________________ धम्मि- जःपुंजं समंततः // 31 // स्वयं च वंचनाचंचुः / पंचाननसहरबलः // करे कृपाणमादाय / स पन. नमवस्थितः // 32 // स तावदाययौ खेटो / विद्यारितदर्शनः // अनंगतामिव प्राप्तो-ऽनंगराजस्य शासनात् // 33 // सिंदूरदोदसंलगां / तस्य पश्यन् पदावली // लधुहस्ततया धीरः / स कृपाणमवाहयत् // 34 // तेन नाग्यवता खने-नाहतो व्याहितोष्मणा // चित्रमानंच पंचत्वं / दिखंडोऽपि खगाधमः // 35 // नृतधात्रि न किं शिदा / त्वयाप्यस्मै व्यतीर्यत // रोषेणेवेति स दोणीं / खअने उगवामां कुशल तथा सिंहसरखो बलवान ते पोते हाथमां तलवार लेख्ने गुप्तपणे रह्यो.॥३॥ एवामां कामदेवना हुकमथी जाणे अनंगपणाने प्राप्त थयो होय नहि एवो विद्याथी अदृश्य थयेलो ते विद्याधर त्यां याव्यो. // 33 // त्यारे सीधोरना जुकामां चोटेली तेना पगलांनी श्रेणिने जोने ते धीर धम्मिले हाथचालाकीथी पोतानी तलवार चलावी. // 34 // ते नाग्यवान धम्मि ले तेजस्वी तलवारथी मारेलो ते नीच विद्याधर याश्चर्य ने के बे टुकडावाळो थया बतां पंचत्व ( मृत्यु ) पाम्यो ! // 35 // अरे पृथ्वीमाता! ते पण आने शिदा केम न आपी? एवी रीतना रोषवडे करीने जाणे होय नहि तेम तेणे ते वखते कोदाळीथी पृथ्वीने खोदीः / / 36 // अधो. P.P.AC Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust