________________ धम्मिः // 63 // समायाताद्य चंपायां / लोचने तृषिते चिरं / / रूपे लवणिमानूपे / ताप्लवमकारयं / / // 64 // एषाहं सा च मे जामिः / कन्यकाः षोडशापि ताः॥ सर्वमेतत्त्वैवेति-जल्पंती सा ख. मुद्ययौ // .65 // चकुरुद्घाटयत्येष / यावत्तावदलोकत // पुरस्तादमिनीवृंद-मानंदोत्फुललोचनं // 66 // परिणिन्ये स ताः सर्वाः / शर्वाणीरूपजीत्वरीः // कामी न तृप्यति स्त्रीनिः। सरिदनिरि वोदधिः // 67 // तासां रतिसपत्नीनां / पत्नीनामंगको निशं // अगाद्भोगात्तरंगात्त-रंगहंसतुला. मोने में जो के क्यांय पण न जोया तो पण हुं जमवाथी थाकी नहि, केमके स्नेहने तजवो मुश्केल . // 63 // परी बाजे यही चंपामां आवीने घणा काळथी तृषातुर थयेलां मारां या नेत्रोने लावण्यना कूपसरखा था तमारा रूपमा में स्नान कराव्यु. // 64 // था हुँ, ते मारी बहे. न, तथा ते शोळे कन्या; ए सघयु तमारंज में, एम कहीने ते आकाशमां नडी. // 65 // प. जी जेवामां ते अांखो उघाडे , तेवामां तेणे अगामीना नागमां यानंदथी प्रफुल्लित नेत्रोवाळो स्त्रीननो ते समुह दीठो. // 66 // पनी इंद्राणीना रूपने पण जीतनारी एवी ते सघली कन्यानने ते परण्यो, केमके नदीनना जलथी जेम समुद्र तेम कामी माणस स्त्रीनथी तृप्त थतो नथी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust