________________ धम्मि- धैर्य हि योषितां // 3 // न ग्रामपुरराष्ट्रेषु / माति यः सपरिबदः // मंजूषागहरे सोऽपि / ममौ नृपः स्वदोषतः // 4 // फलकांतरितास्तस्यां / पेटायां ते विजादयः // तूष्णीकाः सुचिरं तस्थुरौष्ट्रिका श्व तापसाः // 5 // विवृत्याथ तया दारं / श्वश्रूर्वेश्मन्यवेश्यत // तदीयं कंठमालंब्य / मुक्तकंठमरोदि च // 6 // कंदसे किमकस्मात्त्वं / तयेत्युक्ता जगाद सा // किं ब्रुवे मंदनाग्याह / / सोमऋतिर्वनाण यत् // 7 // विदेशस्थः समुद्रः प्रा-गुक्तमर्थ प्रपन्नवान् // पाहतो धर्मराजे. होय ! |शा जे राजा परिवारसहित गाम नगर अथवा राज्यमां पण समाय नहि ते पण पो. ताना दोषथी पेटीना खानामां समा गयो. // // वचे पाटीयां जडेली ते पेटीमां ते ब्राह्मणयादिक औष्ट्रिक तापसोनीपेठे घणा काळ्धी मौनपणे रह्या. // 5 // पडी तेणीए वाराणुं न. घामीने सासुने घरमा प्रवेश कराव्यो, तथा तेणीने कंठे वलगीने घांटो कहामीने ते रमवा ला. गी. // 6 // तुं अकस्मात केम रडे ? एम तेणीए पूज्वाथी ते शीलवती बोली के, अरे! ह मंदनाग्यवाळी शुं कहुं? केमके सोमनति ब्राह्मण कहे जे के, // 7 // विदेशमा रहेला समद त्त प्रथम तो वर्णवेलो धनसमूह पाम्या, तथा पनी धर्मराजे यादर करवाथी सुरसंपत्ति पाम्या.॥ P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust