________________ 655 धम्मि- चविष्यति // 30 // अयं विज्ञाय तेऽवज्ञां / यद्यन्यां परिणेष्यति // तदापि त्वदहंकार-हंकार | स्यास्ति का गतिः // 35 // न निर्वढत्यहंकारः / पुरुषैः सह योषितां / / सव्यः करः सनूषोऽपि / मलस्यैवापनुत्तये // 40 // ति तहचनैवैद्यौ-षधैखि हृदि स्थितैः / / जीर्णज्वर श्व दीण-स्त. | स्या रोषोंगशोषकः / / 41 // जगौ चैवं मया मात-र्न जातु त्वं विलंध्यसे // प्रमाणयिष्यते सर्व / त्वत्संमतमतः परं // 42 // इति तदाक्यसिक्तस्य / धम्मिलस्यार्धवृष्या // पराभवनवस्ताप-व्या. जरेलो अने बन्ने प्रकारे सारत शरीवाो या धम्मिल पण जो तने प्रिय नथी लागतो, तो प. जीतने वीजो कोण प्रिय थशे? / / 30 / / हवे या तारी अवज्ञा जाणीने कदाच बीजी स्त्री पर. पशे, तो पनी तारा अहंकाररूपी हुंकारानी शुं गति थशे? // 35 // पुरुषोसाथे स्त्रीननो अहं. कार नभी शकतो नथी, केमके यानुषणोवाळो पण डावो हाथ फक्त विष्टानेज साफ करवामाटे नपयोगी थाय . // 40 // एवी रीते वैद्यना औषधसरखां तेणीनां वचनो कमलाना हृदयमां दा. खल थवाथी जीर्णज्वरनीपेठे अंगने शोषनारो तेणीनो रोष दीण थयो. // 1 // बने तेथी ते | बोली के हे माता! में कोइ पण वखते तारुं वचन उल्लंघ्यु नथी, माटे हवेथी हुँ तारी सर्वसंम P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust