________________ धम्मि-| घनजांघिकं // 7 // पाराग्रे सर्षपो वह्नि-शिखायामिव पारदः // स्त्रीस्वनावान हृद्यस्या / वायं स्थैर्यमाप्स्यति // 70 // वार्षकस्य बलादेषा / निर्नया निरपत्रपा // विगोपयति राजान-मपि रंक मिव दणात् // 70 // वृघामूलोपवादोऽय-महो मे समुपस्थितः // प्रमत्तः सप्रतिष्टश्चे-हिनष्टस्त. 570 हि स ध्रुवं // 1 // म्लानमित्यालपत्तं सा / पुरुषोत्तम मा वम // श्मामध्यास्व मंजूषां / याति यावऊरत्यसौ // 2 // मंजूषाया अथाली / तुर्यवदारकं नृपे // सा तालकं दधौ बाढ–महो नागपर जेम सर्षव तथा अमिशिखामां जेम पारो तेम स्त्रीना स्वभावथी था मोकरीना हृदयमां था वात स्थिर रहेशे नहि. // // // वृधपणाना बलथी था मोकरी निर्नय तथा निलऊ थश्ने दाणवारमा मने राजाने पण रंकनीपेठे वगोवशे. // 70 // अरे! मारापर था मोकरीए जोयेलो अपवाद यावी पड्यो! जो ते प्रमत्त अने प्रतिष्टावाळो होत तो खरेखर नष्ट थात. // 1 // ए. वी रीते ऊंखवाणा पडी गयेला ते राजाने तेणीए कह्यु के हे पुरुषोत्तम! तुं खेद न कर? ज्या सुधी या मोकरी पाजी जाय त्यांसुधी तुं या पेटीमां बेशी जा? // 7 // पनी राजा ज्यारे ते | पेटीना चोथा खानामां पेठो त्यारे तेणीए त्यां मजबूत तालुं दी , अहो! स्त्रीनन पण धैर्य केर्बु P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust