________________ 635 | धम्भि- निर्वेशदानेन / तेनातोष्यंत नाविकाः // 63 // यापृच्छ्य शकुनोत्साह-प्रेरितः पितरौ त्वरी।। पारुरोह स बोहिउँ / विमानमिव खेचरः // 64 // ययाचे स पितुः पार्श्वे / कोकासं नक्तिनासरं // देहशुश्रूषकेऽमुष्मिन् / जायेऽहं सुखनागिति // 65 / / तीर्णोऽब्धिं हनुमान यस्य / वायोः पो. | तः स्वयं सुखं // साहाय्यात्तस्य पोतोऽयं / प्राप पारं किमद्लुतं // 66 // संप्राप्ते यवनदीपे / वाधों | मुक्त्वा स वाहनं // मिलितेलापतिश्चके / व्यवसायमुपायवित् / / 67 / / कर्मव्यग्रोऽपि कोकासोधनदान आपीने खुशी कर्या. // 63 // पछी ते पोताना मातपितानी रजा लेख्ने शकुनना न. सादथी प्रेरायोथको विद्याधर जेम विमानपर तेम ते जतावलथी वहाणपर चड्यो. // 64 // मा. रा शरीरनी चाकरी करनार जो या होय तो मने ठीक पडशे, एम कहोने तेणे ते शक्तिवान कोकासने पोताना पितापासे मागणी करी साथे लीधो. // 65 // जे वायुनी मददथी वायुनो पुत्र हनुमान पोते सुखेथी समुद्र तरी गयो हतो, तेनी मददथी था वहाण पण किनारे पहोंच्यं तेमां शुं आश्चर्य ? // 66 / पछी ते धनवसु यवनद्दीपमां जश् समुष्मां वहाण गेडी राजाने मली युक्तिपूर्वक व्यापार करवा लाग्यो. // 67 // कार्यमा व्यग्र उतां पण ज्यारे ते कोकासने फ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust