________________ धग्मि- न्येारुद्यमी पटख्या / उपशैलं जगाम सः // 36 // तत्र स्थितो ददर्शासौ / नातिदुरे विहारिणः / // नरान्निरायुधान कांश्चिद् / मिन्यस्तदृशः कृशान // 37 // ततः सोऽचिंतयत्पल्ट्या-मिह ये | संति मानवाः // विपरीता अमी तेन्यो / वीदयंते बत के पुरः // 30 // ज्ञातं नष्टं धनं दृष्टु-मे७३ए षां दृष्टिरधोमुखी // निःसंदेहं च देहेऽपि / दौर्बल्यं चिंतया तया // 35 // तेनैव कारणेनैते / मंः दं मंदं चरिष्णवः // दर्देवाय कस्मैचि-तदाप्त्यै मूर्घजानपि // 40 // यत्पुनः परितः पछी / ब्राकां तेणे नजीकमां चालता, श्रायुधविनाना तथा पृथ्वीपर दृष्टि राखनारा केटलाक दुर्बल पुरुषोने जोया. // 37 // त्यारे ते विचारखा लाग्यो के था पल्लीमां जे माणसो रहे ने तेथी विपरीत वेषवान वळी या अगामी कोण देखाय ? // 30 // अहो! हवे मालुम पडयु, खोवायेलां ध. नने जोवामाटे या लोकोए पोतानी दृष्टि नीची राखीने, अने खरेखर तेज चिंताथी तेन्ना श. रीरमां पण पुर्बलता . // 35 // वळी तेज कारणथी तेज मंद मंद चाले , अने ते धन मे. ळववामाटेज तेनए ( मानतातरीके ) पोताना केशो पण कोश्क देवने यापेला जणाय ने.॥ // 40 // परंतु आ पसीनी आसपास जे ते हथियाररहित जमे , तेज एक आश्चर्य ने, के. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust