________________ धम्मि| संति / केऽपि प्रीतिकरा थपि // नमां संधति प्रीतिं / ये खटपा जगतीह ते // 7 // गुरुरस्ति कविश्वास्ति / संति व्योनि कवीश्वराः // एतेषु कोऽपि संधत्तां / बुधंदू शनिनास्करौ // // गो. त्रप्रजव रंगाढ्य / शुवर्णक चूर्णक / / त्वां विन कोऽपि संघातुं / नेष्टे जर्जस्तिं गृहं // // न. 651 ने स्वन्नावतो निन्ने / संधातुं वस्त्रकर्णिके // त्वमेव सूचि शक्तासि / गुणसंग्रहशालिनी // 10 // कपिलराजासाथे मारी संधी करावे. // 6 // प्रीतिनो नंग करावनारा घणा होय , तेम केटलाक प्रीति करावनारा पण होय , परंतु जे नांगेली प्रीतिने सांधी शके, एवा या जगतमां विरलाज होय . // 7 // अाकाशमां गुरु ने, कवि (शुक्र), अने कवीश्वरो पण ने. परंतु एमानो को६ बुध अने चंद्रवच्चे, तथा शनि अने सूर्यवच्चे संधि करावनार नथी. // 7 // माटे हे उत्तम गोत्रवाळा! (पर्वतमांथी उत्पन्न थयेला) रंगवान, तथा सफेद वर्णवाळा चुनासमान धम्मिल! ताराविना था जीर्ण थयेलां घरने सांधवाने को समर्थ नथी. // ए // स्वजावधीज जिन्न एवा वस्त्रना बन्ने पोतोने सांधवाने हे सोश! दोरो ग्रहण करवाथी शोनीती एवी तुंज समर्थ जो. // // 10 // एवी रीते वसुदत्त राजाए कह्याथी धम्मिल बोब्यो के, हे राजन्! आप मने हुकम फर | Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S..