________________ धग्नि-| दृशा जयस्पृशा पश्य-नवशः स दिशो दश // बन्नबन्नैः पदैश्चौर / श्वानीये चतुष्पथं // 6 // साई | नासापुटस्फुरत्वास -स्तस्या प्रासाद्य सझ सः॥ आबोटयन्नखैरा-री स्मररुजातुरः // 70 // कोऽस्ति दारीति पृष्टा सा / मंत्रिणा न्यगदन्मूद // स्यादेष नित्यं मे गेहे / निश्चितागमनो नृपः // 31 // युवापि प्रापितः कंप-वातं नाम्ना नृपस्य सः // वदारके तयाक्षेपि / मंजूषायास्तृतीयके // 32 // प्रदाय तालकं तत्र / सा दारमुदघाट्यत् // प्रवेश्य नृपति स्निग्धै—रालापैः समरंजयत् दिशातरफ जोतोयको गनागना पगलांनथी चोरनीपेठे ते चहुटामां श्राव्यो. // ६ए // बेक नाशिकासुधी थावेला श्वासवाळो तथा कामरोगथी थातुर थयेलो ते राजा तेणीना घरपासे था. वीने नखोथी बारणानो पागळीन गेकवा लाग्यो. // 70 // बारणे कोण ? एम मंत्रीए पूब वाथी तेणीए धीमेथी कह्यु के या वखते हमेशां मारे धेर भावनासे राजा होवो जोश्ये. // 11 // युवान छतां पण राजाना नामथी तेने कंपवायु थयो, त्यारे तेणीए तेने पेटीना वीजा खानामां पूरी दीधो. // 72 // परी तेणीए त्यां तालु देश्ने बारणु नघाड्युं, तया राजाने प्रवेश करावीने | मिष्ट वचनोथी खुशी को. // 3 // पनी तेणीए कह्यं के हे महाराज! आपने हुं स्नान करावं, | P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust