________________ धाम्म | सोऽन्येाः स्वगृहेऽश्रयत् // 26 // वसंततिलका प्रोचे / तदा तं शरलाशया // गृहहारेऽद्य किं च / | के / नाथ वेषांतरं त्वया // 27 // नवन्मनोविनोदाय / तथा चक्रेऽथ तामृj // स विप्रतारयने / विवेकी हृद्यचिंतयत् // 20 // नान्यदेषं चकराहं / वदत्येवमियं पुनः // श्ह मन्येऽहमन्येन / न७१६ वितव्यं नरेण तत् // // विद्यातिरोहिततनु-ननु सोऽप्यत्र तिष्ठति // न हि दृश्यवपुर्मयः / स्थातुं शक्तो ममौकसि // 30 // ततः स तद्दधोपायं / चिंतयनंतरालयं // वितस्ताराशु सिंदूर-रततिलकाए तेने कर्जा के, हे नाथ! बाजे घरने बारणे श्रापे बीजो वेष शामाटे धारण कर्यो . तो? // 27 // तारा मनने थानंद थापवामाटे में तेम कयु हतुं, एवीरीते ते सरख स्वनाववाली वसंततिलकाने ठगतोयको ते बुद्धिवान धम्मिल मनमां विचारखा लाग्यो के, // 7 // में बीजो वेष कर्यो नथी, बने था एम कहे , माटे हुं धारुं बुं के यहीं कोश्क बीजो पुरुष श्रावेलो होवो जोश्ये. // 27 // ते पुरुष खरेखर विद्याथी गुप्त शरीरवाळो थश्ने यहीं रहे जे. केमके दे. खातां शरीवा माणस यहीं मारा घरमा रहेवाने समर्थ नथी. // 30 // पजी तेणे तेने मारवा. . | नो उपाय चिंतवीने तुरत घरनी अंदर चोतरफ सिंधोरना कानो समुह पथराव्यो. // 31 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust