________________ धम्मिः। / पप्रल स्वबया गिरा // 35 // चिराद् दृष्टोऽसि वत्स त्वं / दर्शनानंदिदर्शनः // श्राविःकुरु निजं वृत्त-मश्वापहरणादिकं // 36 // ततस्तदुक्तं तध्यक्तं / ज्ञात्वा वृत्तांतमादितः // धैर्य चास्येनदम| ना-द्ययौ राजा परां मुदं / / 37 // पुरे महोत्सवमयः / समयस्तद्भवेदयं // वायकः स्याद्यदि त्वा६ए७ | दृ-गिति तुष्टाव तं नृपः // 30 // ...' तत्र संप्राप्तसंमान-निकलत्र्या गुणोज्ज्वलः // त्रिलिंग्यास्तादृशीतः / परशब्द श्वामिलत जळखी कहाब्यो. // 34 // त्यारे संज्रमसहित राजाए उठीने ते महासुभटने बाथमां ले भेटीने वल वचनथी पूज्युं के, // 35 // हे वत्स! जोवामां थानंदी दर्शनवाळो तुं घणे काळे नजरे प. ड्यो बु, हवे घोमो तने हरी गयो, इत्यादिक तारुं वृत्तांत तुं प्रकट कर? / / 36 // पनी तेणे प्रथमथी प्रकटरीते कहेलु वृत्तांत जाणीने, तथा हाथीने वश करवाथी तेनुं धैर्य जोश्ने राजा अ. त्यंत खुशी थयो. // 37 // जो ताराजेवो था नगरमां रक्षण करनार होय तो यहीं आवो महो. त्सवमय समय जाय, एम राजाए तेनी स्तुति करी. // 30 // एवी रीते त्यां सन्मान पामीने गुणोथी उज्ज्वल थयेलो ते धम्मिल तणे लिंगोमां ताहा। Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.