________________ isruseupeley unsunr "Swunseumesunavad धाम्म- वदंती सा विवेशांतः / प्रासादं सादरैः पदैः // ए३ // स चातक श्वोत्पश्यो-ऽपश्यत्सौधाग्रलंबितां सार्थ | // सितां पताकां वैराग्य-वार्षिफेनबटामिव / ए४ // नूनं मयि विरक्ते ते / खेचौं बंधुहंतरि // | इत्यसौ शशववृदां-तरितः प्रपलायितः // 55 // मा ग्लायतमियं वेला / युवयोश्चिरलालितौ // 6 | कंटकादिव्यथा चिंत्या / समये नाधुना पुनः॥ ए६ // एवं प्रसादयन् पादौ / तद्रलात्त्यक्तरित्रः // ए॥ श्रने जो तेन नाखुश थशे तो हुं त्यां श्वेतरंगनी धजा चडावीश, एम कहीने ते आ. दरयुक्त पगलांनथी महेलनी अंदर दाखल थ. // 23 // पड़ी ते धम्मिल चातकनीपेठे उचु जोतो रह्यो, एवामां तेणे तेजनी नाखुशीरूपी समुऽना फीणनी बटासरखी महेलनी टॉचपर स. फेद धजाने लटकेली जो. // ए४ // खरेखर ते बन्ने विद्याधरीनं पोताना नाश्ने मारनार एवा माराप्रते नाखुश थयेली , एम विचारीने ते धम्मिल ससलानोपेठे वृदोपाबळ लुपातो बुपाती त्यांथी नाशी गयो. // 55 // हे घणा कालसुधी लाड समावेला पगो! तमारो या अवसर ने, माटे तमो थाकशो नहि, तेम वळी था समये तमारे कांटाआदिकनी वेदनानो पण विचार कर| वो नहि. // ए६ / / एवी रीते पगोने हिम्मत थापतोयको तेना बळयी घणी ऋमि जळगीने,