________________ धम्मि- न / प्राप्नोऽथ सुरसंपदं // 7 // श्लेषोक्तिविदुषो वध्वा / व्याहृतं सरलाशया // तयेति प्रतिपदा- / माना / जज्ञे सापि विलापिनी // 7 // विलोक्य प्रातिवेश्मिक्य-स्ते हे क्रंदनतत्परे / तत्रैत्य रु. | रुदुस्तारं / तासां दूरे न दृग्जलं // 50 // सा च वार्ता वितस्तार / निखिलेऽपि पुरे क्रमात् // ए७२ | वार्ता स्त्रीयानमारूढा / स्याहायोरपि जांधिकी // 1 // अथेन्या याययुस्तत्र / कर्तु तस्योर्ध्वदेहिकं // सर्वेऽपि तद्गृहहारि / संयैवं मिथोऽज्यधुः // 7 // श्लेषोक्ति एटले वियर्थी वचन बोलवामां चतुर एवी वहुए कहेवु वचन सत्य मानीने स. रख बाशयवाळी तेणीनी सासु पण विलाप करवा लागी. // 79 // एवी रीते तेन बन्नेने रडती जोने पमोशनी स्त्रीने पण त्यां यावीने मोटेथी रडवा लागी, केमके स्त्रीननी अांखोमां आंसु श्राववां कई बेटां नथी होता. // ए०॥ पछी ते वात अनुक्रमे पाखा शहेरमा फेलाइ गश्, केमके स्त्रीरूपी वाहनपर चडेली वात वायुथी पण वेगवाळी थाय . / ए१ // हवे तेनी मरणक्रिया करवामाटे त्यां शेठशाहुकारो श्राव्या, तथा तेन सघला तेना घरने | बारणे एकठा थश्ने परस्पर कहेवा लाग्या के, // 7 // था समुद्रदत्त परदेशमा पुत्ररहितज म | P.P.AC.Gunratnasuri M.S.