनयन्यदं / प्राचीवायुखिांबुधिं // 17 // श्रुत्वेति निर्भयं गड-नतुबं मंझपं पुरः // विषाचाजनजन-वातसंकुलमैदत // 17 / / जन| व्रातः किमेतावान् / मिलितोऽत्रेति सादरं // तेन पृष्टः समाचष्ट / कोऽपि स्पष्टादरां गिरं // 10 // अत्रेद्रदत्तसार्थेश-सूनुः सागरदत्तकः // लेने दिशामधिष्टात्री-खिाष्टौ कुलजाः कनीः // 20 // के हे ना! बाजे राजाना पट्टहस्तीए मदोन्मत्त थश्ने, व्यसनी माणस जेम श्रुतध्यानने तेम बालानस्तंनने नखेडी नाख्यो . // 16 // ते हाथीए नमतांथकां, घरोने पामतांथकां तथा सु. भटोने पण मरावतांथकां पूर्वनो वायु जेम समुद्रने तेम एकदम नगरने दोनित कयु जे. // 17 // ते सांजलीने निर्भयपणे जातांथकां तेणे अगाडीना भागमा विश्वषित माणसोना समुहथी नरे. लो एक मंडप जोयो. // 17 // यहीं आटलोबधो लोकोनो समुह केम एकठो थयो ? एम तेणे श्रादरसहित पूज्याथी कोइए प्रगटरीते तेने कह्यं के, // 15 // यहीं इंद्रदत्त नामना सार्थ. | पतिना सागरदत्त नामना पुत्रे दिशाजनी अधिष्टाश्कासरखी आठ कुलवान कन्या मेलवी . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 धाम्म- कुमुदा कुमुदानंदा / धनश्रीर्वसुमत्यपि // पद्मश्रीविमला देव-कीत्यासां क्रमतोऽभिधाः // 11 / / / 'युगपत्परिणेतुं ता / हायातोऽस्ति सागरः // समं खजनवर्गेण / तेनायं लोकमेलकः // // तयोर्तियतोरेव-मितरेतरमाययौ // तत्रैव स हिपो दाव / श्व केनाप्यवारितः // 3 // तं स. मायातमालोक्य / मुक्तपाणिगृहस्पृहः // वरः परिजनैः साकं / साकंपः प्रपलायितः // 24 // नश्यता मंठ तास्तेन / बाला नालापिता अपि // स्वार्थग्रंशे समुत्पन्ने / कोऽपि कस्यापि न प्रियः // // 20 // तेन्नां अनुक्रमे कुमुदा, कुमुदानंदा, धनश्री, वसुमती, पद्मश्री, विमला तथा देवकी नामो . // 1 // तेजने एकीहारे परणवामाटे यहीं ते सागरदत्त खजनपरिवारसहित यावेलो बे, अने तेथी ते लोकोनो था मेलामो थयो . // 22 // एवी रीते तेन बन्ने जेवामां परस्पर वार्तालाप करे , तेवामां कोश्थी पण न घटकावी शकाय एवा दावानलनीपेठे ते हाथी त्यांज भावी पहोंच्यो. // 23 / / तेने श्रावेलो जोश्ने ते वरराजा तो परणवानी श्वा गेडीने कंपतो. थको परिवारसहित त्यांथी नाशी गयो. // 24 // एकदम नाशता एवा तेणे ते कन्याउने बोलावी पण नहि, केमके स्वार्थना नाशवखते को कोस्ने प्रिय थतो नथी. // 25 / / हवे शुं कर- | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ EUU / // 25 // किं कर्त्तव्यजडत्वेन / प्रयाणारूढजीविताः / अशरण्या अचैतन्याः। कन्यास्तत्रैव ताः स्थिताः // 26 // यावत्कमलिनीमई / ता मृद्राति मतंगजः / तावद्योधुं तमावास्त / धम्मिलोधी. रवीरयात् // 27 // दीनदृकु जयार्चासु / बालिकास्ववलासु च // शुंडां व्यापारयन्नाशु / किं न कुंजर लऊसे // 2 // यद्यस्ति कापि शक्तिस्ते / तदेषोऽस्मि बली पुरः // गजस्तेनैवमाहूतो / रुषा तंप्रत्यधावत // // युग्मं // लघुदेहः परिस्थूरं / शिदितोऽपरिशिदितं // चिरं स रंगर्वामावं? एम मूढ बनीने ते जीवसटोसटने वखते अाधारविनानी ते कन्या बेजान थने त्यांज नजी रही. // 26 // पनी कमलिनीने कचरी नाखवानीपेठे जेवामां ते हाथी तेजने चगदी नाख. वा जाय जे तेवामां धीर बुध्विाळा ते धम्मिले ते हाथीने लम्वामाटे एकदम वोलान्यो के, // // 27 // अरे हाथी! दीनदृष्टिवाळी, नयथी पीमित थयेली तथा निर्बल एवी या बालिका प्रते तारी सुंढने लंबावतां तुं शुं लजातो नथी? // 2 // जो तारामां कई शक्ति होय तो था हंव लवान तारी सामेज जनो बुं, एवी रीते तेणे हाथीने बोलाववाथी ते तेनातरफ दोड्यो. ॥श्य। धम्मिल नाना शरीखाळो तथा शिखेलो हतो, हाथी जामां शरीवाळो तथा नहि शीखेलो हतो, Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasun M.S. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः वर्तमत्रमयजं // 30 // खिन्नं निर्विष्णमुत्पन्न-ग्लानि गर्जिविवर्जितं // बारुदत्स गजं स्कंधमाई | देशे करणलीलया // 31 // निरीदय स्वस्य दुर्वारं / वारणौछत्यवारणं // हियेव न्यग्मुखेनैष / कुं. ने तं शृणिनाचिनत् // 3 // सलीलं सोऽथ संचारी / शृण्वन पौरजनस्तुति // बंध सिंधुरं राज -चतुरे चतुरेश्वरः // 33 // कलानिरीक्षणाकात-चित्रं जपं ननाम सः॥ जामातरं निजं रा. जा–प्युपलदयतिस्म तं // 34 // ससंज्रमं समुदाय / नृजानिस्तं महाजं // भुजोपपीममालिंग्य तेथी ते कलावान धम्मिले ते हाथीने घणा काळसुधी मावी बाजुथी फुदमी फेल्यो. // 30 // अने, तेथी खिन्न थयेला, थाकेला, मंद पडेला अने गर्जाखविनाना ते हाथीना स्कंधपर ते ध. म्मिल ब्लंग मारीने चडी गयो. // 31 // हाथीनी नताश्ने निवारखानी पोतानी मुश्केली जापीने जाणे लजाथी नीचा मुखवाळ थयेला एवा अंकुशवडे करीने तेणे ते हाथीना कुनस्थ. लपर जखम कर्यो. // 32 // पड़ी ते चतुरशिरोमणि धम्मिले लीलासहित चालतांयका तथा नगरना लोकोनी स्तुतिने सांगलतांथकां ते हाथीने राजानी हस्तिशालामां बांध्यो. // 33 // पजी कला जोवाथी आश्चर्य पामेला राजाने ते नम्यो, सारे राजाए पण तेने पोताना जमा तरीके PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः। / पप्रल स्वबया गिरा // 35 // चिराद् दृष्टोऽसि वत्स त्वं / दर्शनानंदिदर्शनः // श्राविःकुरु निजं वृत्त-मश्वापहरणादिकं // 36 // ततस्तदुक्तं तध्यक्तं / ज्ञात्वा वृत्तांतमादितः // धैर्य चास्येनदम| ना-द्ययौ राजा परां मुदं / / 37 // पुरे महोत्सवमयः / समयस्तद्भवेदयं // वायकः स्याद्यदि त्वा६ए७ | दृ-गिति तुष्टाव तं नृपः // 30 // ...' तत्र संप्राप्तसंमान-निकलत्र्या गुणोज्ज्वलः // त्रिलिंग्यास्तादृशीतः / परशब्द श्वामिलत जळखी कहाब्यो. // 34 // त्यारे संज्रमसहित राजाए उठीने ते महासुभटने बाथमां ले भेटीने वल वचनथी पूज्युं के, // 35 // हे वत्स! जोवामां थानंदी दर्शनवाळो तुं घणे काळे नजरे प. ड्यो बु, हवे घोमो तने हरी गयो, इत्यादिक तारुं वृत्तांत तुं प्रकट कर? / / 36 // पनी तेणे प्रथमथी प्रकटरीते कहेलु वृत्तांत जाणीने, तथा हाथीने वश करवाथी तेनुं धैर्य जोश्ने राजा अ. त्यंत खुशी थयो. // 37 // जो ताराजेवो था नगरमां रक्षण करनार होय तो यहीं आवो महो. त्सवमय समय जाय, एम राजाए तेनी स्तुति करी. // 30 // एवी रीते त्यां सन्मान पामीने गुणोथी उज्ज्वल थयेलो ते धम्मिल तणे लिंगोमां ताहा। Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S. Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 धम्मि // 35 // गजे शांते गते स्वास्थ्यं / नगरे सागरः पुनः॥ दधत्पाणिगृहोद्योगं / कन्यानिस्तानि | रोच्यत // 40 // अस्मान्मृत्युमुखे दिप्त्वा / तदा नष्टोऽसि किं शव // सांप्रतं दर्शयन् प्रेम-पाटवं लङसेऽपि न // 41 // श्राकृत्या पुरुषोऽसि त्वं / गुणैः स्त्रीज्योऽपि हीयसे // ईक्सत्त्वं प्रियीकु. o / वरं त्वामाशया कया // 42 // नूनं नायं गजो दुष्टः / पूर्वजः किंतु कोऽपि नः / / . यस्ते प्रा. चीकटद् वृत्त-मवृत्ते मंगलत्रये // 43 / / वृणुमस्त्वां प्रियैकात्म-जीवं की न तद्वयं // येन प्राण. | रहेला परशब्दनीपेठे पोतानी त्रणे स्त्रीनने मव्यो. // 35 // हवे ते हाथी शांत थयावाद तथा नगर पण खेदरहित थयाबाद ते सागरदत्त ज्यारे पानी विवाहनी सामग्री करवा लाग्यो त्यारे ते कन्याए तेने कडं के, // 40 // अरे मूर्ख! ते वखते तुं मोने मोतना मुखमां फेंकीने केम नाशी गयो? अने हवे प्रेमचतुराश् देखाडतां तुं शरमातो पण नथी? // 1 // फक्त याकारथी तुं पुरुष गे, परंतु गुणोथी तो स्त्रीनथी पण नपावट गे, माटे तने यावा बायलाने यमो शं अाशाए अमारो खामी करीये!! // 4 // . खरेखर आ कई उष्ट हाथी नहोतो, परंतु अमारो को. श्क पूर्वज होवो जोश्ये, के जेणे त्रण मंगळफेरा फर्या पहेलांज तारं या पराक्रम प्रगट करी दे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः। पणैः क्रीता / अस्तु भर्ता स एव नः // 44 // जाते राजकुले तस्मिन / वादे कारणिकैनरैः // | स तान्यो दृरतश्चक्रे / करेणुन्य श्वोरणः // 45 // अष्टावपि कुमारीस्ता / धम्मिलाय ददे नृपः // | सोप्याशु परिणिन्ये ता / महोत्सवपुरस्सरं // 16 // तत्प्रेमामृतसुराका-रजनिं प्रमदाकुलं / प्रि६एए| यं प्राप्य च चित्तांत-रजनि प्रमदाकुलं / / 4 // अथासौ वसुदत्तस्य / चंपाधिपतिना सह // संधि कार्य दृढीचक्रे / लक्षण व स क्षणात् // 4 // संधिना तेन संप्रीतः। प्रियप्राप्त्यै समुत्सुकां // खाडयु. // 43 // माटे फक्त एक पोताना जीवनेज बचावनारा एवा तने हीजडाने श्रमो परणी. शं नहि, जेने पोताना प्राणसाटे अमोने खरीदी लीधी , तेज अमारो स्वामी थशे. // 4 // पजी या बाबतनो राजदरबारमां ज्यारे केस चाल्यो त्यारे न्यायाधीशोए हाथणीनंपासेथी जेम घे. यने तेम ते सागरदत्तने तेथी दूर को. // 42 // पनी राजाए ते.आठे कुमारीने धम्मिलने यापी, अने ते पण तेनने जलदी महोत्सवपूर्वक परण्यो. // 46 // तेना प्रेमरूपी अमृतने पु. नमनी रात्रिसरखा ते स्वामीने मेलवीने ते स्त्रीजनो समुह वनमा हर्षथी व्याप्त थयो. // 4 // पजी तेणे क्षणवारमा व्याकरणमां जेम तेम चंपाना राजानीसाथे वसुदत्त राजानुं संधिकार्य दूद्ध P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म चंपायां प्रेषयामास / वसुदत्तः सुतां निजां // 4 // अयं सुखासनासीनो-ऽन्यदा सौदामिनीमिव | मा // उत्तरंती दिवोदादी द्दीप्तां कांचन योषितं // 50 // नृत्वा पुरोऽतिरोषेण / तमुपालब्ध खेचरी || यन्मे बंधुस्त्वया जन्ने / निर्मतुर्ध्यानमौननाक् // 51 // अनौपाधिकवात्सल्य-विशदस्य दयो७०० | दधेः // परोपकारसारस्य / तत्किं. ते धीर संगतं // 5 // यच्च मे मद्भगिन्याश्च / शेषकन्यागण| स्य च // मनोऽपहृत्य नष्टोऽसि / किं तदप्युचितं तव // 23 // धम्मिलेन ततोऽवादि // सति सत्यं कर्यु.॥ 4 // ते संधिथी खुश थयेला वसुदत्ते जरिने मलवाने नत्सुक थयेली पोतानी पुत्री. -ने चंपानगरीमां मोकली दीधी. // 4 // हवे एक दिवसे ज्यारे ते खुरशीपर बेठो, एवामां | वीजळीनीपेठे कोश्क तेजस्वी स्त्रीने तेणे आकाशमांथी नतरती दीठी. // 10 // पनी ते विद्या. धरी तेनी आगळ-श्रावीने अतिरोषथी तेने उपको देवा लागी के, निरपराधी तथा ध्यानमां मौ. नपणे रहेला मारा नाश्ने जे तें मार्यो बे, // 51. // ते उपाधिरहित वत्सलताथी निर्मल थयेला. | दयाना सागर, तथा परोपकारनेज़. सारत गणनारा एवा तने हे धीरपुरुष! शुं उचित ? // | // 12 // वळी मारुं, मारी.बहेननुं बने बीजी कन्याउना समूहनुं पण मन-हरीने जे तुं नाशी P.R. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः। वदंत्यसि / / परमाज्ञानिके पापे / नास्त्युपालंभसंगवः // 14 // परीदितुमहं तैदण्यं / निंदन की। चकजालकं // यद्वंधुं तव इन्मिस्म / तदज्ञानविजंगितं // 15 // अपराई मनोरना-पहारेण व यन्मया // शुध्ये तस्य पापस्य / त्वमेवेह गुरूजव // 56 // श्युक्तिनंग्या चित्रीय-माणा प्रो. 701 | वाच खेचरी // एवमेव नववृत्तं / चित्रसेना तदावदत् // 57 // बंधोववे श्रुते स्वता / सममा. धिमधामहं // वाचं विचार्य नैथीं / शोकमतोकयं दाणात् // 7 ॥समानय तमत्रेया-वाच्या गयो बे, ते पणं शुं तने उचित ? // 53 // त्यारे धम्मिल बोल्यो के, हे सति! तुं सघ सं. त्य कहे , परंतु अझानथी करेलां पापमाटे उपालंजनों संभव होतो नथी. // 24 // तलवारनी तीदणतानी परीदामाटे वांसनी कामी कापतांथकां में ज़े तारा नाश्ने मार्यो , ते अज्ञान नो प्रताप जे. // 55 // वळी तमारां मनरूपी रनने चोरवायी जे में अपराध कर्यो , ते पापनी शुधिमाटे हवे तुज मारा गुरुतरीके था? // 26 / / एवी रीतनी तेनी वचमचतुराश्थी आश्चर्य पा. मेली ते विद्याधरी बोली के, ते वखते चित्रसेनाए एवीज रीते तमारुं वृत्तांत अमोने कहां हतं. // 7 // नाश्नो वध सांभलवाथी बहेननीसाथे मने पण दुःख तो थयुं, परंतु मुनिनी वाणी वि. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- मुक्तारोह सा // सौधस्याधित्यकां तस्य / प्रेम्णः काष्टां परामिव // 27 // हर्षाकुलतया भ्रांत-दृ. | ष्टिः श्वेतां पताकिकां // सोतन्नातिस्म ततास्म-दलाग्यस्येव वल्लरीं // 60 // पायास्यति किम द्यापि / नायात्यायात एव सः // एवं मिथो वदंत्यस्ताः / कन्या नत्कुंठिताः स्थिताः // 61 // प७०२ | ताकालोकनाकाते / त्वदनागमनिर्णये // त्वां दृष्टुमत्रमं रिप्रामारामाश्रमां दमां // 6 // यद्यपि कापि नापश्यं / त्वामुबुकीव नास्करं / तथापि त्रमितो जमा / नाहं स्नेहो हि दुस्त्यजः // चारीने कणवारमा में ते शोकने दूर को. // 17 // हवे तेने यहीं लाव? एम अमोए तेणी ने कहेवाथी ते चित्रसेना जाणे तेना प्रेमनी पराकाष्टापते होय नहि तेम महेलनी सीमीपर च. मी. // 55 // परंतु हर्षवेली थवाथी तेणीए दृष्टिविपर्यासने लीधे अमारां अभाग्यनी वेलडीसरखी श्वेतरंगनी धजा चमावी. 60 // हवे ते यावशे, अरे! हजु केम आवतो नथी? अरे! ते या आव्यो, एम परस्पर कहेतीथकी ते कन्या त्यां उत्सुक बनीने तलपापड थवा लागी. // 61|| पजी पताका जोवाथी ज्यारे तमारा नहि भाववानो निर्णय थयो, त्यारे तमोने जोवामाटे घणा | गाम, वगीचा तथा आश्रमोवाळी या पृथ्वीपर हुं नमी. // 6 // परंतु घूकी जेम सूर्यने तेम त. . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिः // 63 // समायाताद्य चंपायां / लोचने तृषिते चिरं / / रूपे लवणिमानूपे / ताप्लवमकारयं / / // 64 // एषाहं सा च मे जामिः / कन्यकाः षोडशापि ताः॥ सर्वमेतत्त्वैवेति-जल्पंती सा ख. मुद्ययौ // .65 // चकुरुद्घाटयत्येष / यावत्तावदलोकत // पुरस्तादमिनीवृंद-मानंदोत्फुललोचनं // 66 // परिणिन्ये स ताः सर्वाः / शर्वाणीरूपजीत्वरीः // कामी न तृप्यति स्त्रीनिः। सरिदनिरि वोदधिः // 67 // तासां रतिसपत्नीनां / पत्नीनामंगको निशं // अगाद्भोगात्तरंगात्त-रंगहंसतुला. मोने में जो के क्यांय पण न जोया तो पण हुं जमवाथी थाकी नहि, केमके स्नेहने तजवो मुश्केल . // 63 // परी बाजे यही चंपामां आवीने घणा काळथी तृषातुर थयेलां मारां या नेत्रोने लावण्यना कूपसरखा था तमारा रूपमा में स्नान कराव्यु. // 64 // था हुँ, ते मारी बहे. न, तथा ते शोळे कन्या; ए सघयु तमारंज में, एम कहीने ते आकाशमां नडी. // 65 // प. जी जेवामां ते अांखो उघाडे , तेवामां तेणे अगामीना नागमां यानंदथी प्रफुल्लित नेत्रोवाळो स्त्रीननो ते समुह दीठो. // 66 // पनी इंद्राणीना रूपने पण जीतनारी एवी ते सघली कन्यानने ते परण्यो, केमके नदीनना जलथी जेम समुद्र तेम कामी माणस स्त्रीनथी तृप्त थतो नथी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धाम्म मसौ // 6 // असौ क्रीडारसे सर्व-मादितो वृत्तमात्मनः / / कमलापादघाताय / नवोढास्ता अ. | जिझपत् // 6 // अन्यदा कमला गोष्टयां / विद्युन्मत्या न्यगद्यत // युक्तं वसः प्रियं पादे नाहंतुं हंत किं तव // 70 // निर्धनोऽपि कुरूपोऽपि / निःश्रीकोऽपि व्यसन्यपि // सेव्यो देव श्व 704 प्रेयान / रामया शुगकाम्यया // 31 // धन्ययातिप्रसादेऽपि / नावगण्यः पतिः स्त्रिया // धान्यं पा. देन मृद्राति / नातिधातोऽपि यद्बुधः / / 72 // स विद्यानतिकोपेऽपि / यो जानाति व जूमिकां // // 67 // रतिसरखी ते स्त्रीनना निरंतर नोगथी नवसायमान रंगपूर्वक ते धम्मिल हंसनी तुल्य ता पाम्यो. // 67 // पछी तेणे क्रीडाना रसमां कमलाए लात मारवा थादिकरूप पोतार्नु संघद्धं वृत्तांत ते नवी परणेली स्त्रीनने जणावी दीधुं. // ६ए / एक दिवसे वात निकलतां विद्युन्मतीए कमलाने कह्यं के हे बहेन! पोताना स्वामीने लात मारखी ए शुं तने युक्त ? // 10 // निर्धन, कदरूपो. लक्ष्मीविनानो तथा व्यसनी बता. पण स्त्रीए पोताना कल्याणनी बाथी पोताना खा. मीने देवनीपेठे आराधवो जोश्ये. // 31 // अति महेरबानी उतां पण नाग्यवती.स्त्रीए पतिनी अवगणना न करखी जोश्ये, केमके माह्यो माणस अति धराया बतां पण धान्यने पगथी कचर | P.P.AC. Gunratnasurt M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- चरिकोपापि पालं / पराजवति किं प्रजा / / 73 // अथो प्रदर्शयंत्यास्य-विकार कमलालपत् / / मन्ये दोषोऽबलाया मे / सुकरः सखि नाषितुं // 14 // परं विमृश हृदृष्ट्या / प्रेयसोऽपि किमौ. चिती // रतिरंगे पुरः पल्याः / सपत्नीनामकीर्तनं / / 72 // अशस्त्रं मारणं मंत्र-हीनमुच्चाटनं परं 705 // निरनिज्वालनं स्त्रीनिः / सपत्नीनाम मन्यते // 76 // नगिनीत्युच्यमानापि / सपत्नी न शुजा नवेत् // ख्यातापि शर्कराख्यातो / व्यथयत्येव वालुका // 17 // मृत्युस्त्युत्तमो वक्र—नवक्रकचतो नथी. // 7 // अति क्रोध चड्या उतां पण जे माणस पोतानुं स्थान विचारे , तेज विहा. नने, केमके अति कोप पामेली प्रजा पण शुं राजानो परानव करी शके जे? // 53 / / हवे पो. तानो मुख विकार देखामतीथकी कमला बोली के, हे सखि! हुं धारं बुं के मारो अबलानो दोष बोलवो सहेलो . // 4 // परंतु तुं अंतर्दृष्टिथी.विचार के, रतिरंगसमये स्त्रीनीपासे शोकनुं ना. म लेवं ए शुंजारने पण नचित ? // 55 // केमके स्त्रीने शोकना नामने शस्त्रविनाना मा रसरखं, मंत्ररहित महा उच्चाटनसरखं तथा अमिविना बाळवासरखं माने जे. // 16 // बहेन कहेवाया बतां पण स्त्रीने शोक सारी लागती नथी, केमके शर्कराना नामथी प्रख्यात एवी पण वे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 धारमः। दारणैः // न तु सापल्यदुःखेन / जीवितव्यमपि स्त्रियां // 7 // खेचर्यथ जगौ न / पुरुषः प्र. सोच भुरुच्यते // न ह्यसौ हृदयेष्टस्य / गृह्णन्नामापराध्यति // 7 // परं प्रियतमावा-कार्येष चरण स्तव // महादंमाई एवेति / श्रुत्वा कमलयोच्यत // 70 // हंहो विद्युल्लतामुख्याः / स्वसारः शृणु. ताखिलाः // अन्यायनाषिणी विद्यु-न्मती रदत रदत // 71 / / सर्वा नगगय मे पादं / स्नपयध्वं कलै लैः // चंदनेन विलिंपध्व-मंचतानुपमैः सुमैः // 2 // अधास्यजिह्मतामेष-श्चेत्पादो मुग्धबु दुःखज थापे . // 9 // वांकी अने नवी करवतथी वेराश्ने म अति उत्तम ने. परंत शोकना शव्यथी स्त्रीजने जीवq पण सारं नथी. // 7 // त्यारे ते विद्याधरी बोली के, हे भ! पुरुष मालीक कहेयाय , अने तेथी ते पोताना हृदयने वहाला माणसनुं नाम लेतां कई अपराधी थतो नथी. // ए || परंतु प्रियतमनी अवज्ञा करनारो था तारो पग महादंडनेज लायक बे, ते सांगली कमला बोली के, // 70 // अरे! विद्युल्लताधादिक सघळी बहेनो! तमो सांना लो? अनुचित बोलनारी या विद्युन्मतीने तमो निवारो? निवारो? // 79 // तमो सर्वे नठीने मारा था चरणने निर्मल जलथी स्नान करावो? चंदनथी तेनुं लेपन करो? तथा अनुपम पुष्पो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धषि ताडने // तदा कयमलप्स्यध्वं / दयितं यूयमीदृशं / / 73 // किमीहगुपकार्येष / पूज्यते ताब्यतेऽ- | थवा // जक्तिनंग्यानया तस्या / न कयाशु विसिष्मये / / 4 // विद्युन्मती बनाषेऽथ / स्वामिन मृत्यैव भिन्नयोः॥ हृदा नास्त्यावयोर्भेद-स्तद्यथातथमादिश // 5 // यन्नाम्ना तव लोलाये। दो. 707 | लालीलान्वयत // सा का वसंततिलका / वशासु तिलकायिता / / 76 // कृत्रिमा दर्शयन् नीति थी तेनी पूजा करो? // 2 // केमके ते वखते या मारो पग जो मुग्धतामनथी पागे हट्यो होत, तो तमोने श्रावो नर्तार क्याथी मळत ? // 3 // माटे यावा उपकारी था पगने पूजवो जोश्ये ? के मारखो जोश्ये? एवी रीतनी तेणीनी वचनचतुरास्थी कर स्त्री एकदम आश्चर्य न पामी? // 7 // हवे विद्युन्मती बोली के हे स्वामी! केवल मूर्तिथीज निन्न एवा आपणवच्चे हृदयथी कई पण तफावत नथी, माटे जेवं होय तेवू सत्य कहो ? // 5 // जेणीना नामे था. पनी जिह्वाना अग्र नागपर हींचोळानी लीला अनुन्नवेली , एवी स्त्री मां तिलकसरखी वसंत. तिलका कोण ? // 6 // त्यारे ते जपरनपरनो कृत्रिम जय देखाडतोथको बोल्यो के हे सुंदR! तुं ते वात न बोल, केमके गुस्से थयेली था पासे जमेली कमलाने शुं तुं नथी जोती? | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्मः / स तां प्रोवाच सुंदरि // मा मा ब्रूहि न कि पार्श्व / वीदसे कोपनं जनं // 7 // अनानोगेन | सार्थ | तन्नाम-ग्रहणे या पुराकुपत // तत्श्लाघां साधुना श्रुत्वा / तत्किं यन्न करिष्यते // 7 // कम | लाथ जगौ नाथ / किमेवं व्यज्यते नये // प्राणसर्वस्व विश्वस्तो / विश्वं तच्चरितं वद ।।जए॥ को७०० | तुकोत्तालचित्तासु / सन्यीतासु तास्वथ // धारनघम्मिलो वक्तु-मनुतां निजां कथां // ए० // अस्ति पौरश्रियोदये। कुशाग्रपुरपत्तने / नैकगाणिक्यमाणिक्यं / वसंततिलकान्निधा / / ए१॥श्रहं यांसि वर्षाणि / तस्या वेश्मन्यवास्थिषि // तलावण्यतरंगिण्यां / कलयन कलहंसतां // 7 // // 7 // अजाणतां तेणीनुं नाम लेवाथी पण जे था पूर्वे कोपायमान थर हती, ते तेणीनी ह. मणा प्रशंसा सांजळीने शुं नहि करे? // 7 // त्यारे कमला बोली के हे स्वामी! एम शामाटे जय प्रकट करोगे? हवे हे प्राणनाथ! आप विश्वास राखीने तेणीनुं सर्व वृत्तांत कहो? // 5 // पजी याश्चर्यथी उत्सुक थयेसी ते सघली स्त्री सनासदरूप थये ते धम्मिले पोतानी अनन वेली कथा कहेवा मांझी. // 50 // लोकोनी लक्ष्मीथी बागळ पडता कुशाग्रपुर नामना नगरमां / अनेक गणिका-मां माणिक्यसरखी वसंततिलका नामे गणिका बे. // ए१ // तेणीना लावण्य P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- नान्यस्ता न च ये दृष्टा / न वा श्रुतिपथं गताः / तेषु मान्मथनावेषु / सा मय्याचार्यकं दधौ // | एU | सादीहशत्तया हाई / सौहार्द येन मे मनः // अब्धेः पय श्वोदेलं / तामद्याप्यनुधावति // 55 // इत्युक्तितस्तदाकूतं / ज्ञात्वा विद्युन्मती जगौ // तस्याः समानये शुधि / हृद्य यद्यनुम७० न्यसे / ए६ // रोषणं जनमापृच्छय / यथायोग्यं समाचर // इत्युक्ता तेन कमला-नुझाता सो दडीयत / / ए // दणांतरे समागत्य / शिरःयोजितांजलिः // सा प्रियं प्राह कुतुकं / कुर्वती - रूपी नदीमां राजहंसपणाने अनुन्नवतोथको हुँ घणा वर्षीसुधी तेणीने घेर रह्यो हतो. // 7 // जेनो में अभ्यास कर्यो नहोतो, जे में दीग नहोता, अथवा जे में काने पण सांजव्या नहोता एवा ते कामदेवसंबंधी नावो मने शिखाववामां तेणीए श्राचार्यनी पदवी धारण करी हती. || तेणीए मने अंतःकरणपूर्वक एवो तो स्नेह देखाड्यो बे के समुद्रनुं जल जेम वीरप्रते तेम माझं मन हजु पण तेणीनातरफ दोडे . // 5 // एवी रीतना वचनथी तेनो अभिप्राय जाणीने वि. गुन्मती बोली के हे स्वामी! जो थापनी याज्ञा होय तो हुं तेनी खबर लावू. / / ए६ // था गु. | स्से थती कमलानी रजा लेश्ने जेम योग्य लागे तेम कर? एम तेणे कहेवायी कमलाए अनु. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धग्मि मिचारिणां // // व्योम्ना तदा त्वदाज्ञातः / कांत तत्पुरमीयुषी // प्राविशं. पुरुषीजय / वसंत तिलकागृहं // एए // दुःखेनेवांगलनेन / वेष्टितां जीर्णवाससा // मलैः क्विन्नत मूर्ते-बुर्दशा स्तबकैखि // 3300 // मुक्तामाभरणौवेन / प्रमोदेनेव दूरतः // तदंतस्तां नवन्नाम-जंजपूकामवै. विषि॥ 1 // युग्मं // अप्रादं कुशलोदंत-मुपसृत्य च तामहं // सा च मां पुरुषं प्रेक्ष्य / न्यग्मुझा देवाथी ते नमी..॥ 7 // थोमीवारमा ते पाछी श्रावीने मस्तकपर हाथ जोडीने पृथ्वीपर चालनारा मनुष्योने याश्चर्य नपजावतीयाकी पोताना स्वामीने कहेवा लागी के, // ए॥ हे खा. 'मी! आपनी माझाथी हुँ ते समये अाकाशमार्गे ते नगरमां गश्, तथा पुरुषरूपे में वसंततिलकाना घरमा प्रवेश कर्यो. // एए / शरीरे चोटेलां दुःखवडे करीने जाणे होय नहि तेम जीर्ण वस्त्रथी वाटायेली, तथा मूर्तिवंत दुर्दशाना गुबानवडे करीने होय नहि तेम मेलथी नरेलांश शरवाळी, // 3300 // हर्षवडे करीने होय नहि तेम बाजूषणोना समुहथी. दूर मुकायेली, अने आपमुं नाम जपती एवी ते वसंततिलकाने में. ते घरनी अंदर दीठी. // १॥पनी में तेणीनीपा' | से जश्ने कुशलंसमाचार पूज्या, परंतु ते मने पुरुषरूपे जोश्ने नीचं मुख करी ग.॥२॥श्रा | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- खत्वमशिश्रयत॥॥ न दृशापि सतीवेयं / पश्यत्यपरपूरुषं // ध्यात्वेति विद्ययागादं / मुख्यां योषित्तनूमहं // 3 // स्वसः श्वसिहि ते वार्ता-शुहिं पूजति धम्मिलः॥.मन्मुखेनेत्युपेत्याहं / ता. मनापं मनस्विनीं // 4 // नवन्नामश्रुतेर्मेघ गर्जेखि कलापिनी // प्रमोदमेदुरांगी सा / मामा. 111 | लिंगनं ददौं // 5 // कासौ कियत्परीवारः / कथं वा वर्त्तते प्रियः // सैवं शुहिं तवाप्रादी-दतृप्ते व मुहुर्मुहुः // 6 // आर्यपुत्रोऽस्ति चंपायां / पदं निःकंपसंपदां // मयेत्युक्ते मुखं तस्या / जिग्ये स्त्री सतीनीपेठे. यांखथी पण परपुरुषने जोती लांगती नथी, एम विचारीने में मारुं स्त्री- मुख्य रूप धारण कयु, // 3 // पनी में तेणीनी पासे जश्ने ते बुद्धिवाळी स्त्रीने कर्जा के, हे बहेन ! तुं धीरज राख? मारा मुखथी धम्मिल तारा कुशलसमाचार पूगवे . // 4 // श्रापर्नु नाम सांजलतांज मेघना गर्जाखथी जेम मयूरी तेम हर्षथी रोमांचित शरीरवाळी एवी ते वसंततिलकाए. मने आलिंगन याप्यु. // 5 // ते मारो प्रियतम क्यों ? तेनो केटलो परिवार ..? तथा ते शीरीते वर्ते ने? एवी रीते अतृप्तनीपेठे तेणीए वारंवार थापना समाचार पूया. // .6 // ते. आर्यपुत्र अ. तिसंपदाना नाजनरूप थयाथका चंपानगरीमां ने, एम में कह्याथी तेणीनुं मुख प्रफुल्लित कमलने Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- स्मेरं सरोरुहं // 7 // एकत्रासने संवेश्य / मुक्तसंकोचलोचना // जगाद सादरं सा मां / सामां | चितवचस्ततः // 7 // अपि प्रपन्नधौरेयः / प्राणेशो मां यदत्यजत् / / नूनं तस्य न दोषोऽयं / दोषोऽयं मम कर्मणः // 7 // ग्रीष्मादनु नवेद् वृष्टी-रात्रेरनु नवेदिनः॥ वियोगादनु संयोगः / स्यान्न वेति वद स्वसः // 10 // मासेनैति पुनश्चंद्रो / वर्षेणैति पुनर्घनः / / काले नैति पुनल" / कियतेति वद स्वसः // 11 // स प्राणाय्यो मम प्राणा-स्ततस्तदपि मे मुदे // अयं सुखी हृषीपण जीतवा लाग्यु. // 9 // पनी तेणी मने एकज बासनपर बेशाडीने संकोचरहित नेत्रोवाली थश्यकी श्रादरपूर्वक शांत वचनोथी कहेवा लागी के, // 7 // मारा प्राणनाथे महाऋविंत थ. या बतां पण मने जे तजी दीधी बे, तेमां खरेखर तेनो दोष नथी, परंतु ते मारा कर्मनो दोष // // जनाळा पजी वरसाद थाय, रात्रि पनी दिवस नगे, तेम हे बहेन ! तुं कहे के वियो. ग पजी संयोग थाय के नहि? // 10 // वळी महिनाबाद चंद्र आवे, वर्षवाद वरसाद यावे, तेम हे बहेन! तुं कहे के नार पालो केटले काळे यावे? // 11 // ते प्राणप्रिय मारा प्राणरूपज बे, | | अने तेथी ते ज्यारे हमेशां पोताना इंद्रियार्थना स्वार्थमां संतुष्ट थयेलो , तो ते पण मने दः / P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- कार्थ-स्वार्थतुष्टोऽस्ति यत्सदा // 15 // नोगान कामये तस्मा-न जूषां न पुनः श्रियं // एत. दिहामि यच्चात्म-चित्तादुत्तारयेन्न मां // 13 // इत्याद्यनल्पतज्जल्प-वाहिकाहं हृदीश्वर // तस्या ला| अनुयोरबुत्या-गढ़ गगनवर्त्मना // 14 // हृदयोनवासरोमांच-नेत्रचू विन्रमादिना // नाथ 713 | जानेऽनुमानेन / यद्भवांस्तां दिदते // 15 // एवमेवेति तेनोक्ता / तदा सा खेचरेश्वरी // विमानमुपमानस्वी-कृतस्वमंदिरं व्यधात् // र्षकारी ने. // 12 // हं तेनी पासेथी नोगोनी, भाषणोनी के धननी श्ला करती नथी, फक्त एटबुज इच्छं बुं के ते मने पोताना मनपरथी जतारे नहि. // 13 // हे स्वामीनाथ! इत्यादि तेणीना अनेक वचनोनो संदेशो लावनारी हुं तेणीनी रजा ले जडीने याकाशमार्गे पानी था. वी बु. // 14 // हवे हे नाथ! थापना हृदयना श्वासोश्वास, रोमांच, अांखो तथा भृकुटीना वि. लासयादिक अनुमानथी हुँ एम धारुं बुं के श्राप तेणीने जोवानी नत्कंठा राखो छो. // 15 // एमज , एम तेणे कहेवाथी ते विद्याधरीए देवलोकना मंदिरनी नपमा धरनारुं एक वि. | मान तैयार कर्यु. // 16 // पछी चोफेरथो ते सर्व स्त्रीनथी वीटायेलो ते धम्मिल, हंसीनसहित | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- // 16 // बारोह स निःशेष-नारीनिरनितो वृतः // तद्यानमंबुजक्रोम मिव हंसः सहसिकः सार्थ | // 17 // जनयत्तारकनांति / दिवा जूचारिणां नृणां // दाणादिमानमुत्प्चुत्य / कुशाग्रपुरमापतत् / / | // 10 // विमानं व्योम्नि संस्थाप्य / प्राक् प्रवेशे पुरांतरा // वसंततिलकायाः सोऽनवृष्टिमुदं 714 ददौ // 15 // अमित्रदमनो नृपः। श्रुत्वा लोकात्तमागतं // महा कारयामास / तत्प्रवेशमहोत्सवं // 20 // त्रुपस्तस्यालयं तस्मै | कृत्वा विनवपूरितं // ददौ यथा वसंतर्तुः / पिकायानं फलैर्भूतं // 21 // महा प्रविशन लोकै-राबुलोके स्वसद्मतः // दृशा जीवन जनः किं किं / न पश्येदि. इंस जेम कमलपर तेम ते विमानपर चड्यो. // 17 // हवे दिवसे पण पृथ्वीपर चालनारा मनुप्योने तारानी ब्रांति जपजावतुंथकुं ते विमान दाणवारमा जडीने कुशाग्रपुरमां याव्यं. // 10 // पजी तेणे विमानने याकाशमां स्थापीने तथा नगरमां जश्ने प्रथम वसंततिलकाने वादळांविना. नी वृष्टिसरखो हर्ष प्राप्यो. // 1 // पनी अमित्रदमन राजाए लोकोना मुखथी तेने पावेलो जा. णीने मोटा याबस्थी तेनो प्रवेशमहोत्सव कराव्यो. // 20 // पनी वसंतऋतु कोयलने जेम फलोथी नरेलो यांबो थापे तेम राजाए तेने तेनुं घर समृध्थिी नरपूर करीने याप्यु. // 21 // | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Junun Aaradhak Trust Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 12 // // 23 // मिलनाय / तस्योत्तमोतो // 24 // खपितुः / MIरै विदन / / तत्राययौ वियोगाती / पुरस्कृत्य यो यस्तस्य तदा मुदा // स भेजे दानमानान्यां / त. से परिम्लानां / कीर्तिवल्लीमजीवयत् // नदारताघनः पुण्य(IF२५॥ वीसौवर्णसत्पी / गरीयोऽगुरुधूपनं // आत्यंतरं चतुःशालं / हो! जीवतो माणस शुं शुं नथी जोतो? एम बोलताथका लोको महामंबरथी प्रवेश करता ते मिलने पोतपोताना घरमांथी नेत्रोवडे जोवा लाग्या. // 2 // ते वखते तेनो धनवसु नामनो ससरो पण अवसर जाणीने वियोगथी पीडाती यशोमतीने अगामी करीने त्यां याव्यो. / / 3 / / ते वखते जे जे माणस हर्षयी तेने मळवा याव्या, ते सर्वने दान अने मानथी संतुष्ट करीने ते. नना करजथी मुक्त थवा लाग्यो. // 24 // पजी पोताना पितानी करमा गयेली कीर्तिरूपी वे. लमीने नदारतारूपी वरसादसरखा अने दानरूपी जलवाळा ते धम्मिले फरीने प्रफुल्लित करवायी ते पुण्यरूपी फल देनारी थ. // 25 // एक दिवसे ते पोताना घरमां मनोहर अगुरुना धूपवाळा | अंदरना चोगानमां मनोहर सुवर्णना बाजोठपर बेठो बे, // 26 // त्यारे सरल याशयवाळी वसं. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म | सोऽन्येाः स्वगृहेऽश्रयत् // 26 // वसंततिलका प्रोचे / तदा तं शरलाशया // गृहहारेऽद्य किं च / | के / नाथ वेषांतरं त्वया // 27 // नवन्मनोविनोदाय / तथा चक्रेऽथ तामृj // स विप्रतारयने / विवेकी हृद्यचिंतयत् // 20 // नान्यदेषं चकराहं / वदत्येवमियं पुनः // श्ह मन्येऽहमन्येन / न७१६ वितव्यं नरेण तत् // // विद्यातिरोहिततनु-ननु सोऽप्यत्र तिष्ठति // न हि दृश्यवपुर्मयः / स्थातुं शक्तो ममौकसि // 30 // ततः स तद्दधोपायं / चिंतयनंतरालयं // वितस्ताराशु सिंदूर-रततिलकाए तेने कर्जा के, हे नाथ! बाजे घरने बारणे श्रापे बीजो वेष शामाटे धारण कर्यो . तो? // 27 // तारा मनने थानंद थापवामाटे में तेम कयु हतुं, एवीरीते ते सरख स्वनाववाली वसंततिलकाने ठगतोयको ते बुद्धिवान धम्मिल मनमां विचारखा लाग्यो के, // 7 // में बीजो वेष कर्यो नथी, बने था एम कहे , माटे हुं धारुं बुं के यहीं कोश्क बीजो पुरुष श्रावेलो होवो जोश्ये. // 27 // ते पुरुष खरेखर विद्याथी गुप्त शरीरवाळो थश्ने यहीं रहे जे. केमके दे. खातां शरीवा माणस यहीं मारा घरमा रहेवाने समर्थ नथी. // 30 // पजी तेणे तेने मारवा. . | नो उपाय चिंतवीने तुरत घरनी अंदर चोतरफ सिंधोरना कानो समुह पथराव्यो. // 31 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- जःपुंजं समंततः // 31 // स्वयं च वंचनाचंचुः / पंचाननसहरबलः // करे कृपाणमादाय / स पन. नमवस्थितः // 32 // स तावदाययौ खेटो / विद्यारितदर्शनः // अनंगतामिव प्राप्तो-ऽनंगराजस्य शासनात् // 33 // सिंदूरदोदसंलगां / तस्य पश्यन् पदावली // लधुहस्ततया धीरः / स कृपाणमवाहयत् // 34 // तेन नाग्यवता खने-नाहतो व्याहितोष्मणा // चित्रमानंच पंचत्वं / दिखंडोऽपि खगाधमः // 35 // नृतधात्रि न किं शिदा / त्वयाप्यस्मै व्यतीर्यत // रोषेणेवेति स दोणीं / खअने उगवामां कुशल तथा सिंहसरखो बलवान ते पोते हाथमां तलवार लेख्ने गुप्तपणे रह्यो.॥३॥ एवामां कामदेवना हुकमथी जाणे अनंगपणाने प्राप्त थयो होय नहि एवो विद्याथी अदृश्य थयेलो ते विद्याधर त्यां याव्यो. // 33 // त्यारे सीधोरना जुकामां चोटेली तेना पगलांनी श्रेणिने जोने ते धीर धम्मिले हाथचालाकीथी पोतानी तलवार चलावी. // 34 // ते नाग्यवान धम्मि ले तेजस्वी तलवारथी मारेलो ते नीच विद्याधर याश्चर्य ने के बे टुकडावाळो थया बतां पंचत्व ( मृत्यु ) पाम्यो ! // 35 // अरे पृथ्वीमाता! ते पण आने शिदा केम न आपी? एवी रीतना रोषवडे करीने जाणे होय नहि तेम तेणे ते वखते कोदाळीथी पृथ्वीने खोदीः / / 36 // अधो. P.P.AC Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म- नित्रेणाखनत्तदा // 36 // अस्य जंतुमधो यांतं / देहश्चाप्यनुगबतु // इति दिप्त्वा जुवोऽधस्तं / सार्थ | स जपर्यतनोदजः // 37 // ततस्तस्यानवजीति-शंका तबधजा हृदि // नूनं समाधिनंगाय / वै. रमौजस्विनामपि // 30 // यथा यथा नृणां संपद् / विषां कंपस्तथा तथा // विवसुः प्रतिपचंद्रो / ग्रस्यते न हि राहुणा // 35 // कंकेलितलमालीनः / स्वगृढोपवनेऽन्यदा // ददर्श दर्शनानंदकरीमेकां मृगीदृशं // 40 // चकोरपारणाकाश वासवारिधिमअनैः // पुण्यैरिंदुर्यदास्यत्वं / प्रा. गतिमां जता थाना जीवनी पाउल तेना शरीरे पण जर्बु जोश्ये, एम विचारी तेना शरीरने ते जूमीमां दाटीने उपर तेणे धूळ नाखी. // 37 // पनी तेना हृदयमां तेने मारवाथी मरनी शंका जत्पन्न थर, केमके वैर जे ते खरेखर पराक्रमीना.सुखनो पण नाश करनारुं थाय ने.॥३॥ जेम जेम माणसोने संपदा मळे , तेम तेम वैरी तरफनो डर वधे बे, केमके तेजविनानो प. डवानो चंद्र करुं राहुथी असातो नथी. // 39 // पनी एक दिवसे ते पोताना घरना बगीचामां ज्यारे अशोकवृदानीचे बेठो हतो, त्यारे जोवाथीज यानंद करनारी एक स्त्रीने त्यां तेणे जो.॥ | // 40 // चकोरपदिनां पारणा, थाकाशमां निवास, तथा समुद्रमा बुझवायादिक पुण्योथी ते P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- प्य नित्योदयोऽनवत् // 41 // अमु केवलमालोक्य / रागमागान्नृणां गणः / / इति देहे दधौ है. मी / जुषां या न पुनः श्रिये // 42 // दधती गतिमारोह-ददोरुहनरालसा / / समुपेत्य समाच. ष्ट / कासि पृष्टेति तेन सा // 3 // अस्ति वैताब्यनमींद्र-दक्षिणश्रेणिषणं // अशोकपुरमस्तोक-लोकश्रीभासुरं पुरं // 44 // मेघसेनो नृपस्तत्र / वृत्रशत्रुसमस्थितिः // राझी शशिप्रना तस्य / शशिज्योत्स्नेव निर्मला // 4 // स्त्री- मुखपणुं पामीने चंद्र हमेशना नदयवाळो थयो . // 41 // केवल तेणीने जोश्ने लो. कोनो समुह राग पामतो हतो, एम विचारीने तेणीए सुवर्णनां थाऋषण धार्या हता, परंतु शोजामाटे धार्या नहोता. // 42 // प्रफुल्लित थता स्तनना नारथी मंद गतिने धारण करनारी एवी ते स्त्रीनी पासे जश्ने धम्मिले पूज्यु के तुं कोण बुं ? त्यारे ते बोली के–॥ 3 // वैताब्य पर्वतनी दक्षिणश्रेणिने शोजावनाएं तथा लोकोनी घणी लक्ष्मीथी देदीप्यमान थयेवं अशोकपुर नामर्नु नगर . // 44 // त्यां इंद्रसरखी स्थितिवाळो मेघसेन नामे राजा ने, ते. ने चंद्रनी कांतिसरखी निर्मल शशिप्रभा नामे राणी . // 45 // ते राजाने युगलीयांनीपेठे मे. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- तस्यावतामपत्ये हे / यथा युगलधर्मिणः // पुत्रो मेघजवो नाम / मेघमालाहमंगजा // 46 // सार्थ | नृपोऽन्यदा समं पत्न्या / राज्यसूत्रं विचिंतयन् // मत्वा प्रज्ञप्तिविद्यातो / जगाद सविषादधीः // 7 // पुत्रोऽयं मेघमालाया। नळ व्यापादयिष्यते // राज्यश्रीस्तदियं देवि / रस्यतेऽन्यत्र कुत्रचित् // 720 | // 8 // तत श्रुत्वा दीर्घनिःश्वासा / मुक्तोल्लासा शशिप्रना // बनार हिमसंजार-दुष्टांनोजसखं मुखे // 4 // बंधुप्रेम्णा स चाहं चा-वियुक्तावितरेतरं // ब्रामं ब्रामं नुवं रि-नंगीनिश्चक्रिवघजव नामे पुत्र तथा मेघमाला नामनी हुँ पुत्री, एम बे संतानो थयां. // 46 // एक दिवसे ते राजा स्त्रीसहित राज्यतंत्रसंबंधि विचार करतो हतो, त्यारे प्रज्ञप्तिविद्याथी जाणीने ते खेदयुक्त थश्ने बोल्यो के, // 4 // या पुत्रने मेघमालानो चार मारशे, अने तेथी हे देवी! या राज्य. लक्ष्मी कोश्क बीजाना हाथमां जश् विलास करशे. // 4 // ते सांजलीने आनंदरहित थयेली शशिप्रना लांबो निसासो नाखीने हिमना समुदयी बळेला कमलसर मुख धारण करवा लागी. // 4 // पनी बंधुना प्रेमथी ते श्रने हुं परस्पर वियोगरहित थयाथका चक्रीनीपेठे घणा प्रकारोथी था पृथ्वीपर नमवा लाग्या. // 50 // पछी हे सौम्य! बाजथी त्रीजे दिवसे हे बहेन ! है - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarade Tu Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- दं ध्रुवं // 50 // इतः सौम्य तृतीयेऽह्नि / कुशाग्रपुरपत्तनें // यामि जामेऽहमित्युक्त्वा / बंधौ प्र- / चचाल सः // 21 // विक्लवाहमपि त्रातु-वियोंगे तस्य पृष्टतः / अद्यानवद्यविद्यातो / जातोत्पा ताययाविद // 55 // जनाननादिहाश्रीषं / वधं बंधोस्त्वया कृतं // ततः कोपेन कंप्रांगी। चेतसीति व्यचिंतयं // 53 // श्रायुस्तस्य ध्रुवं दीणं / योऽवधीन्मम सोदरं // पुबमाबिद्य सर्पस्य / कियनंदति मानवः // 14 // ततस्त्वां दंतुकामाद-मिह सत्वरमागमं // त्वय्यासन्ने तु रोषोऽमि-खि शाग्रपुर नामना नगरमां जावं लु, एम कहीने ते मारो नाश् चालतो थयो. // 51 // त्यारे जा. इना वियोगथी हुँ पण गनराश्ने बाजे निर्मल विद्याथी उडीने तेनी पाउळ यहीं प्रावी. // // 5 // अहीं याव्याबाद में लोकोना मुखथी सांजल्यु के तमोए मारा नाश्नो वध को बे, सारे क्रोधथी कंपता शरीरवाळी हुँ मनमां विचारवा लागी के, // 53 // जेणे मारा नाश्ने मार्यो बे, तेनुं आयु खरेखर दीण थयु बे, केमके सर्पm पुंछड़ें खेंचीने माणस केटझुक जीवी शके? // // 55 // पनी हुं तमोने माखानी श्वाथी तुरत यहीं यावी, परंतु जलपासे जेम अमि तेम तः मारापासे पाववाथी मारो क्रोध शांत थ गयो. // 55 // माटे हे विचारवंत! हवे अापना श. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि| वारिणि मेऽशमत // 55 // तन्मे स्वांगपरिष्वंग-सुधास्वादप्रसादतः // अतिथेस्तथ्यमातिथ्यं / / विचार समाचर // 56 // तामीहग्स्नेहलालापां / स दाक्षिण्यैकदीक्षितः // गांधर्वेण विवाहेन / विवाह्यांकमुपानयत् / / 57 // एवं हात्रिंशतादारैः / / स रेजे पाणिपीमनैः // श्लोकोऽदारैर्मुखं दंतैः। | पुरुषो लदणैखि // 50 // नोगान सोऽभुंक्त कांतानिः / समं तानिरनारतं / / पक्कीमाणफलानीव / / तपःकटपमहीरुहः // एए // कमला पद्मनानाख्यं / लक्ष्मीकेलिनिकेतनं / समये सुषुवे सूनुं / रीरना थालिंगनरूप अमृतनो स्वाद चखाडीने मारी अतिथिनी खरी परोणागत करो? // 56 // एवी रीतना स्नेहयुक्त वचनोवाळी एवी तेणीने दाविणतामां कुशल एवा ते धम्मिले गांधर्व विवा. हथी परणीने पोताना खोळामां बेशामी. // 27 // एवी रीते बत्रीश कन्यानने परणीने अक्षरो. थी जेम श्लोक, दांतोथी जेम मुख, तथा लदाणोथी जेम पुरुष तेम ते धम्मिल शोजवा लाग्यो. // 7 // ते स्त्रीननी साथे तपरूपी कल्पवृदानां पाकेलां फलोसरखा लोगोने ते निरंतर नोगव. वा लाग्यो. // 55 // पजी केटलेक समये तलावमी जेम कमलने तेम लदमीने क्रीडा करवाना घरसरखा पद्मनान नामना पुत्रने कमलाए जन्म आप्यो. // 60 // लीलासहित गतिवानो, धैर्यः | PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। सरसीव सरोरुहं // 60 // सलीलंगमनो धीर-ध्वनिः सर्वांगसुंदरः // स्फुटं कुटुंबचारस्य / धुरीण ...| व सोऽवृधत् / / 61 // एवं दिनेष्वनेकेषु / व्रजत्सु लवलीलया // चतुर्सानधरस्तत्रा–ययौ धर्म रुचिर्मनिः // 6 // सदोद्योतमया लोक-स्फुरत्तमतमश्विदः // यं सेवंते सुविहिताः / किरणां श्व 723 जास्करं // 63 // पारदकेण तपसा | विकारास्तस्करा व // यत्पुरारिता नैव / प्रवेष्टुं पुनरी शते // 64 // यहाग्गांनीर्यमध्येतुं / घनो घर्षरितध्वनिः / / जलयोगादसंप्राप्त विद्यो वहति कालि. युक्त ध्वनिवाळो तथा सर्व शरीरे शोनतो एवो ते पुत्र प्रकटरीते कुटुंबनो भार नपामनारनीपेठे वृधि पामवा लाग्यो. // 61 // एवी रीते क्षणनीपेठे अनेक दिवसो गयावाद त्यां चार ज्ञान धरनारा धर्मरुचि नामे मुनि पधार्या. // 6 // किरणो जेम सूर्यने तेम ते मुनिने हमेशां उद्योत. वाळा अने दुनियामां अत्यंत फेलाता अझानरूपी अंधकारनो नाश करनारा सुविहित मुनि सेवता हता. // 63 // तपरूपी धारदकथी मरेला विकारो तस्करोनीपेठे तेना शरीररूपी नगरथी दर गयेला होवाथी तेमां फरीने प्रवेशज करी शकता नथी. // 64 / / वळी जे मुनिनी वाणीनी गंजीरतानो अभ्यास करखामाटे घर्घरध्वनिवाळो मेघ विद्या न मलवाथी जलना योगथी काळाश Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म मां // 65 // नृणामखंडपाखम-चंडानिलविलोलनैः // विहायतां गतां नाव-वहीं पल्लवयन् | सार्थ | हृदि // 66 // सदाचारजुषा ददो / मलयानिललीलया // पापतापमपाकुर्वन् / नवारण्यत्रमोद्भवं | || 67 // विवेकिकोकिलकुले / स्वाध्यायध्वनिवर्धनः / सन्मनोरथमाकंदान् / फलयोग्यां दशां न यन् // 6 // नव्यपांथान शिववधू-कंठया त्वरयन्नलं // श्रागमार्थरसास्वादे / सादरं विदधानं | // ६ए // स्मेरयन सुमनःश्रेणी / पुरस्कुर्वन तपःस्थिति // तन्वन् परमहो दोषा-वतारं तुबतां नने धारण करे . // 65 // अखंड पाखमरूपी जयंकर पवनना ऊपाटाथी माणसोन। विखराश्ग. येली हृदयमा रहेली नावरूपी वेलडीने नवपल्लव करताथका, // 66 // सदाचारवाळी मलयाचल. ना पवननी लीलाथी संसाररूपी जंगलमा फरवायी नत्पन्न थयेला पापरूपी तापने दूर करता, त. था दद, // 67 // विवेकी मनुष्योरूपी कोयलोना समुहना स्वाध्यायरूपी ध्वनिनी वृद्धि करनारा, तथा स्वजनोना मनोरथोरूपी आम्रवृदोने फललायक स्थितिमां लेश जता, // 6 // नव्योरूपी पंथिनने मोदास्त्रीने मळवानी नत्कंठाथी एकदम उतावल करावता, तथा बागमोना अर्थनो रस | चाखवामां लोकोने यादरयुक्त करनारा, // ६ए // सज्जनोनी श्रेणिने (पुष्पोनी श्रेणिने) प्र. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- यन् // 70 // श्रानंदी कविकीराणां / सदालिनिरनिष्टुतः // स मुनिषयामास / वनदेशं वसंत- / वत् / / 71 // षभिः कुलकं / मुनेनिनंसया तस्य / निर्ययौ नगरान्नृपः // प्रातः पंकेरुहोपास्त्यै / कुमुदादिव षट्पदः / / 72 // साधुचक्रेशतां धत्ते / स विश्वप्रकटं मुनिः // तत्याज राजचिह्नानि / ततस्तदर्शने नृपः // 13 // पश्यन् शमसुधांनोधौ / क्रीमतो दांतचेतसः // निर्विकारान् प्रसन्नास्यफलित करता, तपनी स्थितिने अगाडी करता, महापर्वने (मोटा दिवसने ) विस्तारता, दोषोनी उत्पत्तिने ( रात्रिनी उत्पत्तिने ) स्वल्प करता, // 70 // कविरूपी शुकोने आनंद आपनारा, स. जानोनी श्रेणियों (हमेशां नमराजथी) स्तुति करायेला एवा ते मुनि वसंतऋतुनीपेठे वनना प्रदेशने शोभाववा लाग्या. // 31 // प्रभातमा कमलने सेववामाटे कुमुदमांथी जेम उमर निकळे, तेम ते मुनिने वांदवामाटे राजा नगरमांथी निकल्यो. // 72 // मुनिराज था जगतमा प्रकटरीते साधु मां चक्रवर्तिपणुं धारण करे , एम विचारीने राजाए तेमना दर्शनथी पोतानां राजचिह्नो छोमी दीघां. // 73 // ते मुनिराजनी आसपास रहेला, समतारूपी अमृतसागरमां क्रीमा करता, दांत मनवाळा, निर्विकारी तथा प्रसन्न मुखवाळा मुनि ने जोतोयको // 14 // ते राजा | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म नयनाननितो मुनीन // 14 // नृपो ननाम निर्नाम-कृतमानो मुनीश्वरं / / तत्पादाब्जरजो भालसार्थ स्थले तिलकयन मुदा / / 75 // झातोदंतः परिजना-चम्मिलोऽपि स धर्मधीः // रथारूढो वनं गत्वा || तं मुनि सप्रियोऽनमत् // 16 // नाम नाम निविष्टेसु / नागरेष्वपरेष्वपि // वारेमे देशनां धी. 716 र-ध्वनिमुनिमतल्लिका // 9 // धर्मो जिनोदितोऽसारे / संसारेच मलीमसे / / श्वावकरके रत्नं / सभाग्यैरेव लन्यते // 70 // तं च चंचत्प्रभं प्राप्य / संपत्संपादनदम // पदं मादुः प्रमादस्य / द. अहंकाररहित थइने तेमना चरणकमलनी रजने हर्षथी पोताना ललाटस्थलमां तिलकरूप करतोथको ते मुनिराजने नम्यो. // 35 // ते वखते ते धर्मबुधिवाळो धम्मिल पण परिवारमारफते ते वृत्तांत जाणीने पोतानी स्त्री सहित स्थमां बेशी वनमा जश्ने ते मुनिराजने नम्यो. // 7 // | वळी नगरना बीजा लोको पण नमी नमीने बेशते छते ते मुनिमहाराजे पण मधुर ध्वनिधी दे. शना देवा मांडी. // 7 ॥था असार बने मलीन-संसारमा जिनेश्वरप्रनुए कहेलो धर्म कचरा. नी अंदर रहेला रत्ननीपेठे भाग्यवंतोनेज मळी शके जे. // 70 // चळकती प्रनावाला अने संप| दाने मेळववामां समर्थ एवा ते धर्मने पामीने हे बुध्विान मनुष्यो! चोरसरखा प्रमादने स्थान PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- स्योखि सचेतसः // 7 || तज्ज्ञैः प्रपंचयाँचके / प्रमादः स च पंचधा / कषाया विषया मद्यं / / निद्रा च विकथा तथा // 70 // क्रोधाद्यास्तत्र चत्वारः / कषायाः परिकीर्तिताः॥ चतुऊर्गतिवासाय / ये स्युः प्रतियोगिनां // 1 // क्रोधं त्यजत नो नव्याः / क्रोधो दव व दाणात् // नस्मसा७२७ कुरुते बक-मूलं सुकृतकाननं // 2 // मानो न मानवैर्मान्यो / मद्यपानोपमो ह्ययं // कुरुते च तुरैः शोच्यान / विचेतीकृत्य देहिनः // 3 // को मायां नजतें धीमान् / माया विषधरीव यत् // प्रापशो नहिः // 15 // ते धर्मना जाणकारोए ते प्रमादने कषाय, विषय, मद्य, निद्रा बने वि. कथारूप पांच प्रकारनो वर्णव्यो . // 70 // तेमां क्रोधयादिक चार कषायो कहेला ने, के जे चार प्रकारनी दुर्गतिमा रहेवामाटे प्राणीनने सादीरूप . / / 71 // माटे हे नव्यो! तमो क्रोधनो त्याग करो? केमके. क्रोध ने ते. दावानलनीपेठे दृढमूलवाळां पण पुण्यरूपी वनने जस्मरूप करी नाखे . // 2 // वळी माणसोए. मानने पण धारण क नहि, केमके ते मद्यपानसमान के. माटे ते माणसोने निश्चेतन करीने विद्वानोने शोचनीय बनावे . // 73 / / कयो बुध्विान | माणसं मायाने जजे ? केमके ते सर्पणीसरखी डे, अने ते मनरूपी बिलमां नरा जवाथो बल. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनोबिलाश्रयाजात-बलाद्दशति देहिनः // 4 // हेयो लोनस्य संदोनः / लोनः कुटमाषबिंदुःवत् // विषयति यदुग्ध-मंजुलं गुणमंडलं // 5 // रसो गंधस्तथा स्पर्शो / रूपं शब्दश्च वि. श्रुताः॥ नवंति विषयाः पंच / पंचेषोविशिखा श्व // 76 // विहंगगमातंग-पतंगमृगवानं // তথ্য हंत्येकैकोऽपि विषयो। मिलिताः पंच किं पुनः // 7 // विषयेषु विरज्यध्वं / विषमा विषतोऽपि ये // विषमानीयते दुरा--विषयास्तु शरीरगाः // 7 // मा कृवं सीधुपाने / तया हि निपवान थश्ने प्राणीने मंखे . // 4 // वळी लोचना दोननो पण त्याग करवो, केमके लोन ले ते चाकळाना बिंदुनीपेठे दूधसरखा मनोहर गुणमंमलने दूषित करे . // 5 // कामदेवना बा णोसरखा रस, गंध, स्पर्श, रूप तथा शब्द नामना पांच प्रख्यात विषयो . // 76 // तेमानो एकेक विषय पण पति, नमरा, हाथी, पतंग तथा हरिणनीपेठे माणसने हणे , त्यारे ते पांचे एकठा थयेलानी तो वातज शुं करवी? // 7 // माटे तमो ते विषयोथी विरक्त थान? केमके | तेनं विषयी पण विषम विष तो दरथी लाक्वामां आवे , थने विषयो तो शरीरमांज रहेला | . // // वळी तमो मद्यपाननी पण श्ला न कसे? केमके वायुथी जेम तेम ते मद्यपानथी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- तत्यधः // वात्ययेव जनः शिष्ट-प्रतिष्टागिरिशृंगतः // // न निद्राविह्वलै व्यं / यजीवनपि निद्रया // नवेत्परनवं प्राप्त / श्व प्राणी विचेतनः // 50 // नरेशदेशनक्तस्त्री-नेदतो विकथा स्तथा // चतस्रोऽपि कषायाणां / सहोदर्य श्वोदिताः // ए१ // मात विकथायत्ता / यत्तानिर्वि७२० क्शो जनः // पिशाचकीव यांसं / कालं गमयतेऽफलं // ए॥ प्रमादाः प्रसरं प्राप्य / पंच वं चनचंचवः // शूरस्यापि बुधस्यापि / धर्मरत्नं हरंत्यमी // 53 // तत्तद्वारयितुं धीरा / यतध्वमवधामनुष्य उत्तम प्रशंसारूपी पर्वतना शिखरपरथी नीचे पटकी पडे . / / ए // वली प्राणीनए नि. द्राथी पण अति व्याकुल थq नहि, केमके निद्रावडे करीने जीवतो प्राणी पण मृत्यु पामेलानी. पेठे चैतन्यरहित थाय . // 70 // रानकथा, देशकथा, नक्तकथा तथा स्त्रीकथा, एम चार प्र. कारनी विकथानने कषायोनी बहेनसरखी कहेली . / / ए१॥ माटे प्राणीनने ते विकथाने श्रा धीन थq नहि, केमके ते विकथा थी विवश थयेलो प्राणी पिशाचकीनीपेठे घणो समय नि फल गुमावे . // ए // उगवामां कुशल एवा ते पांचे प्रमादो फेलावो पामीने शूरा धने वि. द्वान मनुष्यना पण धर्मरूपी रत्नने हरी ले . // 73 / / माटे हे धीर मनुष्यो! ते प्रमादोने नि. P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 730 धाम्म निनः // येन दौर्गत्यजीनेदो-दुतां निवृतिमाप्नुथ // एU || मुनेत्यानया पुण्यो बासनासः / सार्थ | सभासदः / जीवन्मुक्तमिवात्मानं / मेनिरे मुदिताशयाः / ए५ // प्रणम्य धम्मिलोऽपादीत् / त. |दा तं झानिनं मुनिं / / मम निर्मम को हेतु-स्त्रुटौ वृधौ च संपदः // ए६ // सितदंतप्रनादंना दर्शयन ज्ञानवर्णिकां // मुनिः प्राग्जन्मवृत्तांतं / तं प्रत्यनिदधे ततः // ए॥. | अस्त्यत्र नारते क्षेत्रे / भृगुकबं महापुरं // यस्य विप्रस्य वध्वेव / रेवयासेवि सन्निधिः ॥णाम. वाखामाटे तमो चीवटपूर्वक प्रयत्न करो? के जेथी दुर्गतिना जयने नेदवाथी नत्पन्न थयेला मो. दाने मेळवी शको. // 4 // मुनिना एवी रीतना वचनथी पुण्योना नल्लासथी तेजस्वी थयेला सन्नासदो यानंदित प्राशयवाळा थश्ने पोताना आत्माने जीवन्मुक्तनीपेठे मानवा लाग्या.॥ // 5 // हवे धम्मिले ते झानी मुनिने नमीने पूज्युं के, हे निर्मम मुनिराज! मार, संपदाना कय अने वृध्नुिं शुं कारण ? // ए६ // त्यारे श्वेत दांतोनी कांतिना मिषथी झाननो नमुनो दे. खामताथका ते मुनिराज तेने तेना पूर्वनवन वृत्तांत कहेवा लाग्या.-॥ ए॥ था नरतक्षेत्रमा भृगुकब नामे एक महान नगर , स्त्री जेम नरिनुं तेम जे नगरनु पम P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- हाधनान्निधस्तत्रा-नवत्कौटुंबिकापणीः // मिथ्याश्रुतवचोनीली-रागरंजितमानसः ॥ण्णा श्रुतिं न यस्य जैनी वा-प्रविवेश कदाचन / / मरुदेशं मरालीव / कामगौरिख पक्कणं / / 3400 // दयाहिंसाविवेकोऽपि / येन मिथ्याशा भृशं / जन्मांधेनेव नावोधि / वासरदाणदांतरं ॥१॥र्ध्वणस्येव पीमास्य / पल्यपि पापपंकिला // सुनंदाबस्तयोः पुत्रः / सच्चरित्रः खन्नावतः // 2 // कदाचन गृहे तस्य / सुहृदः केचिदाययुः / / स तेषां जयतीनक्ति-ज्यिगौरवमातनोत // 3 // सुनंदः पितरा खं रेवा नदी सेवी रही . // ए // त्यां एक महाधन नामनो कौटुंबिकोनो अग्रेसर रहेतो ह. तो, परंतु तेनुं मन मिथ्यात्वीजनां शास्त्रोनां वचनोरूपी गळीना रंगथी रंगाये हतुं. // ए॥ वळी मरुदेशमा जेम हंसणी, तथा दरिद्रीप्रते जेम कामधेनु तेम तेना कर्णमां को पण दिवसे जैनवचने प्रवेश कर्यो नहोतो. // 3400 // वळी जन्मांधनीपेठे ते अत्यंत मिथ्यादृष्टि महाधने दिवसे के रात्रिए दया के हिंसा वच्चेनो तफावत पण जाण्यो नहोतो. // 1 // दुष्टगुमडांवालाने जेम पीडा तेम तेनी स्त्री पण पापोथी मलीन थयेली हती, तेनने स्वभावधीज उत्तम चरित्रवाको सुनंद नामे पुत्र हतो. // 2 // हवे एक दिवसे तेने घेर केटलाक मित्रो पाव्या, त्यारे ते P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 732 धाम्म- देशा-द्ययौ पल जिघृदया // एकेनागंतुना युक्त-स्तदा सौनिकपाटकं // 4 // विक्रीते प्राक्तने / मा मांसे / नवे त्वक्वथिते पशौ // नवितव्यतया तत्र / न तान्यां पलमाप्यत // 5 // मूर्ते जलच. रावते / ततः कैवर्तपाटके // तौ जग्मतुर्न तत्रापि / लेनाते प्राग्हतांस्तिमीन् / / 6 / / सुनंदेन नि. पिछोऽपि / तत्र प्राघुर्णकोऽग्रहीत् // जीवतः शफरान पंच / क नु मिथ्यादृशां कृपा // 7 // व्याव तॊऽसावुपजला-शयं वापि जलाशयः // जगौ सुनंदमन वं / तिष्टेविदुपैम्यहं // 7 // इत्युदि. महाधन घणी भक्तिपूर्वक तेजनो नोजनसत्कार करखा लाग्यो. // 3 // ते वखते पिताना हुकमथी ते सुनंद मांस लेवानी बाथी आवेला एक परोणाने साथे लेश्ने कसाश्वामामां गयो. // // // त्यां पूर्वनुं मांस वेचार जवाथी, तथा नवो पशु चामडीना दरदवाळो होवाथी नवितव्यताने योगे तेजने मांस मल्यु नहि. // 5 // पनी ते मूर्तिवंत जलचरोनी खाणसरखा मबीमा. रना पामामां गया, परंतु त्यां पण तेजने प्रथमथी मारेलां मत्स्य मयां नहि. // 6 // सारे ते परोणाए सुनंदे निषेध्या छतां पण त्यांथी पंच जीवता मत्स्यो लीधा, केमके मिथ्यात्वीनने दया क्यांथी होय? // 9 // पजी त्यांथी पाग वळीने ते जड श्राशयवाळो परोणो एक जलाशयपासे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Tu Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- त्वा करे तस्य / समर्प्य शफरानसौ // जगाम देहचिंतातः / सोऽपि तत्रैव तस्थिवान् // // दृ / | ष्ट्वा जलमनूपस्थं / मीनास्तत्र जलाशये // तेनालोक्यंत ताम्यंतो। मातुरंकमिवानकाः // 10 // नव्यात्मतया जाता-नुकंपः कंपयन् शिरः // बालोऽप्यपालधीधाम / मनसा विममर्श सः // 11 // 733 प्रविष्टा जलदुर्गेऽपि / ही कुकर्मसु कर्मवैः // अन्याया श्व बध्यते / दीना मीना अमी नरैः // 12 // | जंतुघातं प्रकुर्वति / दणिकस्वात्मतृप्तये // शीतले शापनोदाय / दवदानमिवाधमाः // 13 // अपि श्रावीने सुनंदने कहेवा लाग्यो के हुं हमणा यावं बुं त्यांसुधी तुं यहीं रहेजे. // 7 // एम कही तेना हाथमां ते मत्स्यो सोंपीने ते देहचिंतामाटे गयो, अने ते सुनंद पण त्यांज बेठो. // // // हवे त्यां ते जलाशयमां नजीक रहेछु जल जोश्ने माताना खोळामां जेम बालको तेम ते मत्स्योने तेणे तडफमता जोया. // 10 // त्यारे ते सुनंद बालक होवा तां पण महाबुझिवा. न नव्य जीव होवाथी दयायुक्त थश्ने मस्तक धुणावतोथको मनमां विचारखा लाग्यो के, // 11 // परेरे! जलरूपी किल्लामां नरा बेठेला एवा पण या विचारा मत्स्योने नीच कार्यमां यासक्त थयेला मनुष्यो अन्याय करनाराजनीपेठे बांधे ! // 12 // अधम माणसो ठंडीनी असर दर | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म मृत्युदशां प्राप्ताः / शुश्रूष्यतेऽत्र केचन // वध्यंते केऽपि जीवंतो--ऽप्यराजकमिदं जगत् // 14 // सार्थ | पापप्रेरणया बंधू-नरके पातयंति ये // चेत्तेऽपि सुहृदः ख्याता ! हंत के तर्हि वैरिणः // 15 // ...] एवं सोऽक्षिपदाबित्र-दनुकंपारसं वरं / / संवरे संवरखातं / संवरे मुनिवन्मनः // 16 // यागात्प्रा. 734 धुर्णकस्ताव-दादीच क ते रुषा // स प्राह साहसी मीना / पयाच्यंत वारिणि // 17 // अ. करवामाटे जेम दावानल सळगावे, तेम पोताना यात्मानी दणिक तृप्तिमाटे नीच माणसो जी. वहिंसा करे . // 13 // मोतनी अणीपर पहोंचेला एवा पण केटलाक प्राणीननी था जगतमां शुश्रूषा करवामां आवे , अने केटलाक बिचारा प्राणीनने जीवतांज रहेंसी नाखवामां आवे रे. माटे या जगत राजाविनानुं . // 14 // पापकार्यनी प्रेरणा करीने जे माणसो बंधुनने नरकमां पाडे , अने तेनने पण जो मित्रो कहेवामां आवे, तो पनी अरे! वैरीज़ कोने कहेवा ! // 15 // एवी रीते उत्तम दयारसने धारण करीने मुनि जेम पोतानुं मन संवरमां तेम तेणे ते मत्स्योनो समुह ते जलकुंम्मा छोमी दोधो. // 16 // एवामां ते परोणाए यावीने तेने क्रोधपूर्वक पूज्य के ते मत्स्यो क्यां गया? त्यारे ते पण साहस धरीने बोल्यो के में तो ते मत्स्योने या जलमां | P.P.AC.Gunratnasuri Ms. Jun Gun Aaradhak Trust Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि। हो ते चापलं वत्स / न प्राच्यैः सदृशो नवान // अविमृश्यविधेयत्व-फलं संप्राप्स्यसि स्वयं // 17 // एवं निर्भर्त्सयन बालं / व्यालं क्रोधितया जयन् / / जगौ स तस्य दुर्वृत्तं / तत्पितुश्चित्तकल्पितं / / // 15 // किमु त्वममुचो मीना-नेवं पितरि पृति // कारणं करुणामेव / निर्विकल्पं जजल्प 735 | सः // 50 // तात ते मे वयस्याना-मपि प्राणाः प्रिया यथा / / सर्वेषामपि जंतूनां / तेऽथ किम न मन्यसे // 21 // कुटुंब वा शरीरं वा / जुक्त्वा नवति दूरतः / यात्मैव सहते जंतु-जातघाछोडी मेव्या . // 17 // अरे गेकरा! या तारं जगंडळापणु केवू? खरेखर तुं तारा पूर्वजोजे. दोन नीवड्यो, था तारां वगरविचार्या कार्यनुं फल तुं पोतानीमळेज गमीश. 17 / / एवीरीते क्रोधीपणाधी सर्पने पण जीततो ते परोणो ते बालकने निबंबवा लाग्यो, धने नुं या उराचरण मनमां राखीने तेना पिताने कही दीधुं. // 15 // तें मत्स्योने शामाटे गेमी मेव्या ? एम तेना पिताए पूज्वाथी तेणे शंकारहित दयाने तेना कारणरूप जणावी. // 20 // (वळी ते बो. व्यो के) हे पिताजी! तमारा, मारा तथा मित्रोना पण प्राणो जेम वहाला , तेम सर्व प्राणी. जना पण तेवाज होय एम आप शामाटे मानता नथी? // 21 // कुटुंब अथवा शरीर तो खा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घम्मि तनपातकं // 2 // श्रमीनिर्वचनस्तस्य / घृतवजीतलैरपि / ज्वरीव तापमधिकं / दधानः प्रालपः / पिता // 3 // रे इष्ट किं वयं जैना / यदेवं वर्ण्यते दया // न हि चैत्रोत्सवे मैत्र-कुलाचारः | प्रवर्त्तते // 24 // पितुः पितामहस्यापि / त्यजन् मागे सुतबलात / / त्वमरिष्टं कुलेऽस्माकं / वटे प्लः दफलं यथा // 25 // प्रपोष्यंते निजप्राणे-ये वयस्याश्चिरागताः // प्ररप्राणान् ददत्तेषां / शंकसे कोऽसि रे शव // 26 // निर्दयेनेति तेनोक्त्वा / प्रहत्य लगुडादिनिः // दयावानिति बालोऽसौ / सीने दूर थ जाय बे, परंतु जीवहिंसाथी नत्पन्न थयेवू पाप तो श्रात्मानेज सहन क पडे जे. // // एवी रीतनां तेनां घृतसरखां शीतल वचनोथी पण ज्वराकुल माणसनीपेठे अधिक खेदने धारण करनारो तेनो पिता बोल्यो के, // 23 // अरे दुष्ट! शुं थापणे जैनीन जीये! के जेथी तुं यावी रीते दयानुं वर्णन करी रह्यो ! केमके चैत्रना नत्सवमां कई मैत्रनो कुलाचार कसतो नथी. // 24 // वामां पीपळाना फलानीपेठे बापदादाना मार्गने गेडनारो तुं खरेखर पुत्रना मिषधी अमारा कुलमां अंगारो जाग्यो बु. // 25 // अरे दुष्ट! घणे काळे पावेला था मि. त्रोने पोताना प्राणोथी पण ज्यारे थापणे पोषवा जोश्ये, त्यारे तेथी नलटुं परना प्राणो था. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- स्वगृहानिरखास्यत // 17 // धनुनीतोऽपि लोकेन / कोपं तस्मिन्न सोऽत्यजत // प्रायेण दीर्घरोषाः | स्यु- जगा श्व तादृशाः // 2 // तिरस्कृतोऽपि बालोऽसौ / न मालिन्यमलंगयत् // पटोपमं दयापुण्यं / पश्चात्तापरजोनरैः // 25 // कुर्वन् यथातथा वृत्तिं / स प्रकृत्या दयाईया // बालो ब. ___737 छमनुष्यायु-रचिरेण व्यपद्यत // 30 // अस्ति शैलनितंवस्था / पल्ली विषमकंदरा // राजते रा. जधानीव / पापमापस्य या जुवि / / 31 // मंदरोऽमंदरोषोऽनु-दधिपस्तत्र निःकृपः // वनमाला पतां पण शंका पमाडनारो तुं क्यांथी कुलमां पाक्यो? // 26 // एम कहीने ते निर्दय महाधने ते बालकने दयालु जाणी लाकमायादिकथी मारीने पोताना घरमांथी बहार कहाडी मेव्यो. // // 27 // लोकोए समजाव्या छतां पण तेणे ते बालकप्रतेनो कोप जोड्यो नहि, केमके प्रायें क. रीने तेवा माणसो सोनीपेठे दीर्घ रोषवाळा होय . // 2 // एवी रीते तिरस्कार पाम्या उतां पण ते वालके पश्चात्तापरूपी रजना समुहथी पोताना वस्त्रसरखां दयापुण्यने मलीन कर्यु नहि. / / // 20 // पनी पोताना दयालु खनावथी जेम तेम बाजीविका चलावीने ते बालक मनुष्यनु था. यु बांधीने तुरत मृत्यु पाम्यो. // 30 // पर्वतनी मेखलामां विषम गुफा वाळी एक पल्ली , के जे Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ 730 धाम्म- प्रिया तस्य / नर्तृतुल्यगुणोदया // 35 // स च जीवः सुनंदस्य / तस्याः कुदाववातरत् // समये / च प्रसूता सा / तनयं सरनान्निधं // 33 / / कुर्वन कुलोचिताः केली-ाधमात्रपरिबदः // स ना. | रीनेत्रविश्राम-स्थानमाप वयः शिशुः // 34 // अथाकस्मिकरोगेण / मंदरे न्यग्जवं गते // न्यवे. शि सरजस्तस्य / पट्टे पल्लीमहत्तरैः // 35 // स्वाः प्रजाः पालयंश्चाप-करः पस्किरान्वितः // श्रथा पृथ्वीपर रहेला पापरूपी राजानी राजधानीसरखी शोने . // 31 // त्यां अत्यंत क्रोधी भने निर्दय मंदर नामे राजा हतो, तेने नरिसरखाज गुणोना नदयवाळी वनमाला नामनी स्त्री ह. ती. // 3 // हवे ते सुनंदनो जीव तेणीनी कुदिए अवतर्यो, थने तेथी संपूर्ण समये तेणीए सरन नामना पुत्रने जन्म प्राप्यो. // 33 // ते बालक फक्त पाराधिना परिवारवाळो थश्ने पो. ताना कुलने नचित क्रीडा करतोथको स्त्रीनेना नेत्रोने विश्राम करवाना स्थानरूप यौवनवय पा म्यो. / / 34 // हवे को थाकस्मिक रोगथी ते मंदरभिल्ल मरीने नीची गतिमां गयाबाद पद्धीना मुख्य लोकोए ते सरनने तेनी पाटे स्थाप्यो. // 35 // पनी ते पोतानी प्रजा पालतोयको एक दिवसे हाथमां धनुष लेने परिवारसहित पल्लीनजीक रहेला पर्वतपर गयो. // 36 // त्यां रह्याथ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धग्मि- न्येारुद्यमी पटख्या / उपशैलं जगाम सः // 36 // तत्र स्थितो ददर्शासौ / नातिदुरे विहारिणः / // नरान्निरायुधान कांश्चिद् / मिन्यस्तदृशः कृशान // 37 // ततः सोऽचिंतयत्पल्ट्या-मिह ये | संति मानवाः // विपरीता अमी तेन्यो / वीदयंते बत के पुरः // 30 // ज्ञातं नष्टं धनं दृष्टु-मे७३ए षां दृष्टिरधोमुखी // निःसंदेहं च देहेऽपि / दौर्बल्यं चिंतया तया // 35 // तेनैव कारणेनैते / मंः दं मंदं चरिष्णवः // दर्देवाय कस्मैचि-तदाप्त्यै मूर्घजानपि // 40 // यत्पुनः परितः पछी / ब्राकां तेणे नजीकमां चालता, श्रायुधविनाना तथा पृथ्वीपर दृष्टि राखनारा केटलाक दुर्बल पुरुषोने जोया. // 37 // त्यारे ते विचारखा लाग्यो के था पल्लीमां जे माणसो रहे ने तेथी विपरीत वेषवान वळी या अगामी कोण देखाय ? // 30 // अहो! हवे मालुम पडयु, खोवायेलां ध. नने जोवामाटे या लोकोए पोतानी दृष्टि नीची राखीने, अने खरेखर तेज चिंताथी तेन्ना श. रीरमां पण पुर्बलता . // 35 // वळी तेज कारणथी तेज मंद मंद चाले , अने ते धन मे. ळववामाटेज तेनए ( मानतातरीके ) पोताना केशो पण कोश्क देवने यापेला जणाय ने.॥ // 40 // परंतु आ पसीनी आसपास जे ते हथियाररहित जमे , तेज एक आश्चर्य ने, के. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H . धम्म म्यंत्येते निरायुधाः // तदेव चित्रं यन्नात्र / दृष्टः कोऽपि निरायुधः // 41 // एवं विकल्पतरूपस्थः / / सार्थ स तेषां सविधं ययौ // धर्मलानाशिषं चास्मै / ते दयांचक्रिरे स्वयं // 45 // के यूयं किमिहाया ता। नाषिता इति तेन ते // मृदुवाचोचिरे चारु-मुखपोतावृताननाः // 3 // महानुनाव धर्मझा / धर्मतत्वोपदेशकाः // श्रमणा इति विख्याता / धर्ममार्गे स्थिता वयंः // 4 // // कामंतः सारसार्थेन / सममेनां गिरिस्थली // सार्थभ्रंशामंतोऽत्र / समाजग्मिम सुंदर // 45 // साधुसंगसमु. मके यहीं कोश्ने हथियाररहित दीठो नथी. // 41 // एवी रीते अनेक प्रकारना विकल्पो कर तोथको ते तेजनीपासे गयो, त्यारे तेनए पण तेने पोतानीमेळेज धर्मलाननी आशीष पापी. // 42 // तमो कोण छो? अने यहीं केम याव्या गे? एवी रीते तेणे बोलाव्याथी तेन मुखपर मुहपत्ति राखीने मिष्ट वचनोथी बोल्या के, // 13 // हे महानुनाव! अमो धर्म जाणनारा, धर्मतत्वनो उपदेश देनारा तथा धर्ममार्गमा रहेनारा श्रमण नामथी प्रख्यात थयेला बीये. // 4 // वळी हे सुंदर! अमो एक सथवारानी साथे चालता इता, परंतु तेथी विखुटा पमवाथी अमो भम | ता नमता यहीं या गिरिस्थलीमां भावी चड्या जीये. // 42 // साधुना संगथी उत्पन्न थयेला P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म दुनृत-पुण्योहासः सुवासनः // सरनः प्राह को धर्मों। धर्मझा जवतां मतः॥ 46 // अनूचाना | स्तमूचाना / दृष्ट्वा प्रकृतिन्नद्रकं // वत्स खबोऽसि यम-विवेकं प्रचिकीर्षसि // 4 // समासेनै व धर्मस्य / रहस्यं ब्रूमहे शृणु // परो हि दूयते येन / कार्य धर्मार्थिना न तत् // 4 // त्यजेदधिपमन्यायं / वयस्यं दांनिकं त्यजेत् // दृष्टापायं त्यजेद्दासं / त्यजेम दयोशितं // 4 // उत्तास्यति पानीया–त्तिमीन जालेन ये जमाः // ते शंसंति नवे नाव्यं / पानीयोत्तारमात्मनः // 10 // पुण्यना नशासवाळो तथा स्वब वासनावाळो ते सरन बोल्यो के, हे धर्मज्ञ मुनि! अापने क. यो धर्म सम्मत थयेलो ? // 46 // त्यारे ते मुनि तेने स्वनावधी नद्रक जाणीने बोल्या के हे वत्स! तुं खरेखर निर्मल हृदयवाळो बो, के धर्मनुं विवेचन करवानी श्ला करे . // 4 // हवे अमो तने संक्षेपमांज धर्मर्नु रहस्य कहीये जीये ते तुं सांजळ? जेथी परप्राणीने फुःख थाय एवं कार्य धर्मार्थी माणसे करवू नहि. // 4 // अन्यायी राजानो, कपटी मित्रनो, नुकशानीवाला निवासनो अने दयारहित धर्मनो त्याग करवो. // 4 // जे जम माणसो जाळवडे जलमां. थी मत्स्योने जतारे , तेज था संसारमा पोतानुं पाणी पण नतरशे एम जणावे . // 20 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्यशूकराजा ये / शुकराजादिपत्रिनिः // विध्यंते तेऽचिराचंचु–घातैर्नरकपत्रिनिः // 51 // | पतंगानां गतिबेदो / यैर्वधेन व्यधीयत // प्रात्मनः सुगतिबेदं / तेनिरे ते नराधमाः // 5 // अमौलिदेहमस्तंभ / गेहं रूपमयौवनं // प्रवृत्तिक्षेत्रमस्वामि- जैन कुलमनंगजं // 53 // अस्मृ. तिश्रुतिरझानं / व्रतं धनमनर्जनं // अमूलः पादपो धर्मो / विनश्यत्यदयस्तथा // 24 // आमंतगजमाकुंथु / यजीवो रदयते दितौ // एष एव सतामिष्टो / धर्मो दुःकर्ममर्मजित् / / 55 // मुनिजे निर्दयशिरोमणिनं बाणोथी शुकराजादिकोने मारे जे, तेनने थोमा काळमांज नरकना पदिन चंचुघातोथी वांधी नाखे . // 51 / / जे वध करीने पदिजनो गतिनंग करे , ते नी. च माणसो पोतानी सुगतिनो भंग करे . // 55 // जेम मस्तकविना शरीर, स्तंन्नविना घर, यौवनविना रूप, वाडविना खेतर, नायकविना सैन्य, पुत्रविना कुल, // 53 // स्मरणविना शास्त्र, झानविना चास्त्रि तथा कमाणीविना जेम धन, अने मूळविना जेम वृक्ष तेम दयाविनानो धर्म नाश पामे . // 54 // जेक हाथीथी मांडीने कंथवासुधीना जीवनुं रक्षण कर तेज दुष्कर्मोना | मर्मोने नेदनारों धर्म सज्जनोने वहालो . // 25 // एवी रीते ते मुनिए सरनने पुण्यमार्गः / Jun Gunadnak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13 धम्मि- निः सरनः पुण्य-मार्गमित्यवतारितः // स मार्गेऽलीलगत साधू-नहो तस्य कृतज्ञता // 56 // / सौप्तिकायान्यदा ऋरि-निबः पल्लीपतियुतः // श्रात्तसर्वायुधोऽचाली तेषां ह्येषव जीविका // 7 // तमोरूपास्तमोवेला–मिबंतः सौहृदादिव // शवरा यादिनेशास्तं / वने तस्थुनिलीय ते // 27 // तदा पुण्योदयाहाचः / साधूनां सरनोऽस्मरत् / / शृणीयंते हि ताश्चित्त-हिपे कापयचारिणि ॥रणा | शिक्षितः परपीडायाः // परीहारं मुनीश्वरैः // तस्यामेव प्रवृत्तोऽस्मि / धिग्मां उःशिष्यशेखरं // 6 // मां नतार्यो, त्यारे तेणे पण ते साधुनने मार्गे चडाव्या, अहो तेनुं कृतपणुं केवु नमदं ! // // 56 // हवे एक दिवसे ते सरजपल्सीपति घणा निल्लोसहित सर्व हथियारो लेश्ने धाड पाम वामाटे चाल्यो, केमके तेजनी एज आजीविका . // 27 // अंधकाररूप ते निलो जाणे मि. त्राश्थीज अंधकारनी वेलाने बताथका क सूर्यना पाथमवासुधी वनमा बुपा रह्या. // 17 // एवामां पुण्यना उदयथी सरजने साधुर्जनां ते वचनो याद अाव्यां, केमके कुमार्गे चालनारा चि. तरूपी हाथीने पटकाववामां ते मुनिवचनो अंकुशसमान होय . // 55 // अरे! ते मुनिए परने पीडा न जपजाववी, एम मने शिखामण आपी ने, अने तेज परपीडामा हुँ प्रवृत्त थयो , Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.GunratnasuriM.S. Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHH धम्मिः जनं हत्वा धनं हत्वा / गोन्यस्तर्णान् वियोज्य च // अवस्था सैव मे जुयो। नविता पंचषैर्दिनैः | माई // 61 // वृत्तिर्मगलुजंगानां / सुकरा तृणवायुन्निः // मनुजा हंत दुःपुरो–दरा देवेन चक्रिरे // | // 6 // वरं बुद्धदासहनं / गहनं सेवितं वरं // न तृप्तिरपि दुःकर्म-प्रनवैर्विनवैः पुनः॥ 63 / / किमेचिरायुधैर्जतु-हत्ययेव मलीमसैः // अमीभिः सैनिकैः किं वा / श्वसंचारसाधकैः // 64 // | एवं शमसुधांनोधि-वीचिविमलिताशयः // सोऽचालीदायुधांस्त्यक्त्वा-ऽनापृच्च्य च परिबदं // 6 // माटे मने कुशिष्योना सरदारने धिक्कार . // 60 // माणसोने मारवाथी, धन हरवाथी तथा गायोथी वानरमांननो वियोग कराववाथी मारी पण पांच दिवसोमां तेज अवस्था थशे. // 1 // हरिण अने सोनी पण घास अने वायुथी थती आजीविका सहेली ने, परंतु अरेरे! दैवे मा. णसोने दुःखे पेट नराय एवा कर्या . // 6 // कुधा सहन करवी सारी, वनमां निवास करखो सारो, परंतु कुकर्मथी मेळवेलां धनथी तृप्त थq पण सारं नथी. // 63 // जीवहिंसाधी जाणे मलीन थयेला एवा या हथियारोनुं शं प्रयोजन के ? तथा नरकमां मोकलनारा था सैनिकोनुं पण शुं प्रयोजन ? || 64 // एवी रीते शांततारूपी अमृतसागरना मोजांनथी निर्मल थयेला था | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म | कृपापूर्णमनाः पाप-जीनिर्मुक्तमत्सरः // सवृत्तमत्यजन्नित्य-मायुः स स्वमपूरयत् // 66 // कृत्वा / . | समाधिना कालं / कुशाग्रपुरपत्तने // कुले सुरेंद्रदत्तस्य / धम्मिल त्वमनः सुतः // 67 / / यत्प्राग्न वे दयापुण्य-मनन्यतुलितं व्यधाः // पुष्टः दीणोऽपि तेनाय-मभवहिनवस्तव // 6 // 74 गुरोरिति गिरास्मार्षी-घम्मिलः प्राच्यजन्मनः // ग्रंथस्य विस्मृतस्येव / विनेयो विनयोज्ज्वलः ॥६॥णा ततो वैराग्यतो रोगे-ष्विव जोगेष्वनादरी // दध्यावध्यात्मबुट्यासा-विति व्रतरुचिश्चिरं / / 7 / / शयवालो ते सरन हथियारो गेमीने परिवारनी रजा लीधाविनाज त्यांथी चाव्यो गयो. // 6 // दयाथी संपूर्ण मनवाळा, पापोथी डरेला तथा मत्सररहित थयेला ते सरने हमेशां पोतानुं सदा. चरण नहि बोडलांथकां पोतानुं आयु संपूर्ण कयु. // 66 // पनी समाधिपूर्वक काळ करीने कु. शाग्रपुर नामना नगरमां तुं सुरेंद्रदत्तना कुलमां धम्मिल नामनो पुत्र थयो. // 67 // पूर्वनवमां तें जे अनुपम दयापुण्य कयु, तेथी तारो दीण अयेलो वैभव पण पागे पुष्ट थयो. // 60 // . विनयथी निर्मल थयेलो शिष्य गुरुना वचनथी जेम विसरेला ग्रंथने याद करे तेम धम्मि ले गुरुना वचनथी पोतानो पूर्वभव याद कर्यो. // 65 / / पछी वैराग्यथी रोगोसरखा लोगोमांया. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धजि. अहो मोहाऊनो जन्म-जराचं दूषणवजं // न पश्यति नवे काली / कलत्रमिव दुर्नयं // 31 // न जोगैरिनिर्भुक्तै-रुपर्युपरि तृप्यति // संसारी विविधाहारै-नस्मकव्याधिमानिव // 12 // सजुजं गमिवागारं / रजोमिश्रमिवोदकं // सत्रासमिव माणिक्यं / मलक्विन्नमिवांबरं // 73 // सकंटकमि 746 | वाध्वानं / क्रूरकेंद्रमिवोदयं // न स्वीकुर्याद बुधो रि-क्वेशं वैषयिकं सुखं // 7 // थाजन्म य दररहित थश्ने चारित्रमा रुचि धारण करीने अध्यात्मबुध्थिी ते चिरकालसुधी विचारखा लाग्यो के, // 70 // अहो! कामी माणस जेम दुराचारी स्त्रीने जोतो नथी, तेम था संसारमा माणस मोहने लीधे जन्म, जराआदिक दूषणोना समुढ्ने जोतो नथी. // 31 // भस्मक व्याधिवाळो मा. णस जेम विविध जोजनथी संतुष्ट थतो नथी, तेम संसारी माणस पण जपरानपर जोगवेला घ. णा नोगोथी पण संतुष्ट थतो नथी. // 7 // माटे सर्पवान घरनीपेठे, धूळथी मिश्र थयेला ज लनीपेठे, त्रासवाळा माणिक्यनीपेठे, मेलथी नरेला वस्त्रनीपेठे, / / 73 // कांटावाळा मार्गनीपेठे तथा क्रूर केंद्रवान उदयनीपेठे डाह्यो माणस घणा क्लेशोवाळा वैषयिक सुखने स्वीकारतो नथी. / // 14 // क जीवितपर्यंत क्रोमोगमे महाक्लेशोथी जे धन नपार्जन कराय बे, ते धन मृत्युस Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्नि महावेश-कोटीभिः समुपायंत // पश्यतः परकीयं स्या-तघ्नं निधनदणे / / 75 // बिनरांचक्रि. रे स्नेहा-द्या निजांगवदंगनाः // पत्युर्मृत्युदणे ताः स्युः / स्वस्वार्थप्राप्तितत्पराः // 76 // ये स्वतो. ऽप्यधिक स्निग्धैः / कवलैः पोषिताः सुताः // तेऽपि दारूणि दत्वांते / सुखिता हूंजते धनं / / 7 / / कृत्याकृत्याविचारेण / यदपालि कलेवरं // वैरिण्या जरसा प्रांते / मिलितं तदिनंदयति // 7 // | एवं तांमवयंश्चित्त-रंगे नीरागतानटीं / सुगुरोश्चरणौ नत्वा / तत्वार्थीति व्यजिझपत् // 70 // प्र. | मये जोतजोतामां पारकुं थाय . // 75 // जे स्त्रीननु स्नेहथी पोताना शरीरनीपेठे पोषण करवामां आव्युं बे, तेन पण पतिना मृत्युसमये पोतानो स्वार्थ साधवामाटेज तत्पर थाय जे. // 76 / / जे पुत्रोने पोताथी पण अधिक रीते स्निग्ध लोजनोथी पोषवामां श्राव्या , तेन पण अंतसमये काष्टो पापीने पनी सुखेथी ते धन जोगवे . / / 99 // कृत्य अकृत्यनो विचार कर्याविना जे या शरीरने पोषवामां याव्यु बे, ते पण यंते वैरी घमपणसाथे मलीने नष्ट थाय . // 70 // पवी ते वैराग्यरूपी नटीने पोताना मनरूपी रंगमंझपमा नचावतोथको ते धम्मिल ते सुगुरुना च. रणोमां नमीने तत्वनो अर्थी थयोथको विनंति करवा लाग्यो के, // 7 // हे प्रजो! भाग्योद Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि नो जाग्येन दृष्टोऽसि / जंगमस्त्वं सुरफुमः // दत्वा दीदाफलं तन्मां / सुकृतार्थ कृतार्थय // 70 // / | ततः सूरिरमु मुक्त-मुक्ताजुषमदूषणं / गुरुपादांबुजस्पर्शा-धन्यमन्यमदीदयत् / / 71 // विशात श्रमणाचारो / विहरन गुरुणा सह // अंमान्यधिजगे जक्ति-रंगादेकादशापि सः / 2 // अ. | धीतश्रुतसूत्रार्थ-स्मृतिव्यग्रं न तन्मनः // अवकाशमपि प्राप / प्रमादैः सह संस्तवे // 3 // त. त्यजे यच्चिरं जुक्त-मपि सांसारिकं सुखं // न जातु तत्र सोऽस्ति / निकि श्व पन्नगः // 4 // यथीज जंगम कल्पवृतासमान आप मारी दृष्टिए पडेला छो, माटे हे सुकृतार्थ ! आप मने दीक्षा. रूपी फल थापीने कृतार्थ करो ? / / 70 // त्यारे मोतीनना बाजूषणोथी रहित थयेला, दूषणवि. नाना अने गुरुना चरणकमलना स्पर्शथी पोताने धन्य मानता एवा ते धम्मिलने गुरुमहाराजे दीदा पापी. // 1 // हवे जाणेल ने साधुजनो बाचार जेणे एवा ते धम्मिले गुरुसाथे विहार करतांथकां चक्तिना रंगयी अग्यारे अंगोनो अभ्यास कर्यो. // 2 // गणेलां शास्त्रोनां सूत्रोनां अर्थोना स्मरणमां थासक्त थयेधुं तेनुं मन प्रमादसाथे परिचय करवामां अवकाश पण पाम्युं न दि. // 3 // घणा काळ्सुधि नोगवेधुं एवं पण जे सांसारिक सुख तेणे तजी दीधुं, ते सुखमां P.P.AC.Gunratnasuri M.S. un Gun Aaradhak Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थाम्न दृढगाढनवब्रह्म-गुप्तिनित्यंतरास्थितं // नारीकटादानाराचै-रविचत न तन्मनः / / 75 // शीत वातातपक्लेश-सहने सं वनेचरैः / / अलक्ष्यत गुरुयाव-घटितप्रतिमोपमः // 76 // एवंविधविहारे ण। विहरन स महीतले // झात्वावसितमायुः खं / गृहेऽनशनं सुधीः / / 77 // प्रपद्य त्रिंशता. 74 होनि-रेष संलेखनां सुखं // सध्यानयानमारूढः / कल्पं नाम्नाच्युतं ययौ / / 7 // हाविंशतिम सौ तत्र / सागरोपमितीन सुखं / चुक्त्वा महाविदेहेषु / सत्कुले जन्म लप्स्यते / ए // तत्रापि गेडेली कांचळीमां जेम सर्प तेम ते कदापि पण यासक्त थयो नहि. // 4 // दृढ अने मजबू. त एवी नव प्रकारनी ब्रह्मचर्यनी गुप्ति रूपी भीतोनी अंदर रहेबु तेनुं मन स्त्रीनना कटादोरूपी बाणोथी वांधायुं नहि. // 5 // ठंडी वायु अने तापना क्लेशोने सहन करवामां वनचरोए ते धम्मिल मुनिने महान पत्थरनी घडेली प्रतिमासरखा जोया. // 6 // एवी रीतना विहारथी ते सुबुधि धम्मिल मुनिए पृथ्वीपर विहार करतांथकां पोताना आयुनो अंतकाळ जाणीने अनशन ग्रहण कर्य. // 7 // त्रीश दिवसोसुधी सुखेथी संलेखना करीने उत्तम ध्यानरूपी वाहनपर चमीने ते अच्युत नामना देवलोकमां गया. // 7 // त्यां ते बावीस सागरोपमनुं सुख जोगवीने Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धषित समये दीदा-मुरीकृत्य तपोजलैः // धौतकर्ममलो गंता / तत्वतः पदमच्युतं // 50 // एवं बुध सार्थ | श्रुतिसुधातिधम्मिलस्य / सम्यमिशम्य चरितं करुणाकरस्य // श्रामुष्मिकैहिकसुखाय नजंतु जंतु -रदार्थमादरमुदारधियः सदैव // 1 // इति श्रीधम्मिलचरित्रस्य चतुर्थो जागः समाप्तः // // इति श्रीजयशेखरसूरीऽकृतं धम्मिलचरित्रं संपूर्ण // महाविदेह क्षेत्रमा उत्तम कुलमां जन्म पामशे. / / ए // त्यां पण समये दीदा ले तपरूपी जलथी कर्मरूपी मेलने धोश्ने तत्वथी मोदस्थानमां जशे. // 50 // एवी रीते दयानी खाणसरखा ते धम्मिलमुनिनुं विद्वानोना कोने अमृतना ऊरणासरखं चरित्र सम्यक्प्रकारे सांगलीने नदार बुद्धिवाळा मनुष्यो हमेशां था लोक अने परलोकना सुखमाटे जीवदयामां यादर करो? // 1 // एवी रीते श्रीधम्मिलचरित्रनो चोथो नाग संपूर्ण थयो . .. ॥श्रीजयशेखर सूरीश्वरे रचेला श्रीधम्मिलचरित्रनुं गुजराती भाषांतर संपूर्ण थयु.॥ P.P.AC.Gunratnasuri-M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाम्म स श्रीनानिनरेंद्रनंदनजिनः श्रेयांसि देयाचिरं / यः स्थाना त्रिजगत्पराजवकरं नृपं जिगाय स्मरं // स्कंधबंदनिलीनकुंतलततिव्याजेन वर्यादर-न्यासं वैरिजयप्रशस्तिरमला तेनैव किं लि ख्यते // 1 // श्रीसिघार्थनरेंद्रवंशतिलकः श्रीवर्धमानो जिन-स्तत्पट्टे किल पंचमो गणधरः स्वा. 751 | मी सुधर्मा ततः // श्रीजंबूप्रनवादयो गणभृतस्तेषां क्रमेणागतः ! श्रीषानंचलगढ एष विजयी.वि. श्वे चिरं नंदतात् // 2 // तत्रार्यरक्षितगुरुर्जयसिंहमूरिः / श्रीधर्मघोषगुरवोऽथ महेंद्रसिंहाः // सिंह... जेणे पोताना बळथी त्रणे जगतने परानव करनारा कामदेवरूपी राजाने जीतेलो ने, अने तेथीज जाणे बन्ने खनापर लटकती केशोनी श्रेणिना मिषयी उत्तम अदरनी स्थापनावाळी वै. रिने जीतवाथी निर्मल जयप्रशस्ति शुं लखी होय नहि, एवा ते श्रीनान्निराजाना पुत्र प्रथम जि. नेश्वर चिरकालसुधी कल्याण थापो? // 1 // श्रीसिद्यार्थराजाना वंशमां तिलकसमान श्रीवर्धमान जिनेश्वर थया, तेमनी पाटे पांचमा गणधर श्रीसुधर्मास्वामी थया, त्यारबाद श्रीजंबूस्वामी तथा प्र. नवस्वामी आदिक गणधरो थया, अने तेजना अनुक्रमथी थावेलो था विजयवाळो अंचलगढ जगतमां चिरकालसुधी समृछि पामो? // 2 // ते अंचलगबमां श्रीयार्यरदितसूरि, जयसिंहमूरि, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 152 धस्मित प्रचो गणधरोजितसिंहसरि-देवेंऽसिंहगुखः पवादिजैत्राः // 3 // धर्मप्रगो गणधरो जितवादिसार्थ | सिंदः / श्रीसिंहसूरितिलका गुरवो महेंडाः // तत्पट्टकाननमनोहरकल्पवृदा विश्वे जयंतु सुचिरं गुरुमेरुतुंगाः // 4 // महेंद्रप्रनसूरीड-पाणिपंकजदीक्षिताः // ददमुख्यास्त्रयः शिष्या / अवन्नि ति नामतः // 5 // श्रीमुनिशेखरसूरिः / श्रीजयशेखरसुरयः // श्रीमरुतुंगसूरीजा-स्ते च पट्टे प्रतिष्टिताः // 6 // कविचक्रधरः श्रीमान् / सूरिः श्रीजयशेखरः // नापि वेधा विधातुं य-कवित्व. श्रीधर्मघोषसरि, महेंद्रसिंहमूरि, सिंहप्रजसरि, तथा गणधर एवा अजितसिंहमूरि अने परवादीनने जीतनारा श्रीदेवेंऽसिंहसूरि थया. // 3 // पनी जीतेल बे वादिरूपी सिंह जेणे एवा धर्मपन ना. मे गणधर थ्या, पजी श्रीसिंहतिलकसूरि, तथा पनी महेंद्रप्रनसूरि थया, तेमनी पाटरूपी वनमां मनोहर कल्पवृदासरखा श्रीमेस्तुंगसूरि जगतमां चिरकालसुधी जयवंता वर्तो? // 4 // श्रीमहेंद्रप्रनसूरिराजना हस्तकमलथी दीक्षित थयेला तथा ददोमा मुख्य नीचेमुजब नामवाळा त्रण शिष्यो थया. // 5 // श्रीमुनिशेखरसुरि, श्रीजयशेखरसूरि, अने श्रीमेरुतुंगसूरि. ते मांथी ते मेरुतुंगसू. रिने पाटपर स्थापन कर्या हता. // 6 // तेनमांना श्रीमान जयशेखरसूरि कवि-मां चक्रवर्तीसमाः / PP.AC.Gunratnasuri M.S: Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थ धाम्म गणनां विभुः // 7 // प्रबोधचिंतामणिरनृतस्तथो-पदेशचिंतामणिर्थपेशलः // व्यधायि यै नः / कुमारसंन्नवा-निधानतः सूक्तिसुधासरोवरं // 7 // विद्वार्थितस्तैः किल धम्मिलस्य / प्रशस्यमेत चरितं वितेने // निपीयतां तत्र पवित्रपुण्य-रसः सरस्यामिव नव्यलोकाः // ए | विषट्वारिधि. -753 / चंद्रांक-वर्षे विक्रमपतेः // अकारि तन्मनोहारि / पूर्ण गुर्जरमंडले // 10 // तत्र त्रीणि सह स्राणि / तथा पंचशतानि च // चतस्रोऽनुष्टुनश्चेति / ग्रंथसंख्या विनिश्चिता // 11 // न थया, के जेमनी कवितानी गणत्री करवाने ब्रह्मा पण समर्थ नथी. // 7 // वळी जेमणे पद्चुत एवो प्रबोधचिंतामणि नामे ग्रंथ, अर्थथा मनोहर उपदेशचिंतामणि नामे ग्रंथ, तथा सुनापितरूपी अमृतना सरोवरसर जैनकुमारसंभव नामे महाकाव्य बनाव्युं . // 7 // वळी विद्वानो. ए प्रार्थना करवाथी तेनए धम्मिलनुं आ प्रशंसापात्र चरित्र रच्यु बे, माटे तळावनीपेठे तेमां रहे. ला पवित्रपुण्यरसने हे नव्यलोको! तमो पीन? // 5 // विक्रमराजाना चौदसो बासठ (1462) ना वर्षमां या मनोहर चरित्र गुजरात देशमां संपूर्ण कयु. // 10 // या चरित्रमा त्रण हजार | पांचसोने चार (3504 ) अनुष्टुप् श्लोकोनी ग्रंथसंख्या निश्चय करेली . // 11 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मि- यावन्मेरुमहीधरः क्षितितले यावच्च रत्नाकरा // यावचंद्रदिवाकरौ ग्रहगणा यावन्ननस्तारकाः॥ न / | व्यानां शिवमार्गदर्शनविधौ विभृत्प्रदीपायितं / तावन्नंदतु धम्मिलस्य चरितं वाच्यं भुनीं श्चिरं / 11 ज्यांसुधी या पृथ्वीतलपर मेरुपर्वत , ज्यांसुधी समुद्रो बे, ज्यांसुधी चंद्र, सूर्य धने ग्रहोना समुहो , तथा ज्यांसुधी आकाशमां ताराज बे, त्यांसुधी नव्यलोकोने मोदमार्ग देखाम्वानी वि. धिमां दीपकसरखं तथा मुनीश्वरोथी वंचातुं एवं था धम्मिलनुं चरित्र चिरकालसुधी समृधि पा. मो. // 1 // था श्रीधम्मिलचरित्रनुं गुजराती नाषांतर स्वपरना श्रेयमाटे जामनगरनिवासि पंडित श्रावक मनसुखलाल हीरालाल हंसराजे यथामति करेधुं . तेमां दृष्टिदोषथी अथवा मतिमांद्यथी जो कई पण स्खलना थयेली होय ते कृपा करी सज्जनो सुधारीने वांचशे, एवी मारी नम्र प्रार्थना . केमके-गबतः स्खलनं कापि / नवत्येव प्रमादतः // हसंति दुर्जनास्तत्र / समादधति सऊनाः॥१॥ या ग्रंथ श्रीजामनगरनिवासि पंडित श्रावक हीरालाल हंसराजे स्वपरना श्रेयमाटे पोताना श्रीजैननास्करोदय गपखानामां गपी प्रसिह कर्यो ने. // Dire. ctinratnasur M.S. | समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमच्चारित विजयसुप्रसादात् / / . lun Gun Aaradhak Trust Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S क // इति श्रीधम्मिलचस्त्रिं नाषांतरोपेतं समाप्तं // Jun Guntain P.P.AC.Gunratnasuri M.S.