________________ धम्मिः। वदंत्यसि / / परमाज्ञानिके पापे / नास्त्युपालंभसंगवः // 14 // परीदितुमहं तैदण्यं / निंदन की। चकजालकं // यद्वंधुं तव इन्मिस्म / तदज्ञानविजंगितं // 15 // अपराई मनोरना-पहारेण व यन्मया // शुध्ये तस्य पापस्य / त्वमेवेह गुरूजव // 56 // श्युक्तिनंग्या चित्रीय-माणा प्रो. 701 | वाच खेचरी // एवमेव नववृत्तं / चित्रसेना तदावदत् // 57 // बंधोववे श्रुते स्वता / सममा. धिमधामहं // वाचं विचार्य नैथीं / शोकमतोकयं दाणात् // 7 ॥समानय तमत्रेया-वाच्या गयो बे, ते पणं शुं तने उचित ? // 53 // त्यारे धम्मिल बोल्यो के, हे सति! तुं सघ सं. त्य कहे , परंतु अझानथी करेलां पापमाटे उपालंजनों संभव होतो नथी. // 24 // तलवारनी तीदणतानी परीदामाटे वांसनी कामी कापतांथकां में ज़े तारा नाश्ने मार्यो , ते अज्ञान नो प्रताप जे. // 55 // वळी तमारां मनरूपी रनने चोरवायी जे में अपराध कर्यो , ते पापनी शुधिमाटे हवे तुज मारा गुरुतरीके था? // 26 / / एवी रीतनी तेनी वचमचतुराश्थी आश्चर्य पा. मेली ते विद्याधरी बोली के, ते वखते चित्रसेनाए एवीज रीते तमारुं वृत्तांत अमोने कहां हतं. // 7 // नाश्नो वध सांभलवाथी बहेननीसाथे मने पण दुःख तो थयुं, परंतु मुनिनी वाणी वि. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust