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________________ धाम्म | ह कल्याणि / सिधास्तव मनोरथाः॥ 50 // पश्यंती चलितग्रीवं / सैकताना तमुत्तमं // अमंस्त | सार्थ | स्मरचौरेण / हियमाणं मनोऽपि न // 1 // सोऽपि तां लोपिताशेष-सुरूपप्रमदामदां // वीदयानल्पविकल्पाली-तल्पशिल्पित्वमाश्रय 666 / त् // 7 // यस्या वर्मणि सौलाग्य-रूपस्नेहत्रिवेणिके // तीर्थे निमज्ज्य मे युक्तं / नेजे दृ. 1 गनिमेषतां // 3 // कमलायाः पदस्तस्य / नई नवतु रिशः // मया यदीयसंसर्ग-निर्गतेनेय. आप? // नए // हवे तेणीने जोवाथी नत्पन्न थयेल ने विवाह करवानो महान अाग्रह जेने ए. वो ते धम्मिल बोब्यो के हे कल्याणि! तारा मनोरथो तारे सिह थयेलाज समजवा. // 50 // त्यारे पा वाळीने ते उत्तम धम्मिलने एकी नजरे जोती एवी ते कन्या कामदेवरूपी चोखडे हरातां ( पोताना ) मनने पण न जाणवा लागी. // 1 // ते धम्मिल पण लोपेल ने सर्व उत्तमरूपवाळी स्त्रीननो मद जेणीए एवी ते कन्याने जो श्ने अनेक विकल्पोनी श्रेणिरूपी शय्याना शिल्पिपणानो धाश्रय करवा लाग्यो. // ए२ // सौ. | जाग्य रूप थने स्नेहरूपी त्रिवेणीवाळां था. कन्याना शरीररूपी तीर्थमां स्नान करवाथी मारी दृष्टि | P.P.AC. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036433
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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