________________ धम्मि वदारे / मंजूषाया द्वितीयके // 64 // प्रवेश्याथ प्रियालापै-विनोधैष तयानपि // यावन्मंत्री व्यतीयाय / तावद्यामस्तृतीयकः // // 65 // तुरीयप्रहरस्यादौ / प्रदत्तावसरस्तया // कल्पांतेऽब्धिखिोदस्था-दुन्मर्यादो महीधवः // 577 | // 66 // ध्वांतसाधर्मिकपट-बन्नकायो निरायुधः // अनुपानहपदैकः / स्वसौधान्निरगान्नृपः // 6 // | नाजिझपत्परीवारं / नापादीत्कुलमंत्रिणः // किंतु कामग्रहग्रस्तः / प्रस्थितः स्वयमेव सः॥ 60 / / | पूरी दीधो. // 64 // पनी तेणीए मंत्रीने प्रवेश करावीने तथा प्रिय वचनोथी खुश करीने जेवामां स्नान कराववा मांडयुं, तेवामां रात्रीनो त्रीजो पहोर व्यतीत थयो. // 65 // हवे चोथा पहोरनी श्रादिमां ते. णीए वखत आपेलो होवाथी कल्पांतकाळना समुद्रनीपेठे मर्यादा तजीने राजा उठ्यो. // 66 // अंधकारसरखां वस्त्रथी शरीर ढांकीने हथियार तथा पगरखांविनानो एकाकी राजा पोताना महेल. मांथी नकल्यो. // 67 // तेणे परिखारने जणाव्यु नहि तथा कुलमंत्रीनने पूज्युं नहि, परंतु का. | मातुर थयोयको ते पोतेज त्यांथी चालवा लाग्यो. / / 60 / / परवश थश्ने नयनीत दृष्टिथी दशे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust