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________________ धाम्म- मुक्तारोह सा // सौधस्याधित्यकां तस्य / प्रेम्णः काष्टां परामिव // 27 // हर्षाकुलतया भ्रांत-दृ. | ष्टिः श्वेतां पताकिकां // सोतन्नातिस्म ततास्म-दलाग्यस्येव वल्लरीं // 60 // पायास्यति किम द्यापि / नायात्यायात एव सः // एवं मिथो वदंत्यस्ताः / कन्या नत्कुंठिताः स्थिताः // 61 // प७०२ | ताकालोकनाकाते / त्वदनागमनिर्णये // त्वां दृष्टुमत्रमं रिप्रामारामाश्रमां दमां // 6 // यद्यपि कापि नापश्यं / त्वामुबुकीव नास्करं / तथापि त्रमितो जमा / नाहं स्नेहो हि दुस्त्यजः // चारीने कणवारमा में ते शोकने दूर को. // 17 // हवे तेने यहीं लाव? एम अमोए तेणी ने कहेवाथी ते चित्रसेना जाणे तेना प्रेमनी पराकाष्टापते होय नहि तेम महेलनी सीमीपर च. मी. // 55 // परंतु हर्षवेली थवाथी तेणीए दृष्टिविपर्यासने लीधे अमारां अभाग्यनी वेलडीसरखी श्वेतरंगनी धजा चमावी. 60 // हवे ते यावशे, अरे! हजु केम आवतो नथी? अरे! ते या आव्यो, एम परस्पर कहेतीथकी ते कन्या त्यां उत्सुक बनीने तलपापड थवा लागी. // 61|| पजी पताका जोवाथी ज्यारे तमारा नहि भाववानो निर्णय थयो, त्यारे तमोने जोवामाटे घणा | गाम, वगीचा तथा आश्रमोवाळी या पृथ्वीपर हुं नमी. // 6 // परंतु घूकी जेम सूर्यने तेम त. . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036433
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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