________________ 640 धाम्म | ऽवकाशं लगते यदा // कुलकस्य तदा तदणः / प्रयाति निलये स्वयं // 6 // स तु तदा क्रमा-। साथ याते / मर्मझो वास्तुकर्मणि // पाठयत्यशः पुत्रान् / ते तु सर्वे प्रमादिनः // 6 // // न हि स्व. गृहविद्यायां / शिष्याः प्रायेण सादराः // सुरूपायामपि स्वीय-कामिन्यां कामुका व // 70 // | कलौवे सोऽभियुक्तोऽन्त / कोकासस्तैरनाहते // नक्ते पिंमोलभोक्तेव / त्यक्ते जुपतिनंदनैः // 7 // | तस्यानियोगमालोक्य / कुलकः पुलकं वदन // तमेवाबीनणन्न स्व–परव्यक्तिर्गुणार्थिनां // 7 // रसद मलती त्यारे ते पोते कुलक नामना सुतारने घेर जतो. // 17 // ते हुशियार सुतार वंश परंपराथी चाली पावती पोतानी वास्तुविद्यामां प्रवीण होवाथी पोताना पुत्रोने ते विद्या नणाव | तो हतो, परंतु तेन सघला थाळसु हता. // ६ए / केमके मनोहर रूपवाळी एवी पण पोतानी स्त्रीमां जेम कामी तेम प्रायें करीने शिष्योपोताना घरनी विद्यामां यादरवाळा होता नथी. // 30 // पछी राजपुत्रोए गेमी दीधेलां भोजनमा जेम वयु घट्युं खानारो तेम तेनए नपेक्षेली कलान ना समुहमां ते कोकास यादवाळो थयो. // 11 // तेनो उद्यम जोश्ने ते कुलक सुतार रोमां | चित थयोथको तेनेज गणाववा लाग्यो, केमके गुणवान माणसोने स्वपरनो तफावत होतो न. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust