________________ धम्मि- सोऽपि वल्पदिनैः शिल्प-कल्पमस्खल्पमगृहीत // बुद्धक्षितस्य किं वेला -प्रयासः प्राशने लगे त् // 13 // लक्ष्मी च वास्तुविद्यां च / प्राप्य यानेन तेन तौ // धनश्च सूत्रधारश्च / पुनः स्वस्था | नमीयतुः // 14 // आजीवनाय पस्य / विज्ञानज्ञापनाय च // काष्टतदणा सुकाप्टेन / कपोता. | स्तेन. तेनिरे / / 75 // ते जीवंत वोड्डीनाः / सत्वरं गगनाध्वना.॥ दुर्भिदस्य शिरःशुलं / कुशू. लंपतेर्ययुः / / 76 // ततः शालिकणवातं / निरातकाः कपोतकाः // नभृत्य वार्धकः पार्श्व-मीयुर्वैवधिका श्व / / थी. // 12 // ते कोकासे पण समस्त शिल्पशास्त्र थोडा दिवसोमांज शीखी लीधुं, केमके भु. ख्या माणसने चोजन करवामां शुं वखत के प्रयास लागे ? // 73 // पनी ते धनवसु लक्ष्मीने तथा ते कोकास सुतार वास्तुविद्या मेलवीने ते वहाणपर बेशी फरीने पोताना नगरमां याव्या. // 4 // पोतानी आजीविकामाटे तथा राजाने पोतानी कला देखामवामाटे ते सुतारे उत्तम काटनां होला बनाव्यां. // 79 // ते होला जाणे जीवतां होय नहि तेम तुरत आकाशमार्गे न. | मीने दुकाळना मस्तकमां शूलसरखा राजाना अनाजना कोठारमां गया. // 16 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust