________________ धम्मि| वसुदत्ते वदत्येवं / धम्मिलेनान्यधीयत // मामादिश यथा कुर्वे / संधिकार्यमिदं तव // 11 // अ. | सार्थ थासौ पार्थिवाझातः / संजातशकुनोऽचलत् // चंपांप्रति प्रियावका-लोकनोत्सुकलोचनः॥१२॥ | निघ्नन् मार्गस्य दीर्घत्वं / प्रस्थानैरनवस्थितैः // प्राप चंपामयं पाप-कर्मनिर्मुक्तनागरां // 13 // प्र. विष्टोतर्ददर्शासौ / स्वस्वरदपरायणान् // समुपिंजतया लोकान् / धावमानानितस्ततः // 14 // किं दवः किं परानीको-पप्लवः किं सरिप्लवः // पौरदोजकृदेवं सो- प्रादीत्कंचिदिचदणं // 15 // मावो? के जेथी तमाएं या संधिकार्य हं करी बापुं. / / 11 / / पजी राजाए साझा पापवाथी शु. न शकुन थये ते पोतानी स्त्रीनुं मुख जोवाने नत्सुक नेत्रोवाळो धम्मिल चंपानगरीप्रते चालतो थयो. // 12 // अविभिन्न प्रयाणोथी मार्गनी लंबाई दूर करतोयको पापकर्मविनाना लोकोवाळी चंपानगरीमां ते पहोंच्यो. // 13 // जेवामां ते नगरनी अंदर दाखल थयो तेवामां तेणे जयथी पोतपोतानुं रक्षण करवामां तत्पर तथा आमतेम दोमता लोकोने त्यां जोया. // 14 // नगरना लोकोने जय नपजावनारो शुं दावानल लाग्यो ? के शत्रुना सैन्यनो नपदव थयो? के नदीनु पूर श्राव्यु बे? एम तेणे कोक विचदाण माणसने पूज्यु. // 15 // त्यारे ते बोल्यो Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.