________________ धम्मि- स्मेरं सरोरुहं // 7 // एकत्रासने संवेश्य / मुक्तसंकोचलोचना // जगाद सादरं सा मां / सामां | चितवचस्ततः // 7 // अपि प्रपन्नधौरेयः / प्राणेशो मां यदत्यजत् / / नूनं तस्य न दोषोऽयं / दोषोऽयं मम कर्मणः // 7 // ग्रीष्मादनु नवेद् वृष्टी-रात्रेरनु नवेदिनः॥ वियोगादनु संयोगः / स्यान्न वेति वद स्वसः // 10 // मासेनैति पुनश्चंद्रो / वर्षेणैति पुनर्घनः / / काले नैति पुनल" / कियतेति वद स्वसः // 11 // स प्राणाय्यो मम प्राणा-स्ततस्तदपि मे मुदे // अयं सुखी हृषीपण जीतवा लाग्यु. // 9 // पनी तेणी मने एकज बासनपर बेशाडीने संकोचरहित नेत्रोवाली थश्यकी श्रादरपूर्वक शांत वचनोथी कहेवा लागी के, // 7 // मारा प्राणनाथे महाऋविंत थ. या बतां पण मने जे तजी दीधी बे, तेमां खरेखर तेनो दोष नथी, परंतु ते मारा कर्मनो दोष // // जनाळा पजी वरसाद थाय, रात्रि पनी दिवस नगे, तेम हे बहेन ! तुं कहे के वियो. ग पजी संयोग थाय के नहि? // 10 // वळी महिनाबाद चंद्र आवे, वर्षवाद वरसाद यावे, तेम हे बहेन! तुं कहे के नार पालो केटले काळे यावे? // 11 // ते प्राणप्रिय मारा प्राणरूपज बे, | | अने तेथी ते ज्यारे हमेशां पोताना इंद्रियार्थना स्वार्थमां संतुष्ट थयेलो , तो ते पण मने दः / P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust