________________ धम्मिः // 73 // स्नपये त्वं महाराज / रजन्यद्यापि जयसी // यस्मातांगस्य या केलि-स्तछि रासनचेष्टितं / // 4 // इति तहचसा यावत् / स्नातुं प्रववृते नृपः // संकेतितचरी श्वश्रू-स्तावद् द्वारे स्थिता जगौ / / 75 // उद्घाटय वधु हार-मद्यापि शयितासि किं // तत् श्रुत्वा तां नृपः केय-मिति जी. ५७ए त श्वान्यधात् / / 76 / / इसित्वा सावदद्देव / श्वश्रूम गृहकर्मणि / / पृथग्गृहस्थितेयत्यां / वेलायां नित्यमेत्यसौ / / 77 // राजा दध्यौ जरत्यापि / गृहीतं दुर्यशो मम // नवयौवनवद्भावि / जगा. | केमके हजु रात्री घणी , वळी नाह्याविना जे कामक्रीमा करवी ते गघाचारजेवू . // 14 // एवी रीतना तेणीना वचनथी जेवामां राजा स्नान करवा लाग्यो तेवामां संकेत करी राखेली ते. णीनी सासु बारणे यावीने कहेवा लागी के, // 35 // हे वहु ! दार उघाड? हजुसुधी शुं सुती पमी बं? ते सांजलीने राजा जाणे डरी गयो होय नहि तेम बोल्यो के aa वळी कोण ? // // 76 // त्यारे शीलवती हसीने बोली के जूदा घरमा रहेली मारी सासु हमेशां घरना कामकाजमाटे था वखते यहीं आवे . // 9 // त्यारे राजाए विचार्यु के या मोकरीए पण जाणेलो मारो या अपयश हवे युवान पुरुषनीपेठे पाखा जगतमां फेला जशे. // 70 // सोना उग्र Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.